शुक्रवार, 18 दिसंबर 2015

प्रसंगवश   
अगले वर्ष उज्जैन में सिंहस्थ महापर्व
अनिल गुप्त
    मेष राशि गते सूर्ये सिंह राशौ बृहस्पतयो ।
    उज्जनिन्यां भवेत् कुंभ सदा मुक्तिप्रदायक: ।
    कुंभ पर्व के लिए गुरू की प्रधानता है । गुरू सिंह मेंजब प्रवेश करता है, तब उज्जैन में कुंभ होता है । इस पर्व में स्नान, दान करने से व्यक्ति पाप मुक्त हो जाता है । सिंहस्थ महापर्व के बारे में कई लोग यह तर्क करते है कि आखिर इस पर्व का शुभारंभ किसने किया । जिज्ञासापूर्ण इस प्रश्न का समाधान साधारण तरीके से नहीं किया जा सकता । धर्मग्रंथ हमारे मूल आधार है, इनमें वर्णित है कि कुंभ मेले को प्रवर्तित करने वाले भगवान शंकराचार्य हैं । उन्होंने कुंभ पर्व का प्रारंभ धार्मिक संस्कृति को सुदृढ़ करने के लिए किया था । उन्हीं के आदेशानुसार आज भी कुंभ पर्व के समय चारोंसुप्रसिद्ध तीर्थोंा के सभी संप्रदायों के साधु-महात्मा लोक कल्याण के लिए एकत्रित होते हैं व योग साधना करते हैं ।
    इसी प्रकार अर्द्धकुंभ के बारे में भी जब गूढ़ अर्थ की बात आती हैं तो कई लोग अनभिज्ञता जाहिर करते हैं । इस बारे में विद्वानों का मत है कि मुगलकाल में हिंदू धर्म की रक्षा के लिए हरिद्वार एवं प्रयाग के साधु-महात्माआें एवं विद्वान मनीषियों ने धर्म की रक्षा के उपायों पर गहन मंथन किया, तभी से हरिद्वार एवं प्रयाग में अर्द्धकुंभ का मेला लगने लगा । शास्त्रों में अर्द्धकुंभ का उल्लेख कहीं-कहीं मिलता हैं ।
    पूर्ण: कुम्भोधि काल अहितस्तं वे
        पश्यामो बहुधा नु संत: ।
    स इमा विश्वांभुवनानि प्रत्यड्:कालं
        तमाहु: परमे व्योमन ।।
    अर्द्धकुंभ पर्व का उद्देश्य पूर्ण कुंभ की तरह ही धर्म की महत्ता स्थापित करना है । इसी में समाज का कल्याण निहित हैं ।
    सिंहस्थ महापर्व में आने वाले विभिन्न अखाड़ों, खालसाआें तथा स्वतंत्र  रूप से रहने वाले साधु-संतों के विभिन्न संप्रदायों (समुदायों) के ध्वज, तिलक जैसे विभेदक चिन्हों के अतिरिक्त माला (कंठी), खड़ाऊ, कमंडल, तिलक, लंगोट, वेशभूषा, दीक्षा पद्धति, व्रतोत्सव एवं दिनचर्या विषयक जानकारी समाजजनों के लिए रोचक एवं ज्ञानवर्धक होती है ।

कोई टिप्पणी नहीं: