बुधवार, 20 जून 2018

हमारा भूमण्डल
दवाआें की कल की दुनिया
नरेन्द्र देवांगन
बीसवीं सदी को हथियारों की सदी कहा गया है क्योंकि इसी सदी में भयानक तबाही पैदा करने वाले अस्त्रों का विकास हुआ था । चाहे वह भयंकर विनाश करने वाला परमाणु बम हो या अंतरमहाद्वीपीय प्रक्षेपास्त्र (आईसीबीएम) हो । यहां तक कि छोटे हथियारों में सबसे खतरनाक एके - ४७ का विकास भी इसी सदी में हुआ था । शायद इन हथियारों के विकास को ध्यान में रखते हुए ही अल्बर्ट आइंस्टाइन ने बीसवीं सदी को पागलपन के विकास की सदी कहा था ।
लेकिन पिछली सदी अगर हथियारोंके विकास की सदी थी तो इक्कीसवींसदी जैविक ज्ञान-विज्ञान की सदी है । पिछली सदी में अगर पलक झपकते ही इंसान के अस्तित्व को खत्म कर देने वाले हथियारों का विकास हुआ था तो इस सदी में इंसानी शरीर के चमत्कृत कर देने वाले गहरे रहस्योंकी खोज जारी है  फिर वह चाहे मानव जीनोम को डिकोड कर लेने (यानी पढ़ लेने) की उपलब्धि हो या मानव अंगों को प्रयोगशाला में बनाने की उपलब्धि ।
इसी क्रम में दवाआें की दुनिया में भी चौंकाने वाले बदलाव हो रहे है । भविष्य की दवाएं शरीर की मरम्मत या उसे स्वस्थ भर नहीं करेंगी, बल्कि उसे बदल ही देंगी । कुछ मिलाकर मतलब यह है कि दवाआें की दुनिया में क्रांति आने वाली है ।
आनुवंशिक बीमारियों की सूची बहुत लंबी है । इनके पनपने की एक प्रमुख वजह आनुवंशिकता होती है । डॉक्टर ऐसी बीमारियों के सामने अब तक असहाय रहे है । लेकिन भविष्य में ऐसा नहीं होगा । वैज्ञानिकों के हाथ आखिर वह कुंजी लग गई है, जिसकी तलाश में वे पिछले पांच दशकों से थे । जी हां, `मानव जीनोम' (यानी सारे जीन्स के पुंज) का रहस्य खुल जाने के बाद चिकित्सा की समूची दुनिया उलटफेर की कगार पर आ खड़ी हुई है । अब तक कई बीमारियों के मामले मेंचिकित्सक मऱ्जके लक्षण देखकर चिकित्सा करते रहे है लेकिन भविष्य ऐसा नहींहोगा ।
यू.एस. नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ हेल्थ एंड ह्यूमन जीनोम रिसर्च के निर्देशक फ्रांसिस कोलिन्स के अनुसार `अगर आप किसी बीमारी का जैनेटिक आधार समझ गए तो आप यह बात बता सकते है या जान सकते है कि इसे किस प्रोटीन ने पैदा किया है और इसे रोकने के लिए आप दवा बना सकते है ।' जबकि अभी तक ऐसा नहीं होता था । अभी तक किसी बीमारी के आधार-जीन का पता नहीं लगाया जाता था या नहीं लग पाता था । अभी तक जीन द्वारा पैदा किए गए प्रोटीन के दुष्परिणामों को रोकने का ही इलाज होता रहा है । दुष्परिणामी प्रोटीन को पैदान करने वाले जीन को नहीं छेड़ा जाता था । नतीजा यह निकलता था कि बीमारियों पर तो रोक लग जाती थी । इस वजह से एक बार ठीक होने के बाद कुछ अर्से बाद वही बीमारी दोबारा उभरने की संभावना होती थी ।
मानव आनुवंशिक सूत्र में मौजूद लगभग तीन अरब रासायनिक संकेताक्षरों को वैज्ञानिकों ने पढ़ लिया है, जिससे अब मानव शरीर में मौजूद हजारों जीन्स को पढ़ना संभव हो चुका है । जैसा कि हम सब जानते है कि मानव शरीर ४६ गुणसुत्रों के नियामक आदेशों के अनुसार संचालित होता है । वास्तव मेंइन्हीं ४६ गुणसूत्रों में उपस्थित सूचना के आधार पर ही मानव के विभिन्न उत्तक, अंग, हार्मोंास और एंजाइम बनते है । मानव जीन कुंडली के रहस्योंको पढ़ लेने के बाद अब अनुमान के सहारे चलने वाली चिकित्सा पद्धति पुरानी पड़ चुकी है । जीनोम की जानकारी हो जाने के बाद अब बिलकुल नए किस्म की दवाएं बनने लगी है ।
उदाहरण के लिए दवा बनाने वाली एक अमेरिकी कंपनी मिलेनियम फार्मास्यूटिकल्स के मुख्य वैज्ञानिक राबर्ट टेपर कैंसर रोधी दवाईयों पर अनुसंधान कर रहे है । उन्होंने कैंसरके लिए एक दवा बनाई है । इसका नाम है `स्मार्ट बम' । यह जैविक स्मार्ट बम शरीर में पहुंचकर शरीर की तमाम कैंसर प्रभावित कोशिकाआें का पलक झपकते खात्मा कर देगा जबकि स्वस्थ कोशिकाआें से टकराएगा भी नहीं । अन्य एंटीबॉडीज़की तरह एक मानव निर्मित कैंसर मिसाइल, कैंसर से क्षतिग्रस्त मानव कोशिकाआें पर हमला करके उन कोशिकाआें के ऐसे तमाम अणुआें को निकाल बाहर करेगी जो कैंसर पैदा करने में मददगार होंगे । यह कोई काल्पनिक दावा नहीं है । प्रायोगिक स्तर पर इस तरह की लगभग एक दर्जन दवाएं अमेरिकी बाज़ार में मिल रही है । ऐसा ही एक दवा है हरसेप्टिन । यह स्तन कैंसर के लगभग ३० प्रतिशत मामलोंमें कामयाब रही है ।
मानव जीनोम के डिकोडिंग के पहले तक वैज्ञानिक सिर्फ ५०० प्रोटिन्स के बारे में जानते थे और उन्ही के मुताबिक दवाआें का निर्माण होता था । लेकिन अब वैज्ञानिक ३०,००० से भी ज्यादा प्रोटीन्स के बारे मेंजान गए है । माना जा रहा है कि इस जानकारी से मनुष्य की उम्र बढ़ाने और बुढ़ापा भगाने में कामयाबी मिल सकती है ।
अब तक डॉक्टर अनुमान और लक्षणों के आधार पर दवा करते थे और कई बार एक ही रोग के लिए कई तरह की दवाएं देते थे । उदाहरण के लिए सिर्फ उच्च् रक्तचाप के लिए ही डॉक्टर तमाम दवाएं लिखते थे लेकिन अब जैविक औषधि युग में डॉक्टर चिकित्सा के लिए लक्षणों को आधार नहीं बनाएंगे, बल्कि रोगी के प्रोटीन्स के संतुलन पर ध्यान देंगे । खासकर मधुमेह और कैंसर के मामले में ऐसा ही होगा ।
लेकिन राबर्ट टेपर के मुताबिक इन छोटी-छोटी सफलताआेंको कोई बहुत बड़ी उपलब्धि नहीं माना जा सकता । असली उपलब्धि कैंसर के लिए एक ऐसी सुपर दवा का विकास करना होगा जो कि गले, गुर्देऔर छाती के कैंसर का आधार बनने वाली कोशिकाआें के उन सभी अणुआें का खात्मा कर सके, जिनकी वजह से कैंसर होता है ।
भले ही अभी यह सुपर मेडिसिन दूर ही कौड़ी लग रही है लेकिन मिलेनियम फार्मास्यूटिकल्स के डॉक्टरों ने कई ऐसे जीन्स का पता लगा लिया है जिनमें कैंसर के लिए सहायक अणु पाए जाते है । हालांकि इनमेंसे मिलेनियम के वैज्ञानिकों को अभी तक सिर्फ कुछ ही जीन्स की मरम्मत करने की कला समझ में आई है। यह जानकारी इन्होनें नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ हेल्थ जीन बैंक की वेबसाईट पर फ्लैश भी की है । चिकित्सा के इतिहास में यह पहला ऐसा मौका है जब वैज्ञानिक यह जान पाने के करीब पहुंच गए है कि कौन-सी दवा प्रभावी होगी, कौन सी नही, और क्यों ?
भविष्य की दवाआें के लिए जो सबसे चुनौतीपूर्ण मऱ्जहै उनमें है एड्स, कैंसर, मानसिक रोग, प्रतिरोधक क्षमता के ह्रास की बीमारी, अल्जाइमर, हृदय रोग तथा पारकिंसन आदि । कुछ साल पहले तक इन सभी मऱ्जोका नाम सुनकर चिकित्सा वैज्ञानिकों के हौसले पस्त हो जाते थे । लेकिन आज उनमें गजब का आत्मविश्वास आ गया है । हालांकि इनमें से किसी भी रोग का पूरी तरह से खात्मा करने वाली दवा अभी तक इजाद नहीं हुई है लेकिन वैज्ञानिकों को यकीन है कि जेनेटिक कोड पढ़ लेने के बाद अबइनकी दवा विकसित करना मुश्किल नहीं है ।
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