पत्रिका-४
जहां से हिन्दी पत्रकारिता को पहली पत्रिका मिली
आशीष दशोत्तर
हिन्दी पत्रकारिता के इतिहास की गौरवगाथा मेंमध्यप्रदेश के रतलाम का नाम उल्लेखनीय उपलब्धि के साथ शुमार किया जाता है क्योंकि यहीं से हिन्दी की पहली पत्रिका प्रकाशित हुई थी और हिन्दी को पहली पत्रिका देने वाले रतलाम ने ही सौ साल बाद फिर से देश को हिन्दी में पर्यावरण पत्रकारिता की पहली पत्रिका देने का गौरव भी हासिल किया ।
इस लिहाज से रतलाम को हिन्दी का प्रथम पत्रिका प्रदाता शहर कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी । हिन्दी पत्रकारिता के इतिहास में पहली हिन्दी पत्रिका का प्रकाशन रतलाम से हुआ । विदुषी एवं महिला हितों के लिए कार्य करने वाली महिला श्रीमती हेमन्तकुमारी देवी चौधरी ने रतलाम से देश की पहली हिन्दी पत्रिका सुगृहणी का प्रकाशन सन् १८८८ में किया ।
जहां से हिन्दी पत्रकारिता को पहली पत्रिका मिली
आशीष दशोत्तर
हिन्दी पत्रकारिता के इतिहास की गौरवगाथा मेंमध्यप्रदेश के रतलाम का नाम उल्लेखनीय उपलब्धि के साथ शुमार किया जाता है क्योंकि यहीं से हिन्दी की पहली पत्रिका प्रकाशित हुई थी और हिन्दी को पहली पत्रिका देने वाले रतलाम ने ही सौ साल बाद फिर से देश को हिन्दी में पर्यावरण पत्रकारिता की पहली पत्रिका देने का गौरव भी हासिल किया ।
इस लिहाज से रतलाम को हिन्दी का प्रथम पत्रिका प्रदाता शहर कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी । हिन्दी पत्रकारिता के इतिहास में पहली हिन्दी पत्रिका का प्रकाशन रतलाम से हुआ । विदुषी एवं महिला हितों के लिए कार्य करने वाली महिला श्रीमती हेमन्तकुमारी देवी चौधरी ने रतलाम से देश की पहली हिन्दी पत्रिका सुगृहणी का प्रकाशन सन् १८८८ में किया ।
लाहौर में १७ अक्टूबर १८६८ को बाबू नवीनचन्द्र राय के यहां जन्मी हेमन्तकुमारी देवी की मातृ भाषा बांग्ला थी परन्तु हिन्दी से उन्हें विशेष अनुराग था । आगरा, लाहौर और कोलकाता में पढ़ी हेमन्तकुमारी देवी का विवाह सिलहट निवासी रामचन्द्र चौधुरी से हुआ । श्री चौधुरी रतलाम रियासत में नौकरी के लिए आए तो पति के साथ हेमन्तकुमारी देवी भी रतलाम आ गई । अपनी मातृभाषा मेंहो रहे महिला उत्थान के प्रयासों के कारण उनकी प्रबल इच्छा थी कि हिन्दी में भी कोई पत्रिका प्रकाशित की जाए जो महिलाआेंको जागरूक बना सके । वे रतलाम की तत्कालीन महारानी को हिन्दी की शिक्षा भी देने लगी थी । अपने हिन्दी प्रेम को आगे बढ़ाने और महिला हितों के प्रयासों को समाज के सामने लाने के उद्देश्य से उन्होंने फरवरी १८८८ में रतलाम से सुगृहिणी नामक पत्रिका का प्रकाशन प्रारंभ किया ।
इस प्रकार हिन्दी पत्रकारिता को पहली महिला विषयक पत्रिका देने का श्रेय रतलाम को मिला । जिस समय उन्होंने सुगृहिणी का प्रकाशन किया उस समय उनकी उम्र मात्र बीस वर्ष की थी । इस लिहाज से देश को पहली महिला और युवा संपादक को पाने का अवसर मिला । रतलाम में उस समय मुद्रण की बेहतर व्यवस्था न होने से उन्होंने पत्रिका का मुद्रण लखनऊ और बाद में लाहौर से भी कराया । हालांकि रतलाम से इसका प्रकाशन एक वर्ष ही हुआ इसके बाद पति के साथ वे शिलांग और उसके बाद सिलहट चली गई । मगर पत्रिका का प्रकाशन तमाम कठिनाईयों के बाद भी वे लगातार तीन-चार वर्षो तक करती रही । इसके बाद उन्होंने बंगाली मासिक अंत:पुर का प्रकाशन भी किया । वे देहरादून म्युनिसिपल कमिश्नर भी बनी । उनका देहावसान १९५३ में देहरादून में हुआ ।
इसे संयोग कहे या हेमन्तकुमारी देवी चौधरी द्वारा किए गए पत्रकारिता के बीजारोपण का प्रभाव कि उनके द्वारा रतलाम में किए गए ऐतिहासिक पहल के ठीक सौ साल बाद यानी १९८७ में रतलाम ने देश को पहली पर्यावरण पत्रिका दी जिसे देश ने पर्यावरण डाइजेस्ट के नाम से जाना । मध्यप्रदेश के रतलाम शहर से जनवरी ८७ से सतत् प्रकाशित हो रही मासिक पर्यावरण डाइजेस्ट ने बेहद सीमित संसाधनोंऔर प्रबल इच्छाशक्ति के बलबूते तीस बरसों का लम्बा सफर तय किया है ।
देश की पहली महिला संपादक श्रीमती हेमन्तकुमारी देवी की पत्रिका की शुरूआत के समय उम्र बीस वर्ष की थी तो पर्यावरण की पहली पत्रिका देने वाले संपादक डॉ. खुशालसिंह पुरोहित ने मात्र तीस वर्ष की आयु मेंअपने कुशल संपादन से हिन्दी पत्रकारिता को पर्यावरण डाइजेस्ट के माध्यम से एक नई परम्परा कायम कर विशिष्ट स्थान बनाया । पत्रिका ने क्षेत्रीय होते हुए भी राष्ट्रीय स्तर को छुआ । मध्यप्रदेश के पत्रकारिता इतिहास में पर्यावरण पत्रकारिता के आगाज का श्रेय इस पत्रिका के नाम लिखा जा सकता है ।
पर्यावरण के जिस विचार को मुश्किल समझा जाता है पत्रिका उसका सरलीकरण करने में सफल हुई है । इसमें आलेखों की सारगर्भिता, सरलता, संक्षिप्त और भाषा की प्रवाहमयता अपने आप में अनूठी है । प्रकृतिऔर मानवीय सरोकार से ओतप्रोत पत्रिका की प्रतिबद्धता हर समय पाठकों के प्रति रही है । युग मनीषी साहित्यकार डॉ. शिवमंगलसिंह सुमन ने अपनी टिप्पणी में लिखा था कि पर्यावरण डाइजेस्ट पत्रिका नैरन्तर्य के साथ ही स्तरीयता के मानक को बनाए रख सकी है जो आज के समय को देखते हुए मूल्य आधारित पत्रकारिता का द्योतक है ।
भारत में विकसित हो रही पर्यावरण रक्षण चेतना के आरंभिक काल में ही जिन लोगों ने इस खतरे की गंभीरता को समझकर इसके विरूद्ध जीवन समर्पण का व्रत लिया, ऐसे कृति व्यक्तियों में डॉ. खुशालसिंह पुरोहित शामिल है । पर्यावरण संरक्षण की लोक चेतना के पर्याय बन चुके वरिष्ठ पत्रकार डॉ. खुशालसिंह पुरोहित का जन्म १० जून १९५५ को मध्यप्रदेश के धार जिले के ग्राम काछीबडौदा के एक किसान परिवार में हुआ । डॉ. शिवमंगल सुमन के निर्देशन में हिन्दी पत्रकारिता विषय पर लिखे शोध प्रबंध पर आपने पीएच.डी. की उपाधि ली । इसके बाद पर्यावरण विषय में नीदरलैण्ड से डी.लिट् की उपाधि प्राप्त् की ।
प्रख्यात पत्रकार यदुनाथ थते के. नरेन्द्र, बालेश्वर अग्रवाल, समाजवादी विचारक मामा बालेश्वर दयाल, प्रसिद्ध पर्यावरणवादी सुन्दरलाल बहुगणा, चण्डीप्रसाद भट्ट और अनिल अग्रवाल का सानिध्य मिला, इनके विचारों और कार्यो ने आपके युवा मन के सपनों को जीवन का संकल्प बनाने में सहायता की । इसी संकल्प की परिणति हुई पर्यावरण डाइजेस्ट के प्रकाशन के रूप में ।
प्रकृति और मानवीय संबंधों की अभिव्यक्तियों से ओतप्रोत यह पत्रिका पर्यावरण की असंख्य सूचनाआें, जानकारियों से भरी हुई है, जो आंखे खोलने के लिए ही नहीं बल्कि दुनिया के पर्यावरण की सही स्थिति से अवगत कराते हुए आमजन को भागीदारी के लिये उकसाती है ।
पर्यावरण डाइजेस्ट की विशेषता है कि इसमें समाचार विचार और दृष्टिकोण का समन्वय है जो पत्रिका की पठनीयता को बढ़ाता है । समसामयिक मुद्दों ऊर्जा, स्वास्थ्य, रहन-सहन, वन्य जीवन, स्थायी विकास, प्रौघोगिकी जैसे मुद्दों से जुड़ी वैचारिक सामग्री के प्रचार-प्रसार में पत्रिका अग्रणी रही है । पर्यावरणीय वैचारिक प्रचार-प्रसार की सफलता के लिए यह जरूरी है कि सच्च्े मायनों में जनजागृति और लोक शिक्षा से जन्मा और जगा स्वयंसेवी समझदार प्रयास हो ।
देश की पहली पत्रिका देने वाली श्रीमती हेमन्तकुमारी देवी चौधरी ने महिला शिक्षा महिलाआें की स्थिति में सुधार और महिला हितों की अलख अपनी पत्रिका के माध्यम से जगाई थी और देश को पहली पर्यावरण पत्रिका देने वाले डॉ. खुशालसिंह पुरोहित ने पर्यावरण के संवेदनशील विषय को केन्द्र बनाकर देश के वातावरण को पवित्र करने का प्रयास किया है । हेमन्त कुमार देवी के प्रयास से अब तक कितनी ही पत्रिकाएं प्रकाशित हो चुकी है मगर इस प्रयास का नाम हिन्दी पत्रकारिता के इतिहास मेंगौरव के साथ दर्ज है ।
इस प्रकार हिन्दी पत्रकारिता को पहली महिला विषयक पत्रिका देने का श्रेय रतलाम को मिला । जिस समय उन्होंने सुगृहिणी का प्रकाशन किया उस समय उनकी उम्र मात्र बीस वर्ष की थी । इस लिहाज से देश को पहली महिला और युवा संपादक को पाने का अवसर मिला । रतलाम में उस समय मुद्रण की बेहतर व्यवस्था न होने से उन्होंने पत्रिका का मुद्रण लखनऊ और बाद में लाहौर से भी कराया । हालांकि रतलाम से इसका प्रकाशन एक वर्ष ही हुआ इसके बाद पति के साथ वे शिलांग और उसके बाद सिलहट चली गई । मगर पत्रिका का प्रकाशन तमाम कठिनाईयों के बाद भी वे लगातार तीन-चार वर्षो तक करती रही । इसके बाद उन्होंने बंगाली मासिक अंत:पुर का प्रकाशन भी किया । वे देहरादून म्युनिसिपल कमिश्नर भी बनी । उनका देहावसान १९५३ में देहरादून में हुआ ।
इसे संयोग कहे या हेमन्तकुमारी देवी चौधरी द्वारा किए गए पत्रकारिता के बीजारोपण का प्रभाव कि उनके द्वारा रतलाम में किए गए ऐतिहासिक पहल के ठीक सौ साल बाद यानी १९८७ में रतलाम ने देश को पहली पर्यावरण पत्रिका दी जिसे देश ने पर्यावरण डाइजेस्ट के नाम से जाना । मध्यप्रदेश के रतलाम शहर से जनवरी ८७ से सतत् प्रकाशित हो रही मासिक पर्यावरण डाइजेस्ट ने बेहद सीमित संसाधनोंऔर प्रबल इच्छाशक्ति के बलबूते तीस बरसों का लम्बा सफर तय किया है ।
देश की पहली महिला संपादक श्रीमती हेमन्तकुमारी देवी की पत्रिका की शुरूआत के समय उम्र बीस वर्ष की थी तो पर्यावरण की पहली पत्रिका देने वाले संपादक डॉ. खुशालसिंह पुरोहित ने मात्र तीस वर्ष की आयु मेंअपने कुशल संपादन से हिन्दी पत्रकारिता को पर्यावरण डाइजेस्ट के माध्यम से एक नई परम्परा कायम कर विशिष्ट स्थान बनाया । पत्रिका ने क्षेत्रीय होते हुए भी राष्ट्रीय स्तर को छुआ । मध्यप्रदेश के पत्रकारिता इतिहास में पर्यावरण पत्रकारिता के आगाज का श्रेय इस पत्रिका के नाम लिखा जा सकता है ।
पर्यावरण के जिस विचार को मुश्किल समझा जाता है पत्रिका उसका सरलीकरण करने में सफल हुई है । इसमें आलेखों की सारगर्भिता, सरलता, संक्षिप्त और भाषा की प्रवाहमयता अपने आप में अनूठी है । प्रकृतिऔर मानवीय सरोकार से ओतप्रोत पत्रिका की प्रतिबद्धता हर समय पाठकों के प्रति रही है । युग मनीषी साहित्यकार डॉ. शिवमंगलसिंह सुमन ने अपनी टिप्पणी में लिखा था कि पर्यावरण डाइजेस्ट पत्रिका नैरन्तर्य के साथ ही स्तरीयता के मानक को बनाए रख सकी है जो आज के समय को देखते हुए मूल्य आधारित पत्रकारिता का द्योतक है ।
भारत में विकसित हो रही पर्यावरण रक्षण चेतना के आरंभिक काल में ही जिन लोगों ने इस खतरे की गंभीरता को समझकर इसके विरूद्ध जीवन समर्पण का व्रत लिया, ऐसे कृति व्यक्तियों में डॉ. खुशालसिंह पुरोहित शामिल है । पर्यावरण संरक्षण की लोक चेतना के पर्याय बन चुके वरिष्ठ पत्रकार डॉ. खुशालसिंह पुरोहित का जन्म १० जून १९५५ को मध्यप्रदेश के धार जिले के ग्राम काछीबडौदा के एक किसान परिवार में हुआ । डॉ. शिवमंगल सुमन के निर्देशन में हिन्दी पत्रकारिता विषय पर लिखे शोध प्रबंध पर आपने पीएच.डी. की उपाधि ली । इसके बाद पर्यावरण विषय में नीदरलैण्ड से डी.लिट् की उपाधि प्राप्त् की ।
प्रख्यात पत्रकार यदुनाथ थते के. नरेन्द्र, बालेश्वर अग्रवाल, समाजवादी विचारक मामा बालेश्वर दयाल, प्रसिद्ध पर्यावरणवादी सुन्दरलाल बहुगणा, चण्डीप्रसाद भट्ट और अनिल अग्रवाल का सानिध्य मिला, इनके विचारों और कार्यो ने आपके युवा मन के सपनों को जीवन का संकल्प बनाने में सहायता की । इसी संकल्प की परिणति हुई पर्यावरण डाइजेस्ट के प्रकाशन के रूप में ।
प्रकृति और मानवीय संबंधों की अभिव्यक्तियों से ओतप्रोत यह पत्रिका पर्यावरण की असंख्य सूचनाआें, जानकारियों से भरी हुई है, जो आंखे खोलने के लिए ही नहीं बल्कि दुनिया के पर्यावरण की सही स्थिति से अवगत कराते हुए आमजन को भागीदारी के लिये उकसाती है ।
पर्यावरण डाइजेस्ट की विशेषता है कि इसमें समाचार विचार और दृष्टिकोण का समन्वय है जो पत्रिका की पठनीयता को बढ़ाता है । समसामयिक मुद्दों ऊर्जा, स्वास्थ्य, रहन-सहन, वन्य जीवन, स्थायी विकास, प्रौघोगिकी जैसे मुद्दों से जुड़ी वैचारिक सामग्री के प्रचार-प्रसार में पत्रिका अग्रणी रही है । पर्यावरणीय वैचारिक प्रचार-प्रसार की सफलता के लिए यह जरूरी है कि सच्च्े मायनों में जनजागृति और लोक शिक्षा से जन्मा और जगा स्वयंसेवी समझदार प्रयास हो ।
देश की पहली पत्रिका देने वाली श्रीमती हेमन्तकुमारी देवी चौधरी ने महिला शिक्षा महिलाआें की स्थिति में सुधार और महिला हितों की अलख अपनी पत्रिका के माध्यम से जगाई थी और देश को पहली पर्यावरण पत्रिका देने वाले डॉ. खुशालसिंह पुरोहित ने पर्यावरण के संवेदनशील विषय को केन्द्र बनाकर देश के वातावरण को पवित्र करने का प्रयास किया है । हेमन्त कुमार देवी के प्रयास से अब तक कितनी ही पत्रिकाएं प्रकाशित हो चुकी है मगर इस प्रयास का नाम हिन्दी पत्रकारिता के इतिहास मेंगौरव के साथ दर्ज है ।
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