मंगलवार, 15 अगस्त 2017

पर्यावरण परिक्रमा
दो डिग्री बढ़ गया अंटार्कटिका का तापमान
अंटार्कटिका में (हिमचट्टान) लार्सेन सी का एक हिस्सा टूटकर अलग (क्रेक) हो रहा है । वैज्ञानिक इस हिमखंड के अलग होने का कारण कार्बन उत्सर्जन को बता रहे हैं । कार्बन उत्सर्जन से वैश्विक तापमान बढ़ रहा है, जिससे बर्फ पिघल रहा है । अंटार्कटिका पर अध्ययन करने वाले जियोलोजिकल सर्वे ऑफ इण्डिया (जीएसआई) की एक रिपोर्ट के मुताबिक करीब सवा सौ साल में अंटार्कटिका के तापमान मेंदो डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई  है । फरीदाबाद के एनएच-४ स्थित जीएसआई के वैज्ञानिकों द्वारा पिछली दो शताब्दियों में अंटार्कटिका से एकत्र किए गए बर्फ के नमूनों से इस बात की जानकारी जुलाई माह में मिली  है । अंटार्कटिका में सीओटू ४५० पीपीएम हुआ तो समुद्री जलस्तर खतरनाक स्तर तक उठ जाएगा । वैज्ञानिकों के मुताबिक अत्यधिक कार्बन उत्सर्जन और बढ़ते तापमान के कारण समुद्र तटीय देशों के डूबने का खतरा है । जीएसआई के पूर्व डायरेक्टर एचएस सैनी का कहना है कि यह बहुत खतरनाक घटना है । ग्लेशियर के इतने बड़े पार्ट पर के्रक आना बताता है कि ग्लोबल वार्मिंग का स्तर बढ़ रहा है । यह पूर्व में की गई गलतियों का नतीजा है । 
अंटार्कटिका में १०० मीटर नीचे तक के बर्फ के टुकड़ों से पता किया गया कि वहां कब-कब सीओटू की मात्रा कितनी थी । १९ झीलों के तलछट के ४२ नमूने निकाले गए   है । काल निर्धारण विधि से जांच  हुई जिससे वहां के ३२६५५ वर्ष पहले तक के जलवायु जानकारी मिली है ।
हिमखंड कार्बन उत्सर्जन की वजह से अलग हो रहे है । इससे तापमान बढ़ रहा है । समुद्री स्तर में बढ़ोत्तरी होने से अंडमान और निकोबार के कई द्वीप और बंगाल की खाड़ी में सुन्दरवन के हिस्से डूब सकते है । भारत की ७ हजार ५०० किलोमीटर लंबी तटीय रेखा को इससे खतरा है । 

दो बाघों को बचाने से ५२० करोड़ का फायदा
बाघों और मंगलयान की तुलना भले ही अजीब लगती है लेकिन एक नया जैव आर्थिक विश्लेषण बेहद दिलचस्प आंकड़े पेश करता है । इसके अनुसार दो बाघों का बचाने से होने वाला लाभ मंगलयान परियोजना पर आई लागत से कहीं ज्यादा है । भोपाल स्थित भारतीय वन प्रबंधन संस्थान के प्रोफेसर मधु वर्मा के नेतृत्व वाले भारतीय ऑस्ट्रेलियाई वैज्ञानिकों के दल ने यह अनूठा विश्लेषण किया है, जिसकी रिपोर्ट मेकिग द हिडन विजिबल : इकनॉमिक वैल्यूएशन ऑफ टाइगर रिजर्व्ज इन इण्डिया शीर्षक से इकोसिस्टम सर्विसेस जर्नल में प्रकाशित हुआ है । 
इसमें कहा गया है कि दो बाघों को बचाने व उनकी देखभाल से होने वाला पूंजीगत लाभ करीब ५२० करोड़ रूपए है, जबकि इसरो की मंगल ग्रह पर मंगलयान भेजने की तैयारी की कुल लागत ४५० करोड़ रूपए है । अंतिम अनुमोदन के अनुसार, भारत में वयस्क बाघों की संख्या २,२२६ है, जिसका मतलब है कि कुल पूंजीगत लाभ ५.७ लाख करोड़ रूपए होगा । 

स्कूल में विद्यार्थी पौधे लगाएंगे तो नम्बर पाएंगे 
झारखंड के हजारीबाग जिले के हाईस्कूलों में पर्यावरण संरक्षण को लेकर अनोखी पहल की गई है । यहां पौधरोपण को विद्यार्थियों के जन्मदिन और प्रदर्शन से जोड़कर अभियान को नई धार देने की कोशिश की गई है । इस व्यवस्था के तहत बच्च्े अपने जन्मदिन के मौके पर स्कूल मेंपौधरोपण करते हैं । इसके लिए उन्हें वार्षिक परीक्षा में अंक भी दिए जाएंगे । 
यह पहल जिला शिक्षा पदाधिकारी सरिता दादेल ने की है । वे बताती है कि स्कूलोंमें जो व्यवस्था बनाई गई है उसके तहत जन्मदिन पर लगाए गए पौधों की देखभाल के लिए कक्षा नौ में नामांकन लेने वाले विद्यार्थी इन्हें गोद लेंगे और शिक्षक इसकी निगरानी करेगे । जिला शिक्षा पदाधिकारी सरिता दादेल ने इसके लिए जिलास्तरीय प्रधानाचार्यो की बैठक में पिछले दिनों इसे ध्वनिमत से पारित कराने के बाद जिले में लागू कराया । 
जिले में कुल ११० उच्च् विद्यालय है, जहां यह योजना लागू की जा रही है । इन स्कूलों में २४१६७ विद्यार्थी पढ़ते है । वहीं जिला स्तर पर ऐसे बेहतरीन कार्य करने वाले १० विद्यार्थियों को शिक्षा विभाग सम्मानित भी करेगा । विद्यार्थियों को पौधा लगाने के सामाजिक विज्ञान में अंक निर्धारित किए गए है । 

अर्थी की बची सामग्री से बनाया ट्री गार्ड 
म.प्र. में विदिशा जिला मुख्यालय स्थित मुक्तिधाम में पर्यावरण संरक्षण के लिए अर्थी की बची सामग्री से ट्री गार्ड बनाने की अनूठी पहल की गई है । 
सूत्रों के अनुसार मुक्तिधाम में अर्थी की बची सामग्री से बड़ी संख्या में बनाए ट्री गार्ड से अनेक हरे भरे वृक्षों को बचाने की अनूठी पहल पर्यावरण प्रेमियों को एक नया संदेश दे रही है । पहले यहां लोहे के ट्री गार्ड चोरी हो जाते थे । इसलिए अर्थी के बांस और अर्थी बनाने वाले रस्सी से बनाए अनूठे ट्री गार्ड नए पौधों को बचाने से वरदान साबित हो रहे है । 
विदिशा के मुक्तीधाम में अर्थी की सामग्री से बने ट्री गार्ड को डर के मारे चोर भी नहीं चुराते । बगैर छुआछूत के नियमित श्रमदान करते विदिशा के चंद श्रमदानियों के अभिनव प्रयोग से सैकड़ों वृक्षों का संरक्षण और सम्वर्धन आसान हो गया है । हाल ही में प्रदेश सरकार ने पूरे प्रदेश में पौधरोपण कर प्रदेश को हराभरा बनाने की कोशिश की है जिसे कामयाब बनाने हेतु पौधरोपण के बाद उन वृक्षों का संरक्षण करने और सुरक्षित रखने की चिंता करते विदिशा के नागरिकों ने यह अनूठी पहल की है । खास बात यह है कि पर्यावरण संरक्षण को समर्पित विदिशा के मुक्तिधाम में वृक्षों के संरक्षण के लिए बिना किसी सरकारी सहायता और बिना खर्च के ये ट्री गार्ड बनाये है । इन नए ट्री गार्ड के ना तो चोरी होने का डर है और ना किसी के ले जाने का खतरा है । 

गंभीर जल संकट के कगार पर देश
पिछले दिनों आगरा जिले में पानी नहीं पहुंचने की शिकायत पर अधिकारी जांच को जाते हैं, तो गुस्साए किसान उन पर भी हमला कर देते हैं । 
आसन्न जल संकट की यह आहट भर है । पानी को लेकर न सिर्फ लोगों बल्कि राज्यों के बीच संघर्ष पनप रहा है । दूसरी ओर राज्य सरकारें जल को स्वच्छ और सहेजकर रखने के उत्तरदायित्व से बच रही है । जल पर राष्ट्रीय कानून व स्पष्ट नीति के अभाव में समस्या और विकराल होती जा रही है । साल प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता घटती जा रही है । केन्द्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) के अनुसार वर्ष २०५० में देश प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता घटकर ११४० घन मीटर रह जाएगी जबकि २०१० में यह १६०८.२६ घन मीटर थी । देश जब आजाद हुआ था उस समय प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता छह हजार घन मीटर से अधिक थी । 
विशेषज्ञों के मुताबिक, संकट इसलिए बढ़ रहा है क्योंकि देश में पानी को लेकर न तो कोई राष्ट्रीय कानून है और न ही कोई स्पष्ट नीति है । इसराइल, दक्षिण अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में जल पर राष्ट्रीय कानून है । भारतीय संविधान में जल राज्य का विषय है । जल आपूर्ति, सिंचाई, नहर, ड्रेनेज और जल संचयन जैसे विषयों पर नियम-कानून राज्य ही बना सकते है । केन्द्र को सिर्फ नदियों के विकास और नियमन का अधिकार है । 
जल पर स्वामित्व के लिए तो राज्य सरकारें आगे रहती है, लेकिन इसे स्वच्छ रखने के उत्तरदायित्व स्वीकारने से बचती है । इसका एक उदाहरण कानपुर शहर है, जिसकी आबादी करीब ५० लाख है और जो चमड़ा उद्योग का केन्द्र है । गंगा के किनारे बसे इस शहर में सीवेंज ट्रीटमेट की जितनी क्षमता होनी चाहिए, वह बनाने की जिम्मेदारी कभी उत्तरप्रदेश सरकार ने महसूस नहीं की । खुद कानपुर नगर निगम के कमिश्नर ने ८ मार्च, २०१७ को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के समक्ष माना कि शहर में १६६९ कालोनी है । इनमें से १५२ कालोनी अनियोजित है और ३९७ झुग्गियंा   है । झुग्गियां और अवैध कालोनी में सीवर नहीं है । शहर में जहां भी सीवर लाइनें है, उनमें से ७० प्रतिशत ब्लॉक है और सिर्फ ३० प्रतिशत ही चल रही है । केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण् बोर्ड की रिपोर्ट भी बताती है कि शहरी क्षेत्रों से प्रतिदिन ६२००० मिलियन लीटर (एमएलडी) सीवेज निकलता है, लेकिन ट्रीटमेंट क्षमता मात्र २३२७७ एमएलडी ही है । इसमें भी जो एसटीपी चलते है, उनकी क्षमता काफी कम है । 
सीडब्ल्युसी के पूर्व अध्यक्ष एबी पांड्या कहते है कि जलप्रदूषण की रोकथाम की बारी आती है तो राज्य सरकारें सुस्त पड़ जाती है । राज्य सरकारें जल प्रदूषण रोकने के लिए कितनी गंभीर है इसका दूसरा उदाहरण यह है कि राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार वर्ष २०१५ में इस कानून के तहत देश में सिर्फ १० मामले दर्ज हुए और मात्र १३ गिरफ्तारियां हुई । 

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