ज्ञान विज्ञान
सर्प दंश की नई दवा पर निवेश करेगा ब्रिटिश ट्रस्ट
सर्प दंश के लिए नई दवाआें की सख्त जरूरत है । वैज्ञानिकों का कहना है कि वर्तमान में सर्प दंश के खिलाफ जो दवा बनाई जाती है उसे १०० साल पहले हजाद किया गया था । जिसमें सांप के जहर का इंजेक्शन घोड़े को लगाकर एंटीबॉडी बनाई जाती थी ।
यह तरीका बेहद महंगा होन के साथ कई बार घातक एलर्जी का कारण भी बन जाता है । एक ब्रिटिश ट्रस्ट के अनुसार सर्प दंश दुनिया का सबसे बड़ा छिपा हुआ स्वास्थ्य सकंट है । वेलकम ट्रस्ट इस समस्या को खत्म करने के लिए करीब ८० मिलियन पाउंड (७१८४१४२८८० रूपया) का निवेश करेगा । सूत्रों के हवाले से कहा जा रहा है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन इसी महीने सर्प दंश से होने वाली मौतों को २०३० तक पूरी तरह रोकने के लिए एक रणनीति को सार्वजनिक करेगा । संगठन के अनुसार हर पांच मिनट में दुनिया भर में ५० लोगों को सांप डसता है । ८१००० से १३८००० लोगों की हर साल सर्प दंश से मौत होती है । जबकि ४,००,००० लोग स्थाई रूप से विकलांग हो जाते हैं । इसमें से अधिकतर लोग सम्पन्न देशों के होते है लेकिन वे गरीब समुदाय से ताल्लुक रखते हैं ।
वेलकम ट्रस्ट के निदेशक प्रोफेसर माइक टर्नर ने कहा कि सर्प दंश का इलाज संभव है । यदि समय पर पीडित को एंटीवेनम उपलब्ध हो जाए तो सबसे अधिक संभावना होती है उसके बचाए जाने की । जहरीले सांप लोगों को काट लेते हैं तो इसका मतलब यह नहीं कि बहुत से लोगों को मरने को छोड़ दिया जाए । उन्होंने कहा कि पिछले एक सदी में सर्प दंश के इलाज की दिशा में सबसे कम काम हुआ है । न तो एंटी वेनम के सुरक्षित,सुलभ और प्रभावी तरीके से हर व्यक्ति तक पहुंच ही संभव हो पाई है । जिसकी सबसे अधिक आवश्यकता है । यह एक अविश्वसनीय चुनौती है । श्री टर्नर ने बताया कि पिछले एक दशक में सर्प दंश के लिए अनुसंधान में लगभग नहीं के बराबर निवेश हुआ है ।
उन्होंने कहा कि दुनिया के करीब ६० फीसदी जहरीले सांपों की एंटी वेनम मौजूद है । लेकिन एक एंटीवनेम दूसरी तरह के सांपों के लिए काम नहीं करता है । यहां तक कि जिस सांप के खिलाफ एंटीवेनम भारत में इस्तेमाल किया जाता है उसके लिए अफ्रीका में किसी दूसरे एंटीवेनम की जरूरत हो सकती है ।
मेडेकिंस सैंस फ्रंटियर्स एक्ससे कैपेन में एक उपेक्षित उष्णकंटिबंधीय रोग के सलाहकार जुलियन पोटेट ने कहा कि सांप भिन्न-भिन्न है । कई प्रजातियां ऐसी है जिनका एंटीवेनम मुश्किल से बन जाता है । डॉक्टर और नर्स को उनके लिए अपने पास मौजूद एंटीवेनम पर भरोसा नहीं रहता । उन्होंने कहा, मैं हाल ही में केन्या में था । डॉक्टर एक केस में एंटीवेनम इस्तेमाल करने से इस लिए डर रहे थे कि कही उसके साइड इफेक्ट ने हो जाए ।
पृथ्वी धुरी पर क्यों घूमती है ?
पृथ्वी केअस्तित्व में आने से लेकर अभी तक वह लगातार अपनी धुरी पर घूम रही है। इसके घूमने से ही हम रोज सूर्योदय और सूर्यास्त देखते हैं । और जब तक सूरज एक लाल दैत्य में परिवर्तित होकर पृथ्वी को निगल नहीं जाता तब तक ऐसे ही घूमती रहेगी। लेकिन सवाल यह है कि पृथ्वी घूमती क्यो है?
पृथ्वी का निर्माण सूर्य के चारों ओर घूमने वाली गैस और धूल की एक डिस्क से हुआ। इस डिस्क में धूल और चट्टान के टुकड़े आपस में चिपक गए और पृथ्वी का निर्माण हुआ । जैसे-जैसे इसका आकार बढ़ता गया, अंतरिक्ष की चट्टानें इस नए-नवेले ग्रह से टकराती रहीं और इन टक्करों की शक्ति से पृथ्वी घूमने लगी। चूंकि प्रारंभिक सौर मंडल में सारा मलबा सूर्य के चारों ओर एक ही दिशा में घूम रहा था, टकराव ने पृथ्वी और सौर मंडल की सभी चीजों को उसी दिशा में घुमाना शुरू कर दिया ।
लेकिन सवाल यह उठता है सौर मंडल क्यों घूम रहा था? धूल और गैस के बादल का अपने ही वजन से सिकुड़ने के कारण सूर्य और सौर मंडल का निर्माण हुआ था। अधिकांश गैस संघनित होकर सूर्य में परिवर्तित हो गई, जबकि शेष पदार्थ ग्रह बनाने वाली तश्तरी के रूप में बना रहा।
इसके संकुचन से पहले, गैस के अणु और धूल के कण हर दिशा में गति कर रहे थे किन्तु किसी समय पर कुछ कण एक विशेष दिशा में गति करने लगे। जिससे इनका घूर्णन शुरू हो गया। जब गैस बादल पिचक गया तब बादल का घूमना और तेज हो गया। जैसे जब कोई स्केटर अपने हाथों को समेट लेता है तो उसकी घूमने की गति बढ़ जाती है। अब अंतरिक्ष में चीजों को धीमा करने के लिए तो कुछ है नहीं, इसलिए, एक बार जब कोई चीज घूमने लगती है, तो घूमती रहती है। ऐसा लगता है कि शैशवावस्था में सौर मंडल के सारे पिंड एक ही दिशा में घूर्णन कर रहे थे।
अलबत्ता, बाद में कुछ ग्रहों ने अपने स्वयं का घूर्णन को निर्धारित किया है। शुक्र पृथ्वी के विपरीत दिशा में घूमता है, और यूरेनस की घूर्णन धुरी ९० डिग्री झुकी हुई है। वैज्ञानिकों के पास इसका कोई ठोस उत्तर तो नहीं है किन्तु कुछ अनुमान जरूर हैं। जैसे, हो सकता है कि किसी पिंड से टक्कर के कारण शुक्र उल्टी दिशा में घूमने लगा हो। या यह भी हो सकता है कि शुक्र के घने बादलों पर सूर्य के गुरुत्वाकर्षण प्रभाव और शुक्र के अपने कोर व मेंटल के बीच घर्षण की वजह से ऐसा हुआ हो। यूरेनस के मामले में वैज्ञानिकों ने सुझाया है कि या तो एक पिंड से जोरदार टक्कर या दो पिंडों से टक्कर ने उसे पटखनी दी है।
ऐसा नहीं है कि सिर्फ ग्रह ही अपनी धुरी पर घूमते हैं। सौर मंडल में मौजूद सभी चीजें(क्षुद्रग्रह, तारे, और यहां तक कि आकाश गंगा भी) घूमती हैं।
चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण से पृथ्वी की गति में भी कमी आती है। २०१६ में प्रोसिडिंग्स ऑफ दी रॉयल सोसाइटी के अनुसार एक सदी में पृथ्वी का एक चक्कर १.७८ मिलीसेकण्ड धीमा हो गया है।
पिघलते एवेरस्ट ने कई राज उजागर किए
माउंट एवरेस्ट की चोटी पर पहुंचना हमेशा से एक बड़ी उपलब्धि माना जाता है। इसके शिखर पर पहुंचने का रास्ता जितना रहस्यों से भरा है उतना ही बाधाओं से भी भरा है। गिरती हुई बर्फ,उबड़ खाबड़ रास्ते, कड़ाके की ठंड और अजीबो-गरीब ऊंचाइयां इस सफर को और चुनौतीपूर्ण बनाती हैं। अभी तक जहां लगभग ५,००० लोग सफलतापूर्वक पहाड़ की चोटी पर पहुंच चुके हैं, वहीं ऐसा अनुमान है कि ३०० लोग रास्ते में ही मारे गए है ं।
पर्वतारोहियों के अनुसार अगर उनका कोई साथी ऐसे सफर के दौरान मर जाता है तो वे उसको पहाड़ों पर ही छोड़ देते हैं। तेज ठंड और बर्फबारी के चलते शव बर्फ में ढंक जाते हैं और वहीं दफन रहते हैं। लेकिन वर्तमान जलवायु परिवर्तन से शवों के आस-पास की बर्फ पिघलने से शव उजागर होने लगे हैं।
पिछले वर्ष शोधकर्ताओं के एक समूह ने एवरेस्ट की बर्फ को औसत से अधिक गर्म पाया । इसके अलावा चार साल से चल रहे एक अन्य अध्ययन में पाया गया कि बर्फ पिघलने से पर्वत पर तालाबों के क्षेत्र में विस्तार भी हो रहा है। यह विस्तार न केवल हिमनदों के पिघलने से हुआ है बल्कि नेपाल में खम्बु हिमनद की गतिविधि के कारण भी हुआ है।
अधिकांश शव पहाड़ के सबसे खतर-नाक क्षेत्रों में से एक, खम्बु में जमे हुए जल प्रपात वाले इलाके में पाए गए। वहां बर्फ के बड़े-बड़े खंड अचानक से ढह जाते हैं और हिमनद प्रति दिन कई फीट नीचे खिसक जाते हैं । वर्ष २०१४ में, इस क्षेत्र में गिरती हुई बर्फ के नीचे कुचल जाने से १६ पर्वता-रोहियों की मौत हो गई थी।
पहाड़ से शवों को निकालना काफी खतरनाक काम होने के साथ कानूनी अड़चनों से भरा हुआ है। नेपाल के कानून के तहत वहां किसी भी तरह का काम करने के लिए सरकारी एजेंसियों को शामिल करना आवश्यक होता है। एक बात यह भी है कि ऐसे पर्वतारोही शायद चाहते होंगे कि यदि एवरेस्ट के रास्ते में जान चली जाए तो उनके शव को वहीं रहने दिया जाए ।
पर्वतारोहियों के लिए सुविधाएें जुटाना इतना आसान नहीं होता है । पर्वतारोहियों की सामान्य सुविधाआें के साथ उनकी विशेष समस्याआें का समाधान खोजना पड़ेगा । यह कैसे हो सकता है कि पर्वतारोहियों के शव अनन्तकाल तक बर्फ मेंदबे रहे और कोई कदम नहीं उठाए जाए ।
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