सोमवार, 11 फ़रवरी 2013

कृषि जगत
कीटनाशकों का नया जाल
राहुल मुखर्जी
    कीटनाशकों एवं अन्य रसायनों की वजह से अब मानव समाज भोजन संबंधी विकारों या एलर्जी का शिकार होने लगा है । साफ-सफाई में भी रसायनों का अत्यधिक इस्तेमाल हमारे लिए नित नए खतरे पैदा करता जा रहा है । लेकिन विज्ञापन की दुनिया हमें सपने दिखाकर हमारे जीवन में अंधियारा भर रही है ।
    नलों से प्रदान होने वाले पानी में मिली क्लोरीन और भोजन में कीटनाशकों की मौजूदगी से लोग खाने की एलर्जी के शिकार हो रहे हैं । अमेरिका के एक अध्ययन में पाया गया है कि क्लोरिन युक्त रसायन डिक्लोरोफेनाल से दूध से लेकर खीरे या ककड़ी तक के खाद्य पदार्थो में (भोजन से) एलर्जी के तत्व तीव्रता पा सकते हैं । दिसम्बर में प्रकाशित एनल्स ऑफ एलर्जी, अस्थामा एण्ड इम्यूनोलाजी (वार्षिक वृतांत) में इस बात की पहचान की गई है कि क्लोरीन युक्त पीने का पानी एवं कीटनाशक से उपचारित फल एवं सब्जियां इस रसायन का मुख्य स्त्रोत है । वैसे लोगों का इससे साबका फिनायल की गोलियों एवं पेशाबघरों की सफाई सामग्री के माध्यम से भी पड़ता है । 
     विश्वभर में कमोवेश ५० करोड़ व्यक्ति किसी न किसी खाद्य पदार्थ के प्रति सहिष्णु (एलर्जिक) है । ये एलर्जी तब होती है जबकि किसी व्यक्ति की प्रतिरोधक प्रणाली अत्यधिक सक्रिय होती है और  इसके परिणाम स्वरूप सामान्यतया अहानिकारक पदार्थ के प्रति भी विपरीत क्रिया दिखाई पड़ती है । इस रिपोर्ट की प्रमुख लेखक एवं न्यूयार्क स्थित अर्ल्बट आइंस्टीन कालेज आफ मेडिसिन की ईलिना जेर्शको का कहना है पूर्व के अध्ययनों ने दर्शाया था कि अमेरिका में भोजन से होने वाली एलर्जी एवं पर्यावरणीय प्रदूषण दोनों में ही वृद्धि हो रही है । हमारा अध्ययन बताता है कि यह प्रवृत्ति भी आपस में जुड़ी हो सकती है लेकिन इसी के साथ कीटनाशकों एवं अन्य रसायनों का बढ़ता प्रयोग भी बढ़ती भोजन एलर्जी से जुड़ा हो सकता है ।
    जेर्शको और उनके सहयोगियों ने अपने अध्ययन में सन् २००५-२००६ के अमेरिका राष्ट्रीय स्वास्थ्य एवं पोषण परीक्षण सर्वेक्षण में भागीदारी करने वाले २२११ व्यक्तियों को शामिल किया गया था । इनमें से ४११ विशिष्ट किस्म के भोजनो जैसे झींगा (मछली) या मूंगफली के प्रति और १०१६ पर्यावरणीय प्रदूषण जैसे बिल्ली या कुत्ते के बालों से एलर्जिक थे । भागीदारों को अध्ययन के पूर्व पिछले सात दिनों के दौरान कीटनाशकोंसे पाला पड़ने संबंधित प्रश्नावली दी गई थी एवं डिक्लोरोफेनाल हेतु उनके मूत्र का परीक्षण किया गया था ।
    शोधकर्ताआें ने पाया कि एलर्जी वाले भागीदारों के मूत्र मेंडिक्लोरोफेनाल आधारित रसायनों की मात्रा अमेरिका पर्यावरणीय सुरक्षा एजेंसी द्वारा निर्धारित मापदण्डों से बहुत अधिक थी । इन प्रतिभागियों के रक्त में इम्मयूनोग्लोबुलिन ई का स्तर भी बहुत अधिक पाया गया । ऐसे ये तत्व हैं जो कि स्तनधारियों में संक्रमण एवं एलर्जिया से निपटने हेतु पाए जाते हैं । ऐसे व्यक्ति जिनमें एलर्जी पाई गई उनमें इनकी मात्रा ०.३५ किलो इकाई प्रति लीटर या इससे भी ज्यादा थी । 
    पूर्व के अध्ययनों में व्यक्ति के व्यवसाय को कीटनाशकों एवं एलर्जी से जोड़ा गया था । वर्ष २००९ में अमेरिका के उत्तरी केरोलिना स्थित राष्ट्रीय पर्यावरणीय स्वास्थ्य विज्ञान संस्थान की जेनी होपिंस ने अपने लेख में बताया था कि ऐसे किसान जो अपने खेतों में कीटनाशकों का उपयोग करते हैं उनमें अस्थमा जिसमें कि एलर्जिक अस्थमा भी शामिल हैं से पीड़ित होने का जोखिम बहुत बढ़ जाता है । इसके भी बहुत पहले सन् १९९८ में विल्मन डोंग ने पाया था कि जब चूहों को कीटनाशक कार्बारिल के संपर्क में लाया गया तो लगातार एलर्जी के शिकार होने लगे ।
    जेर्शकों का अध्ययन बताता है कि केवलव्यावसायिक रूप से कीटनाशक के संपर्क में आने से ही एलर्जी नही होती बल्कि इस तरह के रसायन युक्त भोजन सामग्री के उपयोग से भी एलर्जी हो सकती  है । जेर्शको ने यह भी स्पष्ट किया है कि अध्ययन से पता चला है कि क्लोरिन युक्त नल का पानी डिक्लोरोफिनाल का प्राथमिक स्त्रोत है लेकिन कोई व्यक्ति पूर्णतया बोतलबंद पानी पर भी भरोसा नहीं कर सकता क्योंकि अनेक अध्ययनों से यह सामने आया है कि बोतलबंद पानी भी कीटनाशकों से पूर्णतया मुक्त नहीं है ।
    आंधप्रदेश के पटापनचेरू स्थित अन्तर्राष्ट्रीय अर्धऊसर क्षेत्र फसल शोध संस्थान (इंटरनेशनल क्राप रिसर्च इंस्टियूट आफ सेमी अरिड ट्रापिक्स) के प्रमुख वैज्ञानिक ओम रूपेला का कहना है मैं इस खोज से सहमत हॅू । मैं इस बात से भी अचंभित हॅू कि पानी के उपचार  हेतु कीटनाशकों का उपयोग किया जाता है । टेमेक्रास जिसका उपयोग मच्छरों को अंडा देने से रोकने के लिए किया जाता है का मानव पर घातक प्रभाव पड़ता है । हालांकि यह अत्यधिक कम मात्रा में प्रयोग में लाया जाता है लेकिन इसके बावजूद इसके उपयोग को न्यायोचित नहीं ठहराया जा  सकता ।
    जेर्शको का कहना है हालांकि कीटनाशकों एवं एलर्जी के बीच निकट का संबंध मिलता है लेकिन भविष्य में होने वाले अध्ययनों में इसके आकस्मिक या अनियमित संबंधों पर भी विचार करना आवश्यक है । वही होपिन का कहना है कि भविष्य में होने वाले अध्ययनोंे को व्यक्तियों में कीटनाशकों के सपंर्क में आने के पूर्व एलर्जी की प्रवृत्ति विकसित होने पर केन्द्रित होना होगा ।   

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