मंगलवार, 16 जून 2015


विशेष रिपोर्ट
हिमालय के बचने पर ही बहेगी गंगा
कुमार कृष्णन
हिमालय तथा खुद को  बचाने की चुनौती आज दक्षिण एशिया व दुनिया के सामने है। हिमालय के लोगों को अपने जीवनयापन की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए जल, जंगल, जमीन पर अधिकार पाने के संघर्ष करने पड़ रहें हैं । 
हिमालय सदियों से मैदानों, नदियों तथा समृद्ध मानव समाजों का निर्माणकर्ता और रक्षक रहा है । भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल के १६.३ प्रतिशत क्षेत्र में फैले हिमालयी क्षेत्र को समृद्ध जल टैंक माना जाता है । इसमें ४५.२ प्रतिशत भू-भाग में घने जंगल हैं । हिमालय के भारतीय हिस्से में देश के ११ छोटे राज्य हैं । वाबजूद इसके हिमालय के सवाल संसद में नहीं गूंजते ।
आज प्राकृतिक संसाधन लोेगांे के हाथ से खिसक रहे हैं, नदियों मेंं जल की मात्रा पिछले ५० वर्षो में आधी रह गई है और हिमालय ग्लेशियर प्रति वर्ष १८-२० मीटर पीछे हट रहे हैं । इसके अलावा हिमालय आपदाओं का घर बनता जा रहा है । जल विद्युत परियोजनाओं से लेकर सड़कों को चौड़ा बनाने व तेजी से बढ़ता पर्यटकों का आवागमन भी चुनौतिया है । बाढ़-भूस्खलन के साथ ही भूकंप के  खतरे भी बढ़ रहे हैं । केन्द्र सरकार गंगा की अविरलता और निर्मलता के लिए काफी उत्साहित नजर आती है लेकिन मैदानी क्षेत्रों को मिट्टी, पानी, हवा प्रदान करने वाले हिमालय के बिना गंगा का अस्तित्व संभव नहीं  है । ग्लेशियरों, पर्वतों, नदियों व जैविक विविधताओं की दृष्टि से संपन्न हिमालय पर जितना ध्यान दिया जाना चाहिए, वह नहीं दिया जा रहा है । याद रखिए गंगा बचाओ का नारा हिमालय बचाओ के बिना अधूरा है । 
हमारे देश में हिमालय को लेकर कोई नीति नहीं है । उसे आज योजनाएं नहीं, एक समग्र नीति चाहिए । एक ऐसी नीति, जो हिमालय व उससे जुड़े देश के पर्यावरण के बारे में तो सोचे साथ ही हिमालय क्षेत्र में रहने वाले लोगों की समृद्धि का रास्ता भी इसी पर्यावरण से जोड़कर निकाले । हिमालय में खासकर उत्तराखंड में चिपको, रक्षासूत्र आंदोलनों और बड़े बांधों के  विरोध के बाद हिमालय विकास के पृथक मॉडल पर बहस चल रही है । इसी संदर्भ में गांधी शांति प्रतिष्ठान में सुप्रसिद्ध समाजसेवी राधा भटट की अध्यक्षता में हिमालय नीति के संदर्भ में एक मंथन हुआ । मंथन के बाद सांसदों के नाम खुला पत्र जारी करने, हिमालय लोक नीति का मसौदा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को सौंपने संबधित राज्यों में हिमालय के विषय पर संवाद करने तथा उत्तर पूर्व पश्चिम हिमालय में बैठक करने के अलावा हिमालय नीति के सवाल पर जम्मू कश्मीर से नागालैंड तक यात्रा करने व सक्रिय संगठनों के साथ संवाद करने के फैसले लिए गए । 
सम्मलेन में सुश्री राधा भटट ने कहा कि हिमालय के सवाल महत्वपूर्ण हैं । गंगा के संदर्भ में सबकी चिंता है, लेकिन हिमालय के बारे में चिंता नहीं दिख रही है । हर साल ग्लेशियर १९ से २० मीटर पीछे हट रहा है, यह चेतावनी है, इसे नीति निर्धारकों को गहराई से समझाना होगा । मैदानी भाग के विकास में हिमालय का अह्म योगदान है। मौजूदा भूमि अधिग्रहण बिल के संदर्भ मे उन्हांेने कहा कि यदि यह लागू हुआ तो क्या देश बचेगा ? हिमालय को लेकर पूरे उत्तर भारत के लोगों को एकजुट होना होगा । 
हिमालय के सवाल पर गंगोत्री से गंगासागर तक की यात्रा के अनुभवों को साझा करते हुए यात्रा के संयोजक एवं पर्यावरणविद् सुरेश भाई ने कहा कि यात्रा के दौरान ४५ से अधिक स्थानों पर बैठक तथा संगोष्ठियों के माध्यम से जनसंवाद किया गया । इस दौरान २००० से अधिक लोगों ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को हिमालय नीति अभियान के समर्थन में पत्र भेजे । उन्हांेने कहा कि सरकारें गंगा और हिमालय के सवाल पर अपनी संवेदना तो दिखा रही हैं,  लेकिन गंगा के तट पर रहने वाले लोगों के साथ संवाद स्थापित नहीं किया गया है । 
पत्रकार भारत डोेगरा ने सरकार की विकास नीति पर सवाल उठाते हुए कहा कि विकास योजनाओं से फायदा कम और नुकसान ज्यादा हो रहा है । गांव की योजना गांव में बने, वैकल्पिक ऊर्जा का विकास हो और यह सुनिश्चित किया जाए कि पर्यावरण और खेती को नुकसान नहीं पहुंचे । उन्होंने कहा कि पहाड़ों को जो नुकसान हो रहा है, उसका प्रतिकूल असर मैदानी क्षेत्रों पर भी पड़ रहा है। विकास का सही मतलब टिकाऊ विकास के साथ-साथ सुरक्षा की बुनियाद भी होनी चाहिए ।
वरिष्ठ पत्रकार प्रसून लतांत ने कहा कि अब एक मंच से विस्थापन, गंगा, हिमालय और प्राकृतिक संसाधनों को छीने जाने के विरोध में लड़ाई लड़नी होगी । बड़ी ताकत से ही सरकार को झुकाया जा सकता है । इंडिया वाटर पोर्टल् के सिराज केसर ने कहा कि नई सरकार को लेकर महत्वपूर्ण सवाल है कि उसकी विकास नीति किसके लिए   है । सर्व सेवा संघ, राजघाट वाराणसी से आए अशोक भारत ने हिमालय को लेकर की गई यात्रा के बरेली और वाराणसी के अनुभवों को साझा किया । उन्होंने अभियान को तेज करने के साथ-साथ पूरे मामले को नीति आयोग के समक्ष रखने की आवश्यकता बतायी । 
झारखंड से आए अरविंद अंजुम ने कहा कि पहाड़ यदि स्वस्थ हैं तो वह मैदानी हिस्से की संपत्ति है । प्रमोद चावला ने कहा कि अभियान में संचार की नई तकनीक का इस्तेमाल किया जाना चाहिए । देहरादून से आए प्रेम पंचोली ने अभियान की मजूबती के लिए अन्य संगठनों से बात करने की आवश्यकता बतायी । ऑक्सफेम इंडिया के श्रीयश त्रिपाठी ने हिमालय नीति के जनमसौदे को लागू करने के लिए राजनीतिक अभियान सांसदों को जोड़कर चलाने का सुझाव दिया । बंगलौर से आए इ.पी मेनन ने रचनात्मक  विरोध के लिए युवाओं को प्रशिक्षित करने की बात कही । सर्वोदय समाज सम्मेलन के  संयोजक आदित्य पटनायक ने कहा कि हिमालय बचेगा तो देश बचेगा, इस सत्य से लोगों को वाकिफ कराना होगा । विश्वजीत गोरई ने उत्तराखंड के तराई क्षेत्र में हो रहे उत्खनन के खतरों से वाकिफ  कराया । 
ग्रीनपीस से आई विपासा ने आंदोलन को सामाजिक आंदोलन बनाकर सरकार पर दवाब बनाने की बात कही । प्रवीण भटट ने कहा कि हिमालय की आवाज प्रधानमंत्री तक कैसे पहुंचे, इस पर एक समन्वित रणनीति तय होनी चाहिए । सर्वसेवा संघ के मनोज पांडेय ने पूरे देश में एक साथ अभियान चलाने की आवश्यकता बतायी । जर्मनी से आई करीना होमेल ने जनजातीय समुदाय की स्थिति के संदर्भ में बताया । सर्वश्री राजेन्द्र सिंह, मेरठ  से आए मेजर डॉ. हिमांशु, पंकज कुमार, त्रिभुवन नारायण सिंंह, पश्चिम बंगाल से सौमित्री देवी, अमुलिका पॉल, काकाली जान्हें, हिमंाशु डंगवाल ,राज रावत, गांधी शांति प्रतिष्ठान के सचिव सुरेन्द्र कुमार, के.एल. बंगोत्रा, संदीप ने भी बहस से हिस्सा लिया । 
गौरतलब है गंगा में मिलनेवाली अधिकांश सहायक नदियां हिमालय से ही आती हैं । इसमें निरंतर पानी की कमी, प्रदूषण और गंगा घाटांे पर अतिक्रमण, खनन व गंगा घाटो पर बराज निर्माण आदि ने हिमालय के उद्गम से लेकर गंगासागर तक संकट खड़ा कर रखा है । हिमालयी सुनामी लंबे समय से मैदानी क्षेत्रों मंे तबाही का कारण बन रही है और मैदानों में गंगा मैला ढ़ोनेवाली मालवाहक बन गई है । इन स्थितियों के बावजूद गंगा की अविरलता और निर्मलता के लिए कोई संवाद अब तक नहीं शुरु किया गया है ।

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