जीव जगत
छिपकली से हम क्या सीख सकते है ?
डॉ. डी. बालसुब्रमण्यन
हमारे देश में छिपकली के बारे में काफी भला बुरा कहा जाता है । कई समुदायों में छिपकली का मनुष्य के शरीर पर गिरना अपशकुन माना जाता है । कुछ लोग मानते हैं कि यदि यह हमारे सिर पर गिरती है तो इसका मतलब है कि मृत्यु निकट है और यदि पैर पर गिरती है तो माना जाता है कि यह बीमारी की चेतावनी है । दरअसल, घरों में रहने वाली छिपकली के शरीर पर गिरने के स्थानों और उनके प्रभावोंके अध्ययन को गौली शास्त्र नाम दिया जाता है ।
हालांकि इस तरह की भविष्य वाणियां साफ तौर पर गलत है किंतु असली आश्चर्य तो यह है कि कैसे छिपकली दीवार पर और फिर छत पर चल लेती है । स्वस्थ छिपकली आसानी से नीचे नही गिरती । इसे छोटे-से जीव मेंे ऐसी क्या अद्भुत क्षमता होती है ? इस पहेली को सुलझाने में वैज्ञानिकों को आधी सदी का समय लगा ।
पहले विचार यह था कि जब छिपकली किसी सतह पर पैर रखती है तो पैर की उंगलियों और सतह के बीच एक अस्थायी निर्वात बनता है और निर्वातकी वजह से वह सतह पर चिपकी रहती है । लेकिन जब छिपकली के पैरों की बाह्य रचना का विश्लेषण किया गया तब यह धारणा गलत साबित हुई । पैरों की प्रत्येक उंगली पर कई हजारों छोटे स्पेचुला जैसे सिरों वाले विभाजित रोम पाए गए । यह पता चला कि इन रोमों और सतह के बीच की परस्पर क्रिया की वजह से ही छिपकली सतह पर चिपककर चल पाती है । यही उस जीव की असाधारण क्षमता का राज है ।
यह व्यवस्था काम कैसे करती है ? रोम और सतह के बीच बनने वाला यह बंधन अपने आप मेंबहुत ही कमज़ोर होता है । लेकिन जब इस तरह के हज़ारों रोम सतह पर जमते है तो इन छोटे-छोटे विद्युतीय प्रभावों का मिला जुला असर बढ़ा जाता है । इस प्रेरित विद्युत बल प्रेरित द्विध्रुवीय आघूर्ण या इंड्यूस्ड डाइपोल मोमेंट कहा जाता है । (इस बल का एक रोजमर्रा का उदाहरण है) कि जब बच्च फूले हुए गुब्बारे को रगड़कर कागज़ के छोटे-छोटे टुकड़ों के पास ले जाता है तो कागज़ के टुकड़े गुब्बारे से चिपक जाते है । इसका कारण यह है कि जब गुब्बारे को रगड़ा जाता है तो प्रेरित विद्युत क्षेत्र उत्पन्न होता है जिसकी वजह से कागज़के टुकड़े चिपक जाते है ।) इसी तरह का अस्थायी द्विधु्रवीय बल छिपकली के पैरोंको दीवार की सतह से चिपका देता है । और यह बल इतना दुर्बल होता है कि इससे पार पाना मुश्किल नहीं होता । इसलिए छिपकली के लिए अगला कदम उठाने में कोई परेशानी नहीं होती है और वह दीवारों और वह दीवारों और छतों पर ऐसे दौड़ती चली जाती है जैसे कोई फैशन मॉडल केटवॉक कर रही हो ।
यह बल दो पदार्थोके बीच ऐसे अत्यंत दुर्बल विद्युत `बंधन' के कारण होता है और यह बहुत ही कम दूरी पर काम करता है । इस बल को सबसे पहले डच वैज्ञानिक जोहानेस डाइडेरिक वॉन्डर वॉल्स ने पहचाना था और इसे वॉन्डर वॉल्स बल कहते है जब पैरों की गद्दी पर स्थित हज़ारों रोमों द्वारा एक साथ यह बल लगता है जो इसका प्रभाव काफी अधिक और जीवंत हो उठता है । इसी वॉन्डर वॉल्स बल के प्रभाव से छिपकली दीवार पर आसानी से चढ़ पाती है और छत पर टिकी रह पाती है । (अगर उसके पैरों के बालोंकी हजामत बना दी जाए तो वह दीवार और छत पर नहीं चढ़ पाएगी ।) यह भी एक उदाहरण है कि एकता और मिलजुल कर काम करने में कितनी ताकत होती है ।
छिपकली में एक अद्भुत शक्ति और होती है । छिपकली को पूंछ से पकड़ने की कोशिश करेंगे तो पूंछ आसानी से आपके हाथ में आ जाएगी और छिपकली तेज़ी से दूर भाग जाएगी । और कुछ ही दिनों के बाद वह अपनी खोई हुई पुंछ का पुननिर्माण कर लेगी । और इस तरक के पुनर्जनन करने वाले जीवोंमें छिपकली अकेलीनही है । इसके उभयचर रिश्तेदार सेलेमैण्डर और यहां तक कि मेंढक भी अपने क्षतिग्रस्त या लुप्त् हुए ऊ तकों और अंगों का पूनर्जनन कर लेते है । और तो और, सेलेमैण्डर तो अपनी पूंछ, रीढ़ की हड्डी, उपास्थि और आंख के कुछ हिस्सोंका भी पुनर्जनन कर लेते हैं । वे कैसे यह कर पाते हैंऔर हम मनुष्य क्यों नहीं कर पाते ? यह सवाल दुनिया भर के कुछ वैज्ञानिकों के दिमाग मेंकौंधता रहा है ।
ऐसा लगता है कि जब छिपकली या सेलेमैण्डर में कोई ऊ तक क्षतिग्रस्त हो जाता है तो कई कोशिकीय अणु उस क्षतिग्रस्त या लुप्त् हुए स्थान पर एकत्रित हो जाते हैं और सम्बंधित कोशिकाआें का पुनर्जनन करते हैं, इनमें से कुछ अणु प्रतिरक्षा से सम्बंधित होते है, कुछ कोशिका की वृद्धि को शुरु करवाते है और कुछ कोशिकाआेंका समन्वय करते है । इसकी विस्तृत रिपोर्ट कनेक्टिव टिशू रिसर्च के मार्च २०१७ के अंक मेंप्रकाशित हुई थी ।
चंदगशेखरन व साथियों द्वारा एक अन्य रिपोर्ट में बताया गया है कि कैसे सामान्य `कायिक' कोशिकाएं दो विशेष अणुआेंके असर से ऊ तक-पुनर्जनन स्टेम कोशिकाआें में तबदील हो जाती हैं । इससे और इस तरह के अन्य पर्चो से सीखकर इस तरह के प्रयास मानव ऊतकों और अंगों पर करना मुफीद हो सकता है ।
कुछ अन्य शोधकर्ताआेंने बताया है कि सेलेमैण्डर और मनुष्यों की आनुवंशिक सामग्री (जीनोम) में कई एक समान जीन है । और कुछ जीन्स थोड़े फेरबदल के साथ दोनों में एक जैसे है । इस आधार पर एक वैज्ञानिक का सवाल है कि क्या हम अपने अंदर छिपे सेलेमैण्डर को जगा सकते है । अर्थात क्या हम अपने जीनोम में उपस्थित सेलेमैण्डर जैसे जीन्स को सक्रिय करने का रास्ता खोजने का प्रयास कर सकते है ताकि हम भी आंख जैसे अंगों के क्षतिग्रस्त या लुप्त् हुए हिस्सों का पुनर्जनन कर सकें ।
इस तरह के प्रयास को एक `दु:साहसी लक्ष्य' की संज्ञा दी गई है । लेकिन यह सवाल उठने का मतलब ही है कि लोग इस लक्ष्य तक पहुंचने के लिए काम करेंगे, और हो सकता है देर सबेर इसमें सफलता भी हासिल हो जाए । न हि सुप्त्स्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगा: । ***
छिपकली से हम क्या सीख सकते है ?
डॉ. डी. बालसुब्रमण्यन
हमारे देश में छिपकली के बारे में काफी भला बुरा कहा जाता है । कई समुदायों में छिपकली का मनुष्य के शरीर पर गिरना अपशकुन माना जाता है । कुछ लोग मानते हैं कि यदि यह हमारे सिर पर गिरती है तो इसका मतलब है कि मृत्यु निकट है और यदि पैर पर गिरती है तो माना जाता है कि यह बीमारी की चेतावनी है । दरअसल, घरों में रहने वाली छिपकली के शरीर पर गिरने के स्थानों और उनके प्रभावोंके अध्ययन को गौली शास्त्र नाम दिया जाता है ।
हालांकि इस तरह की भविष्य वाणियां साफ तौर पर गलत है किंतु असली आश्चर्य तो यह है कि कैसे छिपकली दीवार पर और फिर छत पर चल लेती है । स्वस्थ छिपकली आसानी से नीचे नही गिरती । इसे छोटे-से जीव मेंे ऐसी क्या अद्भुत क्षमता होती है ? इस पहेली को सुलझाने में वैज्ञानिकों को आधी सदी का समय लगा ।
पहले विचार यह था कि जब छिपकली किसी सतह पर पैर रखती है तो पैर की उंगलियों और सतह के बीच एक अस्थायी निर्वात बनता है और निर्वातकी वजह से वह सतह पर चिपकी रहती है । लेकिन जब छिपकली के पैरों की बाह्य रचना का विश्लेषण किया गया तब यह धारणा गलत साबित हुई । पैरों की प्रत्येक उंगली पर कई हजारों छोटे स्पेचुला जैसे सिरों वाले विभाजित रोम पाए गए । यह पता चला कि इन रोमों और सतह के बीच की परस्पर क्रिया की वजह से ही छिपकली सतह पर चिपककर चल पाती है । यही उस जीव की असाधारण क्षमता का राज है ।
यह व्यवस्था काम कैसे करती है ? रोम और सतह के बीच बनने वाला यह बंधन अपने आप मेंबहुत ही कमज़ोर होता है । लेकिन जब इस तरह के हज़ारों रोम सतह पर जमते है तो इन छोटे-छोटे विद्युतीय प्रभावों का मिला जुला असर बढ़ा जाता है । इस प्रेरित विद्युत बल प्रेरित द्विध्रुवीय आघूर्ण या इंड्यूस्ड डाइपोल मोमेंट कहा जाता है । (इस बल का एक रोजमर्रा का उदाहरण है) कि जब बच्च फूले हुए गुब्बारे को रगड़कर कागज़ के छोटे-छोटे टुकड़ों के पास ले जाता है तो कागज़ के टुकड़े गुब्बारे से चिपक जाते है । इसका कारण यह है कि जब गुब्बारे को रगड़ा जाता है तो प्रेरित विद्युत क्षेत्र उत्पन्न होता है जिसकी वजह से कागज़के टुकड़े चिपक जाते है ।) इसी तरह का अस्थायी द्विधु्रवीय बल छिपकली के पैरोंको दीवार की सतह से चिपका देता है । और यह बल इतना दुर्बल होता है कि इससे पार पाना मुश्किल नहीं होता । इसलिए छिपकली के लिए अगला कदम उठाने में कोई परेशानी नहीं होती है और वह दीवारों और वह दीवारों और छतों पर ऐसे दौड़ती चली जाती है जैसे कोई फैशन मॉडल केटवॉक कर रही हो ।
यह बल दो पदार्थोके बीच ऐसे अत्यंत दुर्बल विद्युत `बंधन' के कारण होता है और यह बहुत ही कम दूरी पर काम करता है । इस बल को सबसे पहले डच वैज्ञानिक जोहानेस डाइडेरिक वॉन्डर वॉल्स ने पहचाना था और इसे वॉन्डर वॉल्स बल कहते है जब पैरों की गद्दी पर स्थित हज़ारों रोमों द्वारा एक साथ यह बल लगता है जो इसका प्रभाव काफी अधिक और जीवंत हो उठता है । इसी वॉन्डर वॉल्स बल के प्रभाव से छिपकली दीवार पर आसानी से चढ़ पाती है और छत पर टिकी रह पाती है । (अगर उसके पैरों के बालोंकी हजामत बना दी जाए तो वह दीवार और छत पर नहीं चढ़ पाएगी ।) यह भी एक उदाहरण है कि एकता और मिलजुल कर काम करने में कितनी ताकत होती है ।
छिपकली में एक अद्भुत शक्ति और होती है । छिपकली को पूंछ से पकड़ने की कोशिश करेंगे तो पूंछ आसानी से आपके हाथ में आ जाएगी और छिपकली तेज़ी से दूर भाग जाएगी । और कुछ ही दिनों के बाद वह अपनी खोई हुई पुंछ का पुननिर्माण कर लेगी । और इस तरक के पुनर्जनन करने वाले जीवोंमें छिपकली अकेलीनही है । इसके उभयचर रिश्तेदार सेलेमैण्डर और यहां तक कि मेंढक भी अपने क्षतिग्रस्त या लुप्त् हुए ऊ तकों और अंगों का पूनर्जनन कर लेते है । और तो और, सेलेमैण्डर तो अपनी पूंछ, रीढ़ की हड्डी, उपास्थि और आंख के कुछ हिस्सोंका भी पुनर्जनन कर लेते हैं । वे कैसे यह कर पाते हैंऔर हम मनुष्य क्यों नहीं कर पाते ? यह सवाल दुनिया भर के कुछ वैज्ञानिकों के दिमाग मेंकौंधता रहा है ।
ऐसा लगता है कि जब छिपकली या सेलेमैण्डर में कोई ऊ तक क्षतिग्रस्त हो जाता है तो कई कोशिकीय अणु उस क्षतिग्रस्त या लुप्त् हुए स्थान पर एकत्रित हो जाते हैं और सम्बंधित कोशिकाआें का पुनर्जनन करते हैं, इनमें से कुछ अणु प्रतिरक्षा से सम्बंधित होते है, कुछ कोशिका की वृद्धि को शुरु करवाते है और कुछ कोशिकाआेंका समन्वय करते है । इसकी विस्तृत रिपोर्ट कनेक्टिव टिशू रिसर्च के मार्च २०१७ के अंक मेंप्रकाशित हुई थी ।
चंदगशेखरन व साथियों द्वारा एक अन्य रिपोर्ट में बताया गया है कि कैसे सामान्य `कायिक' कोशिकाएं दो विशेष अणुआेंके असर से ऊ तक-पुनर्जनन स्टेम कोशिकाआें में तबदील हो जाती हैं । इससे और इस तरह के अन्य पर्चो से सीखकर इस तरह के प्रयास मानव ऊतकों और अंगों पर करना मुफीद हो सकता है ।
कुछ अन्य शोधकर्ताआेंने बताया है कि सेलेमैण्डर और मनुष्यों की आनुवंशिक सामग्री (जीनोम) में कई एक समान जीन है । और कुछ जीन्स थोड़े फेरबदल के साथ दोनों में एक जैसे है । इस आधार पर एक वैज्ञानिक का सवाल है कि क्या हम अपने अंदर छिपे सेलेमैण्डर को जगा सकते है । अर्थात क्या हम अपने जीनोम में उपस्थित सेलेमैण्डर जैसे जीन्स को सक्रिय करने का रास्ता खोजने का प्रयास कर सकते है ताकि हम भी आंख जैसे अंगों के क्षतिग्रस्त या लुप्त् हुए हिस्सों का पुनर्जनन कर सकें ।
इस तरह के प्रयास को एक `दु:साहसी लक्ष्य' की संज्ञा दी गई है । लेकिन यह सवाल उठने का मतलब ही है कि लोग इस लक्ष्य तक पहुंचने के लिए काम करेंगे, और हो सकता है देर सबेर इसमें सफलता भी हासिल हो जाए । न हि सुप्त्स्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगा: । ***
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