प्रदेश चर्चा
राजस्थान : धोखे का बीमा कहां होगा
ज्योत्सना सिंह
निजी फसल बीमा कंंपनियों एवं निजी मौसम भविष्यवाणी कंपनियों की मिलीभगत से भारत के किसानों को व्यवस्थित तौर पर फसल बीमा में के अन्तर्गत दावों की धनराशि नहीं मिल पा रही है ।
प्रतिवर्ष हजारों किसान मौसम की मार के चलते बर्बाद हुई फसल को देखकर आत्महत्या कर रहे हैं । परंतु निजी बीमा और मौसम कंपनियों पर कोई असर नहीं हो रहा है । आवश्यकता है इन पर नियंत्रण की । यदि बीमा कपनियां धोखा देने पर उतारु हो जाएंगी तो उसका बीमा हम कहां कराएंगे ?
राजस्थान : धोखे का बीमा कहां होगा
ज्योत्सना सिंह
निजी फसल बीमा कंंपनियों एवं निजी मौसम भविष्यवाणी कंपनियों की मिलीभगत से भारत के किसानों को व्यवस्थित तौर पर फसल बीमा में के अन्तर्गत दावों की धनराशि नहीं मिल पा रही है ।
प्रतिवर्ष हजारों किसान मौसम की मार के चलते बर्बाद हुई फसल को देखकर आत्महत्या कर रहे हैं । परंतु निजी बीमा और मौसम कंपनियों पर कोई असर नहीं हो रहा है । आवश्यकता है इन पर नियंत्रण की । यदि बीमा कपनियां धोखा देने पर उतारु हो जाएंगी तो उसका बीमा हम कहां कराएंगे ?
भारतीय मौसम विभाग ने इस वर्ष मानसून में कमी की घोषणा की थी । वहीं दूसरी ओर नोएडा स्थित निजी मौसम भविष्यवाणी एजंेसी ने सामान्य वर्षा का अनुमान लगाया था । अंतत: मौसम के अंत में भारतीय मौसम विभाग की भविष्यवाणी ही सटीक सिद्ध हुई । यह किसी एक गलत अनुमान का मामला नहीं बल्कि एक बड़ी समस्या का लक्षण है । वर्तमान में निजी मौसम कंंपनियों की संस्था बढ़कर १० तक पहुंच गई है । लेकिन अभी तक न तो उनकी निगरानी और न ही जवाबदेही तय करने के लिए कोई नियामक संख्था स्थापित हो पाई है । यह विशेषत: इसलिए जोखिमभरा है क्योंकिइन निजी भविष्यवेत्ताओं का जुड़ाव बीमा कंपनियों से है जो कि मौसम के आंकड़ों का उपयोग फसल की असफलता की स्थिति में किसानों के दावों के निपटारे के लिए करती हैं। वर्तमान ढांचा छल-कपट, भ्रष्टाचार और धोखाधड़ी को बढ़ावा देता है । ऐसा राजस्थान के चुरु जिले में सामने आया भी है ।
झूठे आंकड़े : सन् २०१२ में चुरु में कम फसल हुई । इस बात से संतुष्ट होकर कि यह खराब मौसम के कारण हुआ है किसान, सरकार द्वारा फसल बीमा के लिए अनुशंसित निजी कंपनी आई सी आई सी आई, लोंबार्ड के समक्ष अपने दावे लेकर पहुंचे । कंपनी ने यह कहते हुए उनके दावे रद्द कर दिए कि एकनिजी कंपनी, नेशनल कोलेट्रल मेनेजमेंट सर्विस लि.(एन सी एम एल) द्वारा उपलब्ध कराए गए मौसम के आंकड़ों में बताया गया था कि फसल के दौरान तापमान और नमी का स्तर सामान्य था । जबकि किसान स्वयं भी एन सी एम एस एल द्वारा जिले में स्थापित स्वचलित मौसम केन्द्रों (ए डब्लू एस) से आकड़ों की प्रति इकट्ठा करते रहे थे । अखिल भारतीय किसान सभा, चुरु के अध्यक्ष निर्मल प्रजापति का कहना है,`` हमें महसूस हुआ कि आइसीआईसीआई के पास उपलब्ध जानकारी झूठी है । इस पर राज्य सरकार ने हस्तक्षेप कर पुणे स्थित इंडियन इंस्टिट्यूट आफ मैट्रिओलाजी से इन आकड़ों पर विचार मांगे । उनके संस्थान का कहना था कि संस्थान के मौसम संबंधी आंकड़े उसी अवधि में किसानों द्वारा एकत्रित आंकड़ों से सामंजस्य रखते है । परिणामस्वरूप आईसीआई सीआई लोंबार्ड को किसानों को २५० करोड़ रु. का बीमा देना पड़ा ।
किसानों को उनका मुआवजा तो मिल गया लेकिन आंकड़ों में किस प्रकार हेराफेरी की गई और इसके लिए कौन जिम्मेदार है, यह जानने के लिए किसी भी प्रकार की जांच नहीं की गई । श्री प्रजापत का कहना है कि निपटारे के दौरान आईसीआई सीआई ने दावा किया कि वे मौसम बताने वाली कंपनी को बदल देंगे । अगले साल मौसम के आंकड़े उपलब्ध करवाने के लिए अब वे स्कायमेट को ले आए हैं । लेकिन इससे किसानों की कोई मदद नहीं होगी । श्री प्रजापति ७का कहना है,`` एमसीएमएसएल मौसम केन्द्र २४ घंटे आंकड़ों का रिकार्ड और संभाल कर रखते थे । हमने वह आंकड़े इकट्ठा किए और उनका आईसीआईसीआई के दावांंें के साथ सत्यापन किया था । लेकिन स्कायमेट तो केवल वर्तमान आंकड़े ही दिखाएगी और जानकारियां बचा कर नहीं रखेगी । अतएव हमारे पास सत्यापन के लिए मौसमी आंकड़े नहीं हांेगे ।
पटरी से उतरी बीमा प्रणाली : केन्द्र सरकार का राष्ट्रीय फसल बीमा कार्यक्रम (रा.फ.बी.का) के अर्न्तगत मौसम आधारित फसल बीमा योजना (मो आ फ बी यो) विपरीत मौसमी परिस्थितियों की वजह से हुए फसल नुकसान हेतु किसानों को बीमा कवर एवं वित्तीय सहायता प्रदान करता है। इन परिस्थितियों में कम,गैरमौसमी या अतिवृष्टि, गर्मी, पाला गिरना, ओले गिरना और बादल फटना शामिल हैं । मौसम, हवा और अन्य मापदंडों से संबंधित आंकड़ों के लिए रा फ बी का ने निजी बीमा कंपनियोंको मौसम संबंधी मापदंड रिकार्ड करने हेतु ए डब्लू एस स्थापित करने के लिए सूचीबद्ध किया है। इन्ही सूचीबद्ध कंपनियों में से ही राज्य या जिला स्तरीय अधिकारी तृतीय पक्ष के रूप में फसल बीमा हेतु मौसम आंकड़े संग्रहित करने हेतु अपने मौसम केन्द्र स्थापित करने वाली कंपनियों का चयन करते हैं । वैसे उपलब्ध आंकड़ों को सत्यापित करने की कोई प्रणाली मौजूद नहीं है।
राजस्थान के सरकारी अधिकारियों का कहना है कि वह इस बात की नियमित जांच करते हैं कि स्वचलित मौसम केन्द्र ठीक से कार्य कर रहे हैं या नहीं । राजस्थान सरकार के फसल बीमा के सहसचिव बी एस चतुर्वेदी का कहना है, ``यदि कोई एक मौसम केन्द्र काम नहीं कर रहा होता है तो हम उस क्षेत्र से संबंधी मापदंडों को सुनिश्चित करने हेतु पास के किसी केन्द्र से आंकड़े इकट्ठ कर लेते हैं ।``
किसान निजी कंपनियों के बजाय सरकारी भविष्यवाणियों को प्राथमिकता देते हैं । अखिल भारतीय किसान सभा, राजस्थान के संजय का कहना है, ``भारतीय मौसम विभाग द्वारा उपलब्ध आंकड़ों में गलती हो सकती है लेकिन उनके फसल बीमा कंपनियों से गठजोड़ की उम्मीद कम है । इसके अलावा यदि मौसम विभाग के आंकड़े गलत होगे तो किसान कृषि विभाग से सवाल जवाब कर सकते हैं, परंतु निजी कंपनियों तक किसान की पहुंच बहुत कठिन है ।`` राजस्थान कृषि विभाग के कुलदीप रांका का कहना है रा.फ.बी.का के अन्तर्गत ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जिसके तहत भारतीय मौसम विभाग आंकड़े उपलब्ध करा सके। वहीं केन्द्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के पूर्व सचिव शैलेंद्र नायक का कहना है,``मांगे जाने पर भारतीय मौसम विभाग विशिष्ट श्रेणी के आंकड़े भी उपलब्ध करा सकता है । हम मौसम संबंधित तमाम आंकड़े पहले ही कृषि विभाग को दे चुके हैं ।``
विशेषज्ञों का कहना है कि गैर सरकारी इकाइयों की भूमिका में स्पष्टता के अभाव का कारण किसी नियामक प्राधिकारी की अनुपस्थिति है। अमेरिका जैसे देशों में जहां पर निजी मौसम कंपनियों का व्यापार खूब फल फूल रहा है वहां की संघीय विमानन एजेंसी (फेडरल एविएशन एजेंसी) उनका नियामन करती है और परिचालन हेतु शर्तों एव नियमों का निर्धारण भी करती है। अमेरिका में सन् १९९५ से २००७ के मध्य अमेरिका में मौसम कंपनियों की संख्या दुगनी हो गई है । फसल बीमा और विद्युत के अलावा अब भवन निर्माण कार्य जैसे अनेक क्षेत्रों में मौसमी आंकड़ों की आवश्यकता पड़ने लगी है। एक राष्ट्रीय एजेंसी ऐसी विशिष्ट सेवाएं उपलब्ध नहीं करवाती अतएव निजी कंपनियां इस उभरते बाजार पर कब्जा तो करेंगी ही ।
इस बीच भारत में भी निजी मौसम कंपनियों का बाजार लगातार बढ़ रहा है। स्कायमेट भारत की सर्वाधिक लोकप्रिय निजी मौसम कंपनी है । सन् २००३ में प्रारंभ हुई इस कंपनी ने पूरे भारत में २७०० मौसम केन्द्र स्थापित किए हैं जो कि निजी कंपनियों में सर्वाधिक हैं । महाराष्ट्र और राजस्थान इसके दो सबसे बड़े बाजार हैं। चुरु में स्थापित ५० स्वचलित मौसम केन्द्रों में ३० इसी कंपनी के हैं ।
कंपनी के उप निदेशक ए.एम.शर्मा का कहना है,``हम फसल बीमा कंपनियों को पहले से ही बता देते हैं कि विशिष्ट फसल के मौसम के दौरान भौगौलिक तौर पर कौन सा क्षेत्र जोखिम भरा रहा सकता है।`` मौसम के उतार चढ़ाव के चलते निजी भविष्यवाणी कंपनियों का बाजार बढ़ेगा और इसी के साथ नियामक प्राधिकारी की आवश्यकता भी बढ़ती जाएगी ।
झूठे आंकड़े : सन् २०१२ में चुरु में कम फसल हुई । इस बात से संतुष्ट होकर कि यह खराब मौसम के कारण हुआ है किसान, सरकार द्वारा फसल बीमा के लिए अनुशंसित निजी कंपनी आई सी आई सी आई, लोंबार्ड के समक्ष अपने दावे लेकर पहुंचे । कंपनी ने यह कहते हुए उनके दावे रद्द कर दिए कि एकनिजी कंपनी, नेशनल कोलेट्रल मेनेजमेंट सर्विस लि.(एन सी एम एल) द्वारा उपलब्ध कराए गए मौसम के आंकड़ों में बताया गया था कि फसल के दौरान तापमान और नमी का स्तर सामान्य था । जबकि किसान स्वयं भी एन सी एम एस एल द्वारा जिले में स्थापित स्वचलित मौसम केन्द्रों (ए डब्लू एस) से आकड़ों की प्रति इकट्ठा करते रहे थे । अखिल भारतीय किसान सभा, चुरु के अध्यक्ष निर्मल प्रजापति का कहना है,`` हमें महसूस हुआ कि आइसीआईसीआई के पास उपलब्ध जानकारी झूठी है । इस पर राज्य सरकार ने हस्तक्षेप कर पुणे स्थित इंडियन इंस्टिट्यूट आफ मैट्रिओलाजी से इन आकड़ों पर विचार मांगे । उनके संस्थान का कहना था कि संस्थान के मौसम संबंधी आंकड़े उसी अवधि में किसानों द्वारा एकत्रित आंकड़ों से सामंजस्य रखते है । परिणामस्वरूप आईसीआई सीआई लोंबार्ड को किसानों को २५० करोड़ रु. का बीमा देना पड़ा ।
किसानों को उनका मुआवजा तो मिल गया लेकिन आंकड़ों में किस प्रकार हेराफेरी की गई और इसके लिए कौन जिम्मेदार है, यह जानने के लिए किसी भी प्रकार की जांच नहीं की गई । श्री प्रजापत का कहना है कि निपटारे के दौरान आईसीआई सीआई ने दावा किया कि वे मौसम बताने वाली कंपनी को बदल देंगे । अगले साल मौसम के आंकड़े उपलब्ध करवाने के लिए अब वे स्कायमेट को ले आए हैं । लेकिन इससे किसानों की कोई मदद नहीं होगी । श्री प्रजापति ७का कहना है,`` एमसीएमएसएल मौसम केन्द्र २४ घंटे आंकड़ों का रिकार्ड और संभाल कर रखते थे । हमने वह आंकड़े इकट्ठा किए और उनका आईसीआईसीआई के दावांंें के साथ सत्यापन किया था । लेकिन स्कायमेट तो केवल वर्तमान आंकड़े ही दिखाएगी और जानकारियां बचा कर नहीं रखेगी । अतएव हमारे पास सत्यापन के लिए मौसमी आंकड़े नहीं हांेगे ।
पटरी से उतरी बीमा प्रणाली : केन्द्र सरकार का राष्ट्रीय फसल बीमा कार्यक्रम (रा.फ.बी.का) के अर्न्तगत मौसम आधारित फसल बीमा योजना (मो आ फ बी यो) विपरीत मौसमी परिस्थितियों की वजह से हुए फसल नुकसान हेतु किसानों को बीमा कवर एवं वित्तीय सहायता प्रदान करता है। इन परिस्थितियों में कम,गैरमौसमी या अतिवृष्टि, गर्मी, पाला गिरना, ओले गिरना और बादल फटना शामिल हैं । मौसम, हवा और अन्य मापदंडों से संबंधित आंकड़ों के लिए रा फ बी का ने निजी बीमा कंपनियोंको मौसम संबंधी मापदंड रिकार्ड करने हेतु ए डब्लू एस स्थापित करने के लिए सूचीबद्ध किया है। इन्ही सूचीबद्ध कंपनियों में से ही राज्य या जिला स्तरीय अधिकारी तृतीय पक्ष के रूप में फसल बीमा हेतु मौसम आंकड़े संग्रहित करने हेतु अपने मौसम केन्द्र स्थापित करने वाली कंपनियों का चयन करते हैं । वैसे उपलब्ध आंकड़ों को सत्यापित करने की कोई प्रणाली मौजूद नहीं है।
राजस्थान के सरकारी अधिकारियों का कहना है कि वह इस बात की नियमित जांच करते हैं कि स्वचलित मौसम केन्द्र ठीक से कार्य कर रहे हैं या नहीं । राजस्थान सरकार के फसल बीमा के सहसचिव बी एस चतुर्वेदी का कहना है, ``यदि कोई एक मौसम केन्द्र काम नहीं कर रहा होता है तो हम उस क्षेत्र से संबंधी मापदंडों को सुनिश्चित करने हेतु पास के किसी केन्द्र से आंकड़े इकट्ठ कर लेते हैं ।``
किसान निजी कंपनियों के बजाय सरकारी भविष्यवाणियों को प्राथमिकता देते हैं । अखिल भारतीय किसान सभा, राजस्थान के संजय का कहना है, ``भारतीय मौसम विभाग द्वारा उपलब्ध आंकड़ों में गलती हो सकती है लेकिन उनके फसल बीमा कंपनियों से गठजोड़ की उम्मीद कम है । इसके अलावा यदि मौसम विभाग के आंकड़े गलत होगे तो किसान कृषि विभाग से सवाल जवाब कर सकते हैं, परंतु निजी कंपनियों तक किसान की पहुंच बहुत कठिन है ।`` राजस्थान कृषि विभाग के कुलदीप रांका का कहना है रा.फ.बी.का के अन्तर्गत ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जिसके तहत भारतीय मौसम विभाग आंकड़े उपलब्ध करा सके। वहीं केन्द्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के पूर्व सचिव शैलेंद्र नायक का कहना है,``मांगे जाने पर भारतीय मौसम विभाग विशिष्ट श्रेणी के आंकड़े भी उपलब्ध करा सकता है । हम मौसम संबंधित तमाम आंकड़े पहले ही कृषि विभाग को दे चुके हैं ।``
विशेषज्ञों का कहना है कि गैर सरकारी इकाइयों की भूमिका में स्पष्टता के अभाव का कारण किसी नियामक प्राधिकारी की अनुपस्थिति है। अमेरिका जैसे देशों में जहां पर निजी मौसम कंपनियों का व्यापार खूब फल फूल रहा है वहां की संघीय विमानन एजेंसी (फेडरल एविएशन एजेंसी) उनका नियामन करती है और परिचालन हेतु शर्तों एव नियमों का निर्धारण भी करती है। अमेरिका में सन् १९९५ से २००७ के मध्य अमेरिका में मौसम कंपनियों की संख्या दुगनी हो गई है । फसल बीमा और विद्युत के अलावा अब भवन निर्माण कार्य जैसे अनेक क्षेत्रों में मौसमी आंकड़ों की आवश्यकता पड़ने लगी है। एक राष्ट्रीय एजेंसी ऐसी विशिष्ट सेवाएं उपलब्ध नहीं करवाती अतएव निजी कंपनियां इस उभरते बाजार पर कब्जा तो करेंगी ही ।
इस बीच भारत में भी निजी मौसम कंपनियों का बाजार लगातार बढ़ रहा है। स्कायमेट भारत की सर्वाधिक लोकप्रिय निजी मौसम कंपनी है । सन् २००३ में प्रारंभ हुई इस कंपनी ने पूरे भारत में २७०० मौसम केन्द्र स्थापित किए हैं जो कि निजी कंपनियों में सर्वाधिक हैं । महाराष्ट्र और राजस्थान इसके दो सबसे बड़े बाजार हैं। चुरु में स्थापित ५० स्वचलित मौसम केन्द्रों में ३० इसी कंपनी के हैं ।
कंपनी के उप निदेशक ए.एम.शर्मा का कहना है,``हम फसल बीमा कंपनियों को पहले से ही बता देते हैं कि विशिष्ट फसल के मौसम के दौरान भौगौलिक तौर पर कौन सा क्षेत्र जोखिम भरा रहा सकता है।`` मौसम के उतार चढ़ाव के चलते निजी भविष्यवाणी कंपनियों का बाजार बढ़ेगा और इसी के साथ नियामक प्राधिकारी की आवश्यकता भी बढ़ती जाएगी ।
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