लोक परिवहन
अब निशाने पर पद-पथिक और साइकिलिस्ट
राजेंद्र रवि
आज दुनिया के विकसित मुल्क साईकिल हाईवे बना रहे हैं और पद-पथिकों के सरल और सुगम सफर के लिए मोटर वाहनों पर बंदिश लगा रहे हैं, ताकि जलवायु परिवर्तन के खतरे को कमजोर किया जा सके । ऐसी हालात मेंपद-पथिकों, साइकिलिस्टों और साइकिल रिक्शा पर पाबंदी लगाना कितना जायज है ? देश के लोगों के जीवन स्तर में सुधार की जरुरत है, न कि जीडीपी के बढ़ते ग्राफ की ।
भारत सरकार के परिवहन, पर्यटन और संस्कृति से जुड़ी `पार्लियामेंटरी स्टैडिंग कमेटी' ने केन्द्रीय मोटर गाड़ी कानून में संशोधन बिल २०१६ पर सुझाव देते हुएकहा है, `गैर मोटर वाहनों यानि पद पथिको, साइकिलिस्टों और साइकिल रिक्शों को देश के सभी राष्ट्रीय राजमार्गो और सभी बड़े शहरों के मुख्य मार्गोपर चलने से प्रतिबंधित करना होगा, क्योंकि पद-पथिक सड़क पर चलने वाले वाहनों में सबसे ज्यादा दुर्घटना के शिकार होते है और ये किसी भी तरह के इंश्योरेंस के दायरे मेंनहीं आते है ।
समिति यह भी मानती है कि ये लोग सड़क के किसी भी कानून को नहीं मानते है तथा सड़कों पर बहुत ज्यादा उत्पात मचाते है । ये लोग सड़क पर चल रहे दूसरे वाहनों के लिए भी खतरा पैदा करते है । इसलिए यह समिति सिफारिश करती है कि निर्बाध सड़क-यात्रा के लिए
जरुरी है कि पद-पथिकोंसाइकिलिस्टों और साइकिल रिक्शों को नियंत्रित किया जाए तथा इसके लिए दंड और सजा तय किए जाए । '
इस समिति की अध्यक्षता मुकुल रॉय ने की थी । समिति में कुल ३१ सदस्यों में राज्यसभा के १० और लोकसभा के २१ सदस्य थे । ९ अगस्त २०१६ को यह बिल लोकसभा मेंरखा गया, जिसे लोकसभा के अध्यक्ष ने राज्यसभा के सभापति से विचार विमर्श के बाद `पार्लियामेंटरी स्टैडिंग कमेटी'के पास राय-विचार के लिए भेज दिया । इस समिति को दो माह के अन्दर सभी पक्षोंके साथ विचार-विमर्श करके अपनी रिपोर्ट देनी थी, लेकिन इस समिति की अवधि दो बार बढ़ाई गई और जिसके बाद इस समिति ने १६ फरवरी २०१७ को अपनी रिपोर्ट संसद को सौंप दी । १९८८ में बने मोटर गाड़ी कानून मुख्यत: देश भर के मोटर वाहनों की गतिविधियों से जुड़े विषयों को संचालित करती है जिसमें अभी तक वर्ष१९९४, २०००, २००१ और २०१५ में संशोधन हो चुके है ।
लेकिन तत्कालीन केंद्रीय परिवहन और राष्ट्रीय राज मार्ग मंत्रालय का मानना है कि पूर्व मेें किए गए संशोधन आज की जरुरतों को पूरा नहीं करते है, इसलिए इस कानून में व्यापक बदलाव की आवश्यकता है । उनका कहना है कि २०१५ के दौरान सड़क दुर्घनाआें में एक लाख छियालीस हजार लोग मारे गए और तीन लाख से अधिक लोग घायल हुए । इसलिए कानून में संशोधन अनिवार्य है ताकि सड़क सुरक्षा, के सवाल को भी इस कानून के दायरे में और ट्रैफिक उल्लंघन को जुर्म के दायरे में लाया जा सके ।अभी की सड़कें २००-२५० किलोमीटर प्रति घंटे के लिए उपयुक्त नहीं हैं । इस बिल से यह लक्ष्य पाया जा सकेगा।
चूंकि यह मंत्रालय मोटर वाहनों से जुड़े कानूनऔर गतिविधियों को ही देखता रहा है और प्रदूषण रहित गैर-मोटर परिवहन के साधन इसके दायरे मेंनही रहे हैं इसलिए देश भर में इस मुद्दे पर काम कर रहे संगठन, समूह और व्यक्ति इस कानून के संशोधन के बारे में सचेत भी नहीं थे और न ही `पार्लियामेंटरी स्टैडिंग कमेटी' की प्रक्रियामें सक्रियता दिखाई । परन्तु जब इस समिति की सिफारिशें उजागर हुई, तब लोग चौंक गए और अपना विरोध तथा आपत्तियां दर्ज करना शुरु किया ।
सस्टेनेबल अर्बल मोबिलिटी नेटवर्क इंडिया (समनेट) ने केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी को एक कड़ा पत्र लिखते हुए कहा है कि `पार्लियामेंटरी स्टैडिंग कमेटी' ने पद-पाथिकों, साइकिलिस्टों और साइकिल रिक्शों का उल्लेख करते हुए जिन शब्दों का प्रयोग किया है वह न केवलनिंदनीय है बल्कि जन विरोधी, गरीब विरोधी और भेदभाव बढ़ाने वाला है । यह भारत सरकार के घोषित नीतियों और कार्यक्रमोंके भी विपरीत है । इसका कोई वैज्ञानिक आधार भी नही है कि मोटर गाड़ी संशोधन विधेयक २०१७ में समिति द्वारा सुझाए गए उपरोक्त पैराग्राफ को शामिल करने से सड़क सुरक्षा को बल मिलेगा ।
इनका कहना है कि राष्ट्रीय शहरी परिवहन नीति २००६ के पैरा अड़तीस में जोर देते हुए साफ तौर पर कहा है कि प्रदूषण को कम करने के और समाज की एक बड़ी आबादी द्वारा गैर-मोटर परिवहन का उपयोग किए जाने की हालत में सरकार न सिर्फ इसके लिए अलग लेन बनाएगी, बल्कि सार्वजनिक परिवहन के लिए कॉरिडोर का निर्माण भी करेगी । इसी तरह स्मार्ट सिटी मिशन स्टेटमेंट और गाइडलाइन्स २०१५ में भी गैर-मोटर परिवहनों को बढ़ावा देने का विशेष उल्लेख किया गया है ।
केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय का एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम अमृत के गाइड लाइन मेंभी पद-पथिकों, साइकिलिस्टों और साइकिल रिक्शों को बढ़ावा देने का स्पष्ट उल्ललेख किया गया है । समनेट का मानना है कि जहां तक पद-पथिकों, साइकिलिस्टों और साइकिल रिक्शों को सुरक्षा देने का सवाल है, इसके लिए आवश्यक है कि इनके लिए अलग लेन, आबादी वाले इलाकों में मोटर वाहनों की गति पर नियंत्रण, मोटर गाड़ी मुक्त एरिया का निर्माण, मोटर वाहनों द्वारा ट्रेफिक उल्लंघन के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जरुरत है । मोटर वाहनों के लिए मुफ्त पार्किंग और पद-पथिकों, साइकिलिस्टों और साइकिल रिक्शों की लेन में जबरन पार्किंग सड़क दुर्घटना को बढ़ावा देने का एक मुख्य कारक है ।
सार्वजनिक परिवहन में पद पथिकों, साइकिलिस्टों और साइकिल रिक्शों का प्रथम और अंतिम यात्रा के रुप में महत्वपूर्ण और अनिवार्य भूमिका है । इसे ज्यादा से ज्यादा बढ़ावा देकर ही कार्बल के न्यूनतम लक्ष्य को पाया जा सकता है । इसलिए इन्हें प्रतिबंधित करने की सोच पीछे ले जाने वाली सोच है । सरकार पद-पथिकों, साइकिलिस्टों और साइकिल रिक्शों के लिए अलग से कानून बनाए, यही वक्त की जरुरत है और प्रगति के लिए अनिवार्य है ।
इस मुद्दे में आईआईटी दिल्ली की शहरी परिवहन योजनाकार गीतम तिवारी का कहना है कि जब विकसित मुल्क सड़क जाम, सड़क दुर्घटना और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से मुकाबला करने तथा समाधान के रुप में पदपथिकों, साइकिलिस्टों और साइकिल रिक्शों को अपना रही है और इनके पक्ष्र में नियम कानून भी बना रहे है, ऐसे समय में भारत में जनता के चुने हुए प्रतिनिधियोंकी ` पार्लियामेंटरी स्टैडिंग कमटी ' द्वारा प्रतिबंध की सिफारिश काफी चिंताजनक बात है ।
शहरी परिवहन विशेषज्ञ अन्विता अरोड़ा का कहना है कि लोकतंत्र में जनता सर्वोपरि होती है और उनके चुने हुए जन प्रतिनिधि जब कोई कानून बनाते है तब उन्हें इस बात का हमेशा ख्याल रखना चाहिए कि बनने वाले कानून से देश की जनता, प्राकृतिक संसाधन और समाज की तरक्की पर इसका क्या असर होने वाला है । २०१७ मोटर गाड़ी कानून संशोधन बिल का असर काफी व्यानक होने वाला है । इसकी सत्यता की परख सरकार के पास उपलब्ध आंकड़े से ही हो जाती है अगर २०११ की जनगणना पर नज़र डाले और देंखे कि देश की जनता के पास कौन-कौन से परिवहन के साधल है और वे किन साधनोंसे सफर करते है तो साफ पता लग जाएगा कि इस कानून का प्रभाव जनता कैसे झेल पाएगी ।
२०११ की जनगणनानुसार भारत में सिर्फ ढाई प्रतिशत लोगों के पास मोटर वाहन, साढ़े ग्यारह प्रतिशत के पास दोपहिया मोटर साइकिल और तैंतालिस प्रतिशत के पास साइकिलेंहैं । इस आंकड़े में यह भी दर्ज है कि ४७ प्रतिशत व्यक्ति में से कोई भी वाहन नहीं रखते है । इसका मतलब है ४७ प्रतिशत आबादी पद पथक है और आने-जाने के लिए किसी न किसी प्रकार के सार्वजनिक परिवहन पर निर्भर है ।
राष्ट्रीय राज्य मार्ग और शहरों में सड़को का जाल किसके पैसे से बनतो है ? क्या यह सत्य नहीं है कि देश के आम आदमी के टैक्स के पैसे से ही सब एक्सप्रेस-वे और शहरोंके ढांचागत निर्माण होते हैं। तो फिर उस पर सब के चलने पर प्रतिबंध की सिफारिश किस वजह से की गई है, क्योंकि मोटर वाहनों के आंकड़े में दोपहिया को भी शामिल कर दें तो १५ प्रतिशत से कम ही लोग इसका इस्तेमाल करते हैं । फिर २५ प्रतिशत पर बंदिश का क्या तर्क है? अगर इसका आधार यह है कि ८५ प्रतिशत को इन सड़को पर चलने से इसलिए रोका और दण्डित किया जाएगा क्योंकि ये सड़कें इनके लिए असुरक्षित है । तो फिर हमारे विज्ञान और तकनिक किस दिन और किस काम के लिए है, जिनके इस्तेमाल से देश के ८५ प्रतिशत की आबादी को सुरक्षित सफर का रास्ता भी नहींबनाया जा सकता ?
दूसरा तथ्य यह भी है कि इन सड़को के लिए किनकी जमीन ली गई है? क्या यह जमीन उन गांववासियोंसे नहीं ली गई है जिन्हें चलने से रोकने के लिए कानून बनाया जा रहा हैं ? वे गांववासी घर से खेत और खेत से घर कैसेआएंगे-जाएंगे ? इनके पशुआेंऔर कृषि उपकरणों का आना जाना कैसे होगा । यह एक अहम सवाल है और हमारे लोकतंत्र और अधिकारोंसे जुड़ा हुआ है । क्या पार्लियामेंटरी स्टैडिंग कमेटी ने इस पर विचार किया है या इनकी सुरक्षा के नाम पर धोखाधड़ी हो रही है । ***
अब निशाने पर पद-पथिक और साइकिलिस्ट
राजेंद्र रवि
आज दुनिया के विकसित मुल्क साईकिल हाईवे बना रहे हैं और पद-पथिकों के सरल और सुगम सफर के लिए मोटर वाहनों पर बंदिश लगा रहे हैं, ताकि जलवायु परिवर्तन के खतरे को कमजोर किया जा सके । ऐसी हालात मेंपद-पथिकों, साइकिलिस्टों और साइकिल रिक्शा पर पाबंदी लगाना कितना जायज है ? देश के लोगों के जीवन स्तर में सुधार की जरुरत है, न कि जीडीपी के बढ़ते ग्राफ की ।
भारत सरकार के परिवहन, पर्यटन और संस्कृति से जुड़ी `पार्लियामेंटरी स्टैडिंग कमेटी' ने केन्द्रीय मोटर गाड़ी कानून में संशोधन बिल २०१६ पर सुझाव देते हुएकहा है, `गैर मोटर वाहनों यानि पद पथिको, साइकिलिस्टों और साइकिल रिक्शों को देश के सभी राष्ट्रीय राजमार्गो और सभी बड़े शहरों के मुख्य मार्गोपर चलने से प्रतिबंधित करना होगा, क्योंकि पद-पथिक सड़क पर चलने वाले वाहनों में सबसे ज्यादा दुर्घटना के शिकार होते है और ये किसी भी तरह के इंश्योरेंस के दायरे मेंनहीं आते है ।
समिति यह भी मानती है कि ये लोग सड़क के किसी भी कानून को नहीं मानते है तथा सड़कों पर बहुत ज्यादा उत्पात मचाते है । ये लोग सड़क पर चल रहे दूसरे वाहनों के लिए भी खतरा पैदा करते है । इसलिए यह समिति सिफारिश करती है कि निर्बाध सड़क-यात्रा के लिए
जरुरी है कि पद-पथिकोंसाइकिलिस्टों और साइकिल रिक्शों को नियंत्रित किया जाए तथा इसके लिए दंड और सजा तय किए जाए । '
इस समिति की अध्यक्षता मुकुल रॉय ने की थी । समिति में कुल ३१ सदस्यों में राज्यसभा के १० और लोकसभा के २१ सदस्य थे । ९ अगस्त २०१६ को यह बिल लोकसभा मेंरखा गया, जिसे लोकसभा के अध्यक्ष ने राज्यसभा के सभापति से विचार विमर्श के बाद `पार्लियामेंटरी स्टैडिंग कमेटी'के पास राय-विचार के लिए भेज दिया । इस समिति को दो माह के अन्दर सभी पक्षोंके साथ विचार-विमर्श करके अपनी रिपोर्ट देनी थी, लेकिन इस समिति की अवधि दो बार बढ़ाई गई और जिसके बाद इस समिति ने १६ फरवरी २०१७ को अपनी रिपोर्ट संसद को सौंप दी । १९८८ में बने मोटर गाड़ी कानून मुख्यत: देश भर के मोटर वाहनों की गतिविधियों से जुड़े विषयों को संचालित करती है जिसमें अभी तक वर्ष१९९४, २०००, २००१ और २०१५ में संशोधन हो चुके है ।
लेकिन तत्कालीन केंद्रीय परिवहन और राष्ट्रीय राज मार्ग मंत्रालय का मानना है कि पूर्व मेें किए गए संशोधन आज की जरुरतों को पूरा नहीं करते है, इसलिए इस कानून में व्यापक बदलाव की आवश्यकता है । उनका कहना है कि २०१५ के दौरान सड़क दुर्घनाआें में एक लाख छियालीस हजार लोग मारे गए और तीन लाख से अधिक लोग घायल हुए । इसलिए कानून में संशोधन अनिवार्य है ताकि सड़क सुरक्षा, के सवाल को भी इस कानून के दायरे में और ट्रैफिक उल्लंघन को जुर्म के दायरे में लाया जा सके ।अभी की सड़कें २००-२५० किलोमीटर प्रति घंटे के लिए उपयुक्त नहीं हैं । इस बिल से यह लक्ष्य पाया जा सकेगा।
चूंकि यह मंत्रालय मोटर वाहनों से जुड़े कानूनऔर गतिविधियों को ही देखता रहा है और प्रदूषण रहित गैर-मोटर परिवहन के साधन इसके दायरे मेंनही रहे हैं इसलिए देश भर में इस मुद्दे पर काम कर रहे संगठन, समूह और व्यक्ति इस कानून के संशोधन के बारे में सचेत भी नहीं थे और न ही `पार्लियामेंटरी स्टैडिंग कमेटी' की प्रक्रियामें सक्रियता दिखाई । परन्तु जब इस समिति की सिफारिशें उजागर हुई, तब लोग चौंक गए और अपना विरोध तथा आपत्तियां दर्ज करना शुरु किया ।
सस्टेनेबल अर्बल मोबिलिटी नेटवर्क इंडिया (समनेट) ने केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी को एक कड़ा पत्र लिखते हुए कहा है कि `पार्लियामेंटरी स्टैडिंग कमेटी' ने पद-पाथिकों, साइकिलिस्टों और साइकिल रिक्शों का उल्लेख करते हुए जिन शब्दों का प्रयोग किया है वह न केवलनिंदनीय है बल्कि जन विरोधी, गरीब विरोधी और भेदभाव बढ़ाने वाला है । यह भारत सरकार के घोषित नीतियों और कार्यक्रमोंके भी विपरीत है । इसका कोई वैज्ञानिक आधार भी नही है कि मोटर गाड़ी संशोधन विधेयक २०१७ में समिति द्वारा सुझाए गए उपरोक्त पैराग्राफ को शामिल करने से सड़क सुरक्षा को बल मिलेगा ।
इनका कहना है कि राष्ट्रीय शहरी परिवहन नीति २००६ के पैरा अड़तीस में जोर देते हुए साफ तौर पर कहा है कि प्रदूषण को कम करने के और समाज की एक बड़ी आबादी द्वारा गैर-मोटर परिवहन का उपयोग किए जाने की हालत में सरकार न सिर्फ इसके लिए अलग लेन बनाएगी, बल्कि सार्वजनिक परिवहन के लिए कॉरिडोर का निर्माण भी करेगी । इसी तरह स्मार्ट सिटी मिशन स्टेटमेंट और गाइडलाइन्स २०१५ में भी गैर-मोटर परिवहनों को बढ़ावा देने का विशेष उल्लेख किया गया है ।
केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय का एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम अमृत के गाइड लाइन मेंभी पद-पथिकों, साइकिलिस्टों और साइकिल रिक्शों को बढ़ावा देने का स्पष्ट उल्ललेख किया गया है । समनेट का मानना है कि जहां तक पद-पथिकों, साइकिलिस्टों और साइकिल रिक्शों को सुरक्षा देने का सवाल है, इसके लिए आवश्यक है कि इनके लिए अलग लेन, आबादी वाले इलाकों में मोटर वाहनों की गति पर नियंत्रण, मोटर गाड़ी मुक्त एरिया का निर्माण, मोटर वाहनों द्वारा ट्रेफिक उल्लंघन के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जरुरत है । मोटर वाहनों के लिए मुफ्त पार्किंग और पद-पथिकों, साइकिलिस्टों और साइकिल रिक्शों की लेन में जबरन पार्किंग सड़क दुर्घटना को बढ़ावा देने का एक मुख्य कारक है ।
सार्वजनिक परिवहन में पद पथिकों, साइकिलिस्टों और साइकिल रिक्शों का प्रथम और अंतिम यात्रा के रुप में महत्वपूर्ण और अनिवार्य भूमिका है । इसे ज्यादा से ज्यादा बढ़ावा देकर ही कार्बल के न्यूनतम लक्ष्य को पाया जा सकता है । इसलिए इन्हें प्रतिबंधित करने की सोच पीछे ले जाने वाली सोच है । सरकार पद-पथिकों, साइकिलिस्टों और साइकिल रिक्शों के लिए अलग से कानून बनाए, यही वक्त की जरुरत है और प्रगति के लिए अनिवार्य है ।
इस मुद्दे में आईआईटी दिल्ली की शहरी परिवहन योजनाकार गीतम तिवारी का कहना है कि जब विकसित मुल्क सड़क जाम, सड़क दुर्घटना और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से मुकाबला करने तथा समाधान के रुप में पदपथिकों, साइकिलिस्टों और साइकिल रिक्शों को अपना रही है और इनके पक्ष्र में नियम कानून भी बना रहे है, ऐसे समय में भारत में जनता के चुने हुए प्रतिनिधियोंकी ` पार्लियामेंटरी स्टैडिंग कमटी ' द्वारा प्रतिबंध की सिफारिश काफी चिंताजनक बात है ।
शहरी परिवहन विशेषज्ञ अन्विता अरोड़ा का कहना है कि लोकतंत्र में जनता सर्वोपरि होती है और उनके चुने हुए जन प्रतिनिधि जब कोई कानून बनाते है तब उन्हें इस बात का हमेशा ख्याल रखना चाहिए कि बनने वाले कानून से देश की जनता, प्राकृतिक संसाधन और समाज की तरक्की पर इसका क्या असर होने वाला है । २०१७ मोटर गाड़ी कानून संशोधन बिल का असर काफी व्यानक होने वाला है । इसकी सत्यता की परख सरकार के पास उपलब्ध आंकड़े से ही हो जाती है अगर २०११ की जनगणना पर नज़र डाले और देंखे कि देश की जनता के पास कौन-कौन से परिवहन के साधल है और वे किन साधनोंसे सफर करते है तो साफ पता लग जाएगा कि इस कानून का प्रभाव जनता कैसे झेल पाएगी ।
२०११ की जनगणनानुसार भारत में सिर्फ ढाई प्रतिशत लोगों के पास मोटर वाहन, साढ़े ग्यारह प्रतिशत के पास दोपहिया मोटर साइकिल और तैंतालिस प्रतिशत के पास साइकिलेंहैं । इस आंकड़े में यह भी दर्ज है कि ४७ प्रतिशत व्यक्ति में से कोई भी वाहन नहीं रखते है । इसका मतलब है ४७ प्रतिशत आबादी पद पथक है और आने-जाने के लिए किसी न किसी प्रकार के सार्वजनिक परिवहन पर निर्भर है ।
राष्ट्रीय राज्य मार्ग और शहरों में सड़को का जाल किसके पैसे से बनतो है ? क्या यह सत्य नहीं है कि देश के आम आदमी के टैक्स के पैसे से ही सब एक्सप्रेस-वे और शहरोंके ढांचागत निर्माण होते हैं। तो फिर उस पर सब के चलने पर प्रतिबंध की सिफारिश किस वजह से की गई है, क्योंकि मोटर वाहनों के आंकड़े में दोपहिया को भी शामिल कर दें तो १५ प्रतिशत से कम ही लोग इसका इस्तेमाल करते हैं । फिर २५ प्रतिशत पर बंदिश का क्या तर्क है? अगर इसका आधार यह है कि ८५ प्रतिशत को इन सड़को पर चलने से इसलिए रोका और दण्डित किया जाएगा क्योंकि ये सड़कें इनके लिए असुरक्षित है । तो फिर हमारे विज्ञान और तकनिक किस दिन और किस काम के लिए है, जिनके इस्तेमाल से देश के ८५ प्रतिशत की आबादी को सुरक्षित सफर का रास्ता भी नहींबनाया जा सकता ?
दूसरा तथ्य यह भी है कि इन सड़को के लिए किनकी जमीन ली गई है? क्या यह जमीन उन गांववासियोंसे नहीं ली गई है जिन्हें चलने से रोकने के लिए कानून बनाया जा रहा हैं ? वे गांववासी घर से खेत और खेत से घर कैसेआएंगे-जाएंगे ? इनके पशुआेंऔर कृषि उपकरणों का आना जाना कैसे होगा । यह एक अहम सवाल है और हमारे लोकतंत्र और अधिकारोंसे जुड़ा हुआ है । क्या पार्लियामेंटरी स्टैडिंग कमेटी ने इस पर विचार किया है या इनकी सुरक्षा के नाम पर धोखाधड़ी हो रही है । ***
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