बुधवार, 18 नवंबर 2015

पर्यावरण परिक्रमा
फलदार पेड़ों पर भी कुल्हाड़ी चलाने की छूट
    म.प्र. में पौराणिक आस्था से जुड़े बरगद, पीपल जैसे वृक्ष तथा आम, अमरूद जैसे फलदार पेड़ भी अब वैधानिक रूप से काटे और बेचे जा सकेंगे । वन विभाग ने वानिकी को बढ़ावा देने के निर्णय के तहत ५३ प्रजातियों के पेड़ों को परिवहन अनुज्ञा (टीपी) से मुक्त कर दिया है । अब लोग अपने बगीचे, आंगन, प्लॉट आदि से ये पेड़ कटवा    सकेंगे ।
    विभाग ने इन पेड़ों को टीपी से मुक्त करने का मसौदा विधि विभाग को भेजा था, मंजूरी के बाद अधिसूचना  जारी की गई है । जानकारों का मानना है कि इससे कॉलोनियों, मोहल्लों में लोगों के घर-आंगन मेें लगे पेड़ खतरे में  होंगे । ग्रामीण इलाकों में किसानों के खेत व जमीन पर लगे पेड़ भी ठेकेदारों के हवाले किए जाने की आशंका रहेगी । अधिसूचना में पीपल, बरगद, के वृक्षों को भी टीपी मुक्त किया है । बरगद को देश में राष्ट्रीय पेड़ का दर्जा है । महकमे का तर्क है कि निर्णय से लोग नए पेड़ लगाने के लिए प्रेरित होंगे । इस निर्णय में लकड़ी माफिया की दिलचस्पी थी । आलम यह था कि जुलाई में इस प्रस्ताव का मसौदा खंडवा, इंदौर, बैतूल, देवास आदि जिलों में पहुंच गया था और अधांधुध कटाई शुरू हो गई थी, वन विभाग के पीसीसीएफ से लेकर सचिव तक कहते रहे कि विधि विभाग को प्रस्ताव भेजने के साथ ही फील्ड अफसरोंसे भी सुझाव के लिए यह मसौदा भेजा गया था, जिसे आदेश समझा गया । ताजे फैसले से उन अफसरों को बचाया जा सकेगा जिनके इलाकों में अधिसूचना से पहले ही कटाई शुरू हो गई थी ।
    इन पेड़ो को किया टीपी मुक्त
    यूकेलिप्टस, केजुरिना, पोपलर, सुबबूल, इजरायली बबूल, विलायती बबूल, आस्टे्रलियन बबूल, बबूल, खमेर, कटंग बांस, महारूख, कदम, कैसिला सिमोआ, गुलमोहर, जेकरंडा, सिल्वर ऑक, पाम, बेर, शहतूत, कटहल, अमरूद,्न् नींबू-संतरा-मौसंबी, मुनगा, मोलश्री, अशोक, पुत्रजीवा, इमली, जामुन, आम, सप्त्पर्नी, केथा, जंगली जलेबी, पेल्टाफोरम, नीम, बेकेन, सिसू, करंज, पलाश, सफेद सिरस, पीपल बरगद, गुलर, रबर, सेमल, कपोक, चिरोल, ग्लेरिसीडिया, रिन्झा, मीठी नीम, गुड़हल, शंकुधारी प्रजातियां (चीड़, कैल, देवदार व पाइन प्रजातियां) आयातित-विलायती काठ व बांस ।

स्कूलों में नहीं मिलेगा जंक फूड
    देश का शीर्षस्थ खाद्य नियामक स्कूलों में जंक फूड के उपभोग और उपलब्धता पर प्रतिबंध लगाने की तैयारी में है । भारती खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण ने स्कूलों में बच्चें में जंक फूड के उपभोग पर नियंत्रण के लिए प्रारूप दिशा-निर्देश जारी किया है । प्रारूप दिशा-निर्देश में कहा गया है कि स्कूलों में ऐसे स्वास्थ्य शिक्षा के कार्यक्रम चलाए जाएं, जिससे अभिभावकों और छात्र जंक फूड के दुष्प्रभावों के प्रति जागरूक हो   सकें । प्रारूप में कहा गया है कि जो भी खाद्य साम्रगी जंक फूड की परिभाषा में आती हों, उन्हें स्कूल की कैन्टीनोंमें प्रतिबंधित कर दिया    जाए । दिशा-निर्देशों में यह भी कहा गया है कि संतुलित, ताजे और परम्परागत खाद्य पदार्थ का स्थानापन्न नहीं किया जा सकता । स्कूलों को ऐसे खाद्य पदार्थोंा को बढ़ावा नहीं देना चाहिए, जिससे मोटापा बढ़े और चीनी व नमक के चलते मनोवैज्ञानिक समस्याएं बढ़ें ।
    भारतीय खाद्य और सुरक्षा मानक प्राधिकरण ने यह कदम जुलाई अन्त में दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा दिए उस आदेश की अनुपालना में उठाया है, जिसमें स्कूलों में जंक फूड का मॉनीटर करने के लिए तीन माह का समय दिया गया था । उल्लेखनीय है कि स्कूली बच्चें में जंक फूड की खपत और उसकी उपलब्धता संबंधी समिति ने महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को सौंपी रिपोर्ट में भी स्कूलोंऔर इनके आस पास के क्षेत्रों में जंक फूड की बिक्री रोक देने की सिफारिश की है ।

प्रदूषण को कम करने का खोजा समाधान
    स्वच्छ गंगा अभियान के रास्ते में एक बड़ा रोड़ा मानी जा रही उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर की चमड़ा फैक्ट्रियोंसे होने वाले प्रदूषण को कम करने के लिए आईआईटी रूड़की ने एक समाधान खोज निकाला है ।
    संस्थान की इस खोज से गंगा किनारे बसे कानपुर शहर की ७०० से ज्यादा चमड़ा फैक्ट्रियों के भविष्य पर मंडरा रहे अनिश्चितता के बादल छंट सकते हैं । पायलट प्रोजेक्ट के तहत आईआईटी रूड़की ने एक ऐसा उत्प्रेरक कैटालिस्ट विकसित किया हैं, जिसका प्रयोग चमड़ा फैक्ट्रियों के रिडिजाइंड चैंबर्स में किया जाता हैं । इस उत्प्रेरक के प्रयोग से फैक्ट्रियों के टीडीएस: टोटल डिजाल्वड सॉलिड का स्तर १८०००-२५००० पीपीएम: पार्ट पर मिलियन से घटकर केवल १०००-१५०० पीपीएम तक रह जाएगा जो निर्धारित मानकों के अन्दर होगा ।
    आईआईटी रूड़की के रसायनिक इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर शिशिर सिन्हा ने बताया कि आईआईटी रूड़की को यह पायलट प्रोजेक्ट कानपुर की पांच शीर्ष चमड़ा इकाइयों के एक समूह ने दिया है जिसमें एशिया की सबसे बड़ी चमड़ा फैक्ट्री मिर्जा इंटरनेशनल भी शामिल है । प्रोफेसर सिन्हा ने कहा हमने उत्प्रेरक विकसित कर चमड़ा फैक्ट्रियों से होने वाले प्रदूषण को रोकने के लिए पायलट प्रोजेक्ट सफलतापूर्वक पूरा कर लिया है जिससे टीडीएस के स्तर को कम किया जा सकता है ।
    आईआईटी रूड़की इसके अलावा चमड़ा उद्योगों से निकलने वाले कचरे में बड़ी मात्रा में मौजूद खतरनाक क्रोम के स्तर को कम करने के लिए भी समाधान खोजने का काम कर रहा है । प्रोफेसर सिन्हा ने दावा किया हम क्रोम समस्या का हल ढूंढने के भी बहुत निकट पहुंच चुके है । राष्ट्रीय हरित अधिकरण: एनजीटी ने हाल ही में कानपुर की ७०० से ज्यादा चमड़ा फैक्ट्रियों को गंगा नदी में प्रदूषण के लिए जिम्मेदार सबसे बड़े कारकों में से एक बताते हुए उन्हें पूरी तरह से बंद करने की चेतावनी दी थी । यह भी कहा था कि अगर प्रदूषण रोकने के प्रभावी उपाय न किए गए तो इन चमड़ा उद्योगों को बंद कर दिया जाएगा ।
    इसी सप्तह देहरादून में गंगा के लिए वानिकी प्रयासों की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार करने हेतु बैठक में शिरकत करने आए केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण राज्यमंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने भी चेतावनी देते हुए कहा था कि गंगा नदी में प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों पर केंद्र कड़ी कारवाई करेगा । जावड़ेकर ने कहा कि गंगा नदी में प्रदूषण फैला रहे उसके किनारे स्थित चमड़ा इकाइयों से प्रदूषण रोकने के लिए एक कार्ययोजना बनाई जा रही है जो अगले एक साल मेंपूरी हो जाएगी । मंत्री ने कहा कि इसके अलावा गंगा किनारे के बाकी उद्योगों में भी सेंसर डिवाइस लगाए जाएंगे जो चौबीसों घंटे उनसे निकलने वाले अपशिष्ट से हवा और पानी में होने वाले प्रदूषण को रिकॉर्ड करेंगे ।

हर ११ वां बच्च कर रहा है बाल मजदूरी
    देश में पांच से १८ वर्ष की उम्र का हर ११वां बच्च बाल मजदूरी कर रहा है । बाल श्रम निर्मूलन के क्षेत्र के गैर सरकार चाइल्ड राइट्स एंड यू (क्राई) ने सरकारी आंकड़ों के आधार पर यह दाख किया है । क्राई ने जनगणना आंकड़े के विश्लेषण मेंखुलासा किया है कि पिछले दशक के दौरान बाल श्रम में हर साल महज २.२ फीसदी की धीमी गति से गिरावट आई हैं । संगठन का दावा है कि इस गति से कामकाजी बच्चें को बाल मजदूरी से मुक्त कराने में एक सदी से भी ज्यादा का समय लग   जाएगा । मौजूदा समय में एक करोड़ से अधिक बच्च्े कार्य स्थलों का हिस्सा बने हुए हैं ।
    विश्लेषण में कहा गया है कि ग्रामीण इलाकों से शहरी इलाकों में पलायन के कारण बाल श्रतिकों की संख्या में २००१-२०११ के दौरान ५३ प्रतिशत तक वृद्धि हुई    है । कामकाजी बच्चें की बड़ी तादाद ८० प्रतिशत ग्रामीण इलाकों में है इनमें प्रत्येक ४ में से ३ बच्च्े कृषि या घरेलू उद्योगों में लगे हूए हैं । विश्लेषण में कहा गया है कि वर्ष २००१-२०११ में १०-१४ वर्ष के आयु वर्ग में कामकाजी बच्चें में कमी दर्ज की गई । इसके विपरीत ५-९ साल के बीच के कामकाजी बच्चें की संख्या में ३७ प्रतिशत तक का इजाफा भी दर्ज किया गया । हालांकि ५-९ साल के बीच कामकाजी बच्चें की संख्या में वृद्धि शहरी इलाकों में दर्ज की गई जहां कामकाजी लड़कों की संख्या १५४ प्रतिशत तक बढ़ी जबकि कामकाजी लड़कियों की संख्या में २४० प्रतिशत तक का इजाफा हुआ है । भारत में ५० प्रतिशत से अधिक कामकाजी बच्च्े पांच राज्यों - बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में है । इन राज्यों का योगदान ५५ लाख बाल श्रमिकों का है । इन पांच राज्यों में केवलउत्तर प्रदेश ने बाल मजदूरी में १३ प्रतिशत तक की वृद्धि दर्ज की है ।

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