शुक्रवार, 15 सितंबर 2017

ज्ञान-विज्ञान
अमेजन के पेड़ बारिश कराते हैं
अमेजन के वर्षावनों की एक पहेली यह है कि यहां समुद्री नम हवाआें के आगमन से २-३ माह पूर्व ही बरसात शुरू हो जाती है । अब लगता है कि शोधकर्ताआें ने इस गुत्थी को सुलझा लिया है कि समुद्री नम हवाआें के आगमन से पहले ही यहां बरसात कैसे होने लगती है । 
 वैसे सिद्धांतिक स्तर पर वैज्ञानिकों को जवाब का अंदेशा पहले से था किन्तु कैलिफोर्निया विश्वविघालय के मौसम वैज्ञानिक रॉन्ग फू द्वारा किए गए अध्ययन ने सशक्त प्रायोगिक प्रमाण उपलब्ध कराए है । पहले किए गए अनुसंधान से पता चला था कि अमेजन के जंगलों के ऊपर वायुमण्डल में नमी की मात्रा काफी जल्दी बढ़ने लगती है । मगर यह पता नहीं चल पाया था कि यह नमी आती कहां से है । उपग्रह से प्राप्त् आंकड़े बताते हैं कि नमी में यह वृद्धि और जंगल में हरियाली की वृद्धि साथ-साथ होते है । इसके आधार पर शोधकर्ताआें का अनुमान था कि यह नमी प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया के दौरान पैदा हुई जल वाष्प की वजह से है । 
    फू का विचार था कि यह संभव है कि पेड़ों द्वारा मुक्त जल वाष्प ही अमेजन में कम ऊंचाई वाले बादलों का निर्माण करती हो । वे इस विचार के लिए प्रमाण की खोज में थे । और इस खोज में उनको मदद मिली हाइड्रोजन के एक समस्थानिक से । दरअसल पानी हाइड्रोजन और ऑक्सीजन का यौगिक है । प्रकृति में अधिकांश हाइड्रोजन का परमाणु   भार १ होता है किन्तु थोडी कम मात्रा में हाइड्रोजन का एक समस्थानिक पाया जाता है जिसका परमाणु भार २ होता है । पानी का अणु भार वैसे तो १८ होता है किन्तु यदि पानी के किसी अणु में भारी वाला हाइड्रोजन हो, तो उसका अणु भार ज्यादा होता है । इसे भारी पानी कहते है । प्राकृतिक रूप से पानी में ये दोनों तरह के अणु पाए जाते है । 
जब समुद्र से पानी भाप बनकर उड़ता है तो कम अणु भार वाला पानी थोड़ा ज्यादा वाष्पशील होता है और इसलिए समुद्र के पानी से बनी भाप में भारी पानी का अनुपात कम होता है । दूसरी ओर जब प्रकाश संश्लेषण की क्रिया मेंपानी मुक्त होता है तो उसमें हल्का व भारी पानी अपने प्राकृतिक अनुपात में ही पाए जाते है । इसका मतलब है कि समुद्र के पानी से पैदा हुई भाप तथा प्रकाश संश्लेषण के माध्यम से पेड़ों से पैदा हुई भाप में हल्के-भारी का अनुपात अलग-अलग होना चाहिए । 
नासा के औरा उपग्रह से प्राप्त् आंकड़े बताते है कि अमेजन के वातावरण में जो नमी शुरूआत में आती है, उसमें भारी पानी की मात्रा अधिक होती है । इससे तो निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि यह नमी समुद्री हवाआें के साथ नहीं बल्कि वहीं के पेड़ों में से निकलकर वातावरण में संचित हुई है । यानी अमेजन के पेड़ स्वयं बारिश करवाते है और मौसम के नियमन मेंसक्रिय भूमिका अदा करते है । 

कम खाओ, याददाश्त बढ़ाओ 
कम कैलोरी वाला भोजन मिले तो कृमियों की याददाश्त में सुधार आता है । वैसे तो कैलोरी में कटौती करने के फायदे पहले भी उजागर हो चुके है । जैसे भोजन में कैलोरी कम हो तो मक्खियों, चूहों और बंदरों की आयु में वृद्धि होती    है । अब कैलिफोर्निया विश्वविघालय के कावेह अशरफी ने प्रयोगों के आधार पर बताया है कि हम कैलोरी का सेवन करने पर एक गोल कृमि की याददाश्त में इजाफा होता      है ।अशरफी के निष्कर्षो से भी अधिक दिलचस्प उनका प्रयोग है । 
अशरफी की टीम ने एक गोल कृमि को प्रशिक्षित किया कि वह ब्यूटानोन नामक एक रसायन की गंध का संबंध भोजन के पारितोषिक से जोड़ लें । कृमि जीव वैज्ञानिक प्रयोगों का एक महत्वपूर्ण मॉडल जंतु है । जब ये कृमि ब्यूटानोन और भोजन का संबंध सीख गए तो इन्हें एक वृत्त के केन्द्र मेंरखा गया । वृत्त के एक ओर ब्यूटानोन की गंध थी जबकि दूसरी ओर अल्कोहल की गंध थी । केन्द्र मेंरखे जाने वाले पर कृमियों में से जो ब्यूटानोन की ओर जाते थे, उनके बारे मे माना जाता था कि वे सबक सीख गए है । 
अब कृमियों को तीन समूहों में बांटा गया ।  एक समूह को मनमर्जी से खाने दिया गया, दूसरे समूह को कम कैलोरी खाने को मिली और तीसरे समूह को उपवास 
करवाया गया । तीनों समूहों को ब्यूटानोन की गंध के लाभ के बारे में भी सिखाया गया । अब एक-एक करके तीनों समूह के कृमियों को उस वृत्त के केन्द्र में रखा गया । 
जिन कृमियों को कम कैलोरी वाली खुराक पर रखा गया था उनमेंसे ज्यादा प्रतिशत (लगभग दुगने) कृमि ब्यूटानोन वाले छोर की ओर गए, बनिस्बत भरपेट खाने वाले कृमियों के । उपवास करने वाले कृमि भी ब्यूटानोन वाले छोर पर ज्यादा अनुपात में गए । इससे पता चलता है कि उपवास करने या कम कैलोरी मिलने पर कृमि कोई सबक ज्यादा जल्दी सीखते है । 
प्लॉस बायोलॉजी मेंप्रकाशित इस शोध पत्र का निष्कर्ष है कि हम कैलोरी के सेवन से मस्तिष्क मेंएक रसायन कायनुरेनिक एसिड की कमी हो जाती है । इस कमी की वजह से वे तंत्रिकाएं सक्रिय हो जाती है जो सीखने में भूमिका निभाती है । इस बात की जांच करने के लिए अशरफी की टीम ने कृमियों के मस्तिष्क में कायनुरेनिक एसिड की कमी पैदा करके देखा । कायनुरेनिक एसिड की कमी करने पर भी सीखने की प्रक्रिया में वैसा ही सुधार देखा जैसा कम कैलोरी के असर से हुआ । 
रोबोट दवा को सही जगह पहुंचाएंगे । 
वह दिन दूर नहीं जब दवाइयों को शरीर में सही जगह और सही ढंग से पहुंचाने के लिए    सूक्ष्म रोबोटों का इस्तेमाल किया जाएगा ।  ये रोबोट सूक्ष्म मोटरे है जिसकी साइज हमारे बाल की मोटाई से ज्यादा नहीं है । इस अनुसंधान का मार्गदर्शन कर रहे कैलिफोर्निया विश्वविघालय के जोसेफ वांग का कहना है कि एक अवधारणा को साबित करने के लिए किया गया यह पहला प्रयोग है । 
    शोधकर्ताआें ने पांच दिनों तक चूहों को एंटीबायोटिक दवाइयों की नियमित खुराक देने के लिए इन सूक्ष्म मोटर्स का इस्तेमाल  किया । ये चूहे अमाशय के संक्रमण से पीड़ित थे । पांच दिन के बाद देखा गया कि इन चूहों की स्थिति में सामान्य ढंग से औषधि देने की अपेक्षा ज्यादा सुधार हुआ   था । 
दरअसल ये सूक्ष्म मोटर्स और कुछ नहीं, मैग्नीशियम से बने महीने गोले हैं । इनके ऊपर कई परतं चढ़ाई गई है ताकि ये सुरक्षित रहें । इसके अलावा इन पर एंटीबायोटिक का लेप किया गया है । जब इन्हें निगला जाता है तो अमाशय में मौजूद अम्ल मैग्नीशियम से क्रिया करता है और हाइड्रोजन बनती है । हाइड्रोजन के छोटे-छोटे बुलबुले निकलते हैं जो इन नन्हें गोलों को इधर-उधर धकेलते हैं, ठीक वैसे ही जैसे किसी गुब्बारे में से निकलती हवा उसे आगे की ओर धकेलती है । इन गेंदों पर जो एंटीबायोटिक औषधि की परत होती है वह अम्लीयता के प्रति संवेदी होती है जब मैग्नीशियम आमाशय में अम्ल से क्रिया करता है तो वहां की अम्लीयता थोड़ी कम हो जाती है । 

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