पर्यावरण समाचार
देश में हर दिन निकलता है १५३४२ टन प्लास्टिक कचरा
मध्यप्रदेश सहित देश के अन्य राज्यों की सरकारें म्युनिसिपल सॉलिड वेस्ट के कलेक्शन, सेग्रेगेशन, ट्रांसपोर्टेशन और डिस्पोजल के लिए हर साल ५००० करोड़ रूपए की बड़ी राशि खर्च करती है । प्रदेश सहित देश के ६० शहरों में प्रतिदिन कुल १५३४२ टन प्लास्टिक वेस्ट निकलता है । इस वेस्ट में ९० प्रतिशत म्युनिसिपल सॉलिड वेस्ट खाद्य पदार्थो की पैकजिंग में उपयोग किया जाने वाला मटेरियल होता है ।
इस खुलासे के बाद प्लास्टिक वेस्ट के उत्पादकों की भी जिम्मेदारी तय करने की बात उठ गई है । भोपाल के अश्विन रस्तोगी ने पिछले दिनों एक याचिका नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में दायर की है जिसमें सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स २०१६ के तहत उन कंपनियों और इंडस्ट्रीज की भी जिम्मेदारी तय करने की मांग की गई है, जो पैकेजिंग मटेरियल बनाती है जिसमें पॉलीबैग, मिनरल वॉटर, बॉटल, जूस, बॉटल, थर्मोकोल पैकजिंग मटेरियल आदि शामिल है । यह सारे प्लास्टिक मटेरियल एक तरह से प्रदूषकों की ही कैटेगरी में आते है । एनजीटी ने भारत सरकार और मध्यप्रदेश सरकार के साथ ही पेप्सी, पतंजलि, पारले व ब्रिटेनिया जैसी बड़ी कंपनियों को नोटिस जारी कर दिये है ।
इस मामले में शुरूआत में कुल २०८ लोगों को पार्टी बनाया गया है जिसमें मध्यप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के साथ १७० कंपनियां व इण्डस्ट्रीज, ३८ नगर निगम व नगर पालिका शामिल है । वहीं पीसीबी को निर्देश जारी कर सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स २०१६ के प्रति सभी स्टेक होल्डर्स को जागरूक करने के लिए वर्कशॉप और सेमीनार आयोजित करने के लिये कहा है ।
याचिका में सीपीसीबी द्वारा कराए गए सर्वे के हवाले से बताया गया है देश के ६० शहरों में कुल १५३४२ टन प्लास्टिक वेस्ट प्रतिदिन निकलता है जिसमें से ६००० टन तो एकत्र ही नहीं हो पाता । वहीं एक गैर सरकारी संगठन के एक अध्ययन के अनुसार मध्यप्रदेश सहित देश की ४३७८ नगरीय निकाय म्युनिसिपल बजट का ५० से ६० प्रतिशत केवल सॉलिड वेस्ट मैनजमेंट में ही खर्च करती है ।
याचिका में कहा गया है कि भारतीय प्लास्टिक वेस्ट ७०० से १००० किलो कैलोरी का होता है जो इंसीनरेशन, पॉयरोलिसिस और वेस्ट टू एनर्जी जैसी थर्मल तकनीक के लिए पूरी तरह अनुपयुक्त है । इस पैकेजिंग मटेरियल के निपटारे के लिए नगर निगम और नगर पालिका को बड़ा बजट लगता है । इसीलिए पैकेजिंग मटेरियल का उत्पादन करने वाली कंपनियों व इण्डस्ट्रीज की जिम्मेदारी तय करने की जरूरत है । भारत सरकार द्वारा एक्सटेंडेड प्रोड्यूसर रिस्पांसिबिलिटी नीति लाई गई है जिसमें ऐसे उत्पादों के उत्पादकों की भी जिम्मेदारी तय की गई है जो उपयोग के बाद प्रदूषण के लिए जिम्मेदार होते है । याचिकाकर्ता के वकील अपूर्व पांडे के अनुसार एमएसडब्ल्यू के निपटान मेंनगरीय निकायों द्वारा किए जाने वाले खर्च में कंपनियों और इण्डस्ट्रीज को भी आर्थिक सहयोग करने के लिए निर्देश जारी करने की मांग की गई है । इस मामले में कुछ और लोगों को भी पार्टी बनाया गया है ।
जलवायु परिवर्तन के कारण घटता खाघान्न उत्पादन
हाल ही में मुम्बई में भारी बारिश, पिछले वर्षो में केदारनाथ त्रासदी, तटों पर आ रहे भंयकर तूफान, चैन्नई में बाढ़, दिल्ली जैसे महानगरों में बढ़ता प्रदूषण कहीं न कहीं पारिस्थितिकी के असंतुलन की ओर संकेत करते हैं। इससे लगातार धरती पर जीवन कठिन होता जा रहा है ।
महान वैज्ञानिक आइस्टीन ने कहा था कि दो वस्तुएं असीमित है - पहला ब्रह्माड और दूसरा मानव द्वारा की जाने वाली मूर्खताएं । ग्लोबल वार्मिग भी मानव की भौतिकवादी मूर्खता का ही परिणाम है ।
अमेरिका के भूगर्भीय सर्वेक्षणों के अनुसार, मोंटाना ग्लेशियर हुआ करते थे लेकिन अब सिर्फ २५ ही बचे है । जलवायु परिवर्तन का प्रभाव हमारे कृषि उत्पादन पर भी पड़ रहा है ।
दालों के उत्पादन में तो हम भूटान, नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश, म्यांमार तथा चीन से बहुत पीछे रह गए है । इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च के अनुसार मौसम परिवर्तन के परिणामस्वरूप २०२० तक गेंहू में ६ प्रतिशत और धान के उत्पादन में ४ प्रतिशत की कमी आ सकती है ।
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