बुधवार, 20 जून 2018

कृषि जगत
स्वामीनाथन की सिफारिशें और किसानो का दर्द
विवेकानंद माथने
कृषि फसलोंको उत्पादन खर्च पर आधारित लाभकारी कीमत प्राप्त् करने के लिए देशभर के किसान दशकों से संघर्ष करते आये है । वह संघर्ष आज भी जारी है । हरित क्रांति के जनक के नाते डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन किसान की दुर्दशा के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार माने जा सकते है ।
स्वामीनाथ आयोग की रिपोर्ट किसान हित का नाटक कर कारपोरेट खेती की नींव को मजबूत करने का काम कर रही है । आयोग की सिफारिशों में कृषि उत्पदान बढ़ाने के लिये जी. एम. बीज, सिंचाई की व्यवस्था, फसल बीमा, कृषि ऋण का विस्तार, समूह खेती, यांत्रिक खेती, गोडाउन आदि महत्वपूर्ण हैं । यह सारी व्यवस्थाएं किसानों को खेती से हटाकर कार्पोरेट खेती को बढ़ावा देने के लिये की जा रही है ।
लेकिन अचानक  कुछ संगठनों द्वारा कुछ सालोंसे स्वामीनाथन आयोग (राष्ट्रीय किसाना आयोग) लागू करो की मांग शुरु हुई । सदाबहार क्रांति कहते है, प्रथम हरित क्रांति की तरह उत्पादन केंद्रित है । प्रथम हरित क्रांति का अनुभव यह बताता है कि उत्पादन वृद्धि के लिये केवल किसान ही नहींपूरे समाज को बड़ी कीमत चुकानी पड़ी ।
स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के अनुसार लागत पर डेढ़ गुना एमएसपी देने की सिफारिश भी एक धोखा है । इसलिये केवल जुमलों को घेरने के लिए यह मांग करना नासमझी है । खासकर तब जब पूरे देश मेंकिसानों में आक्रोश है और वह अपने अधिकार के लिए रास्ते पर उतर रहा है ।
देश मेंकृषि उत्पादन बढ़ाने की चुनौती हमेशा रही है । देश में बढ़ती आबादी के खाद्यान्न पूर्ति के लिये डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन के नेतृत्व मेंहरित क्रांति की शुरुआत की गई । खेती की देशी विधियोंके माध्यम से उत्पादन बढ़ाने का रास्ता अपनाने के बजाय उन्होंने रासायनिक खेती, संकरीत बीज और यांत्रिक खेती को बढ़ावा दिया । क्रॉप पैटर्न बदलकर एक फसली पिक पद्धति को बढ़ावा देने से जैव विविधता, फसल विविधता पर बुरा असर पड़ा । देश के बड़े हिस्से में बहुफसली खेती एक फसली खेती में परिवर्तित हो गयी । किसान को अपने खेती से पोषक आहार तत्व मिलना बंद हुआ तथा पूरे देश में रासायनिक खेती के कारण कृषि भूमि की उर्वरा शक्ति घटी व भूजल स्तर मेंतेजी से गिरावट आने लगी तथा जमीन, पानी और खाद्यान्न जहरीले हुए । थाली में जहर पहुंचा ।
हरित क्रांति से कृषि उत्पादन तो बढ़ा लेकिन किसानों पर दो तरफा मार पड़ने से उनही हालत तेजी से बिगड़ती गयी । बीज, खाद, कीटनाशक, यंत्र का बढ़ता इस्तेमाल, सिंचाई, बिजली आदि के लिये किसान की बाजार पर निर्भरता बढ़ने से लागत खर्च बढ़ा । फसलों का उत्पादन बढ़ने से फसलों की कीमत कम हुई । परिणामस्वरुप लागत और आय का अंतर इस तरह कम हुआ कि खेती घाटे का सौदा बनी और किसान कर्ज के जाल मेंफंसला चला गया । इस प्रकार प्रथम हरित क्रांति किसानों की लूट करने, थाली में जहर पहुंचाने और जैवविविधता को प्रभावित करने के लिये कारण बनी । किसानों की बर्बादी में उसकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है । हरित क्रांति के जनक के नाते डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन किसान की दुर्दशा के लिये सबसे अधिक जिम्मेदार माने जा सकते है ।
प्रथम हरित क्रांति का मूल उद्देश कृषि रसायनोंऔर तथाकथित उन्नत संकर बीजो के व्यापार को प्रोत्साहित करना था । जिसके द्वारा भारत में खाद, बीज, कीटनाशक और कृषि औजारों के बाजार का विस्तार किया गया । यह कहा जाता है कि द्वितीय विश्वयुद्ध की समािप्त् के बाद बारुद बनाने वाली कंपनियोंने बारुद के घटक नाइट्रोजन, पोटाश और फास्फेट का वैकल्पिक इस्तेमाल करने के लिये रासायनिक खाद का उत्पादन शुरु किया । हरित क्रांति ने उत्पादन वृद्धि के नाम पर प्राकृतिक खेती करने वाले किसान को रासायनिक खेती के झांसे में लाकर रासायनिक खेती को पूरे देश में फैलाने का काम किया । कंपनियों ने सरकारी मदद से रासायनिक खाद, बीज, कीटनाशक, कृषि उपकरण किसानों को बेचकर उनकी लूट की ।
अब दूसरी हरित क्रांति के लिये यूपीए के तत्कालीन कृषि मंत्री ने कहा है कि उन्होने स्वामीनाथन आयोग की १७ मेंसे १६ सिफारिशें लागू की थी । एनडीए सरकार कह रही है कि उन्होने स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट नब्बे प्रतिशत लागू की है । अर्थमंत्री ने बजट पेश करते समय कहा कि सरकार पहले से स्वामीनाथन आयोग के अनुसार लागत के डेढ़ गुना कीमत दे रही है । अब सरकार ने सी २ पर पचास प्रतिशत एमएसपी देने की घोषणा कर दी है । स्वामीनाथन स्वयं कहते है कि एनडीए सरकार उनके रिपोर्ट पर अच्छा काम कर रही है । फिर भी किसान की हालत बिगड़ती जा रही है । तब स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों पर सवाल उठता है ।
स्वामीनाथन आयोग को खेती की आर्थिक व्यवहारता में सुधार कर किसान की न्यूनतम शुद्ध आय निर्धारण का काम सौंपा गया था । तब वह किसानों की बिगड़ती हालात को सुधारने, उनके मौलिक अधिकारों की रक्षा करने के लिये वैकल्पिक योजना सरकार को पेश कर सकते थे । लेकिन यह जानते हुए भी कि एमएसपी फसलों का उत्पादन मूल्य नहीं है उन्होने एमएसपी में उत्पादन की भारित औसत लागत से ५० प्रतिशत अधिक मूल्य देने की सिफारिश की ।
स्वामीनाथन आयोग के सिफारिशों के अनुसार अनुमानित किया जा रहा है कि सी २ पर पचास प्रतिशत के आधार पर एमएसपी मेंसामान्यत: अधिकतम दो-तीन सौ रुपये तक की बढ़ोतरी हो सकती है । यह बढ़ोतरी तभी संभव है जब सरकार एमएसपी पर सभी फसल की खरीदने पर निर्बध लगाये । आज ना ही सरकार के पास ऐसी व्यवस्था है ना ही इसके लिये उन्होनेंबजट में कोई प्रावधान किया है । 
स्वामीनाथन आयोग की आर्थिक सिफारिशें पूर्णत: लागू होने पर भी किसान के मासिक आयु औसतन ३००० रुपये है । वह बढ़कर ४००० रुपये हो सकती है । अन्य मिलाकर कुल आय ६४०० रुपये से ७४०० रुपये हो सकती है जबकि सरकार कुल आय को दोगुना करने का दावा कर रही है । वेतन आयोग के अनुसार परिवार की बुनियादी आवश्यकताआेंके लिये न्यूनतम मासिक आय २१ हजार रुपये होनी चाहिये । यह स्पष्ट है कि स्वामीनाथन आयोग के आधार पर एमएसपी मेंथोड़ी बढ़ोत्तरी से किसानों को न्याय मिलना संभव नहीं है । किसानो के साथ फिर से धोखा किया जा रहा है ।
स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों में कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिये जी.एम. बीज, सिंचाई की व्यवस्था, फसल बीमा, कृषि ऋण का विस्तार, समूह खेती, यांत्रिक खेती, गोडाउन आदि की सिफारिशें की गई है । यह सारी व्यवस्थाएं किसानों को खेती से हटाकर कार्पोरेट खेती को बढ़ावा देने के लिये की जा रही है । सरकार इसी रास्ते चलकर किसानो को खेती से हटाना चाहती है । वह खेती पर केवल २० प्रतिशत किसान रखना चाहती है जो पूंजी और तकनीक का इस्तेमाल कर सके । कृषि बीमा, बैंकिंग में एफडीआई, जी.एम.बीज, ठेके की खेती, ई-नाम, आधुनिक खेती पद्धति और इजराईल खेती, निर्यातोन्मुखी खेती आदि को बढ़ावा देने की तैयारी इसलिए की जा रही है ।                  ***

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