विज्ञान, हमारे आसपास
सिलिकॉन की खोज की कहानी
डॉ. विजय कुमार उपाध्याय
सिलिकॉन एक प्रमुख रासायनिक तत्व है जिसका एसआई तथा परमाणु संख्या १४ है । यह एक कठोर, भंगुर, रवेदार अर्ध-धात्विक ठोस है जिसका रंग नीला-भूरा तथा चमक धात्विक है । इसकी संयोजकता ४ है और यह आवर्त सारणी के १४ वें समूह का सदस्य है ।
अब प्रश्न उठता है कि सिलिकॉन की खोज कब तथा किसके द्वारा की गई? वस्तुत: इस तत्व की खोज की दिशा मेंकई वैज्ञानिकों ने प्रयास किए तथा इसे खोजने में काफी लंबा समय लगा । सर्वप्रथम सन १७८७ में एंतोन लेवॉजिये के मन मे यह विचार आया कि सिलिका में एक रासायनिक तत्व मौजूद हो सकता है।
सन् १८०८ में हम्फ्री डैवी ने इस तत्व को इसके यौगिकों से पृथक करने का प्रयास किया परन्तु सफलता नही मिली । परंतु उन्होंने इस संभावित ततव का नाम फ्िलंट के लिए उपयोग में लाए जाने वाले लेटिन शब्द `सिलेक्स' के आधार पर सिलिकम रखा । सन् १८११ में गेलूसैक तथा थिनार्ड ने पौटेशियम तथा सिलिकॉन टेट्राफ्लोराइड के मिश्रण को तपाकर अशुद्ध तथा चूर्णरुपी सिलिकॉन प्राप्त् किया । परंतु वे दोनो शोधकर्र्ता न तो इसे शुद्ध कर सके और न इसे एक नए तत्व के रुप मेंपहचानने में सफल रहे ।
सन् १८१७ में स्कॉटिश रसायनविद थॉमस थॉमसन ने डैवी द्वारा प्रस्तावित नाम को आंशिक रुप से बदलकर इसका नाम सिलिकॉन रखा । थॉमसन की धारणा थी कि सम्भावित नया तत्व सिलिकॉन भी कार्बन और बोरॉन के समान ही एक अधातु होगा । सन् १८२३ मेंबर्जीलियस ने थिनार्ड की विधि को ही उपयोग में लाते हुए अशुद्ध तथा चूर्णरुपी सिलिकॉन तैयार किया । परंतु उन्होंने इसका कई बार शुद्धिकरण किया तथा अंत में भूरे रंग का एक चूर्ण प्राप्त् किया जो सिलिकॉन था ।
अत: सिलिकॉन तत्व की खोज का श्रेय बऱ्जीलियस को ही दिया जाता है । परंतु बऱ्जीलियस ने जो सिलिकॉल प्राप्त् किया था । पूर्णत: शुद्ध एवं रवेदार सिलिकॉन ३१ वर्ष बाद १८५४ में फ्रांसीसी रसायनज्ञ हेनरी डेविले द्वारा प्राप्त् किया गया था ।
बह्मांड मेंमात्रा के लिहाज़से सिलिकॉन आठवां सर्वाधिक पाया जाने वाला तत्व है । परंतु विशुद्ध तात्विक अवस्था में नहीं पाया जाता, बल्कि सिलिका या सिलिकेट खनिजों के रुप में पाया जाता है । भूपर्पटी का लगभग ९० प्रतिशत अंश सिलिकेट या सिलिका खनिजों से निर्मित है । भूपर्पटी में मात्रा के लिहाज़से २७.७ प्रतिशत अंश सिर्फ सिलिकॉन तत्वे से बना है । भूपर्पटी मेंमात्रा के हिसाब से ऑक्सीजन के बाद सिलिकॉन दूसरा सर्वाधिक पाया जाने वाला तत्व है । प्रकृति मेंसिलिकॉन तत्व के रवे मुक्त अवस्था मेंनही पाए जाते । परंतु इसमें एक अपवाद भी है ।
कमचटका प्रायद्वीप में मौजूद एक ज्वालामुखी से निकलने वाली गैसों में विशुद्ध सिलिकॉन तत्व के रवे पाए जाते है ।इन रवों का आकार ०.३ मिलीमीटर तक पाया गया है । सिलिकॉल अनेक उल्का पत्थरों का प्रमुख घटक है । इसी प्रकार टेक्टाइट में भी सिलिकॉन की उपस्थिति पाई गई है । टेक्टाइट की उत्पत्ति पृथ्वी पर ऐसे स्थानों पर होती है जहां कोई उल्का धरातल पर गिर कर अत्यंत उच्च् तापमान उत्पन्न करती है ।
भूवैज्ञानिकोंके अनुसार सौर मंडल के भीतरी ग्रहोंका निर्माण अत्यधिक उच्च् तापमान पर हुआ था जिसके कारण सिलिकॉन और ऑक्सीजन आसानी से एक दूसरे से जुड़ गए तथा सिलिका एवं विभिन्न प्रकासर के सिलिकेट खनिजोंका निर्माण हुआ । जब ऑक्सीजन और सिलिकॉन एक दूसरे से जुड़ने लगे तो कुछ अन्य सक्रिय तत्व भी इनसे जुड़ते गए, जिनमें प्रमुख थ एल्यूमिनियम, कैल्शियम, सोडियम, पौटेशियम तथा मैग्नेशियम ।
वाष्पशील गैसों तथा कार्बन एवं गंधक के हाइड्रोजन के साथ प्रतिक्रिया कर संयुक्त होने के बाद भूपटल मेंसिलिकेट खनिजोंकी अधिकता रह गई । इनमें से अधिकांश सिलिकेट जटिल संरचना वाले थे । भू वैज्ञानिकों का अनुमान है कि सुपरनोवा से बिखरे कणों (जिनसे सौरमंडल का निर्माण एवं विकास हुआ) में ऑक्सीजन एवं सिलिकॉन कणों की संख्या बहुत अधिक थी । सिलिकेट खनिज प्राय: सौरमंडल के भीतरी ग्रहोंमें बहुत अधिक परिमाण में शामिल हो गए ।
उपरोक्त विभिन्न प्रकार के सिलिकेट खनिज लोहा, निकल तथा कुछ अन्य भारी धातुआें की अपेक्षा कम घनत्व वाले थे । यही कारण था कि लोहा, निकल तथा अन्य भारी तत्व पृथ्वी के केन्द्र की ओर चले गए जबकि हल्के सिलिकेट खनिजोंका लगभग पूरा भाग भूपर्पटी में आ गया । मैग्नेशियम तथा लोहे से युक्त मध्यम घनत्व वाले सिलिकेट पृथ्वी के मैटल मेंरह गए । भूपर्पटी में मौजूद प्रमुख खनिजों में शामिल है फेल्डस्पार, पाइरोक्जेन, एम्फीबोल, अभ्रक (माइका), क्वाटर्ज तथा ओलिविन इत्यादि । ये ही खनिज मृदा, ग्रैनाइट तथा अन्य प्रकार की चट्टानों में पाए जाते है ।
अब प्रश्न उठता है कि सिलिकॉन तत्व का उपयोग क्या है? आधुनिक काल में सिलिकॉन का उपयोग कई उद्योगो में किया जा रहा है । इनमें सर्वप्रमुख है इलेक्ट्रानिक उद्योग । पीज़ो इलेक्ट्रिक गुण के कारण सिलिकॉन का उपयोग इलेक्ट्रानिक उद्योग में व्यापक स्तर पर किया जा रहा है । विशुद्ध सिलिकॉन तत्व का उपयोग सेल फोन तथा कम्प्यूटर के निर्माण में किया जाता है । सिलिकोन नामक सिंथेटिक पोलीमर के निर्माण में भी सिलिकॉन महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है । इसके अलावा सिलिकॉन का उपयोग इस्पात शुद्धिकरण तथा अनेक प्रकार के रासायनिम उद्योगोंमें व्यापक स्तर पर किया जाता है अर्धचालक (सेमी कंडक्टर) उपकरणों में सिलिकॉन एक महत्वपूर्ण घटक के रुप में लाया जाता है । सिलिकॉन से बनाया गया सिलिकॉन कार्बाइड एक उत्तम प्रकार का अपघर्षक है ।
सिर्फ उद्योग ही नही जीव विज्ञान के क्षेत्र में सिलिकॉन की बहुत बड़ी भूमिका है । अध्ययनों से जानकारी मिली है कि विभिन्न प्रकार के समुद्री स्पॉन्ज तथा सूक्ष्मजीव (उदाहरण के रुप में डायटम तथा रेडयोलेरिया) के कठोर अंगों (कंकाल) के निर्माण मेंसिलिकॉन एक आवश्यक घटक है । कई वनस्पति ऊ तकों में भी सिलिकॉन की उपस्थिति दर्ज की गई है, जिनमे प्रमुख है क्राइसोवैलेंसिया की छाल तथा लकड़ी इत्यादि । इनके अलावा धान तथा कई प्रकार की घांसो की वृद्धि में भी सिलिकॉन जरुरी होता है ।
सिलिकॉन एक ओर जहां इतना उपयोगी है, वही दूसरी ओर इसका एक अत्यन्त हानिकारक पक्ष भी पाया गया है । सिलिकॉन मानव स्वास्थ पर बहुत ही बुरा प्रभाव डालता है । मानव शरीर में सिलिकॉन प्रवेश कई प्रकार से हो सकता है सांस द्वारा, त्वचा के स्पर्श से तथा आंखों के द्वारा । सांस के साथ सिलिकॉन के शरीर मेंपहुंचने पर सिलिकोसिस नामक रोग होता है । सिलिकोसिस से बचने हेतु प्रतिदिन ८ घण्टे के कार्यकाल के दौरान कार्यस्थल पर सिलिकॉन कणोंकी अधिकतम सीमा १५ मिलीग्राम प्रति घन मीटर होनी चाहिए । ***
सिलिकॉन की खोज की कहानी
डॉ. विजय कुमार उपाध्याय
सिलिकॉन एक प्रमुख रासायनिक तत्व है जिसका एसआई तथा परमाणु संख्या १४ है । यह एक कठोर, भंगुर, रवेदार अर्ध-धात्विक ठोस है जिसका रंग नीला-भूरा तथा चमक धात्विक है । इसकी संयोजकता ४ है और यह आवर्त सारणी के १४ वें समूह का सदस्य है ।
अब प्रश्न उठता है कि सिलिकॉन की खोज कब तथा किसके द्वारा की गई? वस्तुत: इस तत्व की खोज की दिशा मेंकई वैज्ञानिकों ने प्रयास किए तथा इसे खोजने में काफी लंबा समय लगा । सर्वप्रथम सन १७८७ में एंतोन लेवॉजिये के मन मे यह विचार आया कि सिलिका में एक रासायनिक तत्व मौजूद हो सकता है।
सन् १८०८ में हम्फ्री डैवी ने इस तत्व को इसके यौगिकों से पृथक करने का प्रयास किया परन्तु सफलता नही मिली । परंतु उन्होंने इस संभावित ततव का नाम फ्िलंट के लिए उपयोग में लाए जाने वाले लेटिन शब्द `सिलेक्स' के आधार पर सिलिकम रखा । सन् १८११ में गेलूसैक तथा थिनार्ड ने पौटेशियम तथा सिलिकॉन टेट्राफ्लोराइड के मिश्रण को तपाकर अशुद्ध तथा चूर्णरुपी सिलिकॉन प्राप्त् किया । परंतु वे दोनो शोधकर्र्ता न तो इसे शुद्ध कर सके और न इसे एक नए तत्व के रुप मेंपहचानने में सफल रहे ।
सन् १८१७ में स्कॉटिश रसायनविद थॉमस थॉमसन ने डैवी द्वारा प्रस्तावित नाम को आंशिक रुप से बदलकर इसका नाम सिलिकॉन रखा । थॉमसन की धारणा थी कि सम्भावित नया तत्व सिलिकॉन भी कार्बन और बोरॉन के समान ही एक अधातु होगा । सन् १८२३ मेंबर्जीलियस ने थिनार्ड की विधि को ही उपयोग में लाते हुए अशुद्ध तथा चूर्णरुपी सिलिकॉन तैयार किया । परंतु उन्होंने इसका कई बार शुद्धिकरण किया तथा अंत में भूरे रंग का एक चूर्ण प्राप्त् किया जो सिलिकॉन था ।
अत: सिलिकॉन तत्व की खोज का श्रेय बऱ्जीलियस को ही दिया जाता है । परंतु बऱ्जीलियस ने जो सिलिकॉल प्राप्त् किया था । पूर्णत: शुद्ध एवं रवेदार सिलिकॉन ३१ वर्ष बाद १८५४ में फ्रांसीसी रसायनज्ञ हेनरी डेविले द्वारा प्राप्त् किया गया था ।
बह्मांड मेंमात्रा के लिहाज़से सिलिकॉन आठवां सर्वाधिक पाया जाने वाला तत्व है । परंतु विशुद्ध तात्विक अवस्था में नहीं पाया जाता, बल्कि सिलिका या सिलिकेट खनिजों के रुप में पाया जाता है । भूपर्पटी का लगभग ९० प्रतिशत अंश सिलिकेट या सिलिका खनिजों से निर्मित है । भूपर्पटी में मात्रा के लिहाज़से २७.७ प्रतिशत अंश सिर्फ सिलिकॉन तत्वे से बना है । भूपर्पटी मेंमात्रा के हिसाब से ऑक्सीजन के बाद सिलिकॉन दूसरा सर्वाधिक पाया जाने वाला तत्व है । प्रकृति मेंसिलिकॉन तत्व के रवे मुक्त अवस्था मेंनही पाए जाते । परंतु इसमें एक अपवाद भी है ।
कमचटका प्रायद्वीप में मौजूद एक ज्वालामुखी से निकलने वाली गैसों में विशुद्ध सिलिकॉन तत्व के रवे पाए जाते है ।इन रवों का आकार ०.३ मिलीमीटर तक पाया गया है । सिलिकॉल अनेक उल्का पत्थरों का प्रमुख घटक है । इसी प्रकार टेक्टाइट में भी सिलिकॉन की उपस्थिति पाई गई है । टेक्टाइट की उत्पत्ति पृथ्वी पर ऐसे स्थानों पर होती है जहां कोई उल्का धरातल पर गिर कर अत्यंत उच्च् तापमान उत्पन्न करती है ।
भूवैज्ञानिकोंके अनुसार सौर मंडल के भीतरी ग्रहोंका निर्माण अत्यधिक उच्च् तापमान पर हुआ था जिसके कारण सिलिकॉन और ऑक्सीजन आसानी से एक दूसरे से जुड़ गए तथा सिलिका एवं विभिन्न प्रकासर के सिलिकेट खनिजोंका निर्माण हुआ । जब ऑक्सीजन और सिलिकॉन एक दूसरे से जुड़ने लगे तो कुछ अन्य सक्रिय तत्व भी इनसे जुड़ते गए, जिनमें प्रमुख थ एल्यूमिनियम, कैल्शियम, सोडियम, पौटेशियम तथा मैग्नेशियम ।
वाष्पशील गैसों तथा कार्बन एवं गंधक के हाइड्रोजन के साथ प्रतिक्रिया कर संयुक्त होने के बाद भूपटल मेंसिलिकेट खनिजोंकी अधिकता रह गई । इनमें से अधिकांश सिलिकेट जटिल संरचना वाले थे । भू वैज्ञानिकों का अनुमान है कि सुपरनोवा से बिखरे कणों (जिनसे सौरमंडल का निर्माण एवं विकास हुआ) में ऑक्सीजन एवं सिलिकॉन कणों की संख्या बहुत अधिक थी । सिलिकेट खनिज प्राय: सौरमंडल के भीतरी ग्रहोंमें बहुत अधिक परिमाण में शामिल हो गए ।
उपरोक्त विभिन्न प्रकार के सिलिकेट खनिज लोहा, निकल तथा कुछ अन्य भारी धातुआें की अपेक्षा कम घनत्व वाले थे । यही कारण था कि लोहा, निकल तथा अन्य भारी तत्व पृथ्वी के केन्द्र की ओर चले गए जबकि हल्के सिलिकेट खनिजोंका लगभग पूरा भाग भूपर्पटी में आ गया । मैग्नेशियम तथा लोहे से युक्त मध्यम घनत्व वाले सिलिकेट पृथ्वी के मैटल मेंरह गए । भूपर्पटी में मौजूद प्रमुख खनिजों में शामिल है फेल्डस्पार, पाइरोक्जेन, एम्फीबोल, अभ्रक (माइका), क्वाटर्ज तथा ओलिविन इत्यादि । ये ही खनिज मृदा, ग्रैनाइट तथा अन्य प्रकार की चट्टानों में पाए जाते है ।
अब प्रश्न उठता है कि सिलिकॉन तत्व का उपयोग क्या है? आधुनिक काल में सिलिकॉन का उपयोग कई उद्योगो में किया जा रहा है । इनमें सर्वप्रमुख है इलेक्ट्रानिक उद्योग । पीज़ो इलेक्ट्रिक गुण के कारण सिलिकॉन का उपयोग इलेक्ट्रानिक उद्योग में व्यापक स्तर पर किया जा रहा है । विशुद्ध सिलिकॉन तत्व का उपयोग सेल फोन तथा कम्प्यूटर के निर्माण में किया जाता है । सिलिकोन नामक सिंथेटिक पोलीमर के निर्माण में भी सिलिकॉन महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है । इसके अलावा सिलिकॉन का उपयोग इस्पात शुद्धिकरण तथा अनेक प्रकार के रासायनिम उद्योगोंमें व्यापक स्तर पर किया जाता है अर्धचालक (सेमी कंडक्टर) उपकरणों में सिलिकॉन एक महत्वपूर्ण घटक के रुप में लाया जाता है । सिलिकॉन से बनाया गया सिलिकॉन कार्बाइड एक उत्तम प्रकार का अपघर्षक है ।
सिर्फ उद्योग ही नही जीव विज्ञान के क्षेत्र में सिलिकॉन की बहुत बड़ी भूमिका है । अध्ययनों से जानकारी मिली है कि विभिन्न प्रकार के समुद्री स्पॉन्ज तथा सूक्ष्मजीव (उदाहरण के रुप में डायटम तथा रेडयोलेरिया) के कठोर अंगों (कंकाल) के निर्माण मेंसिलिकॉन एक आवश्यक घटक है । कई वनस्पति ऊ तकों में भी सिलिकॉन की उपस्थिति दर्ज की गई है, जिनमे प्रमुख है क्राइसोवैलेंसिया की छाल तथा लकड़ी इत्यादि । इनके अलावा धान तथा कई प्रकार की घांसो की वृद्धि में भी सिलिकॉन जरुरी होता है ।
सिलिकॉन एक ओर जहां इतना उपयोगी है, वही दूसरी ओर इसका एक अत्यन्त हानिकारक पक्ष भी पाया गया है । सिलिकॉन मानव स्वास्थ पर बहुत ही बुरा प्रभाव डालता है । मानव शरीर में सिलिकॉन प्रवेश कई प्रकार से हो सकता है सांस द्वारा, त्वचा के स्पर्श से तथा आंखों के द्वारा । सांस के साथ सिलिकॉन के शरीर मेंपहुंचने पर सिलिकोसिस नामक रोग होता है । सिलिकोसिस से बचने हेतु प्रतिदिन ८ घण्टे के कार्यकाल के दौरान कार्यस्थल पर सिलिकॉन कणोंकी अधिकतम सीमा १५ मिलीग्राम प्रति घन मीटर होनी चाहिए । ***
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