विशेष लेख
ऊर्जा और हम
डॉ. विनीत तिवारी
निकोला टेस्ला एक वैज्ञानिक हुए है उनका मानना था, यदि सृष्टि के सत्य को जानना चाहते हैं, तो सृष्टि को ऊर्जा की दृष्टि से देखना होगा ।
सृष्टि कब कहाँ कैसे शुरू हुई, क्या होगा इसकी यात्रा का अंतिम पडाव, इन प्रश्नों में बदलाव की जरूरत हमेशा से रही है, हम जो आज तक महसूस करते आए हैं,वह हमारी सृष्टि की यात्रा है, एक परिवर्तन जो हमेशा से चला आ रहा है ।
जो कुछ सृष्टि से लिया दिया वह तो ऊर्जाओं के रूप में था, इस दिए लिए और हमारे किये ने ही हमे वो बनाया है जो हम आज नजर आते हैं। यह ऊर्जाएं हैं, हमारे अहसास ऊर्जा हैं, हमारी हर बात हर अभिव्यक्ति ऊर्जा है, ऊष्माप्रवेगिकी यानी थर्मोडी-नमिक्स का प्रथम सिद्धांत ऊर्जा के विषय में भी तो यही कहता है कि ऊर्जा कभी उत्पन्न नहीं होती, कभी विलीन नहीं होती, यह केवल बदलती हैं परिवर्तन करती हैं । हमारी अहसासों की डायनामिक्स कुछ और नहीं हैं, कुछ ऐसे कहा जाना चाहिए की एहसासों का आपस में बदलते रहना, न जन्मना और न ही मरना ।
कोई यदि उस पर से हमें देख रहा हो, तो वो यह कह सकता है कि जीवन ऊर्जा के बदलते रहने का दृष्टान्त है । प्रेम, झिझक, परेशानी, आलस्य, भय, शांति अहंकार, आत्मविश्वास, तनाव, काम इत्यादि ऐसे भाव हैं, जिनके अहसास को हम समझते हैं, परन्तु यह अहसास वस्तुत: क्या हैं, ये हम कभी नहीं सोचते हैं, क्योंकि यह अहसास हमें दिखाई नहीं देते हम इनका स्पर्श नहीं कर पाते, इस पर इनका प्रभाव तो है ही इसलिए इन अहसासों का सत्य यह है कि ये ऊर्जा है ।
सहज बोध यानि इंटुइशन और कुछ तंरगे जिनके प्रभाव तो कभी कभी हम महसूस करते हैं, परन्तु इस प्रकार के अहसास के अस्तित्व के विषय में शंका और भी भयानक है । हमें हर चीज एक परिभाषित आकार और गुण के भीतर ही समझ आती है । बात तो बहुत सरल हैं, जिसका कुछ प्रभाव है वह ऊर्जाहै, क्योंकि ऊर्जा है तभी तो प्रभाव प्रकट हो रहे हैं । विज्ञान का वर्क-एनर्जी सिद्धांत भी तो यहीं कहता है, यदि कुछ घटित होता है, तो ऊर्जा द्वारा ही होता है, अहसास घटना है, भाव ऊर्जा है । अब जैसे मन, एक ऐसा अहसास जिसका बहुत बार प्रयोग होता है, मन नहीं है, मन करेगा तो करूंगा, मन के हारे हार, मन के माने जीते जीत आदि आदि । परन्तु मन है क्या, जैसा इसका प्रभाव है उसके अनुसार, तो स्वयं की ऊर्जा के बहाव के अतिरिक्त यह कुछ और हो ही नहीं सकता ।
ऊर्जा की दृष्टि से देखने पर, ऐसा लगता है कि, जैसे सृष्टि दो तरह की है, एक तो वह जो दृष्टिगोचर है, जिसका स्पर्श किया जा सकता है, और दूसरी वह जो अदृश्य है, जिसका केवल प्रभाव समझ में आता है ।
एक देह-स्पर्श-स्वाद-गंध-ध्वनि है और दूसरी ऊर्जा, हाँ यह सत्य है कि, सृष्टि के यह दो प्रकार, दो प्रतीत होते ही हैं, परन्तु इस प्रतीत होती भिन्नता के थोड़ा आगे, समग्र सत्य यह है कि इनमें गहरा अर्न्तसमबन्ध हैं, इतना अधिक गहरा कि इनमें से किसी के भी एकल अस्तित्व की संभावना नहीं है, कल्पना भी नहीं की जा सकती है । संरचना और ऊर्जा का एकल अस्तित्व है ही नहीं, एक का बदलना दूसरे का परिणाम भी है और कारण भी, यह तो द्विस्थितियां हैं जैसा क्वांटम भौतिकी में कहते हैं, वेव-पार्टिकल डुअलिटी है, ड्यूल नेचर है । यानि कि प्रत्येक तत्व ऊर्जा भी है और कण भी है, वह भी एक ही समय में ।
हम अपने आसपास तरह तरह के लोगों को देखते है, कोई शांत है, कोई संकोची और डरा हुआ है, तो कोई मिलनसार और प्रेमी है, हम सब इतने अलग-अलग इतने भिन्न कैसे हैं, यह स्वभाव की भिन्नता आयी कहाँ से, क्या हमारी संरचना में अंतर है, किसी सूक्ष्म स्तर पर है यह अंतर या हमारी ऊर्जाओं में भिन्नता है, क्योंकि हम ऊर्जा और संरचना ही तो है, वह भी इस तरह से की हमारा ऊर्जा और संरचना को अलग-अलग देखना असत्य होगा ।
कुछ जवाब तक पहुँचने के लिए कुछ घटनाओं के अनोखेपन को खंगालना होगा ।
बहुत लोग यह जानते है, कुछ ने देखा भी होगा कुछ ने सुना होगा, जिन्होंने न देखा है और न ही सुना है, वह यह जान लें, कि ''गिरगिट कि तरह रंग बदलना`` केवल मुहावरा नहीं है, यह एक सच्ची घटना है, गिरगिट अपने भाव के अनुसार अपनी त्वचा के सूक्ष्म स्तर पर, संरचनात्मक परिवर्तन करने में सक्षम होते हैं । इससे उसके प्रकाश सम्बन्धी गुणों, अर्थात ऑप्टिकल रिलेशन्स में परिवर्तन आता है, और वह सूर्य के श्वेत प्रकाश से, अपने भावानुसार, भिन्न-भिन्न रंगो या फ्रीक्वेंसीज को अवशोषित और परावर्तित करता है । यहीं है गिरगिट के रंग बदलने का कारण, संरचना परिवर्तन द्वारा गुण परिवर्तन का गिरगि केवल अकेला उद्धरण नहीं हैं ।
रेडियो के विषय में लगभग हम सभी जानते हैं, इसे ट्रांजिस्टर भी कहा जाता है । रेडियो को साफ ढंग से सुनने के लिए हम क्या करते है, ट्यूनिंग करते हैं, ट्रांसमीटर और रेडियो सेट की फ्रीक्वेंसीज, यानि ऊर्जा तरंगो कि स्थितियों का आपस में मिलान कराते हैं, यह मिलान ट्यूनर द्वारा रेडियो में लगे सर्किट में किये गए संरचनात्मक बदलाव के द्वारा ही संभव हो पाता है । ऊर्जा कि दृष्टि से देखना और सोचना शुरू करेंगे तो संरचना और ऊर्जा के बीच के ऐसे असंख्य सम्बन्ध हमें दिखेंगे, समझ आएगें ।
एक कहावत है कि कच्च्े घड़े में बदलाव किये जा सकते हैं,पर घड़ा यदि पक जाये, फिर उसे बदलना, असंभव हैं । एक बालक में अच्छी आदतों को पिरोने की संभावनाएं भी असीम होती है, बड़े होने पर संरचना काफी बदल जाती है, और कोई परिवर्तन करना थोड़ा कठिन जरूर जाता है, परन्तु असंभव नहीं है ।
सोचिए, की स्वभाव में परिवर्तन कैसे लाया जा सकता है, क्या उसी मार्ग से जिस मार्ग से वह स्वभाव बना हैं ? हमारा स्वभाव हमारी ऊर्जाओं के प्रतिबिम्ब के समान होता है, जैसी ऊर्जा या भावों के संपर्क में हम रहते हैं,वैसा ही हमारा स्वभाव बनता है । तो हमारे भीतर परिवर्तन इसी रास्ते सेे आएगा । जैसे आनंद और शांति को अपने स्वभाव में उतारना है, तो ऐसी प्रक्रियाओं में बने रहना होगा, जो आनंद और शांति का अहसास कराती हो, जैसे स्वयं से प्रेम करने वाला व्यक्ति, अपने काम के प्रति, और अन्य लोगों के प्रति, स्वयं ही प्रेमी स्वभाव का होता है, और जैसे कई बार लोगों की नकारात्मक बातें, अपनी नकारात्मक और हीन हो जाते हैं । सीधे-सीधे कहा जाए तो जैसी ऊर्जा वैसी संरचना और वैसी ही ऊर्जा, या वैसी ही अहसास और वैसा ही स्वभाव ।
मैटेरियल साइंस अर्थात पदार्थ विज्ञान का एक स्ट्रक्चर प्रॉपर्टी रिलेशनशिप है, यानि संरचना और गुण अन्तर्सम्बन्ध सिद्धांत, यह सिद्धांत कहता है कि, ''कोई भी पदार्थ अपनी संरचना के अनुरूप ही ऊर्जाओं को धारण करता है, इन ऊर्जाएं से उस पदार्थ का गुण या स्वभाव बनता है, और यह दोनों प्रक्रियाएं, बिना किसी समयांतर के एक साथ घटित होती हैं ।
जैसे कोयला और हीरा, दोनों शुद्ध रूप से, कार्बन ही हैं, परन्तु क्योंकि इनमें कार्बन एक दूसरे से भिन्न रूप से जुड़े हैं, अर्थात कार्बन के जोढ़ समूहों में अतंर है, इसलिए इनके गुणों में भारी भिन्नता होती है ।
तो सरंचना गुणों की कुंजी हैं । सोचिये, यदि कार्बन किसी अन्य संरचना जोड़ को प्राप्त करें, जैसे पदार्थ वैज्ञानिक कराते हैं, संरचना परिवर्तन द्वारा अनुकूल गुणों को प्रकट करते हैं, इसी तरीके से तो ग्रेफाइट और ग्रेफीन बने हैं, यह दोनों भी कोयले और हीरे की तरह कार्बन से ही बने हुए हैं, पर इनके गुण एकदम भिन्न हैं, इन गुणों की कल्पना कोयले और हीरे से नहीं की जा सकती है । इसी कड़ी में वैज्ञानिकों ने विलक्षण गुणों वाले के पदार्थो का निर्माण किया है ।
परिस्थितियां जिनका सानिध्य हमसे बना रहता है, यह सानिध्य हमें बहुत प्रभावित करता है, हमारे भीतर परिवर्तन लेकर आता है, अब जैसे, धरती के भीतर ताप और दाब में अंतर के कारण ही, तो कुछ कार्बन कोयला बनते हैं, कुछ हीरा । ठीक ऐसे ही परिस्थितियों के प्रभाव से प्रकृति के अंग भी भिन्ना को प्राप्त होते हैं ।
हमारा सम्पूर्ण जीवन एक कहानी जैसा है, एक कहानी वस्तुत: एक लाइन में कहें तो परिस्थितियों का अहसास करके, उनमें परिवर्तन लाकर, गुणों को दिशा देने की यात्रा है ।
जीवन के इस सत्य में कितना सुख है, कितनी खुशी कितनी निर्भीकता है कि, हम अकेले नहीं हैं, ऊर्जाएं हमारे साथ हैं, और हम उन्हें दिशा भी दे सकते हैं । जितनी बेहतर और सकारात्मक ऊर्जाओं के साथ हम जियेगें उतना ही अच्छा हमारा जीवन होगा । यह सच है कि जीवन जीने के साधन, उनकी प्राप्यता, हमें अहसासों के स्तर पर भी प्रभावित करती हैं, परन्तु यह भी सत्य है कि, हम यह जान लें, कि वोे कौन सी ऊर्जा है, वो कौन सा अहसास है, वो किसका सानिध्य है जो हमें हमसे मिलाता है, हमें पूरा बनाता है, सुख देता है ।
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