विज्ञान जगत
न्यूटन ने एक अलग दुनिया बनायी
नरेन्द्र देवांगन
हमारे जीवन में वैज्ञानिक व्यवहार अपनाने के लिए दो तत्व आवश्यक हैं - विचार एवं तथ्य । विज्ञान की दृष्टि से तथ्य अपने आप में संपूर्ण नहीं होते और न ही मात्र विचार करना अपने आप में पूर्ण है । मानव सभ्यता के विकास के साथ वैज्ञानिक दृष्टिकोण का अधिक से अधिक जुड़ाव आनुभविक तथ्यों और तार्किक विचारों के सुन्दर समन्वय से ही संभव हो पाया है ।
विज्ञान के इतिहास पर एक सरसरी निगाह डालने से यह स्पष्ट हो जाता है कि उपयुक्त प्रयोग एवं सिद्धांत, फिर उनके आधार पर प्रयोग और फिर दोबारा सिद्धांतों की विवेचना वैज्ञानिक पद्धति है । यह क्रम लगातार चलता रहता है ।
गैलीलियो पहले वैज्ञानिक-विचारक थे, जिन्होंने अनुभव एवं तर्क के बीच समन्वय के महत्व को समझा । आनुभविक तथ्य एवं तार्किक विचारों का ऐतिहासिक संगम पीसा की तिरछी मीनार पर हुआ था, जब गैलीलियो ने मीनार के ऊपर से एक बड़े और एक बहुत छोटे पिंड को एक साथ गिराया था और वे दोनों एक साथ जमीन पर पहुंचे थे ।
तथ्य एवं विचारों के इस प्रभावशाली समन्वय ने उस समय तक प्रचलित अरस्तू की इस मान्यता को ध्वस्त कर दिया था कि भारी वस्तु ज्यादा तेज गति से गिरती है । पर अधिकतर ऐतिहासिक मोड़ इतने सरल और निश्चित रूप से निर्धारित नहीं हो पाते ।
यहां सत्रहवीं शताब्दी के दो महान विचारकों का उल्लेख प्रासंगिक होगा । पहले देकार्ते जिन्होंने तर्क और विवेक की राह अपनाई और दूसरे फ्रांसिस बेकन जिन्होंने प्रयोग या आविष्कार को अधिक महत्व दिया। दो महान वैज्ञानिकों का यह व्यक्ति वैशिष्ट उस समय प्रचलित फ्रांसीसी और ब्रिटिश व्यवहारों या मान्यताओं का प्रतीक था । देकार्ते ने अपना अधिकतर वैज्ञानिक कार्य पलंग पर लेटे-लेटे किया और बेकन के बारे में कहा जाता है कि ६५ साल की उम्र में एक प्रयोग में मुर्गी के अंदर बर्फ भरते हुए उन्हें ठंड लग गई और इसके कुछ दिन बाद वे संसार से विदा हो गए ।
न्यूटन के लिए देकार्ते और बेकन दोनों के ही उदाहरण आवश्यक एवं महत्वपूर्ण थे । न्यूटन को देकार्ते से प्रेरणा मिली कि प्रकृति सदा और हर जगह समान है और उसमें एकरूपता छिपी रहती है । सामान्य लोगों के लिए जीवन के तथ्य और सच्चइयां विस्मयकारी होती हैं पर उनके पीछे छिपे सिद्धांतों की गूढ़ता के प्रति वे उदासीन रहते हैं । न्यूटन और सेब की कहानी तो सर्वविदित है । पर उनके द्वारा दिए गए गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत के पीछे गहन तार्किक विचारशीलता एवं गैलीलियो द्वारा किए गए प्रयोगों को आत्मसात कर एक सार्वभौमिक सच्चई सच्चई को अति अनुशासित व विलक्षण रूप से प्रकाशित कर पाने की उनकी क्षमता बिरली है ।
न्यूटन द्वारा प्रेरित वैचारिक क्रांति के आधार में थी उनकी यह मान्यता कि जो नियम सामान्य आकार की वस्तुआें पर लागू होते हैं, वे वस्तुत: सार्वभौमिक हैंऔर हर छोटे-बड़े किसी भी आकार या शक्ल के पदार्थ या पिंडों पर लागू होते हैं । इस विचार को आत्मसात करने के साथ ही न्यूटन ने अपनी ही एक नई दुनिया का निर्माण शुरू किया ।
न्यूटन की इस दुनिया की तुलना युक्लिड के ज्यामितीय संसार से की जा सकती है । युक्लिड ने बिन्दु, रेखा एवं तल (प्लेन) को परिभाषित करने के बाद कुछ स्वयंसिद्ध सिद्धांत प्रतिपादित किए, जिनका पालन बिन्दुआें, रेखाओं और तलों के आपसी सम्बंधों के लिए अनिवार्य है। और यदि युक्लिड आज भी अपनी ज्यामितीय देन की वजह से माने जाते हैं तो इसलिए नहीं कि उनके नियम वास्तविक दुनिया से ग्रहण किए गए थे, वरन इसलिए कि युक्लिडीय संसार के तार्किक परिणाम हमारी वास्तविक दुनिया के ताले में चाबी की तरह फिट होते हैं ।
न्यूटन ने अपनी वैचारिक दुनिया के नियमों को भौतिक संसार पर लागू किया । उन्होंने पदार्थों के न्यूनतम अंशों को, बिना परिभाषित किए, भौतिक दुनिया का आधार बनाया । न्यूटन का लेखन निर्मल जल की तरह स्पष्ट था पर वे तर्क को इलास्टिक की तरह खींचने के पक्ष में नहीं थे । वे अपने विरोधियों की कठिनाई को समझ सकते थे। पर जो वैज्ञानिक अपनी समस्या का हल अपने आप नहीं निकाल सकते थे, उनकी मदद करने में वे स्वयं को असमर्थ पाते थे ।
न्यूटन की अपनी दुनिया जो अपरिचित अल्पतम कणों से बनी थी और जिसके द्वारा सब कुछ निर्मित हो सकता था चाहे वह सेब हो या चंद्रमा, अन्य ग्रह या सूर्य । न्यूटन के अनुसार इन सभी संगठनों के गति व्यवहार की मर्यादा एक ही है। न्यूटन ने इस बात को और आगे बढ़ाया और उनकेअनुसार इन सब संगठनों के अंतर में बसे प्रत्येक अल्पतम अंश भी उनके द्वारा प्रतिपादित समन्वित नियमों का पालन करते थे। न्यूटन के अनुसार अगर वे वेगहीन हैंतो वेगहीन ही बने रहेंगे और यदि वे गतिशील हैंतो उनकी गतिशीलता वैसी ही बनी रहेगी, जब तक कि उनके ऊपर बाहरी बलों का प्रभाव न पड़े और इन सब बाहरी बलों में न्यूटन के अनुसार प्रमुखतम है वह बल, जिसके द्वारा प्रत्येक अल्पतम कण हर अन्य कण को अपनी ओर आकर्षित करता है । इस बल की शक्ति कणों के बीच की दूरी के वर्ग पर ही आधारित होती है और इस प्रकार नियमित होती है कि उनके बीच की दूरी दुगनी हो जाने पर उनके बीच का बल घटकर अपनी प्रारंभिक बल का चतुर्थांश रह जाएगा ।
न्यूटन एक सशक्त गणितज्ञ थे और उनका एक मूलभूत निष्कर्ष था कि एक ठोस गोलक का व्यवहार अपने केन्द्र पर अवस्थित एक वजनी बिन्दु की तरह होता है । न्यूटन ने इस बात को आगे बढ़ाते हुए यह दिखा दिया कि ग्रहों के मार्गों का निश्चित निर्धारण किया जा सकता है और साथ ही यह भी कि ग्रह अपने निश्चित मार्ग पर घूमते हुए एक ब्राह्मंडीय घड़ी का काम करते हैं । उन्होंने गणितीय कुशाग्रता एवं परम धैर्य का परिचय देते हुए ज्वार-भाटों की, धूमकेतुआें की कक्षाओं की एवं अन्य ब्राह्मंडीय पिंडों के गतिचक्र की विषद गणना की ।
इस प्रकार न्यूटन ने एक ऐसी दुनिया का निर्माण किया जिसको एक नाविक से लेकर खगोल शास्त्री और समुद्र भ्रमण का शौकीन, सब पहचान सकते थे। और इस प्रकार न्यूटन की सैद्धांतिक दुनिया और वास्तविक दुनिया के बीच एक विलक्षण साम्य स्थापित होता चला गया ।
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