शुक्रवार, 18 जनवरी 2019

प्रदेश चर्चा 
म.प्र. : चुटका परियोजना पर पुनर्विचार आवश्यक 
राजकुमार सिन्हा 
          बिजली एक अत्यंत महत्वपूर्ण क्षेत्र है । एक ओर इससे करोड़ों लोगों को रोशनी मिलती है, दूसरी ओर, खेती, धंधे, उद्योग आदि भी बिजली पर निर्भर हैं । 'इन्डियन इलेक्ट्रीसिटी एक्ट-१९४८` का उद्देश्य भी सभी को उचित दर पर सतत बिजली उपलब्ध कराना था । इस समय देश में बिजली की स्थापित उत्पादन क्षमता तीन लाख ४४ हजार मेगावाट है, जबकि उच्च्तम मांग एक लाख ६५ हजार मेगावाट। कुल बिजली उत्पादन में ताप (थर्मल) विद्युत (५७.३ प्रतिशत), जल (हाइड्रो) विद्युत (१४.५ प्रतिशत), वायु (विन्ड) ऊर्जा (९.९ प्रतिशत), गैस (७.२ प्रतिशत), सौर (सोलर) ऊर्जा (६.३ प्रतिशत), बायोमास (२.६ प्रतिशत) तथा परमाणु (एटॉमिक) बिजली (२.० प्रतिशत) की हिस्सेदारी है ।
मध्यप्रदेश में बिजली की औसत मांग ८ से ९ हजार मेगावाट है तथा रबी फसल की सिंचाई के समय उच्च्तम मांग ११ हजार ५०० मेगावाट रहती है,जबकि उपलब्धता १८ हजार ३६४ मेगावाट अर्थात प्रदेश में मांग से ज्यादा बिजली उपलब्ध है। इसके बावजूद नर्मदा नदी पर बने पहले 'रानी अवंतीबाई सागर` उर्फ 'बरगी बाँध` से विस्थापित, मंडला जिले के बरगी जलाशय के किनारे के गाँव चुटका में 'चुटका परमाणु ऊर्जा परियोजना` प्रस्तावित की गई है । देश में वर्तमान बिजली व्यवस्था व तुलनात्मक रूप से अन्य स्त्रोतों से कम दर पर बिजली की उपलब्धता इस पूरी परियोजना पर गंभीर सवाल खड़े करती है । वर्ष २००५ में अमेरिका द्वारा भारत पर लगे नाभिकीय प्रतिबंध हटाए गये थे, तब से अब तक 'अपरम्परिक ऊर्जा,` विशेषकर पवन व सौर ऊर्जा के क्षेत्र में आये भारी-भरकम बदलाव के कारण 'चुटका परियोजना` पर नये सिरे से विचार करने की आवश्यकता है । इस परियोजना को अभी तक पर्यावरणीय मंजूरी प्राप्त नहीं हुई है ।
जिस समय १४०० मेगावाट की 'चुटका परियोजना` को योजना आयोग से मंजूरी मिली थी, तब सौर ऊर्जा से बिजली पैदा करना मंहगा होता था, आज स्थिति बदल गई है। परियोजना की अनुमानित लागत १६ हजार ५५० करोड़ रुपए आंकी गई है। इस परियोजना खर्च के आधार पर एक मेगावाट बिजली उत्पादन की लागत लगभग १२ करोड़ रुपए आयेगी, जबकि सौर ऊर्जा आजकल लगभग ४ करोड़ प्रति मेगावाट में बन जाती है । सौर ऊर्जा संयंत्र दो वर्ष के अन्दर कार्य प्रारम्भ कर देता है, वहीं परमाणु बिजली घर बनाने में कम-से-कम दस वर्ष लगते हैं । दिल्ली की एक संस्था 'ऑब्जर्वर रिसर्च फाउन्डेशन` की रिपोर्ट के अनुसार विदेशी परमाणु संयंत्र से वितरण कंम्पनियों द्वारा खरीदी जाने वाली बिजली की लागत ९ से १२ रुपए प्रति यूनिट तक आयेगी, जिस पर भारत सरकार व उपकरण प्रदायकर्ता के मध्य अभी तक कोई सहमति नहीं बनी है । चालीस वर्ष तक चलने वाले परमाणु संयत्र की 'डी-कमिशनिंग` आवश्यक होगी, जिसका खर्च संयत्र के स्थापना खर्च के बराबर होगा । यदि इसका भी हिसाब लगाया जाए तो परमाणु विद्युत की लागत लगभग २० रूपये प्रति यूनिट आयेगी । ऐसी महंगी बिजली के परिप्रेक्ष्य में अन्य विकल्पों पर विचार किया जाना चाहिए । मध्यप्रदेश का ही एक उदाहरण है राज्य सरकार द्वारा रीवा जिले की त्यौंथर तहसील में ७५० मेगावाट की सौर विद्युत परियोजना हेतु अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धात्मक बोली के तहत मात्र दो रुपए ९७ पैसे प्रति यूनिट की दर पर बिजली खरीदने का अनुबंध अभी १७ अप्रैल २०१७ को भोपाल में ही किया गया है ।
भारत सरकार द्वारा संशोधित 'टैरिफ पॉलिसी-२०१६` के अनुसार किसी भी नये सार्वजनिक उपक्रम से विद्युत वितरण कम्पनियों को प्रतिस्पर्धात्मक बोली के आधार पर ही बिजली खरीदने की अनिवार्यता है । 'चुटका परियोजना` हेतु ऐसी किसी प्रक्रिया का प्रारम्भ 'परमाणु ऊर्जा निगम` द्वारा नहीं किया गया है । मप्र पॉवर मैनेजमेन्ट कम्पनियों द्वारा निजी विद्युत कम्पनियों से मंहगी बिजली खरीदी अनुबंध के कारण २०१४-१५ तक कुल घाटा ३० हजार २८० करोड़ रुपए तथा सितम्बर २०१५ तक कुल कर्ज ३४ हजार ७३९ करोड़ रुपए हो गया था, जिसकी भरपाई बिजली दर बढ़ाकर प्रदेश के एक करोड़ ३५ लाख उपभोक्ताआेंसे वसूली जा रही है । उत्पादन के स्थान से उपभोक्ताआें तक  पहुँचते -पहुँचते ३० फीसदी बिजली बर्बाद हो जाता है जो अंतर्राष्ट्रीय मापदंडों से बहुत ज्यादा है । जितना पैसा और ध्यान परमाणु बिजली कार्यक्रम पर लगाया जा रहा है, उसका आधा भी पारेषण -वितरण में होने वाली बर्बादी को कम करने पर लगाया जाए तो यह बिजली उत्पादन बढ़ाने जैसा ही होगा। नई परियोजना को लगाने की बजाए जो परियोजना स्थापित है उसकी कुशलता बढ़ाई जाए तो वो कम खर्च में ज्यादा परिणाम देगी 
सौर ऊर्जा एक स्वच्छ व पर्यावरण हितैषी ऊर्जा स्त्रोत है जबकि परमाणु ऊर्जा तुलनात्मक दृष्टि से पूर्णत: असुरक्षित और खतरनाक है। जापान सरीखे उन्नत प्रौद्योगिकी वाले देश के फूकुशिमा में घटी परमाणु दुर्घटना के बाद जापान और जर्मनी ने परमाणु बिजली संयंत्र बंद करने का फैसला किया था । इटली ने रूस के  चेर्नोबिल शहर में हुई परमाणु दुर्घटना के बाद ही अपने परमाणु विद्युत कार्यक्रम को बंद कर दिया था । कजाकिस्तान ने १९९९ में और लिथुआनिया ने २००९ में अपने-अपने एक मात्र परमाणु रियेक्टर्स बंद कर दिए थे । विगत ३० वर्षों से अमेरिका ने अपने यहां एक भी नये परमाणु संयंत्र की स्थापना नहीं की है। दरअसल इस दौर में परमाणु बिजली उद्योग में जबरदस्त मंदी है इसलिए अमेरिका, फ्रांस और रूस आदि की परमाणु विद्युत कम्पनियाँ भारत में इसके और आर्डर पाने के लिए बेचैन है । भारत में ६ परमाणु बिजली घर बनना प्रस्तावित हैं, जिनमें से हरिपुर संयंत्र को पश्चिम बंगाल सरकार ने निरस्त कर दिया है । गुजरात के मिठीविर्दी में स्थानीय लोगों के विरोध के कारण उसे आंध्रप्रदेश के कोवाडा ले जाया गया है । 
दूसरी ओर, चुटका के संयत्र से निकलने वाले पानी का तापमान समुद्र के तापमान से ५ डिग्री सेल्सियस अधिक होगा। तापमान की यह अधिकता बरगी जलाशय और नर्मदा नदी में मौजूद जलीय जीव-जंतुओं का खात्मा करेगी । इससे नर्मदा घाटी की जैव-विविधता पर प्रतिकूल असर पड़ेगा तथा निकलने वाले विकिरण युक्त जहरीले पानी से नदी भी जहरीली हो जाएगी । वर्ष १९९७ में नर्मदा किनारे के इस क्षेत्र में  ६.४ रिक्टर स्केल का विनाशकारी भूकम्प आ भी चुका है। 

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