सोमवार, 11 फ़रवरी 2013

हमारा भूमण्डल
जमीन से जुड़ा है जीना मरना
आइरिन
    जमीन के मालिकाना हक, पानी, ऊर्जा और भूखमरी के बीच आपसी संबंध है । पिछले दिनोंतीसरी दुनिया के देशों के ग्लोबल हंगर इंडेक्स के अध्ययनोंसे इस सहसंबंधों का खुलासा हुआ है । जिन देशों में लोगों के पास पर्याप्त् भू-अधिकारों, पानी एवं ऊर्जा की उपलब्धता नहीं है, वे ग्लोबल हंगर इंडेक्स में फिसड्डी देशों में से है ।
    इस वर्ष के ग्लोबल हंगर इंडेक्स अध्ययन की सहलेखक क्लॉडिया रिगलर ने बताया कि इन संसाधनों और खाद्य असुरक्षा के बीच एक स्पष्ट सहसंबंध है । यह अध्ययन इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट और एनजियोज कंसर्न वर्ल्डवाइड ने संयुक्त रूप से किया था । 
      ग्लोबल हंगर इंडेक्स अध्ययन में अलग-अलग देशों के लोगों की, खेती योग्य जमीन, साफ पानी और सस्ते ऊर्जा संसाधनों तक पहुंच संबंधी आंकड़ों की तुलना की गई है । इसके लिए तीन सूचकांक लिये गये - पोषण, बाल मृत्यु और बच्चें का वजन ।
    अध्ययन के अनुसार बीस देशों में भुखमरी का स्तर बहुत ही खतरनाक है । इनमें ज्यादातर देश उप सहारा अफ्रीकाया साउथ एशिया के देश है । इनमें तीन देश - बुरूण्डी, इरीट्रिया और हैती के ग्लोबल हंगर इंडेक्स आंकड़े बहुत ही बदतर हैं ।
    खाद्य सुरक्षा का, पानी, ऊर्जा और जमीन संबंधी विकास से गहरा नाता है । कई विशेषज्ञों ने अपने अध्ययनों से यह बताना शुरू कर दिया है । श्री रिंगलर ने बताया हम ऐसी कोई बात नहीं बता रहे हैं जो कि लोग पहले से नहीं जानते, बल्कि हम तो इस अध्ययन के माध्यम से लोगों का ध्यान फिर से इस तरफ खींच रहे हैं ।
    ज्यादातर देखा गया है कि अंतर्राष्ट्रीय कम्पनियों को जमीने दे दी जाती है ताकि उन पर बायो ईधन उत्पादन के मकसद से आयात की जाने वाली फसलें बोई जा सकें । अध्ययन में खाद्य सुरक्षा के मामले में इस तरह जमीनें हथियाए जाने की भूमिका को रेखांकित करता    है ।    
    ग्लोबल हंगर इंडेक्स रिपोर्ट बताती है कि ऊर्जा साधनों की बढ़ती कीमतों से किसानों की ईधन और उर्वरक लागतें बढ़ रही हैं, खाद्य फसलों की बजाए बायो ईधन फसलों की मांग बढ़ रही है और पानी भी मंहगा होता जा रहा है ।
    अध्ययनकर्ताआें ने पाया कि जिन ३२ देशों में बड़े पैमाने पर जमीनें इस तरह से उद्योगों और कम्पनियों को दी गयी हैं वे काफी पिछड़े हुए या खराब स्थितियों में    हैं । इन देशों में अधिकांश आबादी खेती पर निर्भर है फिर भी लोगों के पास मुश्किल से ही अपनी जमीनों पर मालिकाना हक है । सात देशों - कम्बोडिया, इथोपिया, इण्डोनेशिया, लाओ पीडीआर, लाइबेरिया, फिलीपींस और सिएरा लिओन में कुल खेती के रकबे का १० प्रतिशत हिस्सा अंतर्राष्ट्रीय सौदों में फंसा हुआ है । इन सभी देशों में भुखमरी उच्च् स्तर पर है ।
    इथोपिया सरकार बड़े पैमाने पर जमीनें देने की अपनी नीतियों की आलोचना को ही खारिज करती आयी है । ये उसके पंचवर्षीय विकास एवं परिवर्तन योजना का हिस्सा हैं । उसका इस बात पर जोर है कि लाखों डॉलर का विदेशी निवेश होने से रोजगार पैदा होंगे, घरेलू कृषि विशेषज्ञता बढ़ेगी और इससे देश की गरीबी व गंभीर खाद्य असुरक्षा दोनों में ही कमी आयेगी ।
    इथोपिया सरकार ने कृषि मंत्री के सलाहाकार टेकालिन मैमो का कहना है जमीन देना दुतरफा नजरिये का हिस्सा थी । उन खेतिहरों के लिये खाली पड़ी कृषि योग्य जमीनें पेश करना जो बसना चाहते थे और चूंकि देश में काफी जमीन उपलब्ध है तो हम उन्हें भी जमीनें देते हैं जो इसमें निवेश करना चाहते हैं । इस तरह जमीनों से जो राशि प्राप्त् होती है वो सीधे संबंधित क्षेत्रीय सरकारों को उनके खाद्य सुरक्षा कार्यक्रमोंमें खर्च करने के लिए भेज दी जाती है । टेकालिन ने यह भी कहा कि जिन कम्पनियों ने जमीनें लेने के बाद  उनमें पर्याप्त् निवेश नहीं किया उनके खिलाफ कदम उठाये जा रहे हैं । अब इन मामलों को सख्ती से देखा जा रहा है ।
    सिएरा लिओन और तंजानिया में किए गये खास अध्ययनों की रिपोर्ट बताती है कि किस तरह जमीन के ये सौदे खाद्य सुरक्षा को नुकसान पहुंचाते हैं । खासतौर पर छोटे किसानों की तो हालात ही खराब हुई है ।
    ग्लोबल हंगर इंडेक्स रिपोर्ट बताती है कि सिएरा लिओन में उपलब्ध कृषि योग्य जमीन का कोई २० प्रतिशत हिस्सा विदेशी उद्यमियों ने हथिया रखा है । निवेशकर्ता वहां ताड़, गन्ना एवं चावल जैसी खाद्य फसलें उगाते हैं और ज्यादातर को निर्यात करते हैं । अध्ययन में एक ऐसा मामला प्रकाश में आया जिसमें सिएरा लिओन के दक्षिणी प्रान्त में २४ गांवों में फैलीजमीन, सॉकफिन एग्रीकल्चरल कम्पनी लिमिटेड को निर्यात के लिए तेल और रबर उगाने दे दी गई ।
    स्थानीय किसानों के विरोध के बावजूद, यह सौदा ५० सालों तक कायम रहा । किसानों को प्रति एक एकड़ नुकसान के लिए एक बार २२० डॉलर का भुगतान किया   गया । उन्हें शिक्षा और रोजगार का भी भरोसा दिलाया गया था । लेकिन असलियत यह रही कि बहुत ही थोड़े से लोगों को काम पर लिया गया और उन्हें स्थानीय लोगों की जरूरत भी नहीं थी । जिन्हें काम पर लिया भी गया उन्हें दिहाड़ी हिसाब से मजदूरी दी गयी । तीस पर खाद्य कीमतें भी मई २०११ से मई २०१२ के बीच  २७ प्रतिशत तक बढ़ गई, जो कि स्थानीय आबादी के एक बड़े हिस्से की हैसियत से बाहर थी ।
    अध्ययनकर्ता संस्था ने तंजानिया के दक्षिणी इलाके के इरिंगा जिले का एक अनुभव रेखांकित किया है । तंजानिया मेंे सिर्फ १० प्रतिशत लोगों के पास उनकी जमीनों का अधिकारिक तौर पर मालिकाना हक है । यहां १२ गांवों में काम करते हुए कसर्न संस्था ने कोई ६००० लोगों को उनकी जमीनों का हक दिलाने में मदद की । इससे उन्हें ऋण लेने की सुविधा मिली और अकाल संभावित क्षेत्र में संसाधनों संबंधी विवाद भी कम हुए ।
    यह अध्ययन बताता है कि इन दोनों ही देशों में छोटे भूधारकों को मजबूत बनाने संबंधी कानून मौजूद थे लेकिन इन नीतियों के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति और स्थानीय नेतृत्व जरूरी है । रिगलर ने कहा कि इन देशों में खाद्य सुरक्षा में निवेश करने एवं प्राकृतिक संसाधनों का जिम्मेदारीपूर्वक दोहन करने के लिए भी राजनीतिक इच्छाशक्ति की जरूरत है ।
    रिंगलर अपनी बातों में यह भी जोड़ती है कि जल विशेषज्ञ, ऊर्जा विशेषज्ञ से, शोधकर्ताआें से लेकर जमीनी कार्यकर्ताआें तक, किसान से लेकर नीति निर्माताआें तक विकास के सभी साझेदारों को आपस में एक दूसरे से संवाद करना चाहिए ।

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