मंगलवार, 16 जून 2015


ज्ञान-विज्ञान
मलेरिया हो, तो मच्छर आकर्षित होते हैं
एक ताजा अनुसंंधान से पता चला है कि जब किसी के शरीर में मलेरिया परजीवी होते हैं, तो वह व्यक्ति मच्छरों को ज्यादा आकर्षक लगने लगता है और वे उसे काटने को दौड़े चले आते हैं । वॉशिंगटन विश्वविघालय की ऑड्री ओडोम और उनके साथियों ने अपने शोध पत्र में बताया कि मनुष्य के शरीर में पहुंचकर मलेरिया परजीवी (प्लाज्मोडियम) कुछ ऐसे रसायन बनाता है जो मच्छरोंको आकर्षित करते हैं । 
यह तो सर्वविदित है कि मादा मच्छरों को अंडो की परिपक्वता के लिए प्रोटीन समृद्ध खून की आवश्यकता होती है । अपने सामान्य भोजन के लिए नर और मादा दोनोंतरह के मच्छर फूलों के रस पर निर्भर होते है और उनमें कुछ फूलों से निकलने वाले रसायनों के प्रति आकर्षण पाया गया है । सुश्री ओडोम देखना चाहती थी कि क्या इस तरह के मच्छर आकर्षक रसायन मलेरिया  संक्रमित व्यक्ति के शरीर से भी निकलते हैं । 
मनुष्यों की ओर मच्छरों के आकर्षण के कुछ कारक तो पहले से पता है । जैसे हमारी सांस से निकलने वाली कार्बन डाईऑक्साइड उन्हें आकर्षित करती है । मगर हाल के अध्ययनों से पता चला था कि मच्छर मलेरिया संक्रमित व्यक्तियों की ओर ज्यादा आकर्षित होते है । क्यों ?
कहीं ऐसा तो नहीं कि मलेरिया परजीवी जब व्यक्ति के खून में होता है तो वह कुछ वाष्पशील रसायन छोड़ता है जो व्यक्ति के शरीर से पसीने के साथ बाहर आते हैं और मच्छरों को आकर्षित करते हैं । परजीवी के लिए फायदा यह है कि यदि मच्छर उस व्यक्ति को काटेगा तो परजीवी उस मच्छर में प्रवेश कर जाएंगे जो उनका जीवन चक्र पूरा होने के लिए जरूरी है ?
सबसे पहले तो सुश्री ओडोम के दल ने देखा कि मलेरिया परजीवी की कोशिका में एक ऐसा उपांग पाया जाता है जो वनस्पति कोशिकाआें के एक उपांग (प्लास्मिड) जैसा है । इन शोधकर्ताआें ने मलेरिया परजीवी को प्रयोगशाला में पनपाया और उनके द्वारा बनाए गए रसायनों का विश्लेषण किया । इन रसायनों का प्रोफाइल लगभग वैसा ही पाया गया जैसा कि मच्छरों को आकर्षित करने वाले फूलोंका होता है । 
इसके बाद उन्होनें रसायनों का यह मिश्रण कुछ चूहों के शरीर में डाल दिया । ऐसा करने पर मच्छर इनकी ओर अन्य चूहों की अपेक्षा ज्यादा आकर्षित होने लगे । 
जीवजगत का यह एक मजेदार अध्याय है । परजीवी अपने मेजबान के व्यवहार या शरीर क्रिया में ऐसा परिवर्तन कर देते है कि उन्हें नए मेजबान तक पहुंचने में मदद मिले । वैसे ओडोम का मत है कि उनकी यह खोज मच्छरों से बचाव के नए हथियार उपलब्ध करा सकती है। 

हडि्डयों को मजबूत बनाता है, दूध और दही 
भारत में तो बरसों से दूध-दही का सेवन लोग करते आ रहे हैं। उनकी हडि्डयां भी मजबूत हुआ करती थी । अब अमेरिका के हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के तहत एक शोध में यह बात साफ हो गई है कि दूध-दही के सेवन से हिप बोन और अन्य हडि्डयां मजबूत रहती है, बनिस्बत क्रीम के । 
कम फेट वाला दूध और दही शरीर में प्रोटीन, कैल्शियम और विटामीन डी की मात्रा बढ़ाता है । साथ ही सैचुरेटेड फेट की मात्र सीमित करता है । हार्वर्ड से संबंद्ध इंस्टीट्यूट फॉर एजिंग रिसर्च की शिवानी सहानी इस अध्ययन की सहभागी है । हिप बोन में फ्रेक्चर के बाद एक चौथाई लोगों की लगभग एक साल में ही मौत हो जाती है । कोई ३.४ करोड़ अमेरिकियों में लो उेनसिटी बोन की प्रॉब्लम्स है । इसकी वजह से आस्टियोपोरोसिस और फे्रक्चर की शिकायतें आम हो जाती है । खासकर हिप बोन, स्पाइन या रिस्ट में । डेयरी उत्पाद से हमें कई महत्वपूर्ण न्यूट्रिएंटस मिलते हैं, जो हडि्यों को स्वस्थ रखते हैं । मरक्यूलो स्कलेटन रिसर्च टीम की सहयोगी सुश्री साहनी ने जर्नल आर्काइव्ज ऑफ आस्टियोपोरोसिस में उक्त निष्कर्ष प्रकाशित किए है । 
क्रीम में पोषक तत्वों की कमी
क्रीमऔर इसके उत्पाद जैसे आइस्क्रीम में इन पोषक तत्वों की कमी होती है । साथ ही फेट और शुगर का स्तर ज्यादा होता है । इस अध्ययन में दूध-दही का नियमित सेवन करने वाले जिन लोगों को शरीक किया गया था, उनमें बोन  डेनसिटी बेहतर पाई गई । उनका कहना है कि चीज को लेकर अभी और शोध की आवश्यकता है । इस शोध में शामिल ३२१२ भागीदारों से प्रश्नावली और उनके भोजन की स्थिति के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला गया । 

बगैर ड्रायवर का ट्रक
वैसे तो चालक रहित वाहन आजकल कई कामों में इस्तेमाल हो रहे हैं मगर अब जो योजना प्रस्तुत हुई है वह इन सबसे ज्यादा महत्वाकांक्षी है । इसके तहत ऐसे ट्रक विकसित करने का विचार है जो आम सड़कों पर भी ड्रायवर के बगैर दौड़ सकेंगे । इस ट्रक को नाम दिया गया है इंस्पाइरेशन। 
पिछले कुछ वर्षो में चालक-रहित वाहनों ने कई कंपनियों में जगह बना ली है । खास तौर से इनका उपयोग ऐसे स्थानों पर हो रहा है जहां लोगों की और अन्य वाहनों की आवाजाही कम होती है । जैसे खनन कंपनी रियो टिटो अपनी खदानों से लौह अयस्क को ढोने के लिए चालक-रहित ट्रकों का इस्तेमाल कर रही है । कुछ खेतों में आजकल चालक रहित हार्वेस्टर्स का उपयोग भी हो रहा है। और तो और अमरीकी फौज ऐसे वाहन के विकास मे लगी है जो युद्ध के मैदान में चालक के बगैर चल सके । 
मगर इंस्पाइरेशन की तो बात ही कुछ और है । यह तो आम सड़कों पर बाकी सामान्य वाहनों के साथ ही चलेगा । इसे नेवाडा के हाइवे पर परीक्षण की अनुमति भी मिल गई   है । जाहिर है, चालक-रहित गाडियों में कई फायदे हैं । एक तो ये ज्यादा सुरक्षित होगी, नियमों की अनदेखी नहीं करेगी और ड्रायवर के थकने की कोई चिंता नहीं रहेगी । कहते हैं कि यदि ऐसे ट्रकों को एक कारवां के रूप में चलाया जाए, तो ईधन की बचत भी होगी क्योंकि हवा के प्रतिरोध का सामना सिर्फ आगे वाले ट्रक को करना होगा । 
इंस्पाइरेशन ट्रक को मालूम होता है कि उसे किस लेन में चलना है, गति पर कैसे नियंत्रण रखना है । इसे विकसित करने वाले लोगों का कहना है कि ये नशे में धुत भी नहीं होते । 
इसमें एक कैमरा लगा होता है जो सामने १०० मीटर की दूरी तक नजर रखता है । कैमरा सड़क पर बने चिन्हों को पहचानता है, उनके अनुसार रफ्तार कम-ज्यादा करवाता है । इसमें एक राडार भी लगा है जो २५० मीटर दूर तक चल रहे वाहनों पर नजर रखता है ताकि टक्कर से बचा जा सके । 

पहला स्टेम कोशिका शिशु 
कनाडा में पिछले दिनों एक शिशु का जन्म हुआ है जिसके बारे में कहा जा रहा है कि वह पहला स्टेम कोशिका शिशु है । शिशु का नाम जाइन रजनी है । जिस तकनीक से वह पैदा हुआ है वह तो टेस्ट ट्यूब बेबी तकनीक ही मगर उसका थोड़ा संशोधित रूप है । इसे ऑगमेंट नाम दिया गया है । 
आम तौर पर टेस्ट ट्यूब शिशु के लिए स्त्री के अंडाशय से अंडे प्राप्त् किए जाते हैं, उनका निषेचन (यानी शुक्राणु से मिलन) शरीर से बाहर करवाया जाता है और जब निषेचित भू्रण का थोड़ा विकास हो जाता है तब उसे स्त्री के गर्भाशय में आरोपित कर दिया जाता है । वह वहीं स्त्री हो सकती है जिसके अंडे से भ्रूण बना है । 

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