सम्पादकीय
क्षिप्रा शुद्धिकरण में अभिनव पहल
देश के प्राचीनतम शहरों में से एक उज्जैन (उज्जयिनी) में पवित्र शिप्रा नदी को बचाने और पर्यावरण संरक्षण के लिए बड़ा कदम उठाया गया है । नदी किनारे पनौती के रूप मेंश्रद्धालुआें द्वारा छोड़े जाने वाले कपड़ों को पुर्नचक्रण कर सरकारी फाइलें और अन्य स्टेशनरी बनाने की शुरूआत हो चुकी है । खास बात यह है कि ये फाइलें और अन्य उत्पाद बाजार में मिलने वाले उत्पादों से तीन गुना सस्ते हैं । इसके साथ ही इस प्रोजेक्ट के जरिए स्व-सहायता समूहों की महिलाआें को रोजगार भी मिला है ।
यह प्रोजेक्ट नगर निगम उज्जैन ने स्वच्छ भारत अभियान के तहत शुरू किया है । यदि प्रयोग सफल हुआ तो प्रदेश के २७८ नगरीय निकायोंको फाइलों और स्टेशनरी की आपूर्ति की जाएगी । उज्जैन नगर निगम ने इससे बनी फाइलों का उपयोग शुरूकर दिया है ।
उज्जैन में शिप्रा नदी के किनारे और नदी मेंस्नान करने वाले हजारों श्रद्धालु पूजा-पाठ या अन्य वजहों से कपड़े छोड़ जाते हैं । इसके अलावा मंदिरों और उज्जैन स्थित दफ्तरों की पुरानी स्टेशनरी मिलाकर लगभग पांच टन इस तरह का कचरा हर महिने जमा होता है ।
पुर्नचक्रण किए जाने योग्य कचरे को नदी से निकाल कर छोटी-छोटी कतरनों में काटा जाता है । इन कतरनों को एक मशीन में डालकर पानी के साथ दो से तीन घंटे तक चलाया जाता है और लुगदी बना ली जाती है । लुगदी को एक अन्य मशीन में डालकर पेपर शीट बनाई जाती है । पेपर शीट को प्रेसकर उसमें मौजूद पानी निकाला जाता है । फिर उसे फिनिशिंग देकर सुखा लिया जाता है । इससे फिर फाइल कवर और पेपर बैग बनाए जाते हैं ।
एक टन पुराने कपड़ों को पुर्नचक्रण कर पेपर फाइल और बैग आदि बनाने हेतु पेपर निर्माण में पर्यावरण की दृष्टि से देखे तो प्रक्रिया में लगने वाली तीन टन लकड़ी बचेगी, १०० क्यूबिक मीटर पानी बचेगा । ६ पेड़ और मिट्टी बचेगी, ऑक्सीजन भी मिलेगी । एक व्यक्ति के लिए २५ साल का पानी बचेगा ।
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