सम्पादकीय
पौधों में कार्बन डाईऑक्साइड सोखने की क्षमता घटी
अब तक यह माना जाता रहा है कि वाहनों से होने वाले प्रदूषण को कम करने में पेड़-पौधे अहम भूमिका निभाते हैं क्योंकि ये अपने भोजन बनाने की प्रक्रिया में कार्बन डाईऑक्साइड सोखते हैं और ऑक्सीजन छोड़ते है ।
यह बात सच भी है, मगर पहली बार यह तथ्य सामने आया है कि बढ़ता प्रदूषण पेड़-पौधों के कार्बन सोखने की क्षमता को घटा रहा है । वाहनों की अधिकांश आवाजाही वाले क्षेत्र में कार्बन सोखने की क्षमता ३६.७५ फीसदी कम पाई गई । यह बात देहरादून स्थित वन अनुसंधान संस्थान के ताजा शोध में सामने आई है ।
इस संस्थान में स्थित पौधो में कार्बन सोखने की दर ९.९६ माइक्रो मोल प्रति वर्गमीटर प्रति सेकण्ड पाई गई । जबकि चकराता रोड़ के पौधों में यह दर महज ६.३ रही । इसकी वजह पता चली कि चकराता रोड़ के पौधों की पत्तियां प्रदूषण से ढंक गई है । ऐसी स्थिति में पत्तियों के वेछिद्र अत्यधिक बंद पाए गए, जिनके माध्यम से पेड़-पौधे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया कर कार्बन डाईऑक्साइड सोखते है, इन छिद्रोंको खोलने के लिए पौधे भीतर से दबाव भी मार रहे हैं ।
जलवायु परिवर्तन व वन प्रभाव आकलन डिविजन के वैज्ञानिक डॉ. हुकुम सिंह के मुताबिक फोटो सिंथेसिस एनलाइजर से पौधों द्वारा कार्बन सोखने की स्थिति का पता लगाया गया ।
इस शोध के परिणामों में आधार पर देश के अन्य क्षेत्रों में भी इसी आधार पर शोध अध्ययन होंगे तो पता चलेगा कि उस क्षेत्र के पौधों में कार्बन डाईऑक्साइड सोखने की वास्तविक स्थिति क्या है । ऐसे शोध से हमें सटीक आंकड़े चाहे न मिले लेकिन हमारे वैज्ञानिक और नीति निर्माताआें को इसे गंभीरता से लेकर विचार करना होगा, क्योंकि ग्लोबल वार्मिंग की समस्या से इसका सीधा संबंध आता है ।
अब तक यह माना जाता रहा है कि वाहनों से होने वाले प्रदूषण को कम करने में पेड़-पौधे अहम भूमिका निभाते हैं क्योंकि ये अपने भोजन बनाने की प्रक्रिया में कार्बन डाईऑक्साइड सोखते हैं और ऑक्सीजन छोड़ते है ।
यह बात सच भी है, मगर पहली बार यह तथ्य सामने आया है कि बढ़ता प्रदूषण पेड़-पौधों के कार्बन सोखने की क्षमता को घटा रहा है । वाहनों की अधिकांश आवाजाही वाले क्षेत्र में कार्बन सोखने की क्षमता ३६.७५ फीसदी कम पाई गई । यह बात देहरादून स्थित वन अनुसंधान संस्थान के ताजा शोध में सामने आई है ।
इस संस्थान में स्थित पौधो में कार्बन सोखने की दर ९.९६ माइक्रो मोल प्रति वर्गमीटर प्रति सेकण्ड पाई गई । जबकि चकराता रोड़ के पौधों में यह दर महज ६.३ रही । इसकी वजह पता चली कि चकराता रोड़ के पौधों की पत्तियां प्रदूषण से ढंक गई है । ऐसी स्थिति में पत्तियों के वेछिद्र अत्यधिक बंद पाए गए, जिनके माध्यम से पेड़-पौधे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया कर कार्बन डाईऑक्साइड सोखते है, इन छिद्रोंको खोलने के लिए पौधे भीतर से दबाव भी मार रहे हैं ।
जलवायु परिवर्तन व वन प्रभाव आकलन डिविजन के वैज्ञानिक डॉ. हुकुम सिंह के मुताबिक फोटो सिंथेसिस एनलाइजर से पौधों द्वारा कार्बन सोखने की स्थिति का पता लगाया गया ।
इस शोध के परिणामों में आधार पर देश के अन्य क्षेत्रों में भी इसी आधार पर शोध अध्ययन होंगे तो पता चलेगा कि उस क्षेत्र के पौधों में कार्बन डाईऑक्साइड सोखने की वास्तविक स्थिति क्या है । ऐसे शोध से हमें सटीक आंकड़े चाहे न मिले लेकिन हमारे वैज्ञानिक और नीति निर्माताआें को इसे गंभीरता से लेकर विचार करना होगा, क्योंकि ग्लोबल वार्मिंग की समस्या से इसका सीधा संबंध आता है ।
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