सोमवार, 18 फ़रवरी 2019

कविता
वन-वन, उपवन
सुमित्रानंदन पंत

वन-वन, उपवन
छाया उन्मन-उन्मन गुंजन
नव-वय के अलियों का गुंजन । 

रूपहले, सुनहले आम्र-बौर,
नीले, पीले और ताम्र भौंर,
रे गंध-अंध हो ठौर-ठौर
उड़ पाँति-पाँति में चिर-उन्मन
करते मधु के वन में गुंजन । 

वन के विटपोें की डाल-डाल 
कोमल कलियों से लाल-लाल
फैली नव-मधु की रूप-ज्वाल
जल-जल प्राणों के अलि उन्मन
करते स्पन्दन, करते गंुजन । 

अब फैला फूलों में विकास
मुकुलों  के उर में मदिर वास,
अस्थिर सौरभ से मलय-श्वास,
जीवन-मधु-संचय को उन्मन
करते प्राणों के अलि गंुजन । 
वन-वन, उपवन
                                                       

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