बुधवार, 18 नवंबर 2015

सामयिक
हाथों से फिसलता पानी
प्रो. कृष्णकुमार द्विवेदी

    पानी समग्र मानवीय/जैव जगत की आज और आने वाले कल की सर्वप्रमुखीय प्राथमिक आवश्यकता है । सर्वमान्य वैज्ञानिक मत है कि कम से कम पीने का पानी, इस सदा जीवनदायिनी धरा पर रंग, गंध, प्रकृति व स्वाद की दृष्टि से अच्छा, विकृति रहित तथा विशुद्ध होना चाहिए ।
    यहाँयह उल्लेखनीय है कि एक दम विशुद्ध आसुत जल पीने के योग्य नहीं होता है, तथा प्रकृति से कठोर, अति कैल्सियम अथवा मैग्नीशियम वाला जल भी पीने के लिए अयोग्य ही माना जाता है । एक साधारण अवधारण है कि पीने का पानी स्वच्छ हो, वस्तुत: प्यास बुझाने वाला हो, मन-मस्तिष्क को प्रफुल्लित व प्रसन्न रखे, तभी वह वास्तविकता में वह शुद्ध पेय जल कहलाता है । 
     मानवीय शरीर में लगभग ७० प्रतिशत जल ही होता है तथा मानव शरीर को प्रतिदिवस १०-२० गिलास पाने के पानी की आवश्यकता पड़ती है । वैसे मनुष्य को इस पीने के पानी की दैनिक  आवश्यकता का एक बड़ा हिस्सा शरीर को, नित भोजन के रूप में खाये जाने वाले खाद्य पदार्थो से प्राप्त् होता है और शेष प्रत्यक्ष रूप से  पानी पीकर ही पूर्ण होता है ।
    ऋत्विक व्यवस्था क्रम में यह आवश्यकता विशेषकर ग्रीष्म ऋतु में  और अधिक बढ़ जाती है तथा शीत ऋतु में औसत से कम हो जाती है। नित्य दैनिक चर्या में पानी शरीर की आवश्यकता क्रियाआें - भोजन पचाने, रक्त संचरण, सहज उत्सर्जन एवं समस्त जैविक क्रियाआेंके सहज संचालन के परिप्रेक्ष्य में नितांत आवश्यक तत्व माना जाता है । प्यास लगना ही इस बात का संकेत होता है कि शरीर को पानी की त्वरित आवश्यकता है।  सामान्य रूप से मनुष्य में पानी की थोड़ी सी घट-बढ़ शरीर को रूग्ण बना देती है । वस्तुत: शुद्ध जल आवश्यकता के अनुरूप पीने से ही शरीर चुस्त-दुरूस्त रहता है ।
    पीने के पानी से ही खाद्य पदार्थो के पौषकीय - पौष्टिक तत्व रक्त में समाहित होते हैं तथा शरीर के रक्तीय नियमित आवश्यक बहाव को भी यथावत बनाये रखता है । पर्याप्त् शुद्ध जल के नियमित सेवन से ही मानव शरीर से कई विकृत तथ्य पसीने और मल-मूत्र के साथ बाहर निकल जाते हैं तथा शरीर की नियमित उत्सर्जन की आवश्यक प्रक्रिया भी सहजता से होती रहती है एवं शरीर का सामान्य ताप भी संतुलित रहता है, प्रात:काल एवं रात्रि में सोने से पहले स्वच्छ शीतल जल का नियमित सेवन शरीर के लिए विशेष लाभकारी होता है तथा शरीर को अनेकों संघात्मक बीमारियों से मुक्त रखने वाला होता है ।
    वर्तमान में अधिकांश विकासशील एवं पिछड़े राष्ट्रों में तथा हमारे देश में भी सामान्य तौर पर पानी की स्वच्छता एवं शुद्धता को लेकर जनमानस गंभीर तक नहीं हुआ है, पानी में घुली तरह - तरह की गंदगी की तरफ अधिकांश लोगों  का ध्यान भी नहीं जा पाता है, पानी में जो रूग्ण जीवाणु होते हैं वे नग्न आंखों से दिखायी भी नहीं पड़ते हैं, और इसी गंदले पानी के सेवन से लोग अनायास दस्त, पेचिस, हैजा, टाइफाइड, पीलिया, नारू और आंत संबंधी रोगों से ग्रसित होकर बीमार हो जाते हैं, मूलत: पानी की प्राकृतिक  स्वच्छता को लेकर आमजन बहुत ही लापरवाही होते हैं ।
    हमारे यहां ही अधिकांश लोग आज भी पीने का पानी पोखर, तालाब या कच्च्े कुंए से लाते हैं जहां कपड़े-बर्तन धोए जाते हैं, वहीं लोग स्वयं नहाते हैं और अपने जानवरों को भी नहलाते हैं और तो और शोच के बाद सफाई हेतु प्रत्यक्ष: इन्हीं जल स्त्रोतों का इस्तेमाल करते हैं, जिससे सारी गंदगी एवं जीवाणु इन्हीं जलीय स्त्रोतों के अंदर जाकर घुल-मिल जाते हैं, इसीलिए सामान्य रूप से पर्याप्त् नदियों एवं ताजे जल की झीलों के होते हुए भी मानव उपयोग हेतु स्वच्छ जल की कमी हो जाती हैंं, हमारे देश में उपलब्ध कुल जल का लगभग ७० प्रतिशत भाग प्रदूषित है जिससे देश के लगभग ७३ लाख क्रियाशील लोग जल संबंधी रोगों से ग्रसित होकर अशक्त  व बेकार हो जाते हैं, यह महज आश्चर्यजनक नहीं वरन प्रमाणक तथ्य है कि दूषित जल पीने के कारण विश्व में प्रतिदिन लगभग २५००० व्यक्ति काल कवलित हो जाते हैं ।
    प्रदूषित पेय जल मनुष्यों के अतिरिक्त अन्य प्राणियों को भी प्रभावित करता है, इसी के कारण प्राणियों एवं वनस्पतियों की चपापचयशीलता में बाधा पड़ती है अथवा वे निष्ट तक हो जाते हैं । वर्तमान सदी में आसन्न जल संकट के सामाजिक पहलुआें में सबसे महत्वपूर्ण एवं सबसे गंभीर संकट पेजयल का ही है, पृथ्वी पर चर्तुदिक जल ही जल होेने के बावजूद यह कठोर सत्य है कि स्वच्छ पेयजल की समस्या एक सर्वाधिक बड़ी समस्या है जिसका सुनिश्चित हल मनुष्य मात्र को ही खोजना ही होगा ।
    पानी और जिन्दगी के लिये - आसमान से बरसता, नदियों से बहता हाथों से फिसलता पानी, यानी जिन्दगी से दूर होता पानी ।
आज भारत में ही -
    बीस करोड़ लोग दूर हैं, साफ पानी से प्रत्येक वर्ष ५ साल से कम उम्र के १५ लाख बच्चें की मौत होती है, इन रोगों से जो मरते हैं उसका कारण है खराब पानी ।
    भूजल स्तर के नीचे जाने से, पानी में बढा है फ्लोराइड और आर्सेनिक का प्रदूषण ।
    औद्योगिकरण की बढ़ती रफ्तार ने गुणवत्ता खराब की है पानी की ।
    पानी का व्यक्तिगत औसत उपयोग ६८० क्यूबिक मीटर हुआ है जो २०५० तक दुगुना होगा, ये हुआ - क्योंकि हम सवा अरब हैं, साठ वर्ष में दुगुने हो गए हैं हम और अगले तकरीबन तीस सालों में हम २ अरब होंगे, फिर कहां होगी पानी की रवानी ?
    कैसे होगी बिना पानी के जिन्दगी की कहानी ?
    स्वच्छ पीने के पानी के स्त्रोत -
    हैण्ड पंप से क्योंकि हैण्डपंप धरती के नीचे बंद साफ पानी को खींचकर सीधे बाहर लाता है, इसलिए उसमें गंदगी से बीमारी फैलाने वाले कीटाणु नहीं मिल पाते हैं ।
    पक्का ढका हुआ कुंआ जिसमें आसपास चबूतरा बना हो और गंदगी न जमा होती हो ।
    पाइप द्वारा आने वाला नल का पानी ।
    पानी शुद्ध रखने के कुछ सामान्य उपाय -
    पीने के पानी में दवा (क्लोरीन) डालें, कुंआें में भी नियमित रूप से दवा डलवायें ।
    पीने के पानीे के लगभग २ से ५ मिनट तक उबालना चाहिए और फिर छानकर, ढक्कनदार बर्तन मेंरखना चाहिए ।
    ब्राह्य स्त्रोत से प्राप्त् पानी को दोहरे कपड़े से छानकर ही पीने के लिए इस्तेमाल में लेना चाहिए ।
    पानी के घड़े में सहजन के एक मुट्ठी बीज डालना चाहिए, जिससे पानी स्वच्छ हो जाता है ।
    जीवाणु युक्त पानी को साफ बोतल में भरकर कड़ी धूप में रखने से, बीमारियों के जीवाणु नष्ट हो जाते हैं ।
      सफाई का विशेष ध्यान -
    खाना बनाने, खिलाने, खाने से पहले और शौच जाने, झूठे बर्तन धुलवाने या उठाने के बाद हमें हाथ जरूर साबुन या राख से धो लेने चाहिए ।
    शौच जाने के लिए अपने घर में ही शौचालय अवश्य हो और यदि नहीं है तो कम से कम बस्ती में एक दो सार्वजनिक शौचालय अवश्य हो जिनका नियमित स्वच्छता व्यवस्थापन हो ।
    मक्खियों से अपना खाना और पीने का पानी बचाये रखने के लिए अपना खाना और पीने का पानी हमेशा ढक कर रखना  चाहिए । जल ही जीवन है इसलिए  जीवन को सुदीर्घ बनाने के लिए जल पर ध्यान दिया जाना जरूरी  है । ऐसे स्वच्छता उपाय अपना कर ही हम स्वस्थ रह सकते है ।

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