बुधवार, 18 नवंबर 2015

जनजीवन
क्या गंगा कभी स्वच्छ होगी ?
अनुज सिन्हा
    टेम्स इंग्लैंड की सबसे लंबी नदी है । वर्ष १८७८ में लंदन के बार्किंग के पास नदी में एक भयंकर हादसा हो गया था । इसमें करीब ६०० लोगों की डूबने से मौत हो गई थी । अधिकांश लोगों की मौत नदी में फैले भयानक प्रदूषण के कारण हुई थी । उस समय नदी का पानी सड़े हुए अंडे की तरह बदबू मारता था और आक्सीजन का स्तर इतना कम था कि कोई भी जलीय जीव जीवित नहीं रह पाता था ।
    इस नदी प्रणाली में ३८ सहायक नदियां और करीब ८० टापू आते हैं जो इंगलैंड के लिए बेहद अहम हैं । इसके जलग्रहण क्षेत्र (केचमेंट) में दक्षिण पूर्वी और पश्चिमी इंग्लैंड का कुछ क्षेत्र शामिल है । सदियों से इस नदी का इस्तेमाल परिवहन, मछली पालन, खेल गतिविधियों और लंदन की पेयजल आपूर्ति के लिए होता आया है । औद्योगीकरण और शहरीकरण के कारण इसके पानी की गुणवत्ता लगातार गिरती गई और अतंत: वर्ष १९५७ में वैज्ञानिकों ने इसे जैविक दृष्टि से मृतनदी घोषित कर दिया । 
     टेम्स में अपशिष्ट पदार्थोंा और सीवेज को डंप करने से रोकने के लिए कानून बनाया गया । इसी दौरान आज से करीब २५ साल पहले सप्ताहांत मेंहमने समुद्र के दक्षिण छोर के उस क्षेत्र का दौरा किया जहां टेम्स नदी सागर से मिलती थी । लेकिन इस यात्रा के अगले ही सप्तह हमारे शरीर मेंखुजली होने लगी थी और हमें इसका अफसोस होता रहा कि हम वहां क्यों गए। यानी नदी के पुनरूद्धार के नतीजे अब भी साफ नजर नहींआ रहे थे ।
    नदी को नियंत्रित करने के लिए वहां कांक्रीट के तटबंध और खंबे बनाए गए थे । पूरे नदी के मार्ग पर जमीनी परिवहन को आसान करने के लिए निर्मित पुल और पुलियाआेंकी भरमार थी । ड्रैगन फ्लाई, मेंढकों, मछलियों, पक्षियों, घोंघों इत्यादि के आवास अब भी खतरे में थे ।
    पिछले दो दशकों के दौरान जलीय इको सिस्टम को बढ़ावा देने के लिए वहां मिट्टी के तटबंध बनाए गए हैं । ऑक्सफोर्ड के निकट पक्षी प्रेक्षकोंने कई प्रकार के पक्षियोंके देखे जाने की जानकारी दी है । उत्साही प्रेक्षकों को डेस, बारबेल, पिक और अनय कई प्रजातियों की मछलियां देखने को मिली हैं । उत्तरी समुद्र में ज्वार-भाटे के दौरान सील और अन्य स्तनपायी जंतु देखने को मिल रहे हैं ।
    हमने हाल ही में ऑक्सफोर्ड के पास नदी के तट पर एक शानदार दिन बिताया । यह क्षेत्र वनस्पति उद्यान के काफी करीब था । पिछले पांच दशकोंके दौरान टेम्स नदी के पुनरूद्धार के प्रयासों के कारण आज इस नदी मेंरोविंग, क्याकिंग, सेलिंग और स्विमिंग जैसी गतिविधियां फिर से शुरू हो चुकी हैं ।
    नदी को साफ करने के लिए कार्यकर्ता बहुत ही उत्साह के साथ अपना नाम दर्ज करवाते हैं । गैती और फावड़ों से लैस ये कार्यकर्ता नदी के तटों को साफ करते हैं और कचरा एक जगह एकत्र कर देते हैं ताकि स्थानीय नगरीय निकाय के लोग उन्हें आसानी से ले जा सकें । कार्यकर्ताआें को प्रोत्साहित करने के लिए सफाई करते हुए इनकी तस्वीरें सोशल नेटवर्क पर डाली जाती हैं और कई व्यापारिक प्रतिष्ठानों द्वारा लकी ड्रॉ भी निकाले जाते हैं ।
    टेम्स को वर्ष २०१० में प्रतिष्ठित थीस रिवर प्राइज हासिल हुआ । इस वर्ष के अन्य नामांकनों में येलोरिवर (चीन), हटा झील (ऑस्ट्रेलिया) और स्मिरनिख नदी (जापान) शामिल थे । क्या कभी गंगा नदी भी यह पुरस्कार जीत पाएगी ? गंगा भारत की सबसे बड़ी और सबसे पवित्र नदी है । यह देश के ११ राज्यों की ४० फीसदी आबादी की पानी की जरूरत को पूरा करती है । करीब ५० करोड़ लोग प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से इस नदी पर निर्भर हैं । लेकिन इस पर प्राकृतिक और मानव निर्मित दोानों ही खतरे मंडरा रह हैं ।
    एक लाख से अधिक आबादी वाले २९ शहर और ५० हजार से एक लाख की आबादी वाले २३ शहर इस विशालकाय नदी के किनारों पर बसे हैं । इन शहरों और अन्य अनेक गांवों व बस्तियों के लोग इसी नदी में नहाते-धोते हैं और मल-मूत्र विसर्जित करते हैं । इस वजह से यह नदी एक विशालकाय नाले में तबदील हो गई हैं । चमड़ा बनाने के कारखाने, रसायन संयंत्र, कपड़ा मिलें, शराब की फैक्ट्रियां, कसाईखाने अपने अपशिष्ट पदार्थोंा को बगैर शोधित किए ही गंगा में डाल देते हैं । इन जगहों से गंगा में कितने अपशिष्ट पदार्थ डालते होंगे, इसका केवल अंदाजा ही लगाया जा सकता है । लेकिन इससे गंगा नदी इस कदर प्रदूषित हो रही है कि उसे वापस अपने मूल स्वरूप में लौटाना काफी मुश्किल होगा ।
    १८५४ में बना हरिद्वार बांध और इसके एक सदी बाद निर्मित फरक्का बराज के मिले-जुले फायदे नुकसान रहे हैं। इस नदी प्रणाली में करीब ३०० छोटे-बड़े बाधों के निर्माण की योजना है । इस योजना को लेकर विशेषज्ञों की अलग-अलग राय है । गंगोत्री ग्लेशियर हर साल बड़ी तेजी से कम होता जा रहा है और जलवायु परिवर्तन को इसकी वजह बताया जाता है ।
    गंगा नदी को स्वच्छ बनाने के मकसद से वर्ष १९८६ मेंराजीव गांधी सरकार ने गंगा कार्ययोजना की शुरूआत की थी । लेकिन यह नदी के प्रदूषण को कम करने मेंसफल नहीं रही और अंतत: वर्ष २००० में इसे आधिकारिक रूप से बंद कर दिया गया । हमें उन कारणों की पड़ताल करनी चाहिए कि आखिर इस योजना पर इतनी भारी-भरकम राशि खर्च करने के बावजूद यह सफल क्यों नहीं हो पाई ।
    पिछले कुछ सालों के दौरान गंगा को स्वच्छ बनाने के मकसद से अनेक सामाजिक और धार्मिक आंदोलन भी हुए । इनमेंसे कुछ समूहोंका दावा है कि उनके प्रभाव के कारण सरकारोंऔर प्रशासन को कई निर्णय लेने पड़ जिनकी वजह से नदी के पानी की गुणवत्ता मेंसुधार    हुआ ।
    मोदी सरकार ने गंगा नदी को स्वच्छ बनाने को लेकर प्रतिबद्धता दशाई है । सरकार की ओर से जल संसाधन मंत्रालय को इस नदी प्रणाली में सुधार के लिए स्पष्ट निर्देश मिले हुए हैं । गंगा नदी को स्वच्छ बनाने के क्या तरीक और रास्ते हो सकते हैं, यह बहुत ही स्पष्ट है । इनमें ऊपरी मैदानी स्थलों पर निर्माण कार्य को नियंत्रित करने, सभी उद्योगों पर नियम लागू करने, सीवेज के पानी को परिशोधित करने और लोगों में जागरूकता पैदा करना शामिल है । इस मिशन की प्रगति की लगातार निगरानी और इसमें समय-समय पर बदलाव जरूरी है ।
    यमुना नदी की स्थिति तो और भी बदतर है । वह गंगा से भी ज्यादा प्रदूषित है । हाल ही में हुए एक अध्ययन के अनुसार तमिलनाडु की नदी वसिस्ता सबसे ज्यादा प्रदूषित पाई गई है । केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के अनुसार देश मेंप्रदूषित नदियों की कुल लंबाई १२ हजार कि.मी. से ज्यादा है जो गंगा नदी की कुल लंबाई की करीब पांच गुना है । इसलिए जरूरत तो इन सभी प्रदूषित नदियोंके किनारोंपर स्थित ६५० शहरों व कस्बों पर ध्यान देने की है, न कि केवलगंगा किनारे स्थित ५० शहरों पर । अगर सरकार वाकई गंभीर है तो इस सम्बंध में युद्ध स्तर पर प्रयास करने होंगे ।

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