कविता
पर्यावरण जीवन का आधार
डॉ. रामनिवास मानव
पेड़ कटे, जंगल घटे, मौसम हुआ उदास।
लेकिन चिट्ठी दर्द की, भेजे किसे पास ।।
चिड़िया बैठी घोंसले, साधे बिल्कुल मौन ।
दर्द भरी उसकी कथा, लेकिन समझे कौन ।।
जीने के अधिकार की, खारिज हुई दलील ।
मौसम ने की क्रूरता, मरी प्यास से झील ।।
ऋतुएं भूली चाल हैं, चिड़िया भूली गीत ।
छांव कहीं भटकी फिरे, गर्मी से भयभीत ।।
पर्वत सब नंगे हुए, सूखे सारे खेत ।
विवश दिखती है नदी, भर आंखों में रेत ।।
पानी पर पहरा लगा, फिर भटकती प्यास,
अब दुनिया करने लगी, जीवन का उपहास ।।
सूखा सूना खेत है, खड़ा बिजूका बीच ।
भरकर अंजलि आग की, मौसम रहा उलीच ।।
सूख गई हरियालियां, फसलें हई तबाह ।
कोल्हू जैसी जिन्दग्री, फिर-फिर रही कराह ।।
वट पीपल के देश में, पूजित आज कनेर ।
बूढ़ा बरगद मौन है, देख समय का फेर ।।
मानव अब करने लगा, नित्य नये उत्पात ।
प्रकृति तभी देने लगी, बार-बार आघात ।।
धरती मां, सूरज पिता, पेड़ प्रकृति परिवार ।
पर्यावरण को समझिये, जीवन का आधार ।।
पर्यावरण जीवन का आधार
डॉ. रामनिवास मानव
पेड़ कटे, जंगल घटे, मौसम हुआ उदास।
लेकिन चिट्ठी दर्द की, भेजे किसे पास ।।
चिड़िया बैठी घोंसले, साधे बिल्कुल मौन ।
दर्द भरी उसकी कथा, लेकिन समझे कौन ।।
जीने के अधिकार की, खारिज हुई दलील ।
मौसम ने की क्रूरता, मरी प्यास से झील ।।
ऋतुएं भूली चाल हैं, चिड़िया भूली गीत ।
छांव कहीं भटकी फिरे, गर्मी से भयभीत ।।
पर्वत सब नंगे हुए, सूखे सारे खेत ।
विवश दिखती है नदी, भर आंखों में रेत ।।
पानी पर पहरा लगा, फिर भटकती प्यास,
अब दुनिया करने लगी, जीवन का उपहास ।।
सूखा सूना खेत है, खड़ा बिजूका बीच ।
भरकर अंजलि आग की, मौसम रहा उलीच ।।
सूख गई हरियालियां, फसलें हई तबाह ।
कोल्हू जैसी जिन्दग्री, फिर-फिर रही कराह ।।
वट पीपल के देश में, पूजित आज कनेर ।
बूढ़ा बरगद मौन है, देख समय का फेर ।।
मानव अब करने लगा, नित्य नये उत्पात ।
प्रकृति तभी देने लगी, बार-बार आघात ।।
धरती मां, सूरज पिता, पेड़ प्रकृति परिवार ।
पर्यावरण को समझिये, जीवन का आधार ।।
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