मंगलवार, 15 अगस्त 2017

ज्ञान-विज्ञान
औघोगिक क्रांति के ऊर्जा सम्राट कोयले की विदाई
प्रमाण बता रहे है कि कोयले की विदाई और नवीकरणीय ऊर्जा का स्वागत करने की बेला आ चुकी    है । दो सौ साल पहले ब्रिटेन से शुरू होकर औघोगिक क्रांति ऊर्जा के जिस स्त्रोत के दम पर फैली थी वह कोयला ही था । यह ऊर्जा का इतना सस्ता और आसानी से उपलब्ध स्त्रोत जो था । मगर अब एक बार फिर सब कुछ बदलने को है । 
      पिछले वर्ष यूके की कोयला खपत वर्ष १८०० के बाद न्यूनतम रही । अप्रैल में तो एक दिन ऐसा थी था जब यूके के किसी भी बिजली घर में कोयला जलाया ही नहीं गया । और तो और, पूरी दुनिया में कोयले की उपलब्धता भी घट रही है । दुनिया भर में प्रति वर्ष पहले से कम कोयले का खनन हो रहा है । कई देश कोयला आधारित ताप बिजली संयंत्रों को अलविदा कह रहे है । 
इसके साथ ही नवीकरणीय ऊर्जा स्त्रोतों से बिजली उत्पादन में तेजी से वृद्धि हो रही है । इस क्षेत्र में पवन व सौर ऊर्जा अग्रणी है । आज पूरी दुनिया में कुल ऊर्जा में से ११.३ प्रतिशत इन्हीं नवीकरणीय स्त्रोतों से प्राप्त् हो रही है । मुख्य कारण यह है कि सौर व पवन ऊर्जा संयंत्र लगाने की लागत तेजी से कम हो रही है । 
      कुल 
मिलाकर  सारे संकेत बता रहे हैं कि दुनिया कोयले को छोड़कर नवीकरणीय स्त्रोतों की ओर बढ़ रही है और जलवायु पर इसका अच्छा असर होने की संभावना है । शायद हम अंतत: जलवायु परिवर्तन को थाम सकेंगे । 
मगर फिलहाल बहुत आशावादी होने की बेला नहीं आई   है । आज भी जीवाश्म ईधन ऊर्जा के प्रमुख स्त्रोत बने हुए है । गैस और तेल की मांग बढ़ रही है और आज भी अधिकांश बिजली जीवाश्म ईधनों से ही बनाई जा रही है । आज भी परिवहन जिसमें सड़क, समुद्री और हवाई परिवहन शामिल है) के लिए हमारे पास जीवाश्म ईधन का कोई विकल्प नहीं है । 
अलबत्ता, इतना कहा जा सकता है कि ऊर्जा के संदर्भ में हवा का रूख बदलता है और विकल्पों की तलाश पहले से कहीं अधिक तेजी से की जा रही है । 

मलेरिया हडि्डयों को भी कमजोर करता है 
मलेरिया मच्छर द्वारा फैलाए जाने वाले एक परजीवी की वजह से होता है जिसका सबसे सामान्य लक्षण बुखार है । किन्तु मलेरिया का परजीवी लाल रक्त कोशिकाआें को नष्ट करता है, और कभी-कभी दिमाग को भी प्रभावित करता है । अब चूहों पर किए गए एक अध्ययन में पता चला है कि यह हडि्डयों की वृद्धि पर भी असर डालता है । 
मलेरिया का परजीवी शरीर में प्रवेश करने के बाद लीवर से होता हुआ लाल रक्त कोशिकाआें में प्रवेश कर जाता है । यहां वह हीमोग्लोबीन नामक महत्वपूर्ण रसायन को अपना भोजन बनाता है और अंत में लाल रक्त कोशिका को फोड़कर बाहर निकलता है । इस दौरान यह कई सारे हानिकारक रसायनों का निर्माण भी करता है ।
     यह तो पहले ही पता था कि  मलेरिया परजीवी अस्थि मज्जा में भी पहुंच जाता है किन्तु यह पता नहीं था कि वहां इसकी करतूते क्या होती है । इस बात का पता करने के लिए जापान के ओसका विश्वविद्यालय के स्नातक छात्र माइकल ली और प्रतिरक्षा वैज्ञानिक सिवेयिर कोबन ने मलेरिया परजीवी की दो प्रजातियां ली । उन्होंने अलग-अलग चूहों में ये परजीवी प्रविष्ट कराए और देखा कि दोनों प्रजातियां चूहों के कंकाल को प्रभावित करती है । उन्होंने पाया कि हडि्डयों के अंदर उपस्थित रंध्रमय पदार्थ विघटित होने लगा था और हडि्डयों टूटने लगी थी । रंध्रमय पदार्थ के रंध्र बड़े हो गए थे और वह वजन झेल पाता था । 
यह भी देखा गया था कि छोटे चूहों में हडि्डयों की वृद्धि भी धीमी हो गई थी । साइन्स कम्यूनिकेशन्स में शोधकर्ताआें ने बताया कि संक्रमित चूहों की जांघ की हडि्डयां सामान्य चूहों से १० प्रतिशत छोटी थी । परजीवी के इस असर को समझने के लिए ली और कोबन ने एक परिकल्पना बनाई जो अस्थि मज्जा मेंउपस्थित दो तरह की कोशिकाआें पर आधारित है । अस्थि मज्जा में एक तरह की कोशिकाएं होती है ऑस्टियोक्लास्ट जो हडि्डयों को गलाती है । इसके विपरीत ऑस्टियोब्लास्ट हडि्डयों का निर्माण करती है । शोधकर्ताआें ने पाया कि मलेरिया संक्रमित चूहों में दोनों तरह की कोशिकाएं काम करना बंद कर देती है । जब शरीर से परजीवी बाहर कर दिया जाता है तब दोनों प्रकार की कोशिकाएं अपना-अपना काम फिर से शुरू कर देती है । किन्तु हडि्डयां गलाने का काम ज्यादा गति से चलन लगता है । इसका मतलब है कि ऑस्टियोक्लास्ट ज्यादा काम कर रही है । 
ली और कोबन का मत है कि इन कोशिकाआें के कामबंद करने का कारण स्वयं परजीवी नहीं बल्कि परजीवी द्वारा बनाए गए रसायन हैं जो परजीवी के हट जाने के काफी समय बाद एक उपस्थित रहते हैं । इनमें से एक हीमोजाइन है जो परजीवी द्वारा हीमोग्लोबीन के नष्ट करने की क्रिया के दौरान बनता है । संक्रमण समाप्त् होने के दो महीने बाद भी हडि्डयों में हीमोजोइन पाया गया । जब शोधकर्ताआें ने अस्थि मज्जा की कोशिकाआें को हीमोजोइन व अन्य पदार्थो में पनपाया तो उनमें ऐसे पदार्थ बने जो ऑस्टियोक्लास्ट को बढ़ावा देते हैं । 
अच्छी बात यह है कि इस स्थिति का मुकाबला करना अपेक्षाकृत आसान है । शोधकर्ताआें ने पाया कि यदि मलेरिया संक्रमित चूहों को विटामिन डी जैसा एक पदार्थ (अल्फाकेल्सिडॉल) दिया जाए तो ऑस्टियोक्लास्ट को रोका जा सकता है और ऑस्टियोक्लास्ट को बढ़ावा दिया जा सकता है । अब सवाल सिर्फ यह है कि चूहों मे देखे गए येअसर क्या मनुष्यों में भी होते हैं । यदि ऐसा है तो अल्फाकेल्सिडॉल मलेरिया के इलाज का एक हिस्सा बन जाएगा । 

गुंजन बताता है, मधुमक्खी क्या कर रही है 
हाल ही में किए गए मैदानी प्रयोगों से पता चला है कि मधुमक्खियों का गंुजन किसानों को बता सकता है कि वे किन फूलों का परागण कर रही है और कितनी तादाद में । गौरतलब है कि परागण फसल उत्पादन की दृष्टि से एक महत्वपूर्ण क्रिया है । इस क्रिया में नर फूल के पराग कण मादा प्रजनन अंगों तक पहुंचते है और उनका निषेचन होकर फल तथा बीज बनते है । 
आम तौर पर कोई एक मधुमक्खी प्रजाति-विशिष्ट के फूलों का ही परागण सम्पन्न करती है । वैसे तो खेतों के आसपास मधुमक्खियों को देखकर बताया जा सकता है कि वे किन फूलों का परागण कर रही हैं । किन्तु वह प्रक्रिया काफी श्रमसाध्य होती है । अब कोलेरैडो में कुछ शोधकर्ताआें ने यही काम मधुमक्खियों के गुंजन की आवाज को रिकॉर्ड करके करने में सफलता प्राप्त् की है । सबसे पहले शोधकर्ताआें ने विभिन्न मधुमक्खी प्रजातियों के शरीर के लक्षणों का मापन किया - उनकी जीभ की लम्बाई, पंखों की लम्बाई, शरीर का आकार वगैरह और इससे   यह निष्कर्ष निकलकर आया । 

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