कविता
वर्षा गीत
प्रज्ञा गौतम
बादल, बन अमृत कलश
बूंद-बूंद क्षरा
तृप्त् हुई रूक्ष - केशिणी
पीत वसना धरा
झूमे डाली बूंदो की लय पर
पवन की थाप से पुष्प गये बिखर
गगन में शुभ्र रेखा सा पंछी दल
ताल किनारे उतरा
घटा घनघोर, दिनकर का तेज घटा
भर लिया जब मेघों ने अंक में
नन्हें बालक सा
बुझा कर तृषा धरा की
पवन संग उड़ चली बदली
खिलखिलाये तारे
रंगत अंबर की बदली
दिन संध्या का भेद मिटा
नव दुल्हन सी आयी
दबे पाव निशा
धुले-धुले श्वेत कपासी आकाश में
झीने - अभ्रावरण से
शशांक हंस पड़ा । ।
वर्षा गीत
प्रज्ञा गौतम
बादल, बन अमृत कलश
बूंद-बूंद क्षरा
तृप्त् हुई रूक्ष - केशिणी
पीत वसना धरा
झूमे डाली बूंदो की लय पर
पवन की थाप से पुष्प गये बिखर
गगन में शुभ्र रेखा सा पंछी दल
ताल किनारे उतरा
घटा घनघोर, दिनकर का तेज घटा
भर लिया जब मेघों ने अंक में
नन्हें बालक सा
बुझा कर तृषा धरा की
पवन संग उड़ चली बदली
खिलखिलाये तारे
रंगत अंबर की बदली
दिन संध्या का भेद मिटा
नव दुल्हन सी आयी
दबे पाव निशा
धुले-धुले श्वेत कपासी आकाश में
झीने - अभ्रावरण से
शशांक हंस पड़ा । ।
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