सोमवार, 11 फ़रवरी 2013

जनजीवन
अपराध और पर्यावरण का अंर्तसंबंध
डॉ.ओ.पी. जोशी
    बढ़ते अपराधों की मानसिकता में पर्यावरण एवं प्रदूषण के योगदान पर गहन चिंतन प्रारंभ हो गया है । अपरोक्ष रूप से जिम्मेदार तत्व भी कई बार ऐसी परिस्थियां निर्मित करने में सहायक होते हैं । पर्यावरणविद आज बढ़ते अपराधों और प्रदूषण से बद्तर  होते पर्यावरण के मध्य संबंधों की पड़ताल से प्रारंभिक निष्कर्षोंा पर पहुंच गए हैं ।
    हाल ही में दिल्ली में घटित सामूहिक बलात्कार की घटना निश्चित रूप से सामाजिक, नैतिक और आध्यात्मिक मूल्यों में आयी गिरावट का मिलाजुला परिणाम है । चिंतनीय बात यह है कि अपराध बढ़ने के साथ-साथ पाशविकता भी समानान्तर रूप से बढ़ती जा रही है । न केवल देश में अपितु वैश्विक स्तर पर बढ़ते अपराध एवं यौन अपराध मूल्यों में आई गिरावट के साथ-साथ बढ़ते प्रदूषण, भोज्य पदार्थो में कीटनाशकों की मात्रा, खाघान्न में पौष्टिकता की कमी, आर्थिक सपन्नता एवं ग्लेमरस जीवन शैली से भी से जुड़े हैं । 
     यह निश्चित है कि हमारा व्यवहार हमारे आसपास के परिवेश या पर्यावरण से निर्धारित होता है । यह भी सत्य है कि व्यवहार संबंधी जींस अनुवांशिक होते हैं, परन्तु बिगड़ा पर्यावरण इस अनुवांशिक पर हावी   है । केलिफोर्निया वि.वि. के मनोविशेषज्ञ प्रो. ई बुंसविक ने कई वर्षोतक अध्ययन कर बताया कि अनुवांशिकी कुछ भी हो परन्तु पर्यावरण के हालात मानव के व्यवहार को निश्चित रूप से प्रभावित करते हैं । प्रदूषण गुस्से को बढ़ाने में ट्रिगर का कार्य करता है । लोग छोटी-छोटी बातों पर अपना आपा खो देते हैं, एवं छोटे मोटे अपराध के साथ-साथ यौन अपराध तक कर गुजरते हैं । लोगों की सहनशीलता में कमी, चिड़चिड़ापन, उदासी, कुंुठा, हिंसात्मक प्रकृति, आत्महत्या के प्रयास, बलात्कार तथा यौन अपराध जैसे बहुत से लक्षणों को दुनिया पर भर के पर्यावरणविद् अब बिगड़े पर्यावरण से जोड़ रहे हैं ।
    अपराध के संदर्भ में अमेरिका के कई कस्बों में सर्वेक्षण कर पाया गया कि वहां हर छ: मिनट में यौन अपराध, हर चालीस सेकेण्ड में हमला, हर तीस सेकेण्ड में आर्थिक गड़बड़ी एवं दस सेकेण्ड में डकैती व तस्करी होती है । मेनहटट्न् सहित अमेरिका में अनेक छोटे-छोटे कस्बे व क्षेत्र हैं जहां वायु एवं ध्वनि प्रदूषण उच्च् स्तर पर है । न्यू हेम्पशायर ने हेनोवर नगर में स्थित डार्ट माउंट कालेज के वैज्ञानिक प्रो. रोजर मास्टर्स ने अमेरिका के कई शहरों में पर्यावरण प्रदूषण एवं अपराध में सीधा संबंध पाया । जिन शहरों के पर्यावरण (वायु, मिट्टी व जल) में सीसा (लेड़) व मेंगनीज की मात्रा ज्यादा थी वहां अपराध राष्ट्रीय औसत से पांच गुना ज्यादा थे ।
    नार्थ केलिफोर्निया स्थित सरनाफ मेडवीक शोध संस्थान के वैज्ञानिकों के अनुसार वायु प्रदूषण हार्मोन टेस्टोस्टेरान की मात्रा बढ़ जाती है । संभवत: यह बढ़ी मात्रा अत्याचार एवं कामोत्तेजना को भी बढ़ाती है । समाज वैज्ञानिक मानते हैं कि औद्योगिकरण का गहरा संबंध अपराध, नशाखोरी, वेश्यावृत्ति एवं बलात्कार से होता है । औद्योगिकरण से बढ़ता प्रदूषण एवं आर्थिक सम्पन्नता इसके कारण हो सकते हैं। नार्थ केरोलिन्स स्थित गैरी चिकित्सा महाविघालय के अध्ययन के अनुसार हार्मोन सिरोटोनिन का भी हिंसा से संबंध होता है । बंदरों पर किये गये प्रयोग यह दर्शाते है कि जिन बंदरों में सिरोटोनिन की कमी थी वे ज्यादा हिंसक थे । नशा भी मनुष्य में सिरोटोनिन की मात्रा कम करता है । दिल्ली सामूहिक बलात्कार के अपराधियों ने भी नशा कर रखा था ।
    बेल्जियम के लिंग वि.वि. के वैज्ञानिक प्रो. लिन प्रियरे के अध्ययन अनुसार कीटनाशी डी.डी.टी. के अवशेषों के कारण भारत एवं कोलम्बिया के बच्च्े यौवन अवस्था को जल्द प्राप्त् कर रहे हैं । अवशेषों के रसायन हार्मोन आस्ट्रोजील के समान प्रभाव पैदा करते हैं । लड़कों में टेस्टीस तथा लड़कियों में वक्ष (ब्रेस्ट) का विकास जल्द हो रहा है । ब्रिटेन में शोधरत एक महिला वैज्ञानिक डॉ. मरिल्यन गलेनविले के अनुसार कीटनाशी के अवशेष एवं प्लास्टिक मेंउपस्थित बिस-फिनाल ए से महिलाआें के शरीर में पाए जाने वाले एस्ट्रोजन हार्मोन की मात्रा सीधे ही बढ़ जाती है एवं इस कारण वक्ष बढ़ने लगता है ।
    रासायनिक खादों के उपयोग से उत्पादन तो बढ़ा परन्तु खाद्यान्नों की पौष्टिकता कम हुई । अमेरिका के कृषि विशेषज्ञ डॉ. विलियम अब्रेश ने २० वर्षो तक रासायनिक खादों का खाघान्न पदार्थो पर प्रभाव का अध्ययन कर बताया कि गेहूं में प्रोटीन का मात्रा १० प्रतिशत एवं दालों में २ प्रतिशत के लगभग घटी है । खादों में उपस्थित पोटाश के कारण कार्बोहाइड्रेटस बढ़ता है एवं प्रोटीन घट जाता है । अमेरिकी चिकित्सक प्रो. सोलेमन का कहना है प्रोटीन की कमी वाले भोजन से कामोत्तेजना बढ़ती है । यहां यह जानना भी प्रासंगिक होगा कि हमारे देश में शाकाहारियों के लिए दालें प्रोटीन का प्रमुख स्त्रोत मानी जाती थी परन्तु इनका उत्पादन घटने से उसकी उपलब्धता भी कम होती जा रही है । सन १९९० के आसपास प्रति व्यक्ति प्रतिदिन दाल की उपलब्धता ४२ ग्राम थी जो २०१० तक घटकर २८ ग्राम ही रह गयी ।
    लगातार बढ़ता प्रदूषण, सिमटती हरियाली, कृत्रिम प्रकाश, पक्के मकान एवं सड़कों से बढ़ी गर्मी, वाहनों की भागदौड़ एवं खाघान्नों में कीटनाशी के अवशेषों की उपस्थिति एवं घटती पौष्टिकता आदि ऐसे कारण हैं जो यौन अपराध सहित अन्य अपराध बढ़ा रहे हैं । अपराधों की रोकथाम हेतु कड़े नियम कानूनों के साथ-साथ प्रदूषण नियंत्रण, हरियाली विस्तार एवं कीटनाशी व रासायनिक खादों का उपयोग घटाना होगा ।  

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