मंगलवार, 16 जून 2015



पर्यावरण समाचार
ई.कचरा के निपटान मेंलगे ७६ फीसदी लोग बीमार 

सुरक्षा मानकों के अभाव के कारण ई. कचरा (इलेक्ट्रानिक्स कचरा) के निपटारे में लगे कर्मचारियों में से ७६ प्रतिशत लोग श्वसन संबंधी बीमारियों खांसी, दम घुटने, अस्थमा तथा कैंसर, चिड़चिडेपन और आवाज में कंपन से पीड़ित है । 
उद्योग संगठन भारतीय उद्योग एवं वाणिज्य मंडल (एसोचैम) ने एक रिपोर्ट में कहा गया है कि ई. कचरा को निपटाने के अधिकतर स्थलों पर सुरक्षा मानक नहीं अपनाए गए  हैं । इससे ई कचरा का निपटान करने वाले लोग गंभीर बीमारियों से ग्रसित हो रहे हैं । 
उद्योग संगठन ने एक अध्ययन में कहा है कि केवल दस राज्य ई. कचरे में ७० प्रतिशत की हिस्सेदारी रखते हैं और ६५ शहर ६० प्रतिशत से अधिक कचरे का उत्पादन करते है । ई कचरा पैदा करने वाले राज्यों में महाराष्ट्र पहला, तमिलनाडु दूसरा, आंध्रप्रदेश तीसरा, उत्तरप्रदेश चौथा, दिल्ली पांचवा, गुजरात छठा, कर्नाटक सातवां और पश्चिम बंगाल आठवां राज्य है । सरकारी और निजी कार्यालय तथा औघागिक संस्थान ७१ प्रतिशत ई.कचरा पैदा करते हैं । घरों का ई. कचरे में योगदान मामूली १६ प्रतिशत है । 
ई.कचरे में प्राप्त् वस्तुआें और उत्पादों को फिर से इस्तेमाल करने लायक बनाने के लिए भारत मुख्य रूप से असंगठित क्षेत्र पर निर्भर है । लगभग ९५ प्रतिशत ई. कचरा शहरों की स्लम बस्तियों में एकत्र किया जाता है । इनमें काम करने वाले सभी लोग बिना किसी बचाव उपकरण और प्रणाली के ई. कचरे का निपटान करते हैं । इन लोगों को संभावित खतरों से बचने का किसी प्रकार का प्रशिक्षण नहीं दिया गया  है । ई.कचरे के गलत ढंग से निपटान से न केवल स्वास्थ्य पर बल्कि पर्यावरण पर भी नकारात्मक असर होता है । अध्ययन में कहा गया कि ई.कचरा का सीधा संबंध देश की आर्थिक विकास और उपभोक्ता खर्च से जुड़ा हुआ है । भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास ने करोड़ों लोगों के जीवन स्तर को ऊपर उठाया है । उनकी खरीद शक्ति भी बढ़ रही है । 

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