मंगलवार, 16 जून 2015


हमारा भूमण्डल 
पेयजल पुन: सार्वजनिक क्षेत्र मे
रेहमत/गौरव द्विवेदी 
स्थानीय निकायों द्वारा पेयजल सुविधा निजी हाथों में सौंपे जाने के प्रतिकूल प्रभाव अब खुलकर सामने आने लगे हैं । विश्व के करीब २३५ स्थानीय निकायों, जिनमें से अधिकांश विकसित, औद्योगिक व समृद्ध देश के हैं, ने सर्वाधिक पेयजल एवं कचड़ा निपटाने की सुविधाएं पुन: अपने अधिकार क्षेत्र में ले ली हैं । 
इण्डोनेशिया की राजधानी जकार्ता में जलप्रदाय के निजीकरण अनुबंध को स्थानीय अदालत ने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि इससे शहर के ९९ लाख रहवासियों के  पानी के मानवाधिकार का उल्लंघन हो रहा है। जकार्ता में पानी का निजीकरण अनुबंध खत्म किया जाना सेवाओं के कंपनीकरण के खिलाफ जारी जन संघर्षोंा की एक महत्वपूर्ण जीत है। 
जकार्ता की जलप्रदाय व्यवस्था का निजीकरण दुनिया के शुरूआती बड़े निजीकरणों में शामिल था । १८ वर्ष पूर्व स्थानीय शहरी निकाय ने जलप्रदाय व्यवस्था का ठेका पाम लियोनेज जया और आयत्रा आयर जकार्ता नाम की निजी कंपनियों के समूह को दिया था । ठेका देते समय निजी कंपनियों ने जलप्रदाय व्यवस्था के सुधार का आश्वासन दिया गया था । परंतु खराब सेवा के कारण कंपनियों से किया गया अनुबंध खत्म करने की माँग को लेकर स्थानीय समुदाय ने लंबा अभियान चलाया और निजीकरण अनुबंध को स्थानीय न्यायालय में चुनौती दी गई। अंतत: न्यायालय ने इस अनुबंध को खारिज कर दिया । अब स्थानीय शहरी निकाय ने जलप्रदाय व्यवस्था पुन: अपने हाथ में ले ली है । जलप्रदाय और स्वच्छता सेवाओं के निजी क्षेत्र से नगरीय निकायों के अधिकार क्षेत्र में अंतरण को पुनर्निगमीकरण कहा जाता है । इसका यह अर्थ लगाया जा रहा है कि पानी के निजीकरण का दौर खत्म हो रहा है और हम पुन: बेहतर, जवाबदेह और स्थायी सार्वजनिक जलप्रदाय की ओर बढ़ रहे हैं । लातूर (महाराष्ट्र) सहित दुनियाभर में अब ऐसे उदाहरण दिखाई देने लगे हैं ।
ट्रांसनेशनल इंस्टीट्यूट, मल्टीनेशनल ऑब्जरवेटरी और पीएसआईआरयू नामक स्वयंसेवी समूहों ने हाल ही में पुनर्निगमीकरण की विश्वव्यापी घटनाओं का अध्ययन कर ''अवर पब्लिक वाटर यूचर: द ग्लोबल एक्सपीरियंस विथ रिम्युनिसिपलाईजेशन`` शीर्षक से एक रिपोर्ट, पुस्तक के रूप में प्रकाशित की है । इस रिपोर्ट में पुनर्निगमीकरण के उभरते विश्वव्यापी रूझानों की ओर ध्यान दिलाते हुए पानी के निजीकरण के भविष्य पर बड़े सवाल खड़े किए गए हैं । रिपोर्ट के अनुसार मार्च २००० और मार्च २०१५ के बीच ३७ देशों के २३५ नगरीय निकायों में पानी के पुनर्निगमीकरण से १० करोड़ नागरिक लाभांवित हुए । आश्यर्च-जनक तथ्य यह है कि इनमें से १८४ मामले उच्च् आय वाले देशों के हैं  तथा शेष ५१ मामले कम आय वाले देशों के हैं । ज्यादातार मामले फ्रांस और अमेरिका के हैं जहाँ क्रमश: ९४ और ५८ नगरीय निकायों ने पुनर्निगमीकरण किया । वर्ष २००० और २०१० की अपेक्षा वर्ष २०१० और २०१५ के मध्य पुनर्निगमीकरण की दर दुगनी हो गई, जिससे सिद्ध होता है कि इस ओर रुझान बढ़ रहा है और इसे अपना चुके कई देशों के नगरीय निकाय अब इस प्रक्रिया को अन्य देशों में आगे बढ़ाने में मदद कर रहे हैं ।
इस प्रक्रिया से एक बार पुन: सिद्ध हुआ है कि निजी कंपनियों की बजाय सार्वजनिक क्षेत्र बेहतर सेवाएँ प्रदान कर सकता है। पिछले वर्षों में देखा गया कि बड़ी-बड़ी कंपनियों द्वारा हथियाई गई निजीकृत जलप्रदाय व्यवस्थाएँ समुदाय की अपेक्षाओं पर खरी नहीं उतरीं। इसलिए उन्हें कड़े विरोध का सामना करना पड़ा। खराब सेवा और पानी की खराब गुणवत्ता के लिए अकरा (घाना), दार-ए-सलाम (तंजानिया), जकार्ता (इण्डोनेशिया), रेने (फ्रांस) और केमरॉन सिटी (अमेरिका) का निजीकरण बदनाम रहा है । बर्लिन (जर्मनी), ब्यूनसआयर्स (अर्जेंटीना) और लातूर (भारत) में निजी कंपनियोंने बुनियादी सेवाओं पर निवेश नहीं किया जिससे स्थानीय समुदाय ने इन्हें खारिज कर दिया । अलमाटी (कजाखिस्तान), मापूतो (मोजाम्बिक) सांता फे (अमेरिका), जकार्ता (इण्डोनेशिया), ब्यूनस आयर्स (अर्जेटीना), लापाज (बोलिविया) और कुआलालंपुर (मलेशिया) में अनुबंधकर्ता कंपनियों ने संचालन खर्च और जलदरों में बेतहाशा वृद्धि की थी । 
ग्रेनोबल, पेरिस (फ्रांस) और स्टुटगार्ड (जर्मनी) में निजी जलप्रदायकों ने अपने फायदे के लिए वित्तीय पारदर्शिता और अटलांटा (अमेरिका), बर्लिन (जर्मनी) और पेरिस (फ्रांस) में सार्वजनिक निगरानी से परहेज किया । अंतालिया (तुर्की) और अटलांटा (अमेरिका) में कर्मचारियों की छँटनी और खराब सेवा के कारण पुनर्निगमीकरण करना पड़ा । हेमिल्टन (कनाड़ा) में निजीकरण अनुबंध खारिज करने के  कारण पर्यावरणीय समस्याएँ थीं। पुस्तक में दुनियाभर के २३५ पुनर्निगमीकरण प्रकरणों का उल्लेख है जिनमें से ९२ निजीकृत अनुबंध टिकाऊ नहीं होने के कारण नगरीय निकायों ने स्वयं इन्हें समाप्त करने का फैसला किया। शेष मामलों में या तो अनुबंध का नवीनीकरण नहीं किया गया अथवा निजी कंपनियाँ स्वयं ही अलग हो गई ।
इस रिपोर्ट में उल्लेखित हर मामला अपने आप में अलग है लेकिन पुनर्निगमीकरण से खर्च में कमी, संच ालन क्षमता में वृद्धि, जलप्रदाय तंत्र में निवेश और पारदर्शिता होने के ठोस प्रमाण मिले हैं । इसके अतिरिक्त रिपोर्ट में इसके बाद सार्वजनिक जलप्रदाय सेवाओं को ज्यादा जवाबदेह, सहभागी और पर्यावरणीय दृष्टि से टिकाऊ बनाने में मदद मिलने के प्रमाण दिए गए हैं । पेरिस की नगरपालिका को जलप्रदाय का निजीकरण खत्म करने पर पहले ही वर्ष में साढ़े ३ करोड़ यूरो (करीब २३१ करोड़ रुपए) की बचत और ह्यूस्टन (अमेरिका) की नगरपालिका को सालाना २० लाख डॉलर (करीब साढ़े बारह करोड़ रुपए) की सालाना बचत हुई। पुनर्निगमीकरण के बाद दार-ए-सलाम (तंजानिया), बर्लिन (जर्मनी) और मेदिना सिदोनिया (स्पेन) में जलप्रदाय तंत्र में काफी निवेश बढ़ा तथा पेरिस और ग्रेनोबल (फ्रांस) में पारदर्शिता और जवाबदेही में बढ़ोत्तरी देखी गई । ब्यूनस आयर्स (अर्जेटीना) में जल दरें कम हुई जिससे सभी को पानी मिलना और उसका समतामूलक बँटवारा सुनिश्चित हुआ । अध्ययन में कुछ ऐसे मामलों का भी उल्लेख है जिनमें निजी कंपनियाँ पुनर्निगमीकरण के खिलाफ न्यायालयों में गई और नगरीय निकायों से हर्जाना भी माँगा।
पुस्तक में पुनर्निगमीकरण के दौर में मिले सबकों की विस्तृत विवेचना है । जो निकाय जलप्रदाय को सार्वजनिक क्षेत्र में लाना चाहते हैं उनकी सहायता के लिए पुस्तक में एक चैकलिस्ट दी गई है। निजीकरण या पब्लिक-प्रायवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) के बदले नगरीय निकायों की क्षमता वृद्धि हेतु पब्लिक-पब्लिक पार्टनरशिप (जन-जन भागीदारी)   मॉडल सुझाया गया है जिसमें नगरीय निकायों के साथ जनता या अन्य सार्वजनिक निकायों की भागीदारी होती है । अध्ययनकर्ताओं ने निष्कर्ष निकाला है कि इससे वर्तमान और आने वाली पीढ़ियों को सामाजिक दृष्टि से बेहतर, पर्यावरणीय दृष्टि से टिकाऊ और अच्छी गुणवत्ता की सेवाएँ प्रदान की जा सकती हैं । पुनर्निगमीकरण को ट्रेड यूनियनों के लिए एक अवसर बताते हुए कहा गया है कि इससे कार्यस्थल की परिस्थितियों में भी सुधार लाया जा सकता है। इसके अलावा सार्वजनिक जलप्रदाय में लगे कर्मचारियों की क्षमता बढ़ाई जा सकती है और सार्वजनिक सेवाओं की दरों को और बेहतर बनाया जा सकता है ।
पुस्तक में अध्ययन के अनुभवों, सबकों और बेहतर तरीकों द्वारा नागरिकों, कर्मचारियों और नीति निर्माताओं सहित सभी को जोड़ने का प्रयास किया गया है ताकि मानव जीवन के आधार, पानी को फिर से सार्वजनिक क्षेत्र में लाया जा सके । भारत भी पानी के निजीकरण से अछूता नहीं हैं । ऐसे में गहन शोध के बाद तैयार यह पुस्तक भारत के लिये भी महत्वपूर्ण है । 

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