मंगलवार, 16 जून 2015


जैव विविधता
वन विखण्डन से नष्ट होती जैव विविधता
डेविड एडवर्डस्
जंगलों का विखण्डन वनविनाश जितना ही खतरनाक है। विशाल जंगलों के कटने और मानव आबादी के लगातार संपर्क में आने से जीवन वनसंपदा एवं जैवविविधता सभी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा    है । बढ़ती आबादी और आसमान छूता उपभोक्तावाद विखण्डन की आग में घी का कार्य कर रहे हैं ।
एक समय था जब पृथ्वी उप उत्तरध्रुवीय शीतवनों से लेकर अमेजन व कांगो बेसिन तक विशाल जंगलों से पटी पड़ी थी । जैसे जैसे मानव ने इस ग्रह के कोने-कोने में बसना शुरु किया वैसे-वैसे हमने खेत बनाने और शहर एवं कस्बे निर्मित करने के लिए बड़े क्षेत्रों के पेड़ काट डाले । जंगलों के नाश के जैवविविधता पर नाटकीय प्रभाव पड़े और आज यह हमारे अस्तित्व के संकट का प्राथमिक कारण बन गया है । 
मैं बोर्निया में काम करता था वहां पाम तेल रोपण हेतु बड़े क्षेत्र के उष्णकटिबन्धीय वन काट डाले गए । तकरीबन १५० जंगली चिड़ियाओं के स्थानापन्न के रूप में खेती से संबंधित कुछ प्रजातियों को वहां ले आया गया । अब जंगल सामान्यतया या तो भीतरी हिस्सों में या पाम रोपणी के किनारे ही दिखाई देते हैं । यह प्रक्रिया विश्वभर में दोहराई जा रही है । सांइस एडवांसेस में प्रकाशित नए शोध के अनुसार अब समस्या यह है कि बचे हुए अधिकांश जंगल विखण्डित या टुकड़ों-टुकड़ों में बट गए हैं । दूसरे शब्दों में कहें तो बचे हुए जंगल रूपांतरित भूमि के विशाल आकार की वजह से तेजी से अन्य जंगलों से अलग होते जा रहे हैंऔर पाया जा रहा है कि उनका आकार लगातार छोटा होता जा रहा है। गौरतलब है कि यह वनविनाश या वन कटाई से भी ज्यादा खतरनाक  है ।
नार्थ केरोलिना स्टेट विश्वविद्यालय के निक हड्डाड की अगुवाई वाले समूह ने दुनिया के पहले वृक्ष आच्छादन हाई रिस्योलुशन सेटेलाइट नक्शे का इस्तेमाल यह मापने के लिये किया कि बचे हुए जंगल एक गैर वन सीमा से कितने पृथक हैं । यह स्थिति किनारे पर वन कटाई गतिविधियों की भरमार, सड़कों से लेकर पशुओं के चारागाह और तेल के कुओं के साथ ही साथ नदियों से पैदा हुई थी । उन्होंने पाया कि बचे हुए ७० प्रतिशत जंगल किनारों से महज १ किलोमीटर (०.६ मील) के अन्दर स्थित हैं । इतना ही नहीं किनारे से महज १०० मीटर टहलते हुए आप २० प्रतिशत वैश्विक जंगल में अपनी आमद दर्ज करा सकते हैं । यदि विभिन्न अंचलों की तुलना करें तो जो स्थिति पाई गई वह और भी अचंभित कर देने वाली थी । यूरोप और अमेरिका में अधिकांश जंगल किनारे से महज १ किलोमीटर की दूरी पर हैं । इन क्षेत्रों में सबसे ''दूरदराज'' स्थित वनों में मानव गतिविधि की बात करंे तो अब यह वन पत्थर फेंकने जितनी दूरी पर स्थित  हैं । ''इस सबसे बच पाना'' इतिहास में इससे पहले कभी भी इतना चुनौतीपूर्ण नहीं था । यदि आप बड़ी मात्रा में दूरदराज या दूरस्थ वनों को देखना चाहते हैं तो आपको अमेजन, कांगो या मध्य एवं सुदूर पूर्वी रूस, मध्य बोर्नियो और पापुआ न्यू गुयाना जाना पड़ेगा । 
जैव विविधता में कमी : यह खोजें उतनी चेतावनी भरी नहीं होती यदि वन्यजीवन, और जंगल जो कि कार्बन संग्रहण एवं पानी जैसी सेवाएं मनुष्यों को उपलब्ध कराते हैं वह वनों के खण्डित (छितरा जाने) से संकट में न पड़ी होती । लंबे समय तक हुए सतत् विखण्डनांे पर प्रयोग करने के बाद हड्डाड एवं उनके साथी बताते हैंकि इन विखण्डनों से जैवविविधता में ७० प्रतिशत तक की कमी आई    है । इससे ऐसी लाखों लाख वन प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा बढ़ता जा रहा है जिनके बारे में हम अभी भी बहुत कम जानते हैं । वन प्रजातियों को किनारे पर रह कर अपना अस्तित्व बचाए रखने में जबरदस्त संघर्ष करना पड़ता है क्योंकि वे जहां जंगलों के भीतर रहते थे उसकी बनिस्बत यह क्षेत्र अधिक रोशनी वाले, ज्यादा चौड़े एवं गरम  हैं। यह किनारे अनियंत्रित बेलों से भर गए हैं और वहां पर अनेक परजीवी प्रजातियों ने अतिक्रमण कर लिया है जो कि गहरे जंगल में पाई जानी वाली प्रजातियों से बहुत ज्यादा हो गई हैं । उदाहरणार्थ के लिए बोर्नेओं में वनों के छोटे हिस्से में निवास कर रहा चिड़ियाओं का समुदाय बजाए विशाल जंगलों में रहने वाली चिड़ियाओं के पड़ौस के  पॉम वृक्षों में रहने वाले पक्षियों जैसा ज्यादा प्रतीत होता है ।
विशाल कार्बन समृद्ध वृक्षों का इस तरह के बनाए गए जंगल ईकोसिस्टम में बचे रहना बहुत कठिन होता जा रहा है । ये छोटे-छोटे पैबंद इन वृक्षों की व्यवहार्य संख्या बनाए रखने में सफल नहीं हो सकते और यह धीमे-धीमे विलुप्ति की ओर बढ़ते जाएंगे । वैश्विक जंगलों के  मनुष्य के अत्यंत समीप आ जाने चिंपाजी, गोरिल्ला आदि का शिकार हो रहा है और वे विलुप्ति के कगार पर पहुंच रहे हैं। इसके परिणामस्वरूप बड़े जानवर उन हिस्सों में जा रहे हैंजो कि छोटी कभी प्रजातियों का रहवास हुआ करता था । इसके अलावा शिकारी भी किनारों से कई किलोमीटर भीतर तक खेल की तरह दौड़ कूद लगा रहे हैंजिससे कि जंगल अब काफी छोटे नजर आने लगे हैं । 
प्रबन्धन हेतु कठिन निर्णय : विखण्डन के कपटपूर्ण प्रभावों का अर्थ है कि अब हमें जंगल के  वातावरण को और अधिक बर्बाद होने या वहां अतिक्रमण न होने देने के लिए संरक्षण को सर्वोच्च् प्राथमिकता देनी होगी । इसे रोककर ही हम वैश्विक जंगल विखंडन और जैवविविधता की और अधिक हानि को रोक सकेंगे । परंतु हमें विखंडित क्षेत्रों की अवहेलना नहीं करना  चाहिए । इनमें से कुछ को जैसे ब्राजील का अटलांटिक वन, उष्णकटिबंधीय एंडेम व हिमालय में जैवविविधता की कमी, प्रजातियों पर संकट और भीषण विखंडन का जहरीला मिश्रण झेलना पड़ रहा है । अनेक विलुप्त प्राय प्रजातियां अत्यंत छोटे क्षेत्र में सिमट कर रह गयी हैं । कई जगह तो यह विखंडन चारागाहों और सड़कांे की वजह से हुआ है । यदि हमें इन्हें विलुप्ति से बचाना है तो आवश्यक है कि विशाल विखण्डित क्षेत्रों के मध्य जुड़ाव स्थापित किया जाए एवं वन आच्छादन को पुन: स्थापित किया जाए । 
हालांकि मनुष्य के लालच एवं मांस भक्षण के तेजी से बढ़ने की वजह से इस बात की पूरी संभावना है कि अभी और जंगल नष्ट हांेगे ।  खेती की उपज और उत्पादकता दोनों बढ़ा भी ली जाती हैंतो भी वर्तमान व भविष्य की मांग में अंतर तो बना ही रहेगा । यह कठिन प्रश्न अभी भी अनुारित है कि यह विस्तार कहां पर होगा । छोटे और विखण्डित जंगलों के गिरते स्तर को रोकने से भी इस संकट से निपटने में कुछ सहायता अवश्य मिल सकती है । यह सच है कि विखण्डन की समस्याओं का कोई सरल उत्तर नहीं है । परंतु जंगलों को वैश्विक प्रबंधन योजना की तत्काल सख्त आवश्यकता है ।

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