बुधवार, 20 जून 2018

स्वास्थ्य
दवा उत्पादन में खमीर की भूमिका
डॉ. डी बालसुब्रमण्यन
पौधे औषधियों के समृद्ध स्त्रोत होते है । यह बात तब से ज्ञात है जब से मनुष्यों ने समुदायों के रुप में मिल जुलकर रहना शुरु किया था । वास्तव में लगता तो यह है कि चिम्पैंजी भी दवा के रुप में चुनकर विशेष पौधे खाना पसंद करते है ।
आयुर्वेद, यूनानी, सिद्ध, आदिवासी औषधियां प्राच्य चिकित्सा और होम्योपैथी में वनस्पति आधारित यौगिकों का इस्तेमाल दवाइयों और टॉनिक के रुप में होता रहा है । कार्बनिक रसायन शास्त्र में खास तौर से प्राकृतिक उत्पाद और औषधि रसायन जैसी विशेष शाखाएं है । इस विधा में शोधकर्ता चुनिंदा पौधे इकट्ठा करते है और उनमें से विशेष अणुआें को अलग करने की कोशिश करते है । इसके बाद उनकी रसायनिक संरचनाआें को अध्ययन करके बीमारियों के खिलाफ उनकी प्रभाविता की जांच करते है । इस क्षेत्र को औषधि रसायन कहते है ।
किसी भी पौधे में हजारों अणु अलग-अलग मात्राआें में उपस्थित होते है । अक्सर जिस दवा अणु की तलाश कर रहे है वह बहुत कम मात्रा में पाया जाता है । एक मायने में यह मात्र घास के  ढेर में सुई ढूंढने जैसी समस्या नहीं है बल्कि मनचाहे यौगिक तक पहुंचने के लिए ऐसे कई ढेरो की जरुरत होती है ताकि काम करने के लिए ठीक ठाक मात्रा (कुछ ग्राम) मिल सके । इस प्रकार प्राकृतिक उत्पाद रसायन काफी चुनौतीपूर्ण क्षेत्र रहा है और सफल शोधकर्ताआें को हीरो माना जाता है और सम्मान व पुरस्कार से नवाजा जाता है । इसका एक हालिया उदाहरण चीन की महिला वैज्ञानिक डॉ. यूयू तू का है । उन्हे २०१५ में चिकित्सा का नोबेल पुरस्कार दिया गया था । उन्होने दशकों के परिश्रम के बाद मलेरिया के लिए चीनी जड़ी बूटी क्विंगहाआेंसे आर्टेमिसीनीन नामक अणु को अलग किया था ।
एक बार जब प्राकृतिक उत्पाद रसायनज्ञ दवा के अणु को अलग करके उसकी रासायनिक संरचना को निर्धारित कर लेता है तब वह इस अणु को प्रयोगशाला मेंबनाने (संश्लेषण) का प्रयास करता है । अभी तक यह एक चुनौतीपूर्ण और कमरतोड काम रहा है । चूंकि अणु का आकार त्रि आयामी होता है तो इसमें परमाणुआें की जमावट काफी जटिल हो सकती है । प्रयोगशाला में इस तरह के जटिल अणुआें का निर्माण कुछ हद तक एक आर्किटेक्ट के काम के समान है जो इंट गारा जोड़कर इमारत बनाता है । इस मामले में भी हीरों को सम्मान दिया जाता है ।
ऐसे ही एक हीरो हारवर्ड के स्वर्गीय प्रोफेसररॉबर्ट वुडवर्थ थे जिन्होने दशकों तक सफलतापूर्वक कई जटिल अणुआें का संशलेषण किया था और इस काम के लिए उन्हें १९६५ में रसायन में नोबेल पुरस्कार से नवाज़ा गया था । आर्किटेक्ट उपमा को आगे बढ़ाते हुए महान कार्बनिक रसायन स्वर्गीय प्रोफेसरसुब्रामण्य रंगनाथन ने एक मोनोग्राफ लिखा था जिसका शीर्षक था दी आर्ट ऑफ आर्गेनिक सिंथेसिस (कार्बनिक संश्लेषण की कला) ।
क्विंगहाओ आर्टेमिसीनीन कैसे बनता है ? पूरी प्रक्रिया एक दर्जन से ज्यादा चरणों में सम्पन्न होती है । इनमें से कई चरण एंजाइम द्वारा उत्प्रेरित होते है जो प्रोटीन अणु होते है । इनमें से प्रत्येक चरण का खुलासा कर लिया है और यह भी समझ लिया है कि पादप कोशिकाआें में इन एंजाइम को बनाने में कौन से जीन्स शामील है । दरअसल यह जीन का पूरा समूह है ।
अब इस जानकारी के दम पर और जेनेटिक्स और जेनेटिक इंजीनियरिंग में हुई प्रगति की मदद से क्या हम कार्बनिक रसायन की विधियों की बजाय जेनेटिक इंजीनियरिंग की विधियों का इस्तेमाल करके आर्टेमिसिनिन को प्रयोगशाला में बना सकते है ? और यदि हम इस जीन समूह को किसी सूक्ष्मजीव (जैसे खमीर) में प्रवीष्ट कराएं तो क्या वह आर्टेमिसिनिन बनाने लगेगा ? यदि ऐसा कर पाते है तो हमे टनों जड़ी बूटी उगाने और काटने की जरुरत नहीं पड़ेगी खमीर के विशाल कल्चर मेंकिलोग्राम के हिसाब से दवा बनाई जा सकेगी ।
आर्टेमिसिनिन बनाने के लिए किसी सूक्ष्मजीव का इस्तेमाल एक नवाचारी विचार है । यदि हमें सफलता मिलती है तो हम खमीर को एक पौधे में तबदील कर देंगे जिसका इस्तेमाल हम कम पांच सहस्त्राब्दियों से घरों और बेकरियों में करते आए है । लेकिन इसके लिए खमीर कोशिकाआें में उनके अपने जीवन के साथ साथ पौधे में उस दवा को बनाने के लिए जिम्मेदार जीन समूह भी होना चाहिए ।
कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जे केसलिंग और एमायरिस कंपनी के डॉ. नील रेनिंगर का तर्क है कि जेनेटिक्स और जेनेटिक इंजीनियरिंग में हुई प्रगति की बदौलत अब यह विचार बड़बोलापन नही है बल्कि काम करने के लायक है । गेट्स फाउंडेशन के अनुदान से उनकी टीम ने दवा उत्पादन के लिए पौधे द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले पूरे जीन समूह का रासायनिक संशलेषण किया और उसे खमीर कोशिकाआेंके अनुरुप संशोधित किया और खमीर कोशिकाआें में प्रविष्ट करा दिया । उन्होने प्रयोगशाला में इस जेनेटिक रुप से परिवर्तित खमीर का कल्चर बनाया और पाया कि वह खमीर आर्टेमिसिनिन बना सकता है । इस समूह ने २०१३ तक इस विधि में काफी सुधार करके प्रति लीटर कल्चर माध्यम से २५ ग्राम एंटी मलेरिया दवा का उत्पादन किया है ।
पिछले कुछ वर्षोंा के दौरान कई अन्य दवाईयों जो प्राकृतिक रुप से पौधों और जड़ी बूटियों में मिलती है का उत्पदान खमीर की मदद से किया गया है । हाल ही में पीएनएएस पत्रिका में ली व साथियों ने अपने शोध पत्र में उन्होने बताया ह कि उन्होनें खमीर की मदद से कैंसर रोधी दवा नोस्केपाइनका उत्पदान किया है । यह कुदरती रुप से अफीम के पौधोंमें पाई जाती है ।
तिकड़म यह है कि पादप कोशिकाआें में यह अणु बनाने वाले जीन समूह की पहचान की जाए इन्हे प्रयोशाला में बनाकर खमीर में डाल दिया जाए और अनुकूल परिस्थितियां निर्मित की जाएं । तब यह पौधा रुपी खमीर उस अणु का उत्पदान करेगा । पांच हजार से अधिक वर्षोंा से जाना माना जो खमीर ब्रांड और शराब बनाने के कामआता है अब एक नई भूमिका निभाएगा ।               ***

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