सोमवार, 11 फ़रवरी 2013

संपादकीय
सेलफोन टॉवर के खतरों से सर्तकता जरूरी
     मानव इतिहास में पाषाण काल, पुनर्जागरण काल, अधंकार युग, औद्योगिक युग, अंतरिक्ष युग आदि कुछ प्रसिद्ध काल खंड हैं । लेकिन मानव इतिहास के बीते दस हजार वर्ष के काल में विद्युत-चुंबकीय युग जैसा कोई काल खंड सुनने में नहीं आया है । जबकि इसके बारे में हमें जानकारी होनी चाहिए क्योंकि हम इसी युग के मध्य में हैं और अपने पूर्वजों की तुलना में हम कदाचित दस करोड़ गुना ज्यादा विद्युत-चुंबकीय ऊर्जा को अवशोषित कर रहे हैं । विद्युत-चुंबकीय युग का अर्थ आधुनिक जीवनशैली से लगाया जा सकता है ।
    यदि आप टेलीविजन देखते हैं, टेलीफोन का उपयोग करते हैं, इंटरनेट विचरण करते हैं, मस्तिष्क की स्कैनिंग करवाते हैं या माइक्रोवेव का उपयोग करते हैं तो इसका मतलब है कि आप विद्युत-चुंबकीय तरंगों का उपयोग करते हैं । मनुष्य का शरीर अपने आप में एक विद्युत-चुंबकीय क्षेत्र होता है, लेकिन सेलफोन एवं सेलफोन टॉवर से निकलने वाले विद्युत-चुंबकीय विकीरण की अनवरत बौछार से हमारे स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है । एक रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में सेलफोन टॉवर की विकीरण सीमा अन्तर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों द्वारा सुरक्षित मानी गई सीमा से ९०० गुना ज्यादा है ।
    विश्व के २९ स्वतंत्र वैज्ञानिकों के द्वारा जारी जैव पहल २०१२ का हवाला देते हुए  कहा कि इस विकीरण से सिर दर्द, बच्चें के व्यवहार में परिवर्तन, नींद में व्यवधान आदि जैसी समस्याएं उत्पन्न होती हैं । विभिन्न देशों में किए गए कई अध्ययनों से यह संकेत मिलता है कि सेलफोन टॉवर को रहवासी भवनों से तीन सौ मीटर से पांच सौ मीटर की दूरी पर रखना चाहिए । लेकिन भारतीय शहरों में जहां सेलफोन के टॉवर सीधे रहवासी भवनों की छतों और दीवारों में ही लगा दिए जाते है तथा यहां लोग ऐसे टॉवरों के एंटीना से बमुश्किल दस मीटर पर ही रहते है । जो लोग सेलफोन टॉवर के पास रहते है उनमेंकैंसर होने की संभावना बढ़ जाती है । जो लोग सेलफोन टॉवरों के ३५० मीटर के दायरे में रहते हैं उनमें सामान्य लोगों की तुलना में कैंसर होने की संभावना चार गुना ज्यादा होती है जबकि महिलाआें के मामले में यह संभावना दस गुना ज्यादा बढ़ जाती है ।

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