प्रसंगवश
गिर के जंगलोंसे आया दुखद समाचार
निर्मल कुमार शर्मा
भारत के एक मात्र सिंहो (बब्बर शेरों) के प्रश्रय स्थल गिर के जंगलों से पिछले कुछ दिनों से बहुत ही दुखी कर देने वाले समाचार आ रहे हैं । गिर के जंगलों के एक भाग में रहने वाले २६ सिंहों के एक परिवार में पालतू पशुओं और कुत्तों में होने वाली एक प्राणान्तक बिमारी के वाइरस के संक्रमण से कुछ ही दिनों में उन २६ सिंहों में से २३ कालकवलित हो गये उनमें से केवल अब केवल ३ सिंह बचे हैं ,लेकिन अगर समय रहते उन्हें भी कहीं अन्यत्र स्थानांतरित नहीं किया गया तो उनके भी बचने की सम्भावना कम ही है ।
मनुष्यजनित कृत्यों, बढ़ती आबादी ,गरीबी , मनुष्य के हवश और लालच से वनों के अत्यधिक दोहन की वजह से वनों का क्षेत्रफल लगातार सिकुड़ता जा रहा है । वन्य जन्तुओं के विचरण क्षेत्र, भोजन और पानी की समस्या बढ़ती ही जा रही है ,जिससे वन्य प्राणी सघन वन क्षेत्रों से मानव बस्तियों की तरफ आने को बाध्य होते हैं ,जहाँ मनुष्यों द्वारा उनकी जान का खतरा तो रहता ही है ,पालतू पशुओं जैसे कुत्तों ,सूअरों, गाय,बैलों ,भैंसों आदि से भी उनके रोग संक्रमित होने का खतरा बना रहता है । पशु वैज्ञानिकों के अनुसार गिर के उक्त दुखद घटना में भी सिंहों को वही पालतू पशुओं से रोग संक्रमित होने की संभावना है ,जिसमें कुछ ही दिनों में २६ में से २३ सिंहोंकी अकाल मृत्यु हुई है । उस दुनिया की कल्पना करें, जिसमें सिर्फ मनुष्य अकेला ही जीवित रह कर विचरण करता हो ,उसमें बहुविविध चिड़ियों के झुंड आदि वन्य जीव और पेड़-पौधे धीरे -धीरे मनुष्य जनित क्रियाकलापों के दुष्प्रभाव से विलुप्त् हो जायें तो इस स्थिति की वीरान पृथ्वी की कल्पना करना भी डरावना लगता है ।
इसलिए मानव जाति को, जो इस पृथ्वी का सबसे विकसित प्राणी है , को इस पृथ्वी से इन वन्य जीवों के बसेरों यथा पेड़ों ,वनों ,पहाड़ों ,झीलों, झरनों, नदियों ,सपाट मैदानों, समुद्रों आदि के संरक्षण के लिए अपने स्तर पर गंभीर और ईमानदार कोशिश करनी ही चाहिए । अन्यथा प्रकृति, पर्यावरण के तेजी से क्षरण के साथ वन्य जीवों का भी विलुप्त्किरण बहुत ही तेजी से हो रहा है , भारत के गिर के जंगलों में बचे हुए सिंहों का एकमुश्त मृत्यु होना इसी की एक कड़ी है, ज्ञातव्य है कि ये सिंह कभी समस्त भारत भर में विचरण करते थे
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