शुक्रवार, 18 दिसंबर 2015

ज्ञान-विज्ञान
स्मृतिलोप जन्म के महीने से जुड़ा है
    आपके जन्म के महीने का असर इस बात पर पड़ता है कि आपको डिमेन्शिया (स्मृतिलोप) का जोखिम कितना है । हालांकि यह प्रभाव मोटापे जैसे कारकों के सामने बहुत छोटा है, मगर इससे पता चला सकता है कि कैसे आपकी जिन्दगी के शुरूआती कुछ महीने आपके संज्ञानात्मक स्वास्थ्य को दशकों बाद प्रभावित कर सकते है । 

     युनिवर्सिटी ऑफ रॉस्टाक (जर्मनी) के गैब्रिएल डोबलहैमर और थॉमस फ्रिट्ज ने जर्मनी की सबसे बड़ी बीमा कंपनी के डैटा का अध्ययन किया । इसमें ६५ से ज्यादा की उम्र के १,५०,००० लोग शामिल थे । उम्र और पैदाइश के महीने के अनुसार देखने पर पाया कि जो दिसम्बर से फरवरी के बीच में पैदा हुए थे उनमें डिमेन्शिया होने का जोखिम जून से अगस्त के बीच पैदा हुए लोगों की अपेक्षा ७ प्रतिशत कम था ।
    यह कोई ज्योतिष का मामला नहीं है । यह जन्म के महीने के पर्यावरणीय कारकों जैसे मौसम और पोषण से जुड़ा है । यह कहना है जेरार्ड वैन डैन बर्ग का जो युनिवर्सिटी ऑफ ब्रिस्टल, यूके के एक अर्थशास्त्री है । उन्होनें आर्थिक हालात के स्वास्थ्य पर असर का अध्ययन किया है ।
       उदाहरण के तौर पर, गर्मीमें जन्मे नवजात तब बहुत छोटे होते हैं जब उनका सामना अपनी पहली सर्दी के श्वसन संबंधी संक्रमण से होता है । अतीत में बंसत और गर्मी में जन्मे बच्चें का जन्म होने वाले ताजे फल वगैरह मिलने बंद हो जाते होंगे । लकड़ी और कोयले से होने वाले प्रदूषण की भी भूमिका रही होगी ।
    पूर्व के अध्ययनों से प्राप्त् साक्ष्यों से पता चलता है कि इस तरह के कारक ताउम्र मेटाबॉलिज्म और प्रतिरक्षा तंत्र को प्रभावित कर सकते हैं और मधुमेह, मोटापा और उच्च् रक्तचाप को जन्म दे सकते हैं । डोबलहैमर और फ्रिट्ज के परिणाम यह दर्शाते हैं कि यह बात डिमेन्शिया पर भी लागू होती है ।
    शुरूआती-जिन्दगी के दूसरे कारक जैसे आर्थिक मंदी और अकाल भी बाद में संज्ञान संबंधी स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं, लेकिन ये कारक तो लोगों की जीवन-शैली और परिस्थितियों पर लंबे-समय तक प्रभाव डालते हैं । डोबलहैमर का कहना है कि जन्म के महीने की कड़ी बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे पता चलता है कि जीवन का शुरूआती समय महत्वपूर्ण होता है ।
    एक अनुमान के मुताबिक पूरे विश्व के ३७ करोड़ लोग डिमेन्शिया से पीड़ित हैं और हर २० साल के बाद इसके दुगना हो जाने की उम्मीद है । डोबलहैमर का कहना है कि हालांकि आप अपना जन्म का महीना तो बदल नहींसकते लेकिन यह बात मायने रखती है कि आप पूरे जीवन के दौरान क्या करते हैं ।
    दूसरे शोधकर्ताआें का कहना है कि यह अध्ययन सीधे तौर पर तो कुछ नहीं कहता है कि जन्म का महीना और डिमेन्शिया के बीच सीधे-सीधे कोई संबंध है लेकिन कुछ संभावना तो जरूर है ।
चीन ने जनसंख्या नीति बदली
    हाल ही मेंचीन ने अपनी दशकों पुरानी जनसंख्या नीति में आमूल परिवर्तन किया है । पिछले कई वर्षो से चीन एक-संतान नीति का सख्ती से पालन करता रहा है और एक से ज्यादा संतान होने पर दंड की व्यवस्था भी थी । यह नीति क्लब ऑफ रोम की रिपोर्ट लिमिट्स टू ग्रोथ के इस निष्कर्ष पर टिकी थी कि जनसंख्या वृद्धि के कारण विकास पर प्रतिकूल असर पड़ता है । 
       इस व्यवस्था में सबसे पहले २०१२ में बदलाव किया गया था जब कुछ दम्पतियों को दूसरी संतान पैदा करने की पात्रता दी गई थी । दूसरी संतान के लिए कि आज का चीन एक-संतान समाज हो चुका है और नीति बदलने से इस सोच में ज्यादा परिवर्तन आने की गुजाइश नहीं है । कुछ लोग तो कह रहे है कि लोगों के प्रजनन पर नियंत्रण पूरी तरह समाप्त् होना चाहिए, अन्यथा जनसंख्या में विसंगतियां पैदा होती ही रहेगी । पात्रता की शर्त यह रखी गई थी कि दोनों में कम से कम एक अपने माता-पिता की इकलौती संतान हो । अब संभवत: एक-संतान नीति को उतनी सख्ती से लागू नहीं किया जाएगा हालांकि शायद दम्पतियों को दूसरी संतान के लिए सरकार से अनुमति लेनी होगी ।
    जनसंख्या नीति में उपरोक्त परिवर्तन मूलत: जनसंख्या की संरचना में हो रहे प्रतिकूल परिवर्तन के मद्देनजर किया गया है । एक-संतान नीति का सबसे प्रमुख असर तो यह रहा है कि लिंग-आधारित गर्भपातोंमें बहुत वृद्धि हुई है । भारत के ही समान चीन में भी पुत्र प्रािप्त् की इच्छा काफीबलवती है । लिंग पता करने के बाद गर्भपात का मतलब है कन्या भ्रूण हत्या । इस रूझान का परिणाम यह हुआ है कि चीन की आबादी मेंलड़कियों-महिलाआें की संख्या में भारी कमी आई है । २०१०  की जनगणना के मुताबिक चीन में प्रति १००० लड़कों पर लड़कियों की संख्या मात्र ८४७ थी । सामान्य स्थिति में जितनी लड़कियां होना चाहिए थी, उनमें से पूरी ६.२ करोड़ लडकिया नदारद थी । एक अनुमान के मुताबिक यदि रातोंरात चीन में जन्म लेने वाले बच्चें का लिंग अनुपात सामान्य हो जाए, तो भी २०५० में कम से कम १० प्रतिशत लड़कों को शादी के लिए लड़कियां नहीं   मिलेगी । 
    एक-संतान नीति का दूसरा परिणाम यह हुआ है कि चीन की आबादी में बुजुर्गो की संख्या बहुत अधिक हो गई है । इसका मतलब है कि काम करने वाले लोग कम  हैं । देश की करीब १२ प्रतिशत आबादी ६० से ऊपर के लोगों की   है । इसका असर चीन के आर्थिक विकास पर पड़ रहा है ।
    दरअसल चीन की कम्यु-निस्ट पार्टी ने एक-संतान नीति में ढील देने का जो फैसला किया है वह मूलत: आर्थिक विकास की धीमी होती रफ्तार से चिंतित होकर ही लिया गया है । मगर कई विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह से सरकारी नीतियां बदलकर खास कुछ हासिल नहीं होगा । आजकल के युवा वैसे भी एक से ज्यादा बच्च्े नहीं चाहते क्योंकि बच्च्े पालना बहुत महंगा हो गया है । जब २०१३ में एक-संतान नीति में कुछ शर्तो के अधीन छूट दी गई थी तब भी कुल पात्र दम्पतियोंमें से मात्र ६ प्रतिशत ने ही इसका फायदा उठाने के लिए आवेदन दिए थे । विशेषज्ञ कहते है हाल ही मेंचीन ने अपनी दशकों पुरानी जनसंख्या नीति में आमूल परिवर्तन किया है । पिछले कई वर्षो से चीन एक-संतान नीति का सख्ती से पालन करता रहा है और एक से ज्यादा संतान होने पर दंड की व्यवस्था भी थी । यह नीति क्लब ऑफ रोम की रिपोर्ट लिमिट्स टू ग्रोथ के इस निष्कर्ष पर टिकी थी कि जनसंख्या वृद्धि के कारण विकास पर प्रतिकूल असर पड़ता है ।
                     इस व्यवस्था में सबसे पहले २०१२ में बदलाव किया गया था जब कुछ दम्पतियों को दूसरी संतान पैदा करने की पात्रता दी गई थी । दूसरी संतान के लिए कि आज का चीन एक-संतान समाज हो चुका है और नीति बदलने से इस सोच में ज्यादा परिवर्तन आने की गुजाइश नहीं है । कुछ लोग तो कह रहे है कि लोगों के प्रजनन पर नियंत्रण पूरी तरह समाप्त् होना चाहिए, अन्यथा जनसंख्या में विसंगतियां पैदा होती ही रहेगी ।
गंध की अनुभूति और रोगों का सम्बंध
    आपने शायद सोचा न होगा कि आपकी गंध संवेदना इतनी महत्वपूर्ण है । कम से कम चूहों पर किए गए प्रयोग तो बताते हैं कि इसका संबंध आपके प्रतिरक्षा तंत्र के कामकाज से हो सकता है ।
     दरअसल, गंध संवेदना तंत्र और प्रतिरक्षा तंत्र के बीच संबंध धीरे-धीरे स्पष्ट होता जा रहा है । जैसे कहते है कि महिलाएं ऐसे पुरूषों की गंध को ज्यादा पसंद करती हैं जिनके प्रतिरक्षा तंत्र के जीन स्वयं उनके जीन्स से अलग होते    हैं । प्रतिरक्षा तंत्र और गंध संवेदना के इस संबंध को और गहराई से समझने के लिए  क्वीन्स मैरी विश्वविघालय के फल्वियो डीएक्विस्टो और उनके साथियों ने चूहों पर कुछ प्रयोग  किए । 
     डीएक्विस्टो ने जो चूहे लिए थे उनमें एक रीकॉम्बिनेन्ट एक्टिवेटिग जीन (आएजी) नदारद  था ।  यह जीन प्रतिरक्षा तंत्र के विकास का नियंत्रण करता है । यह जीन न तो चूहों में एक कामकाजी प्रतिरक्षा तंत्र विकसित नहीं हो पाता और साथ ही कुछ अन्य जीन्स की क्रिया भी थोड़ी बदल जाती है । इन अन्य जीन्स में गंध संवेदना से संबंधित जीन्स भी शामिल होते हैं ।  डीएक्विस्टो को अध्ययन की प्रेरणा इसी बात से मिली थी क्योंकि उन्हें पता था कि प्रतिरक्षा तंत्र से जुड़ी कुछ बीमारियों वाले व्यक्तियों में गंध की संवेदना कम होती है । ये बीमारियां ऐसी होती हैं जिनमें हमारा प्रतिरक्षा तंत्र स्वयं अपनी ही कोशिकाआें पर हमला कर देता है । इन्हें आत्म-प्रतिरक्षा रोग कहते है ।

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