गुरुवार, 18 अक्टूबर 2018

ज्ञान विज्ञान
अमेरिका में अगले चुनाव मत पत्रों से करवाने का सुझाव
अमेरिका में साल २०२० में राष्ट्रपति चुनाव होने वाले हैं । वहां की विज्ञान अकादमियों का आग्रह है कि ये चुनाव मत पत्रों (बैलट पेपर) से किए जाएं ।
      दरअसल साल २०१६ में हुए राष्ट्र-पति चुनाव में गड़ब-ड़ियों की आशंका जताई जा रही थी । वहां की खुफिया एजेंसियों ने खुलासा किया था कि एक देश की सरकार ने चुनाव में धांधली करवाने की कोशिश की थी ।
अमेरिका में ईवीएम मशीन और इंटरनेट के जरिए वोट डाले जाते हैं । राष्ट्रीय विज्ञान, इंजीनियरिंग और चिकित्सा अकादमी की रिपोर्ट के अनुसार मत पत्र, जिनकी गणना इंसानों द्वारा की जाती है, चुनाव के लिए सबसे सुरक्षित तरीका है। उन्होंने पाया है कि चुनाव के लिए इंटरनेट टेक्नॉलॉजी सुरक्षित और भरोसेमंद नहीं है। इसलिए रिपोर्ट में उनका सुझाव है कि २०२० में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव को मत पत्रोंसे किया जाए । 
जब तक इंटरनेट सुरक्षा और सत्यापन की गांरटी नहीं देता तब तक के लिए इसे छोड़ देना बेहतर होगा । मत पत्र से मतगणना के लिए ऑप्टिकल स्कैनर का उपयोग अवश्य किया जा सकता है। 
मगर, इसके  बाद पुनर्गणना और ऑडिट इंसानों द्वारा ही किया जाना चाहिए । अकादमी की रिपोर्ट में उन मशीनों को भी तुरंत हटाने का भी सुझाव दिया गया है जिनमें इंसानों द्वारा गणना नहीं की जा सकती । 
कमेटी के सह-अध्यक्ष, कोलंबिया युनिवर्सिटी की ली बोलिंगर और इंडियाना युनिवर्सिटी के अध्यक्ष माइकल मैकरॉबी का कहना है कि मतदान के दौरान तनाव को संभालने की जरूरत है । जब मतदाताओंकी संख्या और जटिलता बढ़ रही है और हम उन्हें मताधिकार के प्रति जागरूक करना चाहते हैं तो चुनावी प्रक्रिया को भ्रष्ट होने से बचाना जरूरी है । 
खेल-खेल में जलवायु परिवर्तन पर कार्रवाई
जब कोई जिद्दी बच्च होमवर्क करने से इंकार करता है तो कुछ रचनात्मक माता-पिता समाधान के  रूप में इसे एक खेल में बदल देते हैं। इसी तकनीक का उपयोग वैज्ञानिक जलवायु  परिवर्तन जैसी कठिन चुनौती से निपटने के लिए कर रहे हैं। 
वर्ष २१०० तक औसत वैश्विक तापमान २ डिग्री सेल्सियस बढ़ने की भविष्यवाणी के साथ, वैज्ञानिक आम जनता को इस मामले में लोगों को कार्रवाई में शामिल करने का सबसे प्रभावी तरीका खोजने का प्रयास कर रहे हैं । अभी तक सार्वजनिक सूचनाओं, अभियानों, बड़े पैमाने पर प्रयासों और चेतावनी के माध्यम से जलवायु परिवर्तन के खतरों के बारे में बताकर लोगों को इसमें शामिल करने की कोशिश की जाती रही है। लेकिन वैज्ञानिकों को को लगता है कि अनुभव और प्रयोग के माध्यम से लोगों को सीखने में सक्षम बनाने से बेहतर परिणाम मिल सकते हैं ।  
इसलिए, उन्होंने दुनिया भर के हजारों लोगों को वर्ल्ड क्लाइमेट नामक खेल में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया । यह खेल सहभागियों को संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के  प्रतिनिधि के रूप में जलवायु  परिवर्तन से दुनिया को बचाने पर विचार करने को प्रेरित करता है। इस खेल में प्रतिनिधियों को उनके सुझवों/निर्णयों पर तुरंत प्रतिक्रिया मिलती है। उनके निर्णय सी-रोड्स नामक एक जलवायु  नीति  कम्प्यूटर मॉडल में दर्ज किए जाते हैं । यह मॉडल बता देता है कि स्वास्थ्य, आर्थिक समृद्धि और प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षा पर उनके निर्णय के प्रभाव क्या हो सकते हैं ।  
शोधकर्ताओं ने खेल के  पहले और बाद में २०४२ खिलाड़ियों का सर्वेक्षण किया और पाया कि प्रतिभागियों में जलवायु परिवर्तन के कारणों और प्रभावों की समझ में काफी वृद्धि हुई और उनमें इसके हल के लिए तत्परता भी देखने को मिली । प्लॉस वन में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार इनमे से ८१ प्रतिशत ने जलवायु परिवर्तन के बारे में सीखने और अधिक कार्य करने की इच्छा भी व्यक्त की । यह प्रवृत्ति उत्तरी और दक्षिण अमेरिका, युरोप और अफ्रीका में आयोजित ३९ खेल सत्रों में एक जैसी थी ।
इन परिणामों से यह संकेत भी मिला है कि यह खेल खास तौर पर अमरीकियों तक भी पहुंचने का अच्छा माध्यम हो सकता है जो जलवायु कार्रवाई के समर्थक नहीं हैं और मुक्त बाजार पर सरकारी नियंत्रण का खुलकर विरोध करते हैं । 
लेकिन क्या यह सदी के अंत से पहले ग्रह को २ डिग्री सेल्सियस से गर्म होने को रोकने के लिए पर्याप्त हो सकता है? वैज्ञानिकों का मानना है कि इसके लिए अधिक खिलाड़ियों को जोड़ना होगा, और खेल के प्रति इस उत्साह को वास्तविक दुनिया में स्थानांतरित करना होगा । 
औद्योगिक कृषि से वन विनाश
विश्व स्तर पर जंगली क्षेत्र में हो रही लगातार कमी का मुख्य कारण औद्योगिक कृषि को बताया जा रहा है। प्रति वर्ष ५० लाख हैक्टर क्षेत्र औद्योगिक कृषि के लिए परिवर्तित हो रहा है। बड़ी-बड़ी कंपनियों द्वारा वनों की कटाई ना करने की प्रतिज्ञा के बावजूद, ताड़ एवं  अन्य फसलें उगाई जा रही हैं जिसके चलते पिछले १५ वर्षों में जंगली क्षेत्र का सफाया होने में किसी भी प्रकार की कमी नहीं आई  है ।
इस विश्लेषण से यह तो साफ है कि केवल कॉर्पोरेट वचन से जंगलों को नहीं बचाया जा सकता है । २०१३ में, मैरीलैंड विश्वविद्यालय, कॉलेज पार्क में रिमोट सेंसिंग विशेषज्ञ मैथ्यू हैन्सन और उनके समूह ने उपग्रह तस्वीरों से २००० और २०१२ के बीच वन परिवर्तन के मानचित्र प्रकाशित किए थे । लेकिन इन नक्शों से वनों की कटाई और स्थायी हानि की कोई पुख्ता जानकारी नहीं मिल पाई थी । 
एक नए प्रकार के  विश्लेषण के लिए सस्टेनेबिलिटी कंसॉर्शियम के साथ काम कर रहे भू-स्थानिक विश्लेषक फिलिप कर्टिस ने उपग्रह तस्वीरों की मदद से जंगलों को नुकसान पहुंचाने वाले पांच कारणों को पहचानने के लिए एक कम्प्यूटर प्रोग्राम तैयार किया है । ये कारण हैं-जंगलों की आग (दावा- नल), प्लांटेशन की कटाई, बड़े पैमाने पर खेती, छोटे पैमाने पर खेती और शहरीकरण । सॉफ्टवेयर को इनके बीच भेद करना सिखाने के लिए कर्टिस ने ज्ञात कारणों से जंगलों की कटाई वाली हजारोंतस्वीरों का अध्ययन किया  । 
यह प्रोग्राम तस्वीर के  गणितीय गुणों के आधार पर छोटे-छोटे क्षेत्रों में अनियमित खेती और विशाल औद्योगिक कृषि के बीच भेद करता है। साइंस में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार २००१ से लेकर २०१५ के बीच कुल क्षति का लगभग २७ प्रतिशत बड़े पैमाने पर खेती और पशुपालन के कारण था । इस तरह की खेती में ताड़ की खेती शामिल है जिसका तेल अधिकतर जैव इंर्धन एवं भोजन, सौंदर्य प्रसाधन, और अन्य उत्पादों में एक प्रमुख घटक के तौर पर उपयोग किया जाता है। 
इन प्लांटेशन्स के लिए जंगली क्षेत्र हमेशा के लिए साफ हो गए जबकि छोटे पैमाने पर खेती के लिए साफ किए गए क्षेत्रों में जंगल वापस बहाल हो गए ।
कमोडिटी संचालित खेती से वनों की कटाई २००१ से २०१५ के बीच स्थिर रही । लेकिन हर क्षेत्र में भिन्न रुझान देखने को मिले । ब्राजील में २००४ से २००९ के बीच वनों की कटाई की दर आधी हो गई । मुख्य रूप से इसके कारण पर्यावरण कानूनों को लागू किया जाना और सोयाबीन के  खरीदारों का दबाव   रहे । 
लेकिन मलेशिया और दक्षिण  पूर्व एशिया में, वनों की कटाई के खिलाफ कानूनों की कमी या लागू करने में कोताही के कारण ताड़ बागानों के लिए अधिक से अधिक जंगल काटा जाता रहा । इसी कारण निर्वनीकरण ब्राजील में तो कम हुआ लेकिन दक्षिण पूर्व एशिया में काफी बढ़ोतरी देखी गई । 
कई कंपनियों ने हाल ही में वचन दिया है कि वे निर्वनीकरण के जरिए पैदा किया गया ताड़ का तेल व अन्य वस्तुएं नहीं खरीदेंगे । लेकिन अब तक ली गई ४७३ प्रतिज्ञाओं में से केवल १५५ ने वास्तव में २०२० तक अपनी आपूर्ति के लिए वनों की शून्य कटाई के लक्ष्य निर्धारित किए हैं । इसमें भी केवल ४९ कम्पनियोंने अच्छी  प्रगति की सूचना दी है ।
विस्कॉन्सिन विश्वविद्यालय, मैडिसन की भूगोलविद लिसा रॉश के के अनुसार कम्पनियों के लिए शून्य-कटाई वाले सप्लायर्स को ढूंढना भी एक चुनौती हो सकती है। 

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