बुधवार, 19 जून 2019

प्राणी जगत
मधुमक्खी की प्रजनन क्षमता और कीटनाशक
सुश्री दीक्षा शर्मा / शुभम कुमार

मधुमक्खी एक कीट वर्ग का प्राणी है जिससे मधु प्राप्त होता है ये अत्यन्त पौष्टिक भोजन है। यह संघ बनाकर रहती हैं, प्रत्येक संघ में एक रानी, कई सौ नर और शेष श्रमिक होते हैं। 
मधुमक्खियाँ मोम के छत्ते बनाकर रहती है । एक मौनवंश (मधुमक्खियों का एक पूरा समूह) में हजारों मधुमक्खियां होती हैं इनमें केवल एक ही रानी (क्वीन) होती है जो की पूर्ण विकसित मादा होती है और पुरे मौनवंश में अंडे देने का काम करती है। यह आकार में अन्य मधुमक्खियों से बडी और चमकीली होती है जिससे इसे झुंड में आसानी से पहचाना जा सकता है। मौसम और प्रजनन काल के अनुसार नर मधुमक्खी (डरोन) की संख्या घटती-बढ़ती रहती है। 
प्रजनन काल में एक मौनवंष में ये ढाई-तीन सौ तक हो जाते हैंजबकि विपरीत परिस्थितियोंे में इनकी संख्या शून्य तक हो जाती है। इनका काम केवल रानी मधुमक्खी का गर्भाधान करना है। गर्भाधान  के लिए यद्यपि कई नर प्रयास करते हैं जिनमें से केवल एक ही सफल हो पाता है। यह मधुमक्खी पूरी प्रकृति का संतुलन बनाकर रखती है, लेकिन आज  के समय में पूरी दुनिया के कृषि क्षेत्र में जैसे, कीटनाशकों का उपयोग धडल्ले से बढ़ता जा रहा है इससे इनके लिए समस्याएं उत्पन हो गए है । 
कीटनाशकों के उपयोग में ब्राजील सबसे पहले क्रम पर है, जहां २०१४ में १.८८ किलोग्राम/ हेक्टेयर कीटनाशक की खपत हुई    है ।  इसी के साथ भारत कीटनाशकों के उपयोग में पूरी दुनिया में नौवें स्थान पर है, यहां २०१४ में ०.२९ किलोग्राम/ हेक्टेयर कीटनाशक का उपयोग हुआ है । भारत में कीटनाशकों का उपयोग २०१० से लगातार बढ़ता ही जा रहा है, पंजाब राज्य में इसका उपयोग सबसे ज्यादा ०.७४ किलोग्राम/हेक्टेयर है। भारत कीटनाशकों के उत्पादन में भी महत्वपूर्ण भूमिका रखता है, अभी २०१६-१७ में भारत ने ३७७.७६ हजार टन कीटनाशकों का निर्यात किया। इनमे मुख्यत: कीटनाशक मेंकोजेब, सीपेरमेथ्रिन, सल्फर और क्लोरपैरिफोस थे । इन कीटनाशकों के बढ़ते उपयोग की वजह से मधुमक्खियों के लिए बहुत समस्याए उत्पन हो गयी है, जिसमे उनका सही से संघ ना बना पाना, विकास ना होना, उडने की क्षमता में कमी होना और इन सबके साथ-साथ सबसेमहत्वपूर्ण इनकी प्रजनन क्षमता में कमी होना है।
मधुमक्खी एक परागकारी जीव है, जो दुनिया की अन्य परागकारी जीवो की तुलना में अकेले ही दसवां भाग है इसके साथ- साथ ये दुनिया की तीन चौथाई फसलों की परागण अकेले ही करती है। इसके परागण की उपयोगिता को देखने के लिए अनेको अध्ययन हुए है, जिसमें पाया गया कि मधुमक्खी परागीकृत फूलो में ज्यादा बीज और फल की उत्पत्ति होती है और इसी के साथ ही कई पौधो की जाति तो ऐसी है जो सिर्फ मधुमक्खी परागीकरण पर ही निर्भर है। इससे ये साबित होता है कि मधुमक्खी ना सिर्फ कृषि उत्पादन में बल्कि जैव विविधता को बनाये रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है । 
            कीटनाशकों से मधमक्िखयों का संपर्क कीटनाशकों के उपयोग पर निर्भर करता है, जो की मुख्यत तीन प्रकार से होता है:-
१- प्रत्यक्ष स्प्रे द्वारा छिड़काव - ये सबसे ज्यादा उपयोग होने वाला तरीका है यह बाग- बगीचों में प्रयोग किया जाता है और ये मधुमक्खियों के  लिए सबसे ज्यादा हानिकारक होता है ये अलग-अलग तरीको से मधुमक्िखयों तक पहुँचता है ।
२- सीधा मिट्टी में कीटनाशक का उपयोग - जब कीटनाशकों का सीधे मिट्टी में उपयोग होता है तो ये लम्बे समय तक के लिए मिट्टी में एकत्रित हो जाते है और उस से पौधो में पहुंच जाते है जब मधुमक्खी भोजन की तलाश में घूमती है तो इन कीटनाशक युक्त पौधो के संपर्क में आती है और अक्सर कीटनाशक युक्त पराग को खा लेती है । कुछ मधुमक्खियोंकी ऐसी भी पर-जातिया है जो कि मिट्टी में ही घर बनाकर  रहती है वो मुख्य रूप से प्रभावित होती है। ये एक साल के ४९ सप्ताह तक मिट्टी के बिल में ही रहती है और सिर्फ ४ सप्ताह के लिए बाहर भोजन और नर कि तलाश में आती है। इस तरह से एक काफी लम्बे समय के लिए ये मिट्टी में एकत्रित कीटनाशक के संपर्क में रहती है ।  
३- कीटनाशक से उपचारित बीजों का उपयेाग  - आज कल अच्छी खेती लिए कुछ किसान कीटनाशक से उपचारित बीजों का उपयोग भी करते है इससे पैदावार तो बढ़  जाती है पर कई बार ये कीटनाशक बीज  से  खत्म नही होते है और मिट्टी में संचित हो जाते है जो की सिर्फ मधुमक्खियों के लिए ही नहीं बल्कि मिट्टी के सभी जीवों के लिए  नुकसानदायक होते है । 
नीओनीकोटीनॉइड कीट-नाशक जो कि तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करता है और यह पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा उपयोग किया जाने वाला कीटनाशक है । इसका उपयोग फसलों, फलों और फलों पर किया जाता है जो कि रस तथा पराग में इक्ट्ठा होकर मधुमक्खी से उनके छत्ते तक पहुंचता है यह नर और मादा दोनों को ही प्रभावित करके उनके विकास को रोकता है, नर की उम्र को कम करने के साथ-साथ जीवित शुक्राणुआें की संख्या कम करता है । 
यह कीटनाशक यूरोप में आंशिक रूप से बंद है लेकिन भारत में इसका उपयोग पूर्ण रूप से किया जाता है । जोकि सबसे ज्यादा हानि  रानी मधुमक्खी को पहुंचता है। जैसा कि हम जानते है कि रानी मधुमक्खी पूरे संघ (कालोनी) को चलाती है और उसके मरने की वजह से पूरा संघ खतरे में आ जाता है । विभिन्न अध्ययनों में पाया गया कि यह कीटनाशक रानी मधुमक्खी की उम्र को कम करता है जो की उनके पूर्ण विकास, यौन परिपक्वता और शारीरिक परिवर्तन पर निर्भर करती है । यह परिवर्तन सफल संभोग (मेटिंग) के बाद शुरू होते है जिससे यह साबित होता है कि यह कीटनाशक संभोग (मेटिग) की प्रक्रिया को प्रभावित करता है । 
ये रानी के अंडाशय अतिजननता (ओवरी ह्मपरप्लासिए) के लिए भी उत्तरदायी है जिसकी वजह से मादा रानी के अंदर संग्रहीत शुक्राणु की संख्या और गुणवत्ता दोनों को कम करता है । शुक्राणु का उचित संग्रह रानी मादा के जीवन के लिए सबसे ज्यादा जरूरी होता है जैसे ही ये संग्रहित शुक्राणु की संख्या और गुणवत्ता कम होती है पहली रानी मधुमक्खी को हटाकर दूसरी मादा मधुमक्खी को रानी बना दिया जाता है । पिछले कुछ समय से संघ की मृत्यु के लिए, रानी मधुमक्खी की खराब सेहत एक सबसे कारण पाया गया है । एक अध्ययन मेंयह पाया गया है कि एक अन्य कीटनाशक फिब्रोनिल नर में वीर्य की मात्रा कम करता है और साथ ही साथ इसमें शुक्राणु की संख्या को भी ८.४ु १०६ से घटाकर ६.६ ु १०६रह गया । एक अन्य अध्ययन में जब क्लोथियनिदिन कीटनाशक का उपयोग नर मधुमक्खी में किया गया तो शुक्राणु पर पहले जैसा ही असर देखने को मिला । 
कीटनाशक बचाव के उपाय - 
१. कीटनाशक पर दी गई चेतावनी पढ़कर ही उसका उपयोग करें । 
२.फूलों के खिलते समय कम से कम कीटनाशक का छिडकाव कम से कम करे ।  
३. शाम के समय कीटनाशक का छिडकाव करे, ताकि सुबह तब तक मधुमक्खियों कि भोजन की तलाश होने तक कीटनाशको का हानि-कारक असर कुछ कम हो सके । ४. जितना हो सके मधुमक्खियों को कीटनाशक के सीधे संपर्क से बचाये । 
मधुमक्िखयां  सिर्फ  शहद और मोम ही नहीं बनाती है बल्कि गाजर से लेकर बादाम और सरसो तक के परागण के लिए जरुरी है। बहुत सी फसल और फल सिर्फ इनके परागण पर ही निर्भर है। ये कृषि उत्पादन से लेकर जैव विविधता बनाये रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है इसलिए इन्हे अगर पशुधन कहा जाये तो कोई अतिसंयोक्ति नहीं होगी । 
हालांकि इनके लिएए कोई सीमाएं नहीं हैं, यह चलता फिरता पशुधन  है जो की दुनिया के पारिस्थितिकी तंत्र को संतुलित बनाये रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है । अत: इनका स्वस्थ होना, और सही संख्या में होना बहुत जरूरी है इसके लिये सभी किसानों को इनकी मुख्यता को समझना और सही तरीके से कीटनाशक का उपयोग करना अति आवश्यक है ।

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