ज्ञान विज्ञान
समुद्र के पेंदे से २०० फीट नीचे सूक्ष्मजीव पाए गए
जापान के समुद्र के पेंदे में सैकड़ों फुट नीचे कुछ सूक्ष्मजीव मिले हैं । समुद्र में इतनी गहराई पर तापमान शून्य सेकई डिग्री नीचे होता है और दबाव हजारों वायुमंडल के बराबर होता है । इतना कम तापमान और दबाव किसी भी जीवन की संभावना कोखारिज कर देता है किंन्तु हाल ही में जापान के मैजी विश्वद्यालय के ग्लेन स्नाइडर नेइसी गहराई में ये सूक्ष्मजीव प्राप्त् किए हैं ।
स्नाइडर और उनके साथी जापान के पश्चिमी तट सेकाफी अंदर गैस हायड्रेट की तलाश कर रहे थे । गैस हायड्रेट गैस और पानी सेमिलकर बने रवेदार ठोस होतेहैं । यह मिश्रण समुद्र की गहराई में मौजूद अत्यंत कम तापमान और अत्यंत उच्च् दबाव पर ठोस बन जाता है। उन्होंने पाया कि बड़े-बड़े (५-५ मीटर चौड़े) गैस हायड्रेट में अंदर डोलोमाइट के रवेफंसेहुए हैं । डोलोमाइट के येकण बहुत छोटे-छोटेथे(व्यास मात्र३० माइक्रॉन) । और इन डोलोमाइट रवों के अंदर एक और गहरेरंग का बिन्दु था। इस बिन्दु ने शोधकर्ताओं की जिज्ञासा बढ़ा दी ।
जब रासायनिक विधि सेहायड्रेट को अलग कर दिया गया तो शोधकर्ताओं कोडोलोमाइट का अवशेष मिला । उन्होंने अमेरिकन जियोफिजिकल युनियन के सम्मेलन में बताया कि जब उक्त सूक्ष्म धब्बों का फ्लोरेसेंट रंजक सेरंगकर अवलोकन किया तो पता चला कि इनमें जेनेटिक पदार्थ उपस्थित है । यह जेनेटिक पदार्थ सूक्ष्मजीवों का द्योतक है ।
यह तो पहले से पता है कि सूक्ष्मजीव हायड्रेटस के आसपास रहतेहैं किन्तु यह पूरी तरह अनपेक्षित था कि ये हायड्रेडस के अंदर डोलोमाइट में निवास करते होंगे । अवलोकन से यह तो पता नहीं चला है कि ये सूक्ष्मजीव जीवित हैं या मृत किंतु इनका वहां पाया जाना ही आश्चर्य की बात है। चूंकि येहायड्रेटस के अंदर के अनछुए वातावरण में मिले हैं इसलिए यह निश्चित है कि ये वहीं के वासी होंगे; ये वहां किसी इंसानी क्रियाकलाप की वजह से नहीं पहुंचे होंगे ।
वैज्ञानिकों का विचार है कि मंगल ग्रह पर भी ऐसे हायड्रेटस पाए जाते हैंऔर काफी संभावना बनती है कि उनके अंदर ऐसे सूक्ष्मजीवों का घर हो सकता है ।
चांद पर कपास के बीज उगे, अंकुर मर गए
चीन द्वारा चांग-४ अंतरिक्ष यान के साथ चांद पर भेजेगए ल्यूनर रोवर पर एक जैव मंडल (वजन २.६ किलोग्राम ) भी भेजा गया था जिसमें आलू के बीज, पत्ता गोभी सरीखा एक पौधा और रेशम के कीड़े की इल्लियों के अलावा कुछ कपास के बीज भी थे। कपास के बीज चांद पर भी अंकुरित हुए हालांकि उनके अंकुर पृथ्वी पर तुलना के लिए रखेगए कपास के अंकुरों सेछोटेरहे। मगर उल्लेखनीय बात यह मानी जा रही है कि येबीज यान के प्रक्षेपण, चांद तक की मुश्किल यात्रा को झेलकर चांद के दुर्बल गुरुत्वाकर्षण और वहां मौजूद तीव्र विकिरण के बावजूद पनपेथे। खास बात यह है कि उसी जैव मंडल में अन्य किसी प्रजाति में इस तरह जीवन के लक्षण नजर नहीं आए थे। किन्तु अब कपास के वेअंकुर भी मर चुके है ।
चांग-४ के प्रोजेक्ट लीडर लिऊ हानलॉन्ग नेइस घटना की व्याख्या करतेहुए बताया है कि चांग-४ चांद के दूरस्थ हिस्सेपर उतरा है । जैसेही रात हुई, लघु जैव मंडल का तापमान एकदम कम होगया। उन्होंनेबताया कि जैव मंडल कक्ष के अंदर का तापमान शून्य से५२ डिग्री सेल्सियर नीचेचला गया था । अंदेशा यह है कि तापमान में और गिरावट होगी और यह ऋण १८० डिग्री सेल्सियस तक चला जाएगा । जैव मंडल कोगर्म रखनेका कोई इंतजाम नहीं है।
आम तौर पर पौधों में कम तापमान कोझेलनेके लिए अंदरुनी व्यवस्थाएं होती हैं । जैसेतापमान कम होनेपर पौधों की कोशिकाओं में शर्करा और कुछ कुछ अन्य रसायनों की मात्रा बढ़ती है जिसके चलतेकोशिकाओं के अंदर पानी के बर्फ बननेका तापमान (हिमांक) कम होजाता है। इसके कारण कोशिकाओं में पानी बर्फ नहीं बनता अन्यथा यह बर्फ कोशिकाओं को फैलाता है और तोड़ देता है । कुछ अन्य पौधों में कोशिका झिल्लियां सख्त हो जाती है जबकि कुछ पौधों में पानी को कोशिका सेबाहर निकाल दिया जाता है ताकि बर्फ बननेकी नौबत ही न आए ।
मगर इन प्रक्रियाओं के काम करनेके लिए जरूरी होता है कि पर्यावरण सेयह संकेत मिलता रहेकि ठंड आ रही है । मगर यदि तापमान अचानक कम होजाए तोये व्यवस्थाएं पौधेकोबचा नहीं पातीं । इसलिए यकायक पाला पड़े तो पृथ्वी की ठंडी जलवायु वाले पौधे भी बच नहीं पाते। कपास तो गर्म जलवायु का पौधा है। और चांद पर जोठंड आई होगी वह धीरे-धीरे जाड़े का मौसम आनेजैसा कदापि नहीं था । चांद पर दिन के समय (वहां का दिन हमारे१३ दिन के बराबर होता है) का तापमान तो१०० डिग्री सेल्सियस (पानी के क्वथनांक) तक होजाता है जबकि रात में यह ऋण १७३ डिग्री तक गिर जाता है ।
तो ऐसा लगता है कि यह शीत लहर कपास की क्षमता सेबाहर थी । पहले तो कोशिकाओं का पानी बर्फ बन गया होगा, जिसनेउन्हें अंदर सेफोड़ दिया होगा । फिर कोशिकाओं के बीच के पानी का नम्बर आया होगा जिसने पूरे अंकुर कोनष्ट कर दिया होगा । हानलॉन्ग के मुताबिक अब यह प्रयोग समाप्त् माना जाना चाहिए ।
हवा से ऑक्सीजन-१८ को अलग करने की तकनीक विकसित
भारत सरकार के परमाणु ऊर्जा विभाग (डीईए) की इकाई भारी जल बोर्ड नेहवा से ऑक्सीजन - १८ को अलग करनेकी तकनीक विकसित की है जिससे आर-म्भिक चरण में ही कैंसर की जांच सस्ती हो जाएंगी ।
बोर्ड के एक वैज्ञानिक ने बताया कि ऑक्सीजन - १८ वाले पानी का इस्तेमाल फ्लोरीन - १८ ग्लूकोज बनानेमें होता है । यह ग्लूकोज कैंसर की शुरूआती जांच की अत्याधुनिक तकनीक पॉजिट्रॉन एमिशन टोमोग्राफी (पीईटी) का आवश्यक तत्व है । अभी पीईटी जांच काफी महंगी है, लेकिन फ्लोरीन - १८ ग्लूकोज देश में ही बननेसेयह काफी सस्ता हो जाएगा और अंतत: कैंसर की जांच भी सस्ती जोजाएगी । ऑक्सीजन का परमाणु भार आमतौर पर १६ इकाई होता है । ऑक्सीजन - १८ इसका समस्थानिक है जिसकी परमाणु भार १८ होता है । ऑक्सीजन - १८ वाला पानी भी प्राकृतिक रूप सेमिलता है, लेकिन इसकी मात्रा बहुत कम होती है । आम तौर पर नदियों में बहने वाले पानी या अन्य प्राकृतिक जल में ऑक्सीजन-१८ वाला पानी भी साथ-साथ पाया जाता है ।, भारी जल बोर्ड के वैज्ञानिक नेबताया कि अभी कैंसर की जांच के लिए ऑक्सीजन १८ वाला पानी आयात किया जा रहा है । दुनिया के कुछ ही देशों के पास इस तरह का भारी पानी बनानेकी तकनीक है । आयात करने पर इसकी कीमत करीब एक हजार डॉलर प्रति ग्राम आती है । वहीं बोर्ड द्वारा बनाए गए ऑक्सीजन १८ के पानी की कीमत २०० डॉलर प्रति ग्राम आती है । इस प्रकार इससेफ्लोरीन - १८ ग्लूकोज और कैंसर की पीईटी जांच के भी सस्ता होनेकी उम्मीद है ।
इंसान १७ तरह के हाव-भाव से खुशी जाहिर करते हैं
कोलबंस कहावत है फर्स्ट इंप्रेशन इज द लास्ट इंप्रेशन । यानी पहली मुलाकात में उसकी जो छवि बनती है, वह अंत तक जेहन में रहती है ।
आमतौर पर दिन भर में औसतन ६० प्रतिशत सेज्यादा बातें बिना बोलेभी कहीं जाती हैं । ऐसेमें रिश्तों कोबेहतर बनानेके लिए सामनेवालेकी शारीरिक हाव-भाव (बॉडी लेंग्वेज) की समझ रखना बेहद जरूरी है । हाव-भाव के द्वारा दिए जा रहे संकेतों को समझ पाना भी एक बेहद रोमांचक कला है । अमरीकी शोध-कर्ताआें की रिपोर्ट में सामनेआया है कि इंसान चेहरे पर १६३८४ तरह के भाव बना सकता है । ओहियोस्टेट यूनिवर्सिटी के शोध के अनुसार मनुष्य किसी अन्य भावना के अपेक्षा सेखुशी जाहिर करनेके लिए चेहरेपर सर्वाधिक हाव-भाव का इस्तेमाल करतेहै । सामान्य तौर पर चेहरेके ३५ तरह के हाव-भाव पहचानेजातेहैं।
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