राष्ट्रीय युवा दिवस पर विशेष
याददाश्त में मददगार है व्यायाम
डॉ. डी. बालसुब्रमण्यन
पिछले 30 सालों में भारतीय लोगों की औसत आयु बढ़ी है। 1960 में भारतीय लोगों की औसत आयु 41 वर्ष थी जो 2015 में बढ़कर 68 वर्ष हो गई। उम्र लम्बी होने के साथ उम्र से जुड़ी शारीरिक और मानसिक समस्याएं भी आती हैं ।
इनके बारे में सचेत होने और उनका हल ढूंढने की जरूरत है । औसत आयु में वृद्धि के साथ-साथ स्मृतिलोप (डिमेंशिया) की समस्या भी बढ़ी है। धीरे-धीरे याददाश्त जाना और संज्ञानात्मक क्षमता में कमी स्मृतिलोप की समस्या पैदा करते हैं । अनुमान है कि भारत में लगभग 40 लाख लोग स्मृतिलोप से पीड़ित हैं। इन 40 लाख लोगों में से लगभग 16 लाख bोग तो अल्जाइमर से पीड़ित हैं। अल्जाइमर एक तंत्रिका सम्बंधी विकार है। कुछ अन्य तरह के तंत्रिका विकार भी स्मृतिलोप को जन्म देते हैं ।
उम्र बढ़ने के साथ हमारे मस्तिष्क में भी परिवर्तन आते हैं। हमारे मस्तिष्क का हिप्पोकैंपस नामक हिस्सा सीखने, स्मृतियां निर्मित करने और उन्हें सहेजने से जुड़े कार्यों के लिए जिम्मेदार होता है। मुश्किbें तब शुरू होती हैं जब हिप्पोकैंपस की तंत्रिका कोशिकाएं क्षतिग्रस्त होने लगती हैं या मरने लगती हैं। यदि इस हिस्से की सुरक्षा के और इन तंत्रिका कोशिकाओं को दुरुस्त करने के तरीके मिल जाएं तो इस समस्या से निजात मिल सकती है और संज्ञानात्मक क्षमता को सामान्य किया जा सकता है ।
स्मृतिलोप किन कारणों से होता है ? दुनिया भर में हुए कुछ शोध का निष्कर्ष था कि स्मृतिलोप के लिए कुछ हद तक ‘रिस्क जीन’और प्रेसिनिलीन जिम्मेदार है। किंन्तु सीसीएमबी हैदराबाद के डॉ. डी. चांडक और तिरुवनंतपुरम के डॉ. मथुरानाथ के आंकड़ों के मुताबिक और प्रेसिनिलीन की भूमिका गंभीर समस्या पैदा करने में कम ही रही है। हालांकि आंकड़ों से यह भी लगता है कि देश भर में क्षेत्रीय अंतर भी हैं (जैसे, पंजाबी युनिवर्सिटी, पटियाला के डॉ. पी.पी. सिंह के आंकड़े)।
मस्तिष्क की इमेजिंग करने पर स्मृतिलोप का मुख्य कारण सामने आया है। ब्रेन इमेजिंग में पता चला है कि हिप्पोकैंपस और मस्तिष्क के कुछ अन्य हिस्से थोड़े टेढ़े या उलझे हुए हैं, और यहां ‘प्bाका’ (अघुलनशील परत) जमा है। प्bाक मस्तिष्क की संकेत भेजने की प्रक्रिया में बाधा पहुंचाते हैं। (इसका पता सबसे पहले यूके में गायों को होने वाली बीमारी मेड काऊ में चला था । इन गायों को मांस के लिए पाला जाता था।) कुछ अन्य का सुझाव है कि स्मृतिलोप के लिए ब्रेन डेराव्ड न्यूरोटाूपिक फैक्टर नामक प्रोटीन जिम्मेदार है। जब इऊछऋ का स्तर निश्चित सीमा से कम हो जाता है तो स्मृतिलोप होता है।
कई तरीकों से स्मृतिलोप को संभालने की कोशिश की गई है। इसके लिए लोगों को टीका भी दिया गया लेकिन सफल नहीं रहा, ना ही इम्यून थेरपी इसमें कारगर साबित हुई । नियमित शारीरिक व्यायाम से इसमें मदद मिलती दिखी है - शारीरिक व्यायाम और दिमागी व्यायाम के बीच कुछ तो सम्बंध है। काफी समय से माना जाता रहा है कि व्यायाम से नई तंत्रिका कोशिकाओं का निर्माण (न्यूरोजेनेसिस) शुरू होता है या तेज होता है। ठीक वैसे ही जैसे व्यायाम मांसपेशियों और ह्दय की कोशिकाओं के निर्माण में मददगार होता है।
इसी सम्बंध में हारवर्ड विश्वविद्यालय के डॉ. रुडोल्फ ई. तान्जी और उनके समूह ने साइंस पत्रिका में एक नोट प्रकाशित किया है। अपने अनुसंधान में उन्होंने अल्जाइमर से पीड़ित एक चूहे को मॉडल के तौर पर उपयोग किया था ।
दिमाग के हिप्पोकैंपस में न्यूरो-प्रोजेनिटर कोशिकाएं होती है जो नए न्यूरॉन्स बनाती रहती हैं। इस प्रक्रिया को एडल्ट हिप्पौकैंपल न्यूरोजिनेसिस (अकछ) कहते हैं। अल्जाइमर और अन्य स्मृतिलोप में नए न्यूरॉन्स बनाने (अकछ) की यह प्रणाली बाधित हो जाती है। डॉ. रुडोल्फ और उनके साथियों ने अल्जाइमर से पीड़ित चूहों को कुछ दिनों तक रोजना 3 घंटे घूमते हुए चक्के पर दौड़ाया। इससे चूहों में अकछ में वृद्धि हुई।
इस शोध में डॉ. रुडोल्फ को कई सकारात्मक परिणाम मिले। पहला, चूहों में अकछ बढ़ गया था और ज्यादा तंत्रिका कोशिकाएं बनी देखी गर्इं । दूसरा, चूहों के मस्तिष्क में प्bाक कम हो गए थे। तीसरा, इऊछऋ का स्तर बढ़ गया था। और चौथा, उनकी याददाश्त में सुधार देखने को मिला था। यानी व्यायाम स्मृतिलोप से ग्रस्त चूहों में समस्या को कम करता है, हिप्पौ-कैंपस में न्यूरॉन्स बढ़ाता है और याददाश्त दुरुस्त करता है ।
यदि व्यायाम इऊछऋ को बढ़ाकर अकछ की प्रक्रिया तेज करता है, और विकार को कम करता है तो सवाल यह उठता है कि क्यों ना व्यायाम के स्थान पर बायोकेमिकल तरीके से उपचार किया जाए। बायोकेमिकb तरीके में इऊछऋ के स्तर को बढ़ाने के लिए अखउअठ और झ7उ3 रसायनों को शरीर में इंजेक्शन की मदद से दिया जाता है। ये नए न्यूरॉन्स को जीवित रहने में मदद करते हैं ।
साइंस पत्रिका के उसी अंक में डॉ. रुडोल्फ के शोध कार्य पर डॉ. टैरा स्पायर्स जोन्स और डॉ. क्रेग रिची ने टिप्पणी की है। इसमें उन्होंने कहा है कि यह पर्चा इशारा करता है कि क्यों व्यायाम याददाश्त के लिए अच्छा है। (उन्होंने थोड़ा मजाकिया लहजे में जोड़ा है कि शायद हम अखउअठ और झ7उ3 के रूप में व्यायाम के प्रभावों को कोशीशियों में बंद कर रहे हैं। यह उन लोगों के लिए है जो शारीरिक व्यायाम नहीं कर सकते, या कुछ आलसियों के लिए जो व्यायाम करना नहीं चाहते)। ध्यान देने वाली बात है कि चूहे लगातार कई दिन रोजाना 3 घंटे दौड़ते थे, यानी कसरत लगातार और नियमित तौर पर करने की ज़रूरत है। यानी सभी वरिष्ठ नागरिकों को जल्दी व्यायाम शुरू कर लेना चाहिए, हो सके तो चालीस की उम्र में। ये पूरे शरीर और दिमाग के लिए अच्छा होगा ।
एक मान्यता यह भी है कि ध्यान संज्ञानात्मक क्षमता को बढ़ाता है और यह तंत्रिका-क्षति रोगों के लिए अच्छा है। हालांकि ना तो डॉ. रुडोल्फेफ के पेपर में और और ना ही पेपर के समीक्षकों ने ध्यान पर कोई टिप्पणी दी है। साथ ही यह बुज़ुर्गों में संज्ञानात्मक कमी से बचाव के लिए एक अच्छा गैर-औषधीय उपचार हो सकता है।
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