खास खबर
वैज्ञानिक शोध पत्रों के लोकप्रिय जीन्स
(हमारे विशेष संवाददाता द्वारा)
संपूर्ण मानव जीवन में से मात्र १०० जीन्स ही एक चौथाई वैज्ञानिक शोध पत्रों और रिपोर्ट पर छाए हुए है ।
मानव शरीर कोशिकाआें से बना होता है । शरीर के ये छोटे-छोटे कारखाने ही अधिकांश कार्रवाई को अंजाम देते है । ये ऊ तकों का निर्माण करते है, ऊ तक अंगों का निर्माण करते है और इनसे पूरे शरीर का निर्माण होता है । इस प्रकार कोशिका कामकाज का अंतिम बिंदु है । कोशिकाएं जो कुछ करती है उसके निर्देश उनके मुख्यालय यानी नाभिक के अंदर स्थित होते है । ये निर्देश गुणसूत्रों में सहेजकर रखे होते है ।
प्रत्येक गुणसूत्र पर यह सूचना जीन्स के रुप में अंकित होती है जीन्स मे यह सूचना संचित होती है कि कोई कोशिका क्या करेगी, और कोशिकाआें से बने ऊ तक और अंग क्या करेंगे, और उन अंगों से बना शरीर क्या करेगा । जीन्स में उपस्थित सूचना में त्रुटियां ऊ तक, अंग या शरीर की गड़बड़ी के रुप में झलकती है ।
जीन्स में ये जानकारी डीएनए अणु के रुप में अंकित रहती है । प्रत्येक जीन चार अणुआें का लंबा अनुक्रम होता है । ये चार अणु क्षार कहलाते है । ये एक लंबी बहुलक श्रंखला में गूंथे होते है । अंग्रेजी वर्णमाला में २६ अक्षर और विराम होते है जबकि जीन्स वणमाला में चार क्षार होते है जिन्हे अ,ऋ,उ, और ढ कहते है । इन चारों क्षारों का क्रम ही आनुवांशिक शब्द और विराम चिन्ह बनाता है ।
मानव जीनोम सूचनाआें का संग्रह है जो गुणसूत्रों के रुप में संगठित जीन्स में पाई जाती है । गुणसूत्र स्वयं कोशिकाआें के नाभिक में बंद होते है । इस प्रकार हमारा जीनोम हमारी जिन्दगी की किताब होता है जिसमें गुणसूत्र अध्याय समान होते है जो जीन के रुप में लिखें गए वाक्यों से बनते है । ये वाक्य स्वयं चार अक्षरों की जेनेटिक वर्णमाला में कूट रुप में संग्रहित रहते है ।
जैसे ही कोशिका गुणसूत्रों में संग्रहित सूचना को पढ़ती है, वह अपना काम करने लगती है । इस कार्रवाई का महत्वपूर्ण हिस्सा जेनेटिक भाषा को वास्तविक क्रियाकारी अणुआें में तबदील या अनुवादित करने को होता है । कुल मिलाकर मामला यह है कि डीएनए रुपी सॉफ्टवेयर से कोड्स को पढ़ा जाता है और कोशिका (या शरीर) रुपी हार्डवेयर मेंकार्रवाई को अंजाम दिया जाता है ।
जीव विज्ञान के इतिहास का यह एक रोचक तथ्य है कि डीएनए की प्रकृति व रासायनिक संरचना और जेनेटिक कोड को समझने से पहले ही जीन्स के बारे मेंसमझना और उन्हें पहचानना शुरु हो गया था । सन् १८५६ और १८६३ के बीच ऑस्ट्रियन मठवासी ग्रेगर मेंडल ने मटर के पौधों पर प्रयोग करते हुए पैतृक गुणों या कारकों की पहचान की थी (अब हम इन्हें जीन्स कहते है ) । उन्होनें फूलोंमें रंग बनाने का काम करने वाले कारकों की पहचान की थी । यह बात भी पहचान ली गई थी कि हिमोफीलिया जैसे कुछ खानदानी रोग जीन्स मेंगड़बड़ी की वजह से होते है हालांकि इन्हें आणविक रुप में पढ़ना बहुत सालो बाद संभव हुआ ।
शरीर में प्रोटीन जीन्स में लिखे हुए संदेशो के आधार पर बनाए जाते है । हालांकि जीन्स के डीएनए के क्षार अनुक्रम को पढ़ना पिछले पचासेक वर्षो में ही संभव हुआ है, किंतु प्रोटीन्स में अमीनो अम्लों के क्रम को पढ़ना १९५० के दशक मेंप्रचलन में आ चुका था । वैज्ञानिकों ने बीमारियों से सम्बंधित प्रोटीन के गुणोंका अध्ययन करना शुरु कर दिया था । कभी कभी तो किसी प्रोटीन के अमीनो अम्ल अनुक्रम में एक छोटे से बदलाव से भी प्रोटीन के गुणोंमें परिवर्तन हो सकता है और स्वास्थ्य सम्बंधी समस्याएं सिर उठा सकती है । जैसा कि डॉ. लायनस पौलिंग और वर्नन इन्ग्राम ने ७० वर्षोंा पहले यह दिखा दिया था, हिमोग्लोबिन के अणु के अनुक्रम में अमीनो अम्ल `ग्लूटेमिक अम्ल' की जगह `वैलीन' जुड़ जाने पर इसके गुणधर्म मेंनाटकीय बदलाव आता है, जो एक किस्म के एनीमिया का कारण बन जाता है ।
प्रोटीन अनुक्रम मेंइस तरह की त्रुटियां अक्सर मूल जीन्स के अनुक्रम मेंत्रुटि की वजह से पैदा होती है । जीन्स में डीएनए अनुक्रम को पढ़ना समय हो जाने के बाद रोग के पीछे के जेनेटिक आधार को समझना संभव हो गया । इससे चिकित्सा आनुवंशिकी के क्षेत्र का जन्म हुआ । पिछले दो दशकोंमें जीन अनुक्रमण के काम में तेज़विकास के चलते चिकित्सा आनुवंशिकी भी खूब फली-फूली । कैंसर आनुवंशिकी सबसे गहमा गहमी का क्षेत्र है और कैंसर से सम्बंधित जीन्स का अध्ययन लोकप्रिय हो गया है । यही स्थिति अल्ज़ाइमर और अन्य तंत्रिका विकारों के मामले में भी है।
नेचर पत्रिका के २३ नवंबर के अंक में `ग्रेटेस्ट हिट्स ऑफ दी ह्युमन जीनोम' (मानव जीनोम के सफलतम हिस्से) की सूची प्रकाशित हुई है । इसमेंबताया गया है कि मानव जीनोम में मौजूद २० हज़ार या इससके कुछ अधिक प्रोटीन निर्माता जीन्स में से केवल १०० जीन्स एक चौथाई से अधिक वैज्ञानिक शोध पत्र और रिपोर्टस के विषय है । और इन १०० मेंसे भी मात्र १० जीन्स पर सबसे ज्यादा अध्ययन किए गए है, और ये सबसे उंची पायदान पर है ।
इन १० में से सबसे उपर पी-५३ नामक प्रोटीन का जीन है । इस प्रोटीन की भूमिका ट्यूमर्स के दमन में है । कोई आश्चर्य की नहीं कि इसका अध्ययन ८४७९ शोध पत्रों में किया गया है । पी-५३ के बाद टीएनएफ प्रोटीन का जीन है, जो ट्यूमर नेक्रोसिस कारक नामक अणु का कोड है । इस कारक की भूमिका ट्यूमर कोशिकाआें को मारने में है और इसके बारे में ५३१४ शोध पत्रों में चर्चा की गई है । इस सूची में पांचवी पायदान पर एपीओई नामक जीन है जिसका जिक्र ३९७७ पर्चोंा में किया गया है । यह प्रोटीन एपीओई का कोड है जो अल्जाईमर रोग के जोखिम से जुड़ा है ।
इनके अध्ययन के पीछे यह उम्मीद है कि यदि हम बीमारी का आणविक आधार समझ लें तो इलाज के बेहतर तरीकें तैयार कर सकेंगे जो आनुवंशिकी आधारित होगें । ये १०० सबसे लोकप्रिय जीन्स किसी फैशन परेड या गिनीज़ बुक में रिकॉर्ड के नही बल्कि चिकित्सा आनुवंशिकी के माध्यम से मानव पीड़ा को कम करने के प्रयासोंके प्रतिबिंब है । ***
वैज्ञानिक शोध पत्रों के लोकप्रिय जीन्स
(हमारे विशेष संवाददाता द्वारा)
संपूर्ण मानव जीवन में से मात्र १०० जीन्स ही एक चौथाई वैज्ञानिक शोध पत्रों और रिपोर्ट पर छाए हुए है ।
मानव शरीर कोशिकाआें से बना होता है । शरीर के ये छोटे-छोटे कारखाने ही अधिकांश कार्रवाई को अंजाम देते है । ये ऊ तकों का निर्माण करते है, ऊ तक अंगों का निर्माण करते है और इनसे पूरे शरीर का निर्माण होता है । इस प्रकार कोशिका कामकाज का अंतिम बिंदु है । कोशिकाएं जो कुछ करती है उसके निर्देश उनके मुख्यालय यानी नाभिक के अंदर स्थित होते है । ये निर्देश गुणसूत्रों में सहेजकर रखे होते है ।
प्रत्येक गुणसूत्र पर यह सूचना जीन्स के रुप में अंकित होती है जीन्स मे यह सूचना संचित होती है कि कोई कोशिका क्या करेगी, और कोशिकाआें से बने ऊ तक और अंग क्या करेंगे, और उन अंगों से बना शरीर क्या करेगा । जीन्स में उपस्थित सूचना में त्रुटियां ऊ तक, अंग या शरीर की गड़बड़ी के रुप में झलकती है ।
जीन्स में ये जानकारी डीएनए अणु के रुप में अंकित रहती है । प्रत्येक जीन चार अणुआें का लंबा अनुक्रम होता है । ये चार अणु क्षार कहलाते है । ये एक लंबी बहुलक श्रंखला में गूंथे होते है । अंग्रेजी वर्णमाला में २६ अक्षर और विराम होते है जबकि जीन्स वणमाला में चार क्षार होते है जिन्हे अ,ऋ,उ, और ढ कहते है । इन चारों क्षारों का क्रम ही आनुवांशिक शब्द और विराम चिन्ह बनाता है ।
मानव जीनोम सूचनाआें का संग्रह है जो गुणसूत्रों के रुप में संगठित जीन्स में पाई जाती है । गुणसूत्र स्वयं कोशिकाआें के नाभिक में बंद होते है । इस प्रकार हमारा जीनोम हमारी जिन्दगी की किताब होता है जिसमें गुणसूत्र अध्याय समान होते है जो जीन के रुप में लिखें गए वाक्यों से बनते है । ये वाक्य स्वयं चार अक्षरों की जेनेटिक वर्णमाला में कूट रुप में संग्रहित रहते है ।
जैसे ही कोशिका गुणसूत्रों में संग्रहित सूचना को पढ़ती है, वह अपना काम करने लगती है । इस कार्रवाई का महत्वपूर्ण हिस्सा जेनेटिक भाषा को वास्तविक क्रियाकारी अणुआें में तबदील या अनुवादित करने को होता है । कुल मिलाकर मामला यह है कि डीएनए रुपी सॉफ्टवेयर से कोड्स को पढ़ा जाता है और कोशिका (या शरीर) रुपी हार्डवेयर मेंकार्रवाई को अंजाम दिया जाता है ।
जीव विज्ञान के इतिहास का यह एक रोचक तथ्य है कि डीएनए की प्रकृति व रासायनिक संरचना और जेनेटिक कोड को समझने से पहले ही जीन्स के बारे मेंसमझना और उन्हें पहचानना शुरु हो गया था । सन् १८५६ और १८६३ के बीच ऑस्ट्रियन मठवासी ग्रेगर मेंडल ने मटर के पौधों पर प्रयोग करते हुए पैतृक गुणों या कारकों की पहचान की थी (अब हम इन्हें जीन्स कहते है ) । उन्होनें फूलोंमें रंग बनाने का काम करने वाले कारकों की पहचान की थी । यह बात भी पहचान ली गई थी कि हिमोफीलिया जैसे कुछ खानदानी रोग जीन्स मेंगड़बड़ी की वजह से होते है हालांकि इन्हें आणविक रुप में पढ़ना बहुत सालो बाद संभव हुआ ।
शरीर में प्रोटीन जीन्स में लिखे हुए संदेशो के आधार पर बनाए जाते है । हालांकि जीन्स के डीएनए के क्षार अनुक्रम को पढ़ना पिछले पचासेक वर्षो में ही संभव हुआ है, किंतु प्रोटीन्स में अमीनो अम्लों के क्रम को पढ़ना १९५० के दशक मेंप्रचलन में आ चुका था । वैज्ञानिकों ने बीमारियों से सम्बंधित प्रोटीन के गुणोंका अध्ययन करना शुरु कर दिया था । कभी कभी तो किसी प्रोटीन के अमीनो अम्ल अनुक्रम में एक छोटे से बदलाव से भी प्रोटीन के गुणोंमें परिवर्तन हो सकता है और स्वास्थ्य सम्बंधी समस्याएं सिर उठा सकती है । जैसा कि डॉ. लायनस पौलिंग और वर्नन इन्ग्राम ने ७० वर्षोंा पहले यह दिखा दिया था, हिमोग्लोबिन के अणु के अनुक्रम में अमीनो अम्ल `ग्लूटेमिक अम्ल' की जगह `वैलीन' जुड़ जाने पर इसके गुणधर्म मेंनाटकीय बदलाव आता है, जो एक किस्म के एनीमिया का कारण बन जाता है ।
प्रोटीन अनुक्रम मेंइस तरह की त्रुटियां अक्सर मूल जीन्स के अनुक्रम मेंत्रुटि की वजह से पैदा होती है । जीन्स में डीएनए अनुक्रम को पढ़ना समय हो जाने के बाद रोग के पीछे के जेनेटिक आधार को समझना संभव हो गया । इससे चिकित्सा आनुवंशिकी के क्षेत्र का जन्म हुआ । पिछले दो दशकोंमें जीन अनुक्रमण के काम में तेज़विकास के चलते चिकित्सा आनुवंशिकी भी खूब फली-फूली । कैंसर आनुवंशिकी सबसे गहमा गहमी का क्षेत्र है और कैंसर से सम्बंधित जीन्स का अध्ययन लोकप्रिय हो गया है । यही स्थिति अल्ज़ाइमर और अन्य तंत्रिका विकारों के मामले में भी है।
नेचर पत्रिका के २३ नवंबर के अंक में `ग्रेटेस्ट हिट्स ऑफ दी ह्युमन जीनोम' (मानव जीनोम के सफलतम हिस्से) की सूची प्रकाशित हुई है । इसमेंबताया गया है कि मानव जीनोम में मौजूद २० हज़ार या इससके कुछ अधिक प्रोटीन निर्माता जीन्स में से केवल १०० जीन्स एक चौथाई से अधिक वैज्ञानिक शोध पत्र और रिपोर्टस के विषय है । और इन १०० मेंसे भी मात्र १० जीन्स पर सबसे ज्यादा अध्ययन किए गए है, और ये सबसे उंची पायदान पर है ।
इन १० में से सबसे उपर पी-५३ नामक प्रोटीन का जीन है । इस प्रोटीन की भूमिका ट्यूमर्स के दमन में है । कोई आश्चर्य की नहीं कि इसका अध्ययन ८४७९ शोध पत्रों में किया गया है । पी-५३ के बाद टीएनएफ प्रोटीन का जीन है, जो ट्यूमर नेक्रोसिस कारक नामक अणु का कोड है । इस कारक की भूमिका ट्यूमर कोशिकाआें को मारने में है और इसके बारे में ५३१४ शोध पत्रों में चर्चा की गई है । इस सूची में पांचवी पायदान पर एपीओई नामक जीन है जिसका जिक्र ३९७७ पर्चोंा में किया गया है । यह प्रोटीन एपीओई का कोड है जो अल्जाईमर रोग के जोखिम से जुड़ा है ।
इनके अध्ययन के पीछे यह उम्मीद है कि यदि हम बीमारी का आणविक आधार समझ लें तो इलाज के बेहतर तरीकें तैयार कर सकेंगे जो आनुवंशिकी आधारित होगें । ये १०० सबसे लोकप्रिय जीन्स किसी फैशन परेड या गिनीज़ बुक में रिकॉर्ड के नही बल्कि चिकित्सा आनुवंशिकी के माध्यम से मानव पीड़ा को कम करने के प्रयासोंके प्रतिबिंब है । ***
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