रविवार, 18 नवंबर 2018

ज्ञान विज्ञान
सौर मंडल का एक नया संसार खोजा गया
खगोल शास्त्रियों ने हाल ही में सौर मंडल के दूरस्थ छोर पर एक विशाल पिंड की खोज की है। दरअसल यह पिंड ब्राह्य सौर मंडल में स्थित है और इसे नाम दिया गया है २०१५ टी.जी. ३८७ । वैसे इसका लोकप्रिय नाम गोबलिन रखा गया है।
    वॉशिंगटन स्थित कार्नेजी इंस्टीयूशन फॉर साइन्स के  खगोल शास्त्री स्कॉट शेफर्ड की टीम ने इस पिंड की खोज जापान की ८.२ मीटर की सुबारु दूरबीन की मदद से की है। यह दूरबीन हवाई द्वीप पर मौना की नामक स्थान पर स्थापित है। 
२०१५ टीजी३८ नामक यह पिंड सूर्य से बहुत दूरी पर है। सूर्य की परिक्रमा करते हुए यह जब सूर्य के  सबसे नजदीक होता है, उस समय इसकी सूर्य से दूरी ६५ खगोलीय इकाई होती है। सूर्य से पृथ्वी की दूरी को खगोलीय इकाई कहते हैं । और जब यह पिंड सूर्य से अधिकतम दूरी पर होता है तो २३०० खगोलीय इकाई दूर होता है। इतनी दूरी पर हम बहुत ही थोड़े से विशाल पिंडों से वाकिफ हैं। गोबलिन का परिक्रमा पथ सौर मंडल के प्रस्तावित नौवें ग्रह के अनुमानित परिक्रमा पथ से मेल खाता है किन्तु खगोल शास्त्रियों का कहना है कि इससे यह साबित नहीं होता कि नौवां ग्रह सचमुच अस्तित्व में है। 
आप कितने चेहरे याद रख सकते हैं ?
अपने दोस्तों, रिश्तेदारों, सहपाठियों, सहकर्मियो की शक्लें हमें याद रहती हैं। इसके अलावा कुछ प्रसिद्ध हस्तियों, अजनबियों (जो रोजाना या कभी-कभी दिखते हैं) की भी शक्ल हमें याद रहती हैं। पर यदि आपको  इनकी सूची बनाने को कहा जाए तो आप कितनी लंबी फेहरिस्त बना पाएंगे? एक अध्ययन के मुताबिक एक सामान्य व्यक्ति लगभग ५००० चेहरे याद रख सकता  है।
शोधकर्ता जानना चाहते थे कि एक सामान्य व्यक्ति कितने चेहरे याद रख सकता है। इसके लिए उन्होंने २५ प्रतिभागियों को उन लोगों की सूची बनाने को कहा जिनके चेहरे उन्हें याद है। प्रतिभागियों को पहले एक घंटे में अपने व्यक्तिगत जीवन से जुड़े चेहरों की सूची बनानी थी और अन्य एक घंटे में प्रसिद्ध हस्तियों जैसे नेता, अभिनेता, गायक, संगीतकार वगैरह की। 
अध्ययन में प्रतिभागियों को यह भी छूट थी कि यदि उन्हें किसी व्यक्ति का नाम याद नहीं है लेकिन उसका चेहरा याद है या वे उसके चेहरे की कल्पना कर सकते हैं, तो वे उसका विवरण लिखें, जैसे हाईस्कूल का चौकीदार या फलां फिल्म की अभिनेत्री  वगैरह । 
अध्ययन में देखा गया कि प्रतिभागियों को शुरुआती एक मिनट में कई लोगों के चेहरे याद आए लेकिन एक घंटे का वक्त बीतने के  साथ-साथ  यह संख्या कम होती गई।
अगले अध्ययन में शोधक-र्ताओं ने देखा कि ऐसे कितने चेहरे हैं जो उक्त सूची में नहीं हैं लेकिन याद दिलाने पर याद आ जाते हैं । इसके लिए शोधकर्ताओं ने प्रतिभागियों को बराक ओबामा और टॉम क्रूज सहित ३४४१ प्रसिद्ध हस्तियों की तस्वीरें दिखाई। प्रतिभागी किसी व्यक्ति को पहचानते हैं यह तभी माना गया जब वे एक ही व्यक्ति की दो अलग-अलग तस्वीरों को पहचान पाए।
इन दोनों अध्ययन के आंकड़ों के विश्लेषण से शोधकर्ताओं ने पाया कि एक सामान्य या औसत व्यक्ति ५००० चेहरे याद रख सकता है। विभिन्न प्रतिभागियों को १००० से लेकर १०००० की संख्या में चेहरे याद थे। यह अध्ययन प्रोसीडिंग्स  फ दी रॉयल सोसायटी बी में प्रकाशित हुआ है। 
बृहस्पति के चांद युरोपा पर उतरने की मुश्किलें
बृहस्पति के कई चांदों में से एक युरोपा में वैज्ञानिकों की काफी रुचि रही है। युरोपा मुख्य रूप से सिलिकेट चट्टान से बना है जिस पर बर्फ की परत है। इस पर विशाल भूमिगत महासागर का होना जीवन की आशा जगाता है। हाल ही में अमेरिकी कांग्रेस द्वारा नासा को प्रमुख वित्तीय मदद मिली ताकि युरोपा की सतह पर रोबोटिक लैंडर (क्लिपर) भेजकर उसके बारे में अधिक जानकारी प्राप्त् की जा सके । 
लेकिन युरोपा पर यान को उतारना इतना आसान भी नहीं है। अध्ययनों से पता चला है कि बर्फ से ढंकी सतह दरारों और उभारों से भरी पड़ी है। नेचर जियोसाइन्सेस में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार इस बर्फीले चट्टानी क्षेत्र में प्रत्येक नुकीला उभार पांच मंजिला इमारत जितना ऊंचा है ।  
इस तरह के शिखर पृथ्वी पर एंडीज पर्वत पर देखने को मिलते हैं। इन्हें पेनिटेन्टस (यानी तपस्वी) कहा जाता है क्योंकि  ये ऐसे लगते हैं जैसे कोई सफेद चादर ओढ़े तपस्या कर रहा हो। इनका वर्णन सबसे पहले डार्विन ने किया था। पेनिटेन्ट्स बर्फीले क्षेत्रों में सूरज द्वारा मूर्तिकला का नमूना है। यहां बर्फ पिघलती नहीं है। बल्कि प्रकाश का निश्चित पैटर्न बर्फ को सीधे वाष्पित करता है जिसके  परिणाम स्वरूप सतह की भिन्नताओं के कारण छोटी नुकीली पहाड़ियां और छायादार घाटियां बनती हैं। ये अंधेरी घाटियां चारों ओर मौजूद रोशन चोटियों की तुलना मेंअधिक प्रकाश अवशोषित करती हैं, और एक फीडबैकलूप में वाष्पीकरण की प्रक्रिया चलती रहती है। 
इससे पहले पृथ्वी के अलावा प्लूटो पर पेनिटेन्ट्स देखे जा चुके हैं। युरोपा पर अन्य प्रक्रियाओं के आधार पर की गई गणना से पता चलता है कि बफ र् का वाष्पीकरण विषुवत रेखा में अधिक प्रभावी होगा, और ये शिखर १५ मीटर लंबे और ७-७ मीटर की दूरी पर होंगे। इस तरह की आकृतियों से ग्रह के रडार अवलोकन करने पर भूमध्य रेखा पर ऊर्जा में गिरावट का कारण समझा जा सकता है। लेकिन यूरोपा पर यान उतरना कितना कठिन है ये २०२० के मध्य में किल्पर को भेजने पर ही मालूम चलेगा ।  
खरपतवारनाशी - सुरक्षित या हानिकारक
ग्लायफोसेट, दुनिया में सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाने वाला खरपतवारनाशी यानी हर्बीसाइड है। ऐसा बताया गया था कि यह जंतुओं के लिए हानिकारक नहीं है। लेकिन शायद यह मधुमक्खियों के लिए घातक साबित हो रहा है। यह रसायन मधुमक्खियों के पाचन तंत्र में सूक्ष्मजीव संसार को तहस-नहस करता है, जिसके  चलते वे संक्रमण के प्रति अधिक संवेद-नशील हो जाती हैं। इस खोज के बाद दुनिया में मधुमक्खियोंकी संख्या मेंगिरावट की आशंका और भी प्रबल हो गई है।
ग्लायफोसेट कई महत्वपूर्ण एमिनो अम्लों को बनाने वाले एंजाइम की क्रिया को रोककर पौधों को मारता है। जंतु तो इस एंजाइम का उत्पादन नहीं करते हैं, लेकिन कुछ बैक्टीरिया द्वारा अवश्य किया जाता है।
टेक्सास विश्वविद्यालय की एक जीव विज्ञानी नैंसी मोरन ने अपने सहकर्मियों के साथ एक छत्ते से लगभग २००० मधुमक्खियां लीं । कुछ को चीनी का शरबत दिया और अन्य को चीनी के शरबत में मिलाकर ग्लायफोसेट की खुराक दी गई । ग्लायफोसेट की मात्रा उतनी ही थी जितनी उन्हें पर्यावरण से मिल रही होगी। तीन दिन बाद देखा गया कि ग्लायफोसेट का सेवन करने वाली मधुमक्खियोंकी आंत में स्नोड-ग्रेसेला एल्वी नामक बैक्टीरिया की संख्या कम थी । लेकिन कुछ परिणाम भ्रामक थे। ग्लाय-फोसेट का कम सेवन करने वाली मक्खियों की तुलना में जिन मधुमक्खियों ने अधिक का सेवन किया था उनमें ३ दिन के बाद अधिक सामान्य दिखने वाले सूक्ष्मजीव संसार पाए गए। शोधकर्ताओं को लगता है कि शायद बहुत उच्च् खुराक वाली अधिकांश मधुमक्खियों की  मृत्यु हो गई होगी और केवल वही बची रहीं जिनके पास इस समस्या से निपटने के तरीके  मौजूद थे । मधुमक्खी में सूक्ष्मजीव संसार में परिवर्तन घातक संक्रमण से बचाव की उनकी प्रक्रिया को कमजोर बनाते हैं।

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