मंगलवार, 16 मई 2017

जीवन शैली
घटती प्रसन्नता और बढ़ता प्रदूषण
डॉ. ओ.पी. जोशी
    किसी देश की समृद्धि तब मायने रखती है जब वह नागरिकों के स्तर पर हो । लेकिन दुर्भाग्य है कि देश का जोर आम लोगों की खुशहाली के बजाय राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के  आकार को बढ़ाने पर है ।
    इसके चलते 'प्रसन्नता` का ग्राफ लगातार घट रहा है । इसकी एक वजह बढ़ता पर्यावरण प्रदूषण हो सकती हैं। विडंबना है कि आंनद की तलाश में प्रकृति के बीच रहने वाला मनुष्य अपने स्वास्थ्य खतरों से जूझ रहा   है । 
   अभी कुछ माह पूर्व ही वर्ल्ड हेप्पीनेस रिपोर्ट में बताया गया कि हमारा देश हेप्पीनेस, खुशहाली या प्रसन्नता के आंकलन में आसपास के देश नेपाल, चीन एवं पाकिस्तान से भी पीछे या नीचे है । जिन ८-९ पैमानों पर खुशी का आकलन किया गया, उनमें स्वास्थ्य भी एक था । स्वास्थ्य का सीधा संबंध हमारे आसपास के वातावरण या पर्यावरण से होता है। स्वस्थ आदमी तो खुशहाल या प्रसन्न रहता है जबकि बीमार परेशान ।
    देश में बढ़ता पर्यावरण प्रदूषण देशवासियों पर प्रभाव डालकर उसमें कई प्रकार के रोग पैदा कर रहा है तो फिर वे खुश कैसे रहेंगे ? इसका तात्पर्य यही हुआ कि बढ़ता प्रदूषण देशवासियों को बीमार कर उनकी खुशियां या प्रसन्नता को कम या समाप्त कर रहा है । प्रदूषण के संदर्भ में चीन हम से आगे था, परंतु पिछले कुछ वर्षों में वहां विभिन्न स्तरों पर प्रदूषण कम करने के  सफल प्रयास हुए एवं शायद इसलिए वहां खुशहाली बढ़ी एवं वह हमसे आगे हो गया । पुराने जमाने में एक कहावत कही जाती थी ``सौ दवा की एक दवा, ताजी व साफ हवा``। परंतु अब बढ़ते प्रदूषण के कारण हवा न ताजी रही न साफ । वायु प्रदूषण अब महानगरों के साथ साथ छोटे शहरों व कस्बांे में भी फैल गया है। देश के १२० से ज्यादा शहरों में वायु प्रदूषण की स्थिति खतरनाक है ।
    वायु प्रदूषण के कारण भारत व चीन में फेफड़े तथा त्वचा कैंसर के रोग बढ़े है । बैंगलुरु अस्थमा की राजधानी बन गया है । एक अध्ययन के अनुसार बढ़ते वायु प्रदूषण के कारण देश के लोगों की श्वसन क्षमता यूरोप के लोगों की तुलना में २५ से ३० प्रतिशत कम है ।
    अमेरीकी एजेंसी नासा के सेटेलाइट इमेज से प्राप्त जानकारी के अनुसार वर्ष २००५ से २०१५ के  मध्य देश में वायु प्रदूषण काफी   बढ़ा । एक अध्ययन के अनुसार दिल्ली शहर के ४४ लाख स्कूली बच्चें में से आधों के फेफड़े विषैली हवा से खराब हो गये हैं ये बच्च्े जब बड़े होकर रोगग्रस्त हांेगे तो खुशी का तो प्रश्न ही नहीं ।
    विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वर्ष २०१६ में दुनिया के जो २० प्रदूषित शहर बताये थे उनमें १० हमारे देश के थे । पर्यावरण प्रदूषण बाबद् नियम कानून बनाकर लागू करने वाली हमारे देश की राजधानी दिल्ली तो वर्षांे से प्रदूषण में अव्वल है । हर वर्ष लगभग १० लाख लोगों की मौत वायु प्रदूषण के कारण देश में होती है । परंतु केन्द्र का पर्यावरण विभाग इससे सहमत नहीं है । आंकड़े व संख्या तथा मानना नहीं मानना इन सबको छोड़ दें परंतु वह सच्चई है कि वायु प्रदूषण हमारा स्वास्थ्य बिगाड़ रहा है एवं इससे अस्थमा, दमा, हृदयाघात, आंखों के रोग एवं फेफड़ें, त्वचा, रक्त, स्तन तथा ब्लड कैंसर फैल रहे हैं ।
    वायु के साथ-साथ अब देश का जल भी स्वास्थ्यवर्धक न होकर रोग जन्य हो गया है । केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण मंडल के अनुसार देश के १५० यदि क्षेत्र प्रदूषित है एवं ९०० शहरों का ७० प्रतिशत गंदा पानी बगैर उपचार के आसपास के स्त्रोतों में छोड़ दिया जाता है । वर्ष २०१० से एक (नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक) ने संसद में प्रस्तुत रिपोर्ट में बताया था कि घरेलू उपयोग का पेयजल अक्सर प्रदूषित तथा रोग फैलाने वाले विशाणुओं से युक्त होता है । जल संसाधन मंत्रालय की संसदीय सलाहकार समिति ने सितंबर २०१६ में बताया था कि १० राज्यों के ८९ जिलों, २० राज्योें के ३१७ जिलों एवं २० राज्यों के ही ३८७ जिलों में क्रमश: आर्सेनिक, लोराइड व नाइट्रेट की अधिकता जल से है। कानपुर के उन्नाव के क्षेत्र में आर्सेनिक के कारण विकलांगता व गोरखपुर में जल जनित रोगों से बच्चें की मौत की भी कई घटनाएं हुई है ।
    विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी हाल ही में जारी अपनी रिपोर्ट में बताया है कि भारत में मल युक्त स्त्रोत से प्राप्त जल का उपयोग अधिकांश लोग कर रहे है जिससे डायरिया पीलिया, टाईफाइड़ व हैजा जैसे रोग फैल रहे हैं । ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव से डेंगू व चिकनगुनिया का प्रकोप भी बढ़ रहा है । देश के ४०० से ज्यादा जिलों में भूजल भी प्रदूषित पाया गया है। प्रतिवर्ष ३.५ करोड़ लोग जल जनित रोगों का शिकार होते हैं ।
    खुशियांे को शोर से दर्शाने वाले हमारे देश में अब शोर में इतना प्रदूषण होने लगा है कि खुशियां गायब होने लगी है एवं मानसिक तनाव बढ़ने लगा है । मुंबई, दिल्ली व हैदराबाद दुनिया के सर्वाधिक शोर वाले शहरों में शामिल है। महानगरांे के साथ-साथ मध्यम तथा छोटे शहरों में भी शोर प्रदूषण फैल गया है । शोर का प्रभाव स्वास्थ्य पर धीमे जहर के समान लम्बे समय से दिखायी देता   है । सिरदर्द, नींद में कमी, पाचनक्रिया में गड़बड़, चिड़चिड़ापन एवं आक्रामकता आदि शोर प्रदूषण के सामान्य प्रभाव है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने ग्वालियर में एक मोबाइल टॉवर बंद करने का आदेश इस आधार पर दिया कि इसके कारण वहां के निवासी श्री हरीशचन्द्र तिवारी को कैंंसर हुआ ।
    इटली के एक कोर्ट में भी अभी-अभी ट्यूमर का कारण मोबाइल बताया है । पूर्व में भी जर्मनी, इज़राइल तथा अन्य देशों में किये अध्ययनों के अनुसार टावर्स के आसपास लगभग ५०० मीटर के  क्षेत्र में कैंसर का खतरा ज्यादा रहता है। वर्तमान में देश में पांच लाख से ज्यादा मोबाइल टावर्स है जिससे पैदा रेडियेशन के प्रभावों का कोई विस्तृत वैज्ञाानिक अध्ययन हमारे पास नहीं है या बताया नहीं जा रहा है क्योंकि दूर संचार के इस व्यापार से देश की जानी मानी हस्तियां जुड़ी हैं ।
    आई.आई.टी., चेन्नई का अध्ययन कहता है कि टावर्स के रेडियेशन अंर्तराष्ट्रीय मानकांे के अनुसार है, जबकि आई.आई.टी., मुंबई के अनुसार ये स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है । यही के प्रोफेसर गिरीश कुमार का मत है कि टावर्स २० गुना ज्यादा रेडियेशन फैला रहे   हैं ।
    प्रदूषण के इन प्रभावांे से पैदा रोग एवं मौतांे के अलावा देश में बिकने वाले कई प्रकार के खाद्य व पेय पदार्थांे में कीटनाशकों की उपस्थिति निर्धारित स्तर से ज्यादा आंकी गयी है, जो स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डालकर कई प्रकार की बीमारियां पैदा कर रही है ।
    देश के कुछ क्षेत्रों में तो महिलाओं के दूध में डी.डी.टी की मात्रा का आकलन हुआ है । इसके साथ ही खाने-पीने की कई वस्तुओं में मिलावट से भी स्वास्थ्य पर विपरीत असर होकर रोग पैदा हो रहे हैं । अत: लोगों में खुशहाली बढ़ाने हेतु पर्यावरण प्रदूषण तथा मिलावट पर नियंत्रण जरूरी है ।

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