सम्पादकीय
हिमालयन वियाग्रा को लेकर दो गांवों में जंग
हिमालयन वियाग्रा को लेकर उत्तराखंड में जंग छिड़ गई है । उत्तराखंड के दो गांव इस पर अपने दावे को लेकर आमने-सामने आ गए हैं । अंतरराष्ट्रीय बाजार में हिमालयन वियाग्रा की मांग ज्यादा होने से अच्छी कीमत मिलती है, जिसके चलते पिथौरागड़ जिले के दो गांवोंधारचुला और मनुस्यारी के लोगों ने इस पर अपना दावा ठोंका है ।
गौरतलब है कि गर्मी के मौसम में पिथौरागढ़ के धारचुला और मनुस्यारी के लोग हिमालय की पहाड़ियों में हिमालयन वियाग्रा की खोज के लिए जाते हैं । हिमालयन वियाग्रा को स्थानीय भाषा में कीड़ा जड़ी के नाम से भी जाना जाता है, लेकिन बीते कुछ सालों से यहां के बुई और पाटो गांव के लोग एक-दूसरे के खिलाफ हो गए हैं । मिली जानकारी के मुताबिक दोनोंगांवों के लोग रालम और राजरम्भा मैदानी चारागाहों पर मिलनेवाले कीड़ा जड़ी पर अपना दावा जता रहे हैं । ग्रामीणों का कहना है कि मैदानी चारागाह वन पंचायत के दायरेमें आता हैं । ऐसे में दूसरे किसी को इलाके से कीड़ा जड़ी लेने का अधिकार नहीं है, जिससे दोनों गांव के बीच तलवारें खिंच गई है । तेजी से बिगड़ते हालात के मद्देनजर जिला प्रशासन ने झगड़ा सुलझाने की कोशिश की, लेकिन अब तक इसका कोई फायदा नहीं हुआ । मजबूरन प्रशासन ने इलाके में शांति बनाए रखने के लिए धारा १४४ लागू कर दी है । मनुस्यारी के सब-डिवीजनल मजिस्ट्रेट आरसी गौतम ने बताया कि हिमालयन वियाग्रा को लेकर झगड़ा इतना बढ़ चुका है कि पिछले दिनों पिथौरागढ़ के डीएम को हस्तक्षेप कर ग्रामीणों से मिलना पड़ा था, लेकिन इस मुद्दे पर कोई समाधान नहीं निकला ।
हिमालय वियाग्रा को कोर्डिसेप्स साइनेसिस वैज्ञानिक नाम से जाना जाता है । इसे स्थानीय इलाकों में कीड़ा जड़ी, यारसागम्बू भी कहा जाता है । कीड़ा जड़ी हिमालय के तीन से पांच हजार मीटर की ऊंचाई वाले बर्फीलेपहाड़ों पर पाई जाती है । रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाने के अलावा इसका इस्तेमाल सांस और गुर्दे की बीमारी में भी किया जात ा है । कहा जाता है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में यह १० लाख रूपए प्रति किलो के ि हसाब से बिकता है ।
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