कविता
आओ पर्यावरण बचायें
डॉ. विजय पण्डित
आओ पर्यावरण बचायें
धरा प्रदूषण दूर भगायें ।
साफ रखें नाले व नाली,
पालीथीन न चलने वाली,
कूड़ा-करकट दूर हो घर से
घर-घर में आये खुशहाली,
कपड़े के थैले सिलवायें ।
धरा प्रदूषण दूर भगायें ।
हरियाली देती है जीवन,
वृक्षों से जन्मों का बंधन
कल को दम ये घुट जायेगा
मत काटो ये महके उपवन
अधिकाधिक सब पेड़ लगायें
धरा प्रदूषण दूर भगायें ।
जल जीवन है इसे बचाओ
जोहड़ और तालाब बनाओ
सूख न जाये भरा समन्दर
ऐसा न हो कल पछताओ
पानी न बेकार बहायें
धरा प्रदूषण दूर भगायें ।
कल को जब जंगल न होगा
कभी सुरक्षित कल न होगा
नल तो होगा गली-गली में
पर उस नल में जल न होगा
घर-घर तुलसी नीम लगायें
धरा प्रदूषण दूर भगायें ।
आओ पर्यावरण बचायें
डॉ. विजय पण्डित
आओ पर्यावरण बचायें
धरा प्रदूषण दूर भगायें ।
साफ रखें नाले व नाली,
पालीथीन न चलने वाली,
कूड़ा-करकट दूर हो घर से
घर-घर में आये खुशहाली,
कपड़े के थैले सिलवायें ।
धरा प्रदूषण दूर भगायें ।
हरियाली देती है जीवन,
वृक्षों से जन्मों का बंधन
कल को दम ये घुट जायेगा
मत काटो ये महके उपवन
अधिकाधिक सब पेड़ लगायें
धरा प्रदूषण दूर भगायें ।
जल जीवन है इसे बचाओ
जोहड़ और तालाब बनाओ
सूख न जाये भरा समन्दर
ऐसा न हो कल पछताओ
पानी न बेकार बहायें
धरा प्रदूषण दूर भगायें ।
कल को जब जंगल न होगा
कभी सुरक्षित कल न होगा
नल तो होगा गली-गली में
पर उस नल में जल न होगा
घर-घर तुलसी नीम लगायें
धरा प्रदूषण दूर भगायें ।
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