रविवार, 18 नवंबर 2018

पर्यावरण परिक्रमा
प्लास्टिक के कचरे से बनेगा डीजल
देहरादून से रोजाना करीब एक हजार किलो प्लास्टिक कचरा उठाने का न सिर्फ इंतजाम हो गया है, बल्कि इससे प्रतिदिन ८०० लीटर डीजल भी तैयार किया जाएगा । यह सब हो पाएगा भारतीय पेट्रोल संस्थान (आईआईपी) की तकनीक से । इसके लिए गैस अथॉरिटी ऑफ इण्डिया लि. (गेल) ने संस्थान को करीब १३ करोड़ रूपए की वित्तीय मदद भी की है । 
आईआईपी के निदेशक डॉ. अंजन रे के मुताबिक प्लास्टिक कचरे से ईधन बनाने की तकनीक करी ब पांच साल पहले ईजाद कर ली गई थी । । इस तकनीक से ने सिर्फ डीजल, बल्कि पेट्रोल व एलपीजी भी तैयार किया जा सकता है । इसके लिए संस्थान में प्रयोगशाला स्तर का प्लांट भी लगाया गया है । हालांकि बड़े स्तर पर करीब एक टन क्षमता के प्लांट से डीजल तैयार किया जाएगा । अगले साल जनवरी में प्लांट से उत्पादन भी शुरू कर दिया जाएगा । शुरूआत देहरादून के प्लास्टिक कचरे से की जाएगी । इसके बाद डिमांड बढ़ने पर केन्द्र सरकार के स्तर से तमाम शहरों में इस पहल को आगे बढ़ाया जाएगा । 
आईआईपी वैज्ञानिक डॉ. सनत कुमार के अनुसार एक टन के प्लांट में जो डीजल तैयार किया जाएगा, उसकी दर करीब ५० रूपए प्रति लीटर बैठेगी, जबकि अभी डीजल की दर प्रति लीटर ७३ रूपए से अधिक है । अगर प्लांट की क्षमता पांच टन तक बढ़ाई जाती है तो दर और भी कम करीब ३५ रूपए प्रति लीटर आ सकती है । 
प्लास्टिक कचरे को पहले सुखाया जाता है । इसके बाद इसे सीलबंद भट्टी में डालकर ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में तेज आंच में पकाया जाता है । जिससे प्लास्टिक भाप में परिवर्तित हो जाता है । इस भट्टी से एक पाइप जुड़ा होता है, जो एक वाटर टैंक में जाता है और भाप को इसमें स्टोर किया जाता है । इस टैंक की सतह में जमा पानी को छूते हुए भाप को एक अन्य टैंक में भेजा जाता है । इसे रिफाइन कर पेट्रोल या डीजल बनाया जा सकता है । हालांकि पूरी भप तरल अवस्था में नहीं आ पाती है और वाटर टैंक के ऊपरी हिस्से में जमा हो जाती है ।  
केन्द्रीय प्रदूषण बोर्ड के आंकड़ों के अनुसार देश के प्रमुख ६० शहरों में प्रतिदिन १५ हजार टन प्लास्टिक कचरा निकलता है । इसमें से छह हजार टन कचरा यूं ही पड़ा रहता है । हालांकि आईआईपी की तकनीक के सफल प्रयोग के बाद तमाम नगर निकाय अपने स्तर भी ईधन बनाने के प्लांट लगा सकते है । यदि ऐसा हो पाया तो यह प्लास्टिक कचरे के निस्तारण में क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है ।  
अप्रैल २०२० से नहींबिकेंगे बीएस ४ वाहन 
अप्रैल २०२० से बीएस-४ (भारत स्टेज-४) उत्सर्जन मानक वाले वाहनों के रजिस्ट्रेशन और बिक्री पर रोक लग जाएगी । सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला सुनाया । शीर्ष अदालत ने कहा कि प्रदूषण का स्तर पहले ही चिंताजनक है, ऐसे में उत्सर्जन के नए मानकों को लागू करने में देरी से लोगों की सेहत पर ओर दुष्प्रभाव पड़ेगा । बीएस मानकों के तहत वाहनों के उत्सर्जन के नियम तय किए जाते है । योरपीय देशों में इसके लिए यूरो मानक का पालन किया जाता है । 
जस्टिस मदन बी लोकुर की अध्यक्षता वाली पीठ  ने कहा कि दुनिया के २० सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरोंमें से १५ भारत में है । पर्यावरण और सेहत पर प्रदूषण से पड़ने वाले दुष्प्रभावों की भरपाई कुछ कंपनियों से मनाफे से नहीं की जा सकती है । पीठ ने कहा जब भी सेहत और संपत्ति के बीच टकराव होगा, सेहत को ही प्राथमिकता पर रखा जाएगा । हम ऐसी स्थिति से जूझ रहे हैं, जहां अजन्मा बच्च भी प्रदूषण का शिकार है । कंपनियों को बीएस-६ वाहनों के निर्माण के लिए पर्याप्त् समय मिल चुका है । उनके पास पहले से टेक्नोलॉजी है । उन्हें इच्छाशक्ति दिखाते हुए अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए । पीठ में जस्टिस एस. अब्दुल नजीर और दीपक गुप्त भी शामिल थे । अदालत ने केन्द्रीय मोटर वाहन अधिनियम, १९८९ में उपनियम जोड़ने के सरकार के फैसले पर भी सवाल उठाया । इस उपनियम के तहत बीएस-४ वाले चौपहिया वाहनों की बिक्री के लिए ३१ मार्च, २०२० के बाद तीन महीने का अतिरिक्त समय देने का प्रावधान किया गया है । वहीं,  भारी  ट्रांसपोर्ट वाहनों के लिए छह महीने का अतिरिक्त समय दिया गया है । कोर्ट ने कहा, नए मानक लागू करने की समय-सीमा में अनावश्यक विस्तार से लोगों की सेहत पर दुष्प्रभाव पड़ेगा, जो संविधान के अनुच्छेद २१ का  उल्लघंन है । अदालत ने स्पष्ट किया कि अब उपनियम को यह पढ़ा जाएगा  कि पहली अप्रैल २०२० से पूरे देश में बीएस-४ वाले वाहनों की बिक्री और रजिस्ट्रेशन प्रतिबंधित होगा । 
उल्लेखनीय है कि योरप में २००९ में यूरो - ४ और २०१५ में यूरो६ मानक लागू हो गया था । वहीं भारत में बीएस-४ मानक अप्रेल २०१७ में लागू हो पाया । अदालत ने कहा कि हम पहले ही कई साल पीछे चल रहे है । अब बीएस-६ लागू करने में एक दिन की भीदेरी अनावश्यक है । मानक लागू करने में हो रही देरी को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने २०१६ में एलान किया था कि बीएस-५ मानक को छोड़ते हुए २०२० में सीध े बीएस-६ मानक लागू किया जाएगा । 
बुरहानपुर में आज भी बह रहा है कुंडी भंडारा
कहा जाता है कि ६०० ई. पूर्व ताप्ती नदी के किनारे बसा ब्रम्हपुर ... आज का बुरहानपुर है । यहां १५०० वर्ष काल में ११ राज्य घरानों ने राज किया । जिनमें मौर्य, राष्ट्रकुल, चालुक्य, यादव, सातवाहन, फारूखी, मुगल और सिंधिया प्रमुख है । इन शासकों ने मिलकर बुरहानपुर से व्यापार और सत्ता दोनों के लिए दक्षिण का द्वार खोला था । नगरवासियों के लिए जलप्रबंधन   का नायाब नमूना है यहां का कुंडी भंडारा । 
जल संग्रहण कर लोगोंतक पीने का पानी पहुंचाने की इस तरह की मानव निर्मित संरचना विश्व में सिर्फ यही है, जो अब भी कार्यरत है । इसे विश्व धरोहर में शामिल करवाने की कोशिश है । इतिहासकारों के मुताबिक मुगल काल के सूबेदार अब्दुल रहीम खानखाना ने १६१५ ई. में कुंडी भंडार को बनाया था । इसमें सतपुड़ा पर्वत मालाआें से ताप्ती की ओर प्रवाहित जल स्त्रोंतों का पानी जमीन से ८० फीट नीचे इकट्ठा किया व भूमिगत नहरों से यह पानी बुरहानपुर नगर की ओर भेजा । यह स्थान शहर से ७ कि.मी. दूर है । पूरे रास्ते में १०८ कुंडियों का  निर्माण कराया जो ऊपर से खुली थी ताकि शुद्ध हवा आ जा सके । इस तरह की नहर ईरान-ईराक देशों में थी, जो अब बंद हो चुकी है । ४०० वर्ष पुरानी इस धरोहर को देखने के लिए पूरे विश्व से लोग यहां आते है । 
३१ अक्टूबर २०१७ को कर्नाटक में हुई इंटरनेशनल कांफ्रेस में यूनेस्को की टीम के सामने शहर के इतिहास के जानकार हाशंग हवलदार एवं आर्किटेक्ट सुधीर पारेख ने कुंडी भंडारे को लेकर प्रंजेटेशन दिया था । पावर पाइट प्रजेंटेशन में इसअनमोल धरोहर की विस्तृत जानकारी दी गई । हवलदार एवं पारेख ने बताया कि यूनेस्को की टीम ने इस प्रजेंटेशन को देखने के बाद विश्व विरासत धरोहरों में कुंड़ी भडारे को शामिल कराने का आश्वासन दिया था । 
कैंसर के इलाज के लिए पीड़ादायक प्रक्रिया से नहींगुजरना पड़ेगा 
अब वह दिन दूर नहीं जब कैंसर के इलाज के लिए कीमोथेरेपी जैसी पीड़ादायक प्रक्रिया से नहींगुजरना पड़ेगा । अमरीका की नॉथवेस्टर्न यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने मानव कोशिका में मौजूद एक ऐसे किल कोड की खोज की है, जो कीमोथेरेपी के बिना ही कैंसर की कोशिकाआें को खत्म कर देगा । 
शोधकर्ताआें का कहना है कि कीमोथेरेपी से उपचार के दौरान प्रोटीन युक्त राइबोन्यूक्लिक एसिड (आरएनए) के बड़े अणुआें का इस्तेमाल किया जाता है । हालांकि इस प्रक्रिया से गुजरने के दौरान मरीज को बालोंका झडना, रक्त सकं्रमण, थकान, नींद न आना, लगातार उल्टियां होना, दस्त, मुंह में घाव होना और महिलाआें में बांझपन जैसे प्रभावों को झेलना पड़ता है । 
वैज्ञानिकों के मुताबिक मानव की प्रत्येक कोशिका में ही मौजूद किल कोड छोटे आरएनके अणु से युक्त होते है जिन्हें माइक्रो आरएनए भी कहा जाता है । वैज्ञानिकों का अनुमान है कि करीब ८० करोड़ साल पहले शरीर को कैंसर से बचाने के लिए ये किल कोड विकसित हो गए थे । शोध नेचर पत्रिका मेंप्रकाशित हुआ । सन् २०१७ में प्रकाशित शोध में शोध के मुख्य लेखक मार्कस ई पीटर ने बताया था कि कुछ निश्चित आरएनए अणुआें के संपर्क में लाने के बाद कैंसर की कोशिकाएं नष्ट हो गई । माइक्रो आरएनए में मौजूद केवल छह न्यूक्लियोटाइड्स कैंसर की कोशिकाआें को खत्म करने में सहायक साबित हुए । ये डीएनए व आरएनए से मिलकर बने है । इसके बाद पीटर ने न्यूक्लियोटाइड बेस के ४०९६ विकल्पों का परीक्षण किया । पीटर ने कहा कि हम कृत्रिम माइक्रो आरएनए भी बना सकते है जो कैंसर कोशिकाआें को नष्ट करने में सक्षम होगे । उन्होने कहा कि वे कीमोथैरेपी के बजाय प्राकृतिक तंत्र का उपयोग करना चाहते थे । किल कोड को जीनोम मेंकई गड़बड़ किए बिना कैंसर की कोशिकाआें पर सीधे ट्रिगर किया जा ए तो कैंसर को खत्म किया जा सकता है । 

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