शुक्रवार, 16 फ़रवरी 2018

प्रदेश चर्चा
राजस्थान : मुकुन्दरा हिल्स टाइगर रिजर्व
श्रीमती प्रज्ञा गौतम
चार वर्षोंा की लंबी प्रतीक्षा के बाद राजस्थान के तीसरे टाइगर रिजर्व - `मुकुन्दरा हिल्स टाइगर रिजर्व ' मेंबाद्य लाने की तैयारियां शुरु हो गई है । 
राजस्थान में `सरिस्का' और `रणथम्भौर' राष्ट्रीय उद्यान पहले से ही टाइगर रिजर्व क्षेत्र हैं । ९ अप्रेल २०१३ को तात्कालिन सरकार ने मुकुन्दरा हिल्स को टाइगर रिजर्व घोषित कर दिया था । कोटा शहर के दक्षिण-पूर्व मेंस्थित वन क्षेत्र और चंबल नदी घाटी का कुछ भाग इस टाइगर रिजर्व के अर्न्तगत आता है । चंबल नदी की सुंदर घाटियाँ, सघन वन और पानी की प्रचुरता के कारण यह क्षेत्र बाघ को बहुत रास आएगा । इसके अतिरिक्त अनेक झरनों, प्राकृतिक महत्वके स्थलोंयुक्त यह क्षेत्र पर्यटक ोंके लिए भी किसी स्वर्ग से कम नही होगा ।
यह करीब ७६० वर्ग कि.मी में चार जिलों कोटा, बूदीं, झालावाड़ और चित्तौड़गढ़ में फैला है । करीब ४१७ वर्ग कि.मी कोर और ३४२ वर्ग कि.मी बफर जोन है । इसमें दरा अभ्यारण, जवाहर सागर और चंबल घड़ियाल अभ्यारण का कुछ भाग शामिल है । इस क्षेत्र को टाइगर रिजर्व घोषित करने के बाद प्रथम कदम था इस क्षेत्र मेंबसे हुए ग्रामों को अन्यत्र विस्थापित करना, सुरक्षा दीवार का निर्माण और बाघों को छोड़ने के लिए एनक्लोजर बनाया जाना । मुकुन्दरा हिल्स टाइगर रिजर्व के दायरे मे कुल १४ गांव है, जिन्हें धीरे-धीरे अन्यत्र विस्थापित किया जा रहा है । ऐसा ही एक गांव है जवाहर सागर बांध जो अभी तक मेरी स्मृतियों में है । मैने यहां अपने बचपन का लंबा समय बिताया था । 
जवाहर सागर बांध को चंबल नदी की गोद में, जंगलों को साफ करके और चट्टानों को काट कर बसाया गया था । यहां ८० के दशक मेंभी बाघ की उपस्थिति दर्ज की गई थी । मुझे याद है बाघ की दहाड़ राजस्थान विद्युत उत्पादन निगम लि. कॉलोनी तक पहुंच जाती थी। क्वार्टर्स में अक्सर अनेक प्रकार के साँप और छोटे डायनसौर सदृश मॉनिटर लिजर्ड घुस जाया करते थे और लोगों के हाथोंमारे जाते थे । गर्मियों में पीली चोंच और लाल टोपी वाले सुंदर तोते आम के पेड़ों पर मंडराते थे ।
यह गाँव और राजस्थान विद्युत उत्पादन निगम लि. कॉलोनी अभ्यारण्य क्षेत्र में ही बना दी गई थी । अब यहाँ मनुष्य का दखल नहीं होगा और वनचर निर्बाध रुप से विचरण कर सकेंगे ।
यहाँ मार्च २०१८ में तीन बाघ लाने की योजना है, जिनमें एक नर और दो मादा होंगी । यह भारत का पाँचवा सबसे बड़ा टाइगर रिजर्व होगा । अभ्यारण्य के चारों तरफ ३२ कि.मी. दीवार का ही निर्माण हो पाया है । एनक्लोजरों में से सेल्जर क्षेत्र में एक एनक्लोजर तैयार हो गया है, दूसरे में अभी काम बाकी है ।
बरसात में यहाँ का सौंदर्य निखर उठता है । सर्दियों में पीलाभ रंगत लिए पहाड़ियाँ, बरसात में गहरी हो उठती है ं। वृक्षों पर मार्च-अप्रेल में नए पत्ते आ जाते है और मानसून आने पर ये हरे और सघन हो जाते है । यहां शुष्क पत्तझड़ी वन हैं । तेंदु, पलाश, अमलतास, महुआ, बेल, आँवला, घोकड़ा, बरगद, पीपल, नीम, जामुन, इमली, कदम्ब औ सेमल के वृक्ष पाए जाते है । घाटी मेंबाँस के वन भी है ।
वन में पेंथर, हाइना, भालू, भेड़िया, चीतल, सांभर, चिंकारा, नीलगाय, स्याहगोह, जँगली बिलाव जानवर हैं । यहाँ सर्पोंा की अनेक प्रजातियाँ, अजगर और मॉनिटर लिजर्ड जैसे सरीसृप भी मिलेंगे । नेवला, खरगोश, साही और हेजहोग जैसे छोटे प्राणी भी वन मेंदेखने को मिलेंगे । यहाँ करीब २२५ तरह के पक्षियों की प्रजातियाँ है - इनमें अति दुर्लभ सफेद पीठ और लंबी चोंच वाले गिद्ध, क्रेस्टेड सरपेंट ईगल, शॉट टोड, ईगल, सारस, स्टोर्क बिल्ड, किंग फिशर, ब्राउन हॉक आउल, डार्टर्स रेड क्रेस्टेड, पोचर्ड, पल्लास फिश ईगल आदि पक्षी प्रमुख हैं।
चंबल नदी में मगरमच्छ और घड़ियाल जैसे जीव हैं । पानी में नेरा हेडेड सॉफ्ट शेल टर्टल और थ्री स्ट्रिप्ड रुफ टर्टल जैसे कछुए भी हैं । यह पहला टाइगर रिजर्व है जिसमें जंगल सफारी के साथ-साथ चंबल सफारी भी करवायी जाएगी । जवाहर सागर बाँध से भैंसरोड़ गढ़ तक चंबल की लहरों पर बोटिंग करवायी जाएगी ।
यहाँ १४ वीं शाताब्दी का गागरोन का किला स्थित है जो कि मुकुन्दरा पहाड़ी पर है और तीन तरफ से जल से घिरा है । यहाँ काली सिंध और आहू नदी का संगम है । दरा के पास ही अबली मीणी का महल है जो कि कोटा से ५० कि.मी. दूर है । रावतभाटा के पास बाडोली मंदिर समूह है जो गुर्जर प्रतिहार शैली मेंबने हुए ९ मंदिरों का समूह है । ये ८ वीं से ११ वीं शताब्दी में बने हुए है । इनके अतिरिक्त भैंसरोड़ गढ़ फोर्ट १९ वीं शताब्दी का रावठा महल, शिकारगाह आदि अनेक ऐतिहासिक इमारतें है ं।
पिकनिक और सैर सपाटे के स्थल गेपर नाथ महादेव मंदिर और झरना, गराड़िया महादेव भी रिजर्व के अंतर्गत आते है ।
मुकुन्दरा हिल टाइगर रिजर्व के बारेंमें जानकारी देते हुए जिला वन अधिकारी एस.आर. यादव ने बताया कि बाघों को लाने की तैयारियाँ लगभग पूर्ण है । प्रदेश में बजरी संकट के कारण थोड़ा विलंब हुआ है । बजट की कोई कमी नहीं है । उन्होने बताया कि रणथम्भौर से टी-९१ बाघ और टी-८३ बाघिन को यहाँ लाया जाएगा । घने जंगल में लगभग २५ कि.मी. चंबल सफारी की व्यवस्था होगी ।
यहाँ घूमने के लिए अक्टूबर से मार्च तक का मौसम उपयुक्त है । सड़क या रेलमार्ग द्वारा कोटा आकर यहाँ भ्रमण किया जा सकता है । यहाँ का निकटतम हवाई अड्डा उदयपुर है ।

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