बुधवार, 20 जून 2018

खास खबर
निपाह वायरस और चमगादड़
(हमारे विशेष संवाददाता द्वारा)
केरल मेंनिपाह से २४ मई तक १२ लोगों की मौत हो चुकी है । इनके अलावा १४ और लोगों में निपाह वायरस की पुष्टि हुई है । जबकि २० मामलों में इसकी जांच की जा रही है । निपाह के असर को देखते हुए केरल के आस पास के राज्योंमें केंद्र और राज्य सरकारों ने अलर्ट जारी किया है । केरल सरकार ने लोगोंसे खास तौर पर चार जिलों - कन्नूर, कोझिकोड, मलप्पुरम और वायनाड में जाने से बचने को कहा है । वहीं केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की उच्च् स्तरीय टीम ने कहा है । वहीं केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की उच्च् स्तरीय टीम ने कहा कि यह बीमारी महामारी नहीं है । सिर्फ स्थानीय स्तर पर लोग शिकार है ।
हालांकि अब तक इस बात को लेकर रहस्य बना हुआ है कि आखिर चमगादड़ स्वयं इससे प्रभावित क्यों नही होते । दरअसल फ्लाइंग फॉक्स या फ्रूट बैट्स निपाह ही नहीं, इसके जैसे ६० खतरनाक वायरस लेकर उड़ते है । १९३२ में वैज्ञानिक इस पर रिसर्च कर रहे है कि कैसे चमगादड़ जानवरों से इंसानों में होने वाली बीमारियों का माध्यम बने हुए है । दरअसल सबसे पहले इसका पता १९३० में चला था । तब रैबीज इंसानो तक वैम्पायर बैट्स के जरिए पहुंचा था । १९९६ में ऑस्ट्रेलिया में हेंड्रा वायरस फ्रूट बैट्स से इंसानों में आया । १९९८-९९ में मलेशिया में निपाह वायरस और २००३ में चीन और कुछ अन्य देशों में सार्स वायरस इंसानों में पहंुचा ।
भारत में निपाह वायरस का पहला मामला वर्ष २००१ में पश्चिम बंगाल के सिलिगुड़ी में सामने आया था । तब ६६ लोग इसकी चपेट में आए थे । इनमें से ४५ की मौत हो गई थी । २००७ में यह फिर लौटा और इस बार सात लोगों की जान ले ली थी । अब इसने केरल में दस्तक दी है, जहां निपाह के लक्षण मिलने पर करीब २५ लोगों को अस्पताल में भर्ती कराया गया है । इनमें से दो की हालत गंभीर है । इस बीमारी के असर को देखते हुए केरल सरकार ने मलेशिया से एंटी वायरल दवा रिबाविरीन मंगवाई है । अमेरिकी कंपनियां भी निपाह की दवा पर काम कर रही है ।
निपाह एक जूनोटिक किस्म का वायरस है । यानी जानवरोंसे मनुष्यों में फैलने वाला । इसका नाम निपाह इसलिए पड़ा क्योंकि इससे प्रभावित होने के मामले पहली बार मलेशिया के ` कांपुंग सुंगई निपाह ' नामक क्षेत्र में सामने आए थे । मेडिकल भाषा में इस वायरस को एनआईवी कहा जा रहा है । यह वायरस दो तरह का है । एक एमआइवीएम - यह मलेशिया में पाया गया था । दूसरा एनआइवीबी - यह बांगलादेश में पाया गया था । एनआइवीबी ज्यादा खतरनाक है, क्योंकि यह तेजी से फैलता है औइ इसमें मृत्यु दर भी ज्यादा है ।
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन और अमेरिका के सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल के अनुसार निपाह में सांस लेने में परेशानी होती है और न्यूरोलॉजिकल कॉम्लिकेशन होती है । इसलिए गहन देखभाल की जरुरत होती है । वेंटिलेटर की जरुरत पड़ सकती है । अनुसंधानकर्ता इसका वैक्सीन और ड्रग डेवलप करने पर काम कर रहे है । एक ड्रग फेविप्रेवियर पर प्रयोग चल रहा है । जानवरोंपर हुए प्रयोगों में इसे निपाह की संभावित दवा माना गया है । इसे अभी इंसानो पर क्लिनिकल ट्रायल के लिए सुरक्षित नहीं पाया गया है । एक और ड्रग रिबाविरिन पर काम चल रहा है । जानवरों पर किए गए इसके प्रयोग में बहुत कम या न के बराबर असर दिखाई दिया है ।
इंसानों के शरीर में प्रवेश कर जाने के बाद निपाह वायरस कुछ दिनों तक कोई लक्ष्ण नहीं दिखाता । इसे इन्क्यूबेशन पीरियड कहते है । यह पीरियड ४ से १४ दिन तक का हो सकता है ।
हालांकि एक मामले में ४५ दिनों का इन्क्यूबेशन पीरियड होने की बात भी सामने आ चुकी है ।
वायरस के असर दिखाने के बाद व्यक्ति हल्का बुखार, सिर दर्द, मांसपेशियों में दर्द, कफ तथा थकान जैसे शुरुआती लक्षण महसूस करता है । ऐसा कोई स्पष्ट लक्षण नहीं दिखता कि निपाह वायरस की पुष्टि कर दे ।
इसके बाद इंफेक्शन की वजह से सांस लेने में दिक्कत । एन्सेफलाइटिस यानी दिमाग के टिश्यूज़में जलन व सूजन । सीज्यूर यानी दिमागी सेल्स की गतिविधियों का अचानक असामान्य हो जाना । सभी अवस्था जानलेवा साबित हो सकती है । एन्सेफलाइटिस तथा सीज्यूर नियंत्रण से बाहर हुआ तो मरीज २४ से ४८ घंटों के भीतर कोमा में जा सकता है । ***

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