वन्य जीव
वन्य जीव संरक्षण प्राथमिक आवश्यकता
प्रो. कृष्ण कुमार द्विवेदी
पृथ्वी पर वन्य जीव-जंतु एवं उनकी विविधता ही अरबों वर्षो से हो रहे जीवन के सतत् विकास की प्रक्रिया के आधार रहे हैं । प्रकृति में जीवों का विस्तार एवं जीव समुदायों के मध्य मिलने वाली जैन विविधता का अत्याधिक महत्व है ।
आज बढ़ते विभिन्न पर्यावरणीय ह्ास के कारण वन्य जीवों की विविधता का क्षय हुआ है और जीवों की अनेकानेक प्रजातियां लुप्त् हो गई है तथा सैकड़ों प्रजातियां संकटाग्रस्त हैं । वन्य जीवों का बने रहना समस्त स्थलीय एवं जलीय जीवों के लिए अत्यंत आवश्यक है । विशेषकर भावी पीढ़ियों के व्यापक हितों को ध्यान में रखते हुए वन्य जीवों का संरक्षण वर्तमान में आवश्यकता बन गई हैं । वस्तुत: वन्यजीव एवं उनकी विविधता मानव सभ्यता की सांझी संपदा है, जिसका संरक्षण एवं संवर्धन संपूर्ण विश्व समुदाय का सामुहिक दायित्व है ।
विविध जीव-जंतु सदा- सर्वदा से विभिन्न मानवीय आवश्यकताआें की आपूर्ति के लिए वन्य जीवों पर ही निर्भर रहते आए हैं । वन्य जीव-जंतुआें से प्राप्त् विभिन्न उत्पाद तथा उनकी उपस्थिति मात्र ही मानव के लिए अत्यंत उपयोगी होने के साथ-साथ वन पारिस्थितिक तंत्र के निर्माण के मुख्य आधार होते हैं ।
वन्य जीव जंतुआें की विविधता का मानव के लिए नीतिपरक एवं आचरणगत महत्व भी अत्याधिक होता है । पंत्रतंत्र एवं जंगल-बुक जैसे ग्रंथ वन्य प्राणियों के नीति कथाआें से भरे पड़े हैं । वन्य जीव-जंतुआें के माध्यम से जीनोपयोगी शिक्षाआें को सरल एवं सरस रूप में व्यक्त किया जाता है । शेर जैसी निडरता, बगुले जैसी एकाग्रता, हिरण् जैसी चपलता, काग जैसी चेष्टा, स्वान जैसी स्वामी भक्ति आज भी मानव आचरण के लिए श्रेष्ठतम प्रतिमान मानी जाती है ।
वर्तमान में विकसित एवं अतिलोकप्रिय जूडो-कराटे, कुंग-फू आदि मार्शल आर्ट पूर्णत: वन्य प्राणियों से ही अभिप्रेरित होते हैं । वन्य प्राणियों की विविधता पृथ्वी पर प्राकृतिक सौंदर्य में भी अतिशय अभिवृद्धि करती है । चिड़ियों की चहचहाट, पवनों के झोंको से मदमस्त घूमते वन्य प्राणी, कुलांचे भरते हिरण के छौने, कोयल की कूक, पपीहे की पी-पी, सभी का मन मोह लेती हैं । वन्य जीव और उनकी विविधता से समृद्ध प्राकृतिक स्थल एवं वन क्षेत्र के रूप में विकसित होने के आधार बनते हैं ।
यहां उल्लेखनीय है कि वन्य प्राणियों की विविधता का वन पारिस्थितिक तंत्र के तुलना मेंविशिष्ट महत्व होता है । उत्पादक, उपभोक्ता एवं अपघटक के रूप मेंअधिसंख्य वन्य जीव एक उत्कृष्ट पूर्ण पारिस्थितिक तंत्र के संचालन के आधार होते हैं । वन पारिस्थितिक तंत्र से ही विभिन्न वनस्पतियां एवं जीव-जंतुआें की संख्या में कमी आती हैं और उनका ह्ास होता है तो समग्र पर्यावरण असंतुलित हो जाता है जिसके कारण गहन पर्यावरणीय और प्राकृतिक समस्याएं उत्पन्न हो जाती है ।
अतएव मानव सभ्यता की संरक्षा और भावी पीढ़ी के खुशहाल भविष्य के परिप्रेक्ष्य में तथा जलवायु परिवर्तन, भूमण्डलीय तापन तथा अन्य प्राकृतिक आपदाआें से बचने के लिए वन्य जीवों का संरक्षण करना एक सामयिक और अनिवार्य आवश्यकता है ।
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