बुधवार, 19 जून 2019

पर्यावरण परिक्रमा
ईस्ट तिमोर दुनिया का पहला प्लास्टिक कचरा मुक्त देश
दक्षिण पूर्वी एशियाई देश ईस्ट तिमोर दुनिया का पहला प्लास्टिक कचरा मुक्त देश बनने की राह पर है । इसके लिए वह देश में निकलने वाले सारे प्लास्टिक कचरे को रिसाइकल करेगा । पर्यावरण संरक्षण से जुड़े अपने इस अभियान के तहत उसने एक रिसाइकलिंग संयंत्र लगाने के लिए ऑस्ट्रेलियाई शोधकर्ताआें से हाथ मिलाया है । चार करोड़ डॉलर की लागत से बनने वाले इस संयंत्र के जरिए इस्तेमाल हुए प्लास्टिक सामान को नए उत्पादों में तब्दील किया जाएगा । ईस्ट तिमोर की सरकार ने पिछले दिनोंकहा कि इस संयंत्र के २०२० के आखिर तक शुरू होने की संभावना है । 
गरीब देश ईस्ट तिमोर की आबादी महज १३ लाख है । इस छोटे से देश में रोजना करीब ७० टन प्लास्टिक कचरा निकलता है । इसमें से ज्यादातर समुद्र तटों और शहरी इलाकों से एकत्र होता है । इसे अभी खुले में जला दिया जाता है । 
हिन्द महासागर में स्थित कोको द्वीप समूह केतटों पर बड़ी मात्रा में प्लास्टिक कचरा मिला है । ऑस्ट्रेलिया के इस  दूरस्थ  द्वीप समूह के तटों पर दस लाख जूते और तीन लाख ७० हजार टूथब्रश समेत प्लास्टिक के करीब ४१.४ करोड़ टुकड़े मिले है । साइंसटिफिक रिपोट्र्स जर्नल में प्रकाशित एक सर्व में अनुमान लगाया गया है कि द्वीप समूह के तटों पर करीब २३८ टन प्लास्टिक पड़ा है । कोको आइलैडस पर महज ५०० लोग रहते हैं । तटों पर पाए गए प्लास्टिक कचरे में बोतलों के ढक्कन,स्ट्रा, जूते और चप्पले शामिल है । 
म.प्र. में बढ़ रही बड़े पौधे रोपने की परिपाटी 
म.प्र. में वन विभाग भोपाल शहर आगामी मानसून सीजन में वन विभाग दो लाख से अधिक पौधे रोपने की तैयार कर रहा है । विभाग के अधिकारियों का जोर वन क्षेत्रों से लेकर शहर तक पौधारोपण की संख्या बढ़ाने पर जोर है, दूसरी और महानगरों में टॉल प्लॉटिंग का चलन जोर पकड़ रहा है, जिससे ब्राउजिंग हाईट (पशुआें के चरने की सीमा तक की ऊंचाई) से ऊंचे बड़े पौधे रोपे जाते है। । 
दक्षिण भारत के कई राज्यों में टॉल प्लांटेशन के लिए अलग से नर्सरिया है । विशेषज्ञों का कहना है कि प्रदेश को भी इस तकनीक से हराभरा करने की जरूरत है, जिसके लिए दो साल पहले से तैयार शुरू करनी चाहिए, लेकिन प्रदेश में इस ओर सार्थक प्रयास नहीं किए गए हैं । 
पौधों को दो से तीन साल नर्सरी में रखा जाता है । पॉलीथीन बेग में पौधे विकसित करने के बाद उसे प्लास्टिक के बड़े शंकु आकार के पाइप रूपी रूट ट्रेनर में रखा जाता है । इसके बाद उसे लगभग ४० किलो के पैकेट में लगा देते हैं । इस तरह से सात से आठ सेटीमीटर गोलाई और छह से सात फीट की ऊंचाई का हो जाता है । इसके बाद मौके पर गड्ढा करने वाली ओगर मशीन से गड्ढा करके पौधा लगाकर खुलने वाला ट्री गार्ड देते हैं । एक से दो सीजन में ही यह १५ से २० फीट का पेड़ बन जाता है । 
जंगल में डेढ फीट का पौधा पर्याप्त् होता है । शहरी क्षेत्र में बड़े पौधे लगाना बेहतर है । अभी ऐसी नर्सरी तो नहीं है, लेकिन इस दिशा में बढ़ते हुए हमने अपनी नर्सरियों में २५ हजार से अधिक पौधे डेढ मीटर से अधिक ऊंचाई के तैयार किए है । शहरी क्षेत्र मेंपौधारोपण करने वाली एजेसियों को ऊंचे पौधों की नर्सरी विकसित करनी चाहिए । 
वैज्ञानिकों ने रंगीन कपास उगाने में पाई सफलता
कपास से बने धागे को रंगकर कपड़ा बनाना अब बीते जमाने की तकनीक होने जा रही है । उ.प्र. के  गाजियाबाद स्थित नॉर्दर्न इंडिया टेक्सटाइल रिसर्च एसोसिएशन(निटरा) के वैज्ञानिकों ने  रंगीन कपास के बीज से खेती कर उससे कपड़ा बनाने में सफलता हासिल की है । यह बीज दिल्ली के पूसा इस्टीट्यूट में तैयार हुआ । इसके अगले चरण निटरा में पूरे हुए । पहले हरे और भूरे रंग की कपास की खेती की गई । स्वस्थ फसल लहलाने तक कामयाबी के बाद कपास से धागा बनाकर कपड़ा तैयार किया गया । अब उसी कपड़े से पायजामा और बैग बनाए गए है । योरपीय देश के केमिकल रंगोंसे रंगे गए कपास नहीं लेते क्योंकि रासायनिक रंग कैंसर कारक होते हैं । 
जर्मनी ने १९९३ में रंगीन कपड़े में प्रयुक्त एजो डाइज (खतरनाक रासायनिक रंग) को प्रतिबंधित किया था । यहीं से रंगीन कपास उगाने की प्रेरणा मिली । पूसा इंस्टीट्यूट और निटरा के बीच सहमति बनी । सरकारी मशीनरी की मंजूरी में थोड़ समय लगा । उसके बाद रंगीन कपास का बीज तैयार करने की प्रक्रिया शुरू हुई । साधारण बीज के जीन में रंग भरने पर शोध किया गया । पूसा इंस्टीट्यूट को एक दशक में बीज तैयार करने में सफलता मिली । फिर यह बीज निटरा को दिया गया । उन्होंने अपने संस्थान में इस बीज से कपास की खेती की । तीन चरणों में खेती करने के बाद  उत्तम फसल मिली । उस कपास के धागा बनाकर देखा गया । हालांकि शुरूआत में धागा बनाने में कुछ दिक्कतें आई । उन दिक्कतों को दूर कर निटरा ने कपड़ा बनाने में सफलता हासिल की । 
निटरा के वैज्ञानिकों ने मानव शरीर के अनुकूल रंगीन कपास को लेकर शोध किया । वैज्ञानिकों के मुताबिक, एजोकलर्स व  रासायनिक रंगोंसे रंगी रूई, धागा व कपड़े से स्किन कैंसर समेत कई गंभीर त्वचा रोगों की पुष्टि हो चुकी है । यही नहीं एक किलो कपड़े को रंगने के लिए एक हजार लीटर पानी बर्बाद होता है । निटरा को मिली सफलता के बाद धागे को रासायनिक रंगों से रंगने की जरूरत नहीं पड़ेगी ।  रंगीन कपास से निर्मित कपड़े पूरी तरह मानव शरीर व पर्यावरण के अनुकूल होगें । 
निटरा के महानिदेशक डॉ. अरिदम बसु के मुताबिक, निटरा व पूसा के वैज्ञानिक अगले चरण के शोध में लगे हैं । अंतिम रूप से सफलता मिलने पर रंगीन कपास का पेटेंट कराकर किसानों को इसकी सौगात दी जाएगी । 
समुद्र किनारे मिले जूते और टूथब्रश
प्लास्टिक रूपी महामारी से भारत ही नहीं दुनिया के ज्यादातर देश त्रस्त है । आस्ट्रेलिया के समुद्री किनारे प्लास्टिक और अन्य गैर जरूरी सामानों से भरे हुए हैं । यहां के दूरस्थ कोकोस द्वीप में हिन्द महासागर के किनारे करीब ४१४ मिलियन प्लास्टिक के टुकड़े मिले हैं, जिसमें दाख लाख जूते और तीन लाख सत्तर हजार टूथब्रश शामिल है । एक नए शोध में यह जानकारी मिली है । 
जर्नल साइटिफिक रिपोट्र्स में प्रकाशित नए शोध में पाया गया कि यहां सिर्फ लगभग ५०० लोग ही घरों में रहते हैं । इसके बावजूद यह ऑस्ट्रेलियाई क्षेत्र २३८ टन प्लास्टिक से भरा हुआ है । यह २७ द्वीपों का समूह ज्यादातर निर्जन है जो पर्थ से २७५० किमी (१७०८ मील) दूर हैं । यह क्षेत्र पर्यटकों के लिए बगैर विकसित हुए ऑस्ट्रेलिया का अंतिम स्वर्ग माना जाता है । इस अध्ययन को नेतृत्व करने वालों में तस्मानिया मरीन इको टॉक्सिकोलॉजिस्ट जेनिफर लावर्स शामिल रही है । उन्होंने बताया कि यहां उपभोक्ताआें के अधिकतर एकल उपयोग वाले सामान जैसे बोतल के ढक्कन, स्ट्रा, जूते और सेडल मिले । 
लावर्स ने एक मीडिया विज्ञिप्त् में कहा कि प्लास्टिक प्रदूषण अब हमारे महासागरों में सर्वव्यापी है । दूरदराज के द्वीपों में प्लास्टिक के मलबे का एक उद्देश्यपूर्ण दृश्य के लिए एक आदर्श स्थान है । इस तरह के द्वीप समूह कोयले की खान में एक भेदिया की तरह है । 
ग्रामीणों ने दुल्हन को उपहार में दिया पानी
इन दिनों देश में पेयजल संकट बड़ी समस्या बन चुका है । ऐसे में किसी परिवार में शादी या अन्य समारोह का आयोजन हो तो आप स्थिति समझ सकते  हैं । मगर मध्यप्रदेश में एक गांव ऐसा भी है जहांं लोग गिफ्ट के तौर पर पानी लेकर पहुंचे । शादी-ब्याह जैसे समारोह मेंजहां लोगों को बड़े तौर पर जमावड़ा होता है वही पानी की कितनी ज्यादा मात्रा में जरूरत होती है यह आप सोच ही सकते है । 
खरगौन जिले के एक  गांव में आयोजित शादी समारोह में ग्रामीणों ने दुल्हन को महंगे उपहार की जगह पानी के रूप में अनमोल भेंट दी । जिस गांव में यह शादी थी, वहां के लोग भीषण जलसंकट से जूझ रहे  हैं । संकट का समाधान निकालने के लिए ग्रामीणों ने यह अनूठी पहल की । 
जिला मुख्यालय से करीब ६२ किमी दूर दुर्गम पहाड़ियों में बसे आदिवासी गांव रायटेमरी में २२ मई को कुंवर सिंह की बेटी की शादी थी । शादी की तैयारियों के बीच सामूहिक भोज में सबसे बड़ी चुनौती पेयजल की बनी । लगभग २५० लोगों के लिए भोजन के साथ पानी की व्यवस्था करना मुश्किल था, क्योंकि गांव में भीषण जलसंकट है । 
कुंवरसिंह ने यह समस्या सरपंच और ग्रामीणों से साझा की । आखिर में तय किया गया कि गांव के आमंत्रित परिवार भोजन करने आएं तो पानी का उपहार लाएं । ग्रामीण दिनेश पटेल, रामसिंह और वाहरिया ने बताया कि लगभग हर परिवार ३०० लीटर क्षमता का ड्रम पानी से भरकर बैलगाड़ी के जरिये शादी वाले घर पहुंचा । देखते ही देखते कुंवर सिंह के यहां रखी तीन हजार लीटर की टंकी लबाबल हो गई । सरपंच जागीराम जमरे व अन्य ग्रामीणों ने संकल्प लिया कि अब किसी भी आयोजन में पानी का उपहार देने की परम्परा बनाए रखेगे ।                                  

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